दिसंबर 09, 2024, सोमवार

माता मरियम का निष्कलन्क गर्भागमन - समारोह

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📒 पहला पाठ : उत्पत्ति ग्रन्थ 3:9-15.20

9) प्रभु-ईश्वर ने आदम से पुकार कर कहा, ''तुम कहाँ हो?''

10) उसने उत्तर दिया, ''मैं बगीचे में तेरी आवाज सुन कर डर गया, क्योंकि में नंगा हूँ और मैं छिप गया''।

11) प्रभु ने कहा, ''किसने तुम्हें बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया, जिस को खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?''

12) मनुष्य ने उत्तर दिया, ''मेरे साथ रहने कि लिए जिस स्त्री को तूने दिया, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया''।

13) प्रभु-ईश्वर ने स्त्री से कहा, ''तुमने क्या किया है?'' और उसने उत्तर दिया, ''साँप ने मुझे बहका दिया और मैंने खा लिया''।

14) तब ईश्वर ने साँप से कहा, ''चूँकि तूने यह किया है, तू सब घरेलू तथा जंगली जानवरों में शापित होगा। तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी खायेगा।

15) मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा''।

20) पुरुष ने अपनी पत्नी का नाम 'हेवा' रखा, क्योंकि वह सभी मानव प्राणियों की माता है।

दूसरा पाठ: एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:3-6,11-12

3) धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता! उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं।

4) उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त हो कर उसकी दृष्टि में पवित्र तथा निष्कलंक बनें।

5) उसने प्रेम से प्रेरित हो कर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे। इस प्रकार उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार

6) अपने अनुग्रह की महिमा प्रकट की है। वह अनुग्रह हमें उसके प्रिय पुत्र द्वारा मिला है,

11 (11-12) ईश्वर सब बातों में अपने मन की योजना पूरी करता है। उसके अनुसार उसने निर्धारित किया है कि हम (यहूदी) मसीह द्वारा बुलाये जायें और हम लोगों के कारण उसकी महिमा की स्तुति हो। हम लोगों ने तो सब से पहले मसीह पर भरोसा रखा था।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:26-38

26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,

27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।

29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।

30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’

34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’

35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’

38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।

📚 मनन-चिंतन

एक क्षण रुकें और अपने आप से पूछेंः आपके लिए मरियम कौन है? क्या वह सुसमाचार में बस एक पात्र है? या क्या मरियम कोई ऐसी व्यक्ति है जिसके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध है? मरियम एक अद्भुत महिला हैं. आस्था के मानवीकरण की मूर्त है! हममें से कितने लोगों ने देवदूत की भविष्यवाणी पर विश्वास किया होगा? मुझे आश्चर्य है कि जब स्वर्गदूत उनके सामने प्रकट हुआ तो मरियम ने क्या विचार और भावनाएँ अनुभव कीं। सुसमाचार हमें बताता है कि “स्वर्गदूत के संदेश से मरियम बहुत परेशान थी।“ मैं मानता हूं कि उनकी उलझन किसी भी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होगी जिसके सामने कोई देवदूत प्रकट हुआ हो। स्वर्गदूत के संदेश ने मरियम के लिए इसे और भी अविश्वसनीय बना दिया होगा! हालाँकि, मरियम की जड़ें ईश्वर में गहराई से जुड़ी हुई थीं। भले ही वह यह नहीं समझ पाई कि ईश्वर की यह योजना कैसे सामने आएगी, मरियम का हृदय ईश्वर के संदेश के लिए खुला और ग्रहणशील था। उसने उन सभी भावनाओं और उथल-पुथल का अनुभव किया जो हम कभी-कभी अनुभव करते हैं। मरियम को आश्चर्य हुआ होगा कि यह सब उसके और उसके जीवन के लिए क्या मायने रखेगा? भले ही कोई देवदूत हमारे पास न आए, हमें भी “मसीह वाहक“ कहा जाता है। आज हम ईश्वर की पुकार का उत्तर कैसे देंगे?

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


Take a moment and ask yourself: Who is Mary to you? Is she simply a character in the Gospels? Or is Mary someone you have a personal relationship with? Mary is an amazing woman. Talk about the personification of faith! How many of us would have believed the fantastic prophecy of the angel? I wonder what thoughts and emotions Mary experienced when the angel appeared to her. The Gospel tells us that “Mary was greatly troubled by the angel’s message.” I assume that her confusion would be the natural reaction of anyone who had an angel appear. The angel’s message may have made it even more unbelievable to Mary! However, Mary was deeply rooted in God. Even though she didn’t understand how this plan of God’s would unfold, Mary’s heart was open and receptive to God’s message. At the same time, Mary was human. She experienced all the emotions and turmoil we experience at times. Mary must have wondered what all this would mean for her and her life? How would this unfold? Most likely, we will not have an angel appearing to us asking us to bear God’s child! Even if an angel does not come to us, we also are called to be “Christ Bearers.” Today how will we respond to God’s call?

