1) तब एलियाह अग्नि की तरह प्रकट हुए। उनकी वाणी धधकती मशाल के सदृश थी।
2) उन्होंने उनके देश में अकाल भेजा और अपने धर्मोत्साह में उनकी संख्या घटायी।
3) उन्होंने प्रभु के वचन से आकाश के द्वार बन्द किये और तीन बार आकाश से अग्नि गिरायी।
4) एलियाह! आप अपने चमत्कारों के कारण कितने महान् है! आपके सदृश होने का दावा कौन कर सकता है!
9) आप अग्नि की आँधी में अग्निमय अश्वों के रथ में आरोहित कर लिये गये।
10) आपके विषय में लिखा है, कि आप निर्धारित समय पर चेतावनी देने आयेंगे, जिससे ईश्वरीय प्रकोप भड़कने से पहले ही आप उसे शान्त करें, पिता और पुत्र का मेल करायें और इस्राएल के वंशों का पुनरुद्धार करें।
11) धन्य हैं वे, जिन्होंने आपके दर्शन किये, जो आपके प्रेम से सम्मानित हुए!
9) पहाड़ से उतरते समय उनके शिष्यों ने उन से पूछा, ’’शास्त्री यह क्यों कहते हैं कि पहले एलियस को आना है?’’
11) ईसा ने उत्तर दिया, ’’एलियस अवश्य सब कुछ ठीक करने आयेगा।
12) परन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ- एलियस आ चुका है। उन्होंने उसे नहीं पहचाना और उसके साथ मनमाना व्यवहार किया। उसी तरह मानव पुत्र भी उनके हाथों दुःख उठायेगा।’’
13) तब वे समझ गये कि ईसा योहन बपतिस्ता के विषय में कह रहे हैं।
एलिय्याह, भविष्यवक्ता, आज के पहले पाठ के साथ-साथ सुसमाचार में भी केंद्रीय पात्र है। एलिय्याह के शब्द “भट्ठी की तरह धधक रहे थे।“ क्या सशक्त छवि है! उसने धरती पर आग भी उतारी और कई अन्य आश्चर्यजनक कार्य भी किये। येसु के शिष्यों को यह भविष्यवाणी समझ में नहीं आयी। उन्होंने उससे पूछा कि क्या एलिय्याह भविष्य में पृथ्वी पर लौटेगा। येसु ने उनसे कहा कि हाँ, एलिय्याह वापस आएगा। हालाँकि, येसु यह कहते हैं कि एलिय्याह पहले ही पृथ्वी पर आ चुका था। हालाँकि, किसी ने उसे नहीं पहचाना। एलिय्याह को लोगों ने अस्वीकार कर दिया था। एलिय्याह के बारे में बात करते हुए, येसु अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी कर रहे हैं। वह अपने शिष्यों को इस बात के लिए तैयार कर रहा है कि क्या आने वाला है। येसु उनसे कहते हैं, “मानव पुत्र दुःख उठाएगा।“ हालाँकि, शिष्यों का मानना है कि येसु योहन के बारे में बात कर रहे हैं। हमेशा की तरह, येसु के शिष्य समझ नहीं पाए। कई बार हम यह भी नहीं समझ पाते कि येसु हमसे क्या कह रहे हैं। कभी-कभी, हमारे लिए येसु की आवाज़ सुनना मुश्किल हो सकता है। हमारे जीवन में व्यस्तता और शोर हमें इस बात से बहरा बना सकता है कि येसु हमसे क्या कह रहे हैं। आज हम अपने कान, अपने दिमाग और अपने दिल खोल सकते हैं! क्या हम येसु की आवाज़ को ध्यान से सुन सकते हैं। येसु बोलेंगे. क्या हम सुनेंगे?
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)Elijah, the prophet, is the central character in today’s first reading as well as in the Gospel. The reading from Sirach also says that Elijah’s words “flamed like a furnace.” What a powerful image! He also brought down fire to the earth and did many other astonishing deeds. Jesus’ disciples did not understand this prophecy. They asked Him if Elijah would return to earth in the future. Jesus told them that yes, Elijah would return. However, Jesus continues by saying that Elijah already had come to the earth. However, no one recognized him. Elijah was rejected by the people. In speaking of Elijah, Jesus is predicting His own death. He is preparing his disciples for what will come. Jesus tells them “the Son of Man will suffer.” However, the disciples assume that Jesus is talking about John the Baptist. As usual, Jesus’ disciples did not understand. At times, we also do not understand what Jesus is saying to us. At times, it may be difficult for us to hear Jesus’ voice. The busyness and noise in our lives can make us deaf to what Jesus may be saying to us. Today may we open our ears, our minds and our hearts! May we listen attentively for Jesus’ voice. Jesus will speak. Will we listen?
