दिसंबर 06, 2024, शुक्रवार

आगमन का पहला सप्ताह

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 29:17-24

17 थोड़े ही समय बाद लोबानोन फलवाटिका में बदल जायेगा और फलवाटिका जंगल बन जायेगी।

18) उस दिन बहरे ग्रन्थ का पाठ सुनेंगे और अन्धे देखने लगेंगे; क्योंकि उनकी आँखों से धुँधलापन और अन्धकार दूर हो जायेगा।

19) ष्दीन-हीन प्रभु मे आनन्द मनायेंगे और जो सबसे अधिक दरिद्र हैं, वे इस्राएल के परमपावन ईश्वर की कुपा से उल्लसित हो उठेंगे;

20) क्योंकि अत्याचारी नहीं रह जायेगा, घमण्डियों का अस्तित्व मिटेगा और उन कुकर्मियों का बिनाश होगा,

21) जो दूसरों पर अभियोग लगाते हैं, जो कचहरी के न्यायकर्ताओं को प्रलोभन देते और बेईमानी से धर्मियों को अधिकारों से वंचित करते हैं।

22) इसलिए प्रभु, याकूब के वंश का ईश्वर, इब्राहीम का उद्वारकर्ता, यह कहता है: “अब से याकूब को फिर कभी निराशा नहीं होगी; उसका मुख कभी निस्तेज नहीं होगा;

23) ष्क्योंकि वह देखेगा कि मैंने उसके बीच, उसकी सन्तति के साथ क्या किया है और वह मेरा नाम धन्य कहेगा।“ लोग याकूब के परमपावन प्रभु को धन्य कहेंगे और इस्राएल के ईश्वर पर श्रद्धा रखेंगे।

24) भटकने वालों में सद्बुद्वि आयेगी ओर विद्रोही शिक्षा स्वीकार करेंगे।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 9:27-31

27) ईसा वहाँं से आगे बढ़े और दो अन्धे यह पुकारते हुये उनके पीछे हो लिए, ’’दाऊद के पुत्र! हम पर दया कीजिये’’।

28) जब ईसा घर पहुँचे, तो ये अन्धे उनके पास आये। ईसा ने उन से पूछा, ’’क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूँ ? उन्होने कहा, ’’जी हाँ, प्रभु!

29) तब ईसा ने यह कहते हुए उनकी आँखों का स्पर्श किया, ’’जैसा तुमने विश्वास किया, वैसा ही हो जाये’’।

30) उनकी आँखें अच्छी हो गयीं और ईसा ने यह कहते हुये उन्हें कड़ी चेतावनी दी, ’’सावधान! यह बात कोई न जानने पाये’’।

31) परन्तु घर से निकलने पर उन्होंने उस पूरे इलाक़े में ईसा का नाम फैला दिया।

📚 मनन-चिंतन

आगमन काल हमें ईश्वर के हमारे बीच आकार निवास बनाने की घटना की याद दिलाता है। ईश्वर ही हमारे लिए नई आशा और नवजीवन का स्रोत है। जब ईश्वर हमारे बीच निवास करता है तो वह हमारे पापों और कमजोरियों को अपने ऊपर ले लेता है। अक्सर हम अपने बीच मे ईश्वर की उपस्थिति को नहीं पहचान पाते और अपने जीवन में ईश्वर की भूमिका को अनदेखा कर देते हैं। हम जानबूझकर ईश्वर की भलाई और उदारता के प्रति अपनी आँखें मूँद लेते हैं। आज के सुसमाचार में हम दो लोगों को देखते जो अपने अंधेपन से मुक्ति चाहते थे। जब उन्हें अपने अंधेपन से मुक्ति मिल जाती है और वे चंगे हो जाते हैं तो प्रभु येसु उनकी चंगाई का श्रेय उनके अपने विश्वास को ही देते हैं।