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज माता कलिसिया माता मरियम के निष्कलंक गर्भागमन का महापर्व मनाती है। ईश्वर ने संसार से प्रारंभ से ही माता मरियम को संसार के मुक्तिदाता की माँ बनने के लिए चुन लिया था। ईश्वर की यह योजना बहुत पहले से ही उनके मन में थी, और इसीलिए हमारा विश्वास हमें बताता है कि माता मरियम को शुरू से ही प्रभु ने पापों से (विशेषकर आदिपाप से) मुक्त रखा था। यह एकतरफा निर्णय नहीं था, बल्कि प्रभु हमें अपनी योजना में सहभागी होने का बुलावा देने के साथ-साथ उस निर्णय में शामिल न होने की भी आजादी देते हैं। जब हम प्रभु की योजना में स्वेच्छा से शामिल होने के लिए हाँ कह देते हैं, तभी प्रभु हमारे जीवन से संबंधित उस योजना में आगे बढ़ते हैं।

माता मरियम के जीवन में हम देखते हैं कि उन्होंने ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए स्वेच्छा से हाँ कहा, इसका मतलब यह था, कि माता मरियम के उस जवाब के बाद जो भी परिणाम हो, वे उसका सामना करने के लिए तैयार थीं। उनके पास इस बात की स्वतंत्रता थी कि यदि वे चाहती तो ईश्वर की योजना में शामिल होने से इनकार कर देतीं, लेकिन उन्होंने ईश्वर की मर्जी को स्वीकार किया जिसके परिणामस्वरूप वे न केवल ईश्वर की माता बनीं बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी सब नारियों में धन्य कहलाई। माता मरियम सदा सारी मानव जाति के लिए प्रार्थना करती रहें।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today Mother Church celebrates the solemnity of the Immaculate conception of the blessed virgin Mary. God had chosen our blessed mother Mary to be the mother of the saviour. This choice was made even before the earthly birth of Mother Mary. Therefore it is believed that God kept her safe and protected her from original sin. It is not one sided effort. It is not that God is doing everything on his own accord, but he gives a choice and freedom to respond to his proposal. When we choose to respond positively, only then God proceeds further with his plan.

We see in the life of mother Mary that when she chose to respond to God’s call in a positive way, it implied that she also had to be ready to face all the difficulties and challenges that would come on its way. She had choice to reject God’s proposal of being the mother of his son, but she made a positive choice and became not only the mother of God but also blessed among women from generation to generation. May she continue to be the caring and loving mother to whole humanity.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 3

आज, कलीसिया प्रभु येसु की माँ धन्य कुँवारी मरियम के निष्कलंक गर्भागमन का त्यौहार मना रही है। यिरमियाह 1: 5 में, प्रभु नबी से कहते हैं, “माता के गर्भ में तुम को रचने से पहले ही मैंने तुम को जान लिया। तुम्हारे जन्म से पहले ही मैंने तुम को पवित्र किया। मैंने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया।” स्तोत्र 139:15-16 में स्तोत्रकार कहता है, “जब मैं अदृश्य में बन रहा था, जब मैं गर्भ के अन्धकार में गढ़ा जा रहा था, तो तूने मेरी हड्डियों को बढ़ते देखा। तूने मेरे सब कर्मों को देखा। वे सब तेरे ग्रन्थ में लिखे हैं। घटित होने के पूर्व ही मेरे दिनों की सीमा निर्धारित की गयी।” यिरमियाह 29:11 में पवित्र वचन कहता है, “मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ“- यह प्रभु की वाणी है- “तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविय की योजनाए।” पृथ्वी पर हमारा जीवन बहुत ही योजनाबद्ध रीति से प्रभु की सतर्क निगरानी में आगे बढ़ता है। आज का त्यौहार हमें प्रभु ईश्वर द्वारा हमारे संरक्षण की याद दिलाता है। उनका संरक्षण न केवल एक या कुछ व्यक्तियों के लिए है, बल्कि प्रभु सारी मानवजाति का ख्याल करते हैं। उन्होंने माँ मरियम को चुना और गर्भाधान के समय ही उन्हें पवित्र किया, ताकि वे प्रभु के लिए एक उपयुक्त मंदिर बन जायें। स्वर्ग के बारे में पवित्र बाइबिल कहती है, "उस में न तो कोई अपवित्र वस्तु प्रवेश कर पायेगी और न कोई ऐसा व्यक्ति, जो घृणित काम करता या झूठ बोलता है। केवल वही प्रेवेश कर पायेंगे, जिनके नाम मेमने के जीवन-ग्रन्थ में अंकित हैं।" (प्रकाशना 21:27)। मरियम का बेदाग और निषकलंक होना कितना ज़रूरी था, ताकि सबको पवित्र करने वाले ईश्वर उनसे जन्म ले सकें। आज का त्यौहार हमें पवित्र बनने की चुनौती देता है ताकि हम पृथ्वी पर प्रभु के मंदिर बन सकें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today, the Church celebrates the immaculate conception of Mary, the mother of Jesus. In Jer 1:5 God tells Jeremiah, “Before I formed you in the womb I knew you, and before you were born I consecrated you; I appointed you a prophet to the nations.” In Ps 139:15-16, the Psalmist says, “My frame was not hidden from you, when I was being made in secret, intricately woven in the depths of the earth. Your eyes beheld my unformed substance. In your book were written all the days that were formed for me, when none of them as yet existed.” In Jer 29:11 the Word says, “surely I know the plans I have for you, says the Lord, plans for your welfare and not for harm, to give you a future with hope.” Our life on earth is very well planned and executed under his watchful care on the earth. Today’s feast reminds us of this constant watchful care of the Lord. Today’s feast is not about God’s welfare plan for an individual, but for all humanity. He chose Mary and purified her already at conception, so that she may become a fitting temple for the Lord. Regarding heaven the Bible says, “nothing unclean will enter it, nor anyone who practices abomination or falsehood, but only those who are written in the Lamb’s book of life.” (Rev 21:27). How much more necessary was it for Mary to be immaculate, so that God who is Holy can take birth from her. Today’s feast challenges us to be holy so that we can become temples of God on the earth.

-Fr. Francis Scaria