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
नबी ऐलियस इस्राइल के सबसे महत्वपूर्ण नबियों में से एक थे। कभी-कभी लोग उनकी तुलना नबी मूसा से भी करते थे। ऐसा माना जाता था कि मसीह के आने से पहले नबी ऐलियस को भेजा जाएगा ताकि वे लोगों को तैयार करें कि वे मुक्तिदाता को स्वीकार करने के योग्य बनें। यह बात हम आज के पहले पाठ में भी देखते हैं, और लोगों को यह मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी बताया भी गया था। और इसलिए आज के सुसमाचार में शिष्य लोग नबी ऐलियस के आने के बारे में प्रभु येसु से पूछते हैं।
हम जानते हैं कि प्रभु येसु ने स्वयं इस ओर इंगित किया था कि योहन बपतिस्ता ही नबी ऐलियस हैं जो आने वाले थे। बहुत सारे लोग भी इस बात को स्वीकार करते थे कि योहन का बपतिस्मा ईश्वर की ओर से था। सन्त योहन का सन्देश एकदम स्पष्ट था कि वह स्वयं मसीह नहीं थे, लेकिन मसीह के आगमन के लिए लोगों को तैयार करने आए थे। इसलिए वह यरदन नदी में पश्चाताप का बपतिस्मा देते थे। लेकिन बहुत से लोगों ने उनके सन्देश को गंभीरता से नहीं लिया और खुद को मुक्तिदाता के आगमन के लिए तैयार नहीं किया। क्या हम भी उन लोगों में से हैं जो यह जानते हुए भी कि मुक्तिदाता आने वाले हैं, खुद को पश्चताप के साथ तैयार नहीं करते?
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Elijah was one of the most important prophets of Israel. He is even sometimes compared side by side with Moses. It was believed that before the arrival of the promised messiah, Elijah had to come before and prepare the people, so that they recognize and receive the saviour and thus escape the wrath of God. This is also mentioned in the first reading of today and also it was communicated to people from generation to generation. That’s why in the gospel today, the disciples ask Jesus about the same.
We know now that Jesus indicated that John the Baptist is Elijah. In fact many people believed that John the Baptist had come from God. His message was also clear, that he wanted people to prepare by repenting and as a sign of their repentance, they had to be baptized with the baptism of repentance in the river Jordan. But the people did not accept the message of repentance. Are we ready to repent and accept the Messiah in our lives?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
नबी एलियाह ने पश्चाताप का उपदेश देते हुए लोगों से अपनी मूर्ति-पूजा छोड़ने को कहा। ऐसा करने पर उन्हें राजा अहाब और रानी ईज़ेबेल के गुस्से का सामना करना पड़ा। उन्होंने कार्मल पर्वत पर बाल देव के चार सौ पचास नबियों तथा अशेरा देव के चार सौ नबियों का सामना किया। वे नहीं चाहते थे कि दो अलग-अलग मतों के साथ इस्राएली लोग लंगड़ा कर चलें। उन्होंने उन्हें या तो प्रभु ईश्वर पर विश्वास करने या बाल देव पर विश्वास करने का निर्णय लेने के लिए मजबूर किया। नबी एलियाह के मनोभाव और और शक्ति ले कर आए संत योहन बपतिस्ता चाहते थे कि लोग अपने पापपूर्ण तरीकों से दूर जाएं और ईश्वर में अपने विश्वास को स्पष्ट करें। उन्होंने इस्राएल के सभी लोगों के सामने यह चुनौती रखी। जैसा कि हम क्रिसमस के महान पर्व की ओर बढ़ रहे हैं, प्रभु चाहते हैं कि हम पश्चाताप करें और उन पर विश्वास करें।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
Elijah was a prophet who preached repentance asking people to give up their idol worship. Elijah had to face the fury of Ahab and the king and Jezebel the queen. He confronted four hundred and fifty prophets of Baal and the four hundred prophets of Asherah at Mount Carmel. He did not want the Israelites to go limping with two different options – worship of God or that of idols. He forced them to make a decision either to follow Yahweh or Baal. St. John the Baptist who came in the spirit and power of Elijah also wanted the people to move away from their sinful ways and make a clear choice for God. This was the challenge thrown by him before all the people of Israel. As we approach the great feast of Christmas the Lord wants us to repent and make a clear choice him.
✍ -Fr. Francis Scaria