उनके विश्वास के कारण ही उनकी आँखें खुल गईं और उन्होंने अपने आस-पास ईश्वर की उपस्थिति को अनुभव किया। विश्वास का मतलब है कि हम अपने चारों ओर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करें और उसी के अनुसार अपना जीवन जियें। जिस व्यक्ति के हृदय में विश्वास नहीं होता वह ईश्वर के कार्यों के प्रति और अपने जीवन में ईश्वर सक्रियता के प्रति अंधा हो जाता है। विशेष तैयारी का समय एक अवसर के रूप में दिया गया है ताकि हम अपने विश्वास को फिर से प्रज्ज्वलित करें और प्रभु येसु से अपने अंधेपन के लिए चंगाई मांगें ताकि हम न केवल अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को पहचान सकें बल्कि दूसरों के जीवन में भी उसे महसूस कर सकें।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Advent reminds us of God’s coming and making dwelling among humans. God is the source of all hope and new life. When God is amidst us, He takes care of all our iniquities and infirmities. Very often we do not recognize God’s presence amidst us, or we choose to ignore his role in our life. It may be that our eyes are closed and we choose to deliberately ignore God’s goodness towards us. In the Gospel of today we see two blind men who wanted to be healed of their blindness. When they are healed, Jesus gives the credit for their healing to their own faith.

It was their faith that opened their eyes towards the presence of God around them. Faith is nothing but to recognize God’s presence in and around us and live our lives according to His will. A person who has no faith, remains blind towards God’s works and interventions in and around his life. This special time of preparation is given to us as an opportunity to reignite our faith and implore Jesus to heal us of our blindness and help us to see His presence within each other and all people around us, very specially in the people in need.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

आज के सुसमाचार (मत्ती 9:27-31) में हम देखते हैं कि प्रभु येसु दो दृष्टिहीनों को चंगा करते हैं । मत्ती 20:29-34 में हम दो दृष्टिहीनों की चंगाई का समान विवरण पाते हैं। इन दोनों उदाहरणों में सुसमाचार लेखक कहता है कि ये अंधे लोग "दाऊद के पुत्र, हम पर दया कर" बोल कर चिल्ला रहे थे। प्रभु येसु को जब वे “दाऊद का पुत्र” कहते हैं, तब यह स्पष्ट है कि वे उन्हें मसीह मानते हैं। यहाँ इन अंधों की तुलना हम यहूदी नेताओं से कर सकते हैं। यहूदी नेता अंधे नहीं थे; वे अच्छी तरह देख सकते थे। फिर भी उन्होंने प्रभु येसु को नहीं पहचाना। लेकिन ये अन्धे जिन्होंने येसु को नहीं देखा था, उनके बारे सिर्फ़ दूसरों से सुना था, येसु को मसीह के रूप में पहचानने लगते हैं। हम अपनी तुलना भी इन दो अन्धों से कर सकते हैं। सुसमाचार कहता है कि उन्हें चंगाई प्रदान करने के बाद प्रभु येसु ने इन दो अंधों को कडी चेतावनी दी थी कि वे इस विषय में किसी को कुछ न बतायें, परन्तु उन्होंने पूरे इलाके में येसु का नाम फैला दिया। दूसरी ओर, येसु चाहते हैं कि हम प्रभु के सुसमाचार की घोषणा हर समय और हर जगह करें फिर भी हम अपने दैनिक जीवन में प्रभु येसु के संदेश को घोषित करने और उनका नाम लेने में भी संकोच करते हैं।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel (Mt 9:27-31) we have the healing of two blind men by Jesus. In Mt 20:29-34 we have the healing of two blind men with similar details. In both these instances the evangelist notes that these blind men kept shouting “Take pity on us, son of David”. By the very fact that they called Jesus – son of David, it is clear that they recognized him as the Messiah. There is a contrast here between the Jewish leaders who had sound eyes and could see and these two men who could not see. Those Jewish leaders did not recognize the Messiah while these blind men did. There is another contrast between these two blind men and each one of us. They were warned that they should not tell anything about their healing to anyone else, yet they went around talking about Jesus all over the countryside. We on the other hand are asked to “go and proclaim”, yet we hesitate to proclaim and make known the message of Jesus in our daily lives. Let us pray that we may see the light of Christ and may have the courage to proclaim his good news.

-Fr. Francis Scaria