दिसंबर 05, 2024, गुरुवार

आगमन का पहला सप्ताह

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 26:1-6

1) उस दिन यूदा देश में यह गीत गाया जायेगाः हमारा नगर सुदृढ़ है। प्रभु ने हमारी रक्षा के लिए प्राचीर और चारदीवारी बनायी है।

2 फाटकों को खोल दो- सद्धर्धी और विश्वासी राष्ट्र प्रवेश करें।

3) तू दृढ़तापूर्वक शान्ति बनाये रखता हैं, क्योंकि इस राष्ट्र को तुझ पर भरोसा है।

4) प्रभु पर सदा भरोसा रखो, क्योंकि वही चिरस्थायी चट्टान है।

5) वह ऊँचाई पर निवास करने वालों को नीचा दिखाता है। वह उनका दुर्गम गढ़ तोड़ कर गिराता और धूल में मिला देता है।

6) अब दीन-हीन और दरिद्र उसे पैरों तले रौंदेंगे।

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती 7:21.24-27

21) ’’जो लोग मुझे ’प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करोगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।

24) ’’जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था।

25) पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।

26) ’’जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया।

27) पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।’’

📚 मनन-चिंतन

हम सभी जानते हैं कि सुनना-सुनने से कहीं अधिक सरल है। जब मैं दूसरे व्यक्ति को सुनता हूं, तो मैं वस्तुतः उनके शब्दों और विषय-वस्तु को सुनता हूं। हालाँकि, मैं भावनाओं या अर्थ की उन परतों को नहीं सुन सकता जो व्यक्ति व्यक्त करने का प्रयास कर रहा होगा। जब हम सचमुच उस पर ध्यान देते हैं जो दूसरा व्यक्ति कह रहा है, तो हम न केवल उनके शब्दों को सुनते हैं, बल्कि हम उनकी आवाज़ के स्वर, चेहरे की अभिव्यक्ति, चिंता के स्तर या उनकी शांति की भावना पर भी ध्यान देते हैं। हमें यह भी पता चल सकता है कि उन्होंने क्या नहीं कहा है। हमारा अधिकांश दिन यह सुनने में व्यतीत होता है कि दूसरे क्या कह रहे हैं। हालाँकि, येसु यह भी चाहते हैं कि हम उनकी बात सुनें। वह चाहते है कि हम सचमुच उस पर ध्यान दें जो वह कह रहे है। अपने पवित्र नियम में, संत बेनेडिक्ट हमें निर्देश देते हैंः “अपने दिल के कान से सुनो!“ कानों से सुनना हमारा दूसरा स्वभाव है। हालाँकि जब हम “अपने दिल से सुनते हैं“, तो हम दूसरे व्यक्ति के प्रति पूरी तरह से उपस्थित और चौकस होते हैं। आज येसु आपको (और मुझे) “अपने दिल के कान से ध्यानपूर्वक सुनने“ के लिए आमंत्रित करते हैं।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


We all know that there is a clear difference between hearing and listening. Hearing is much simpler than listening. When I hear the other person, I literally hear their words and the content. However, I may not hear the layers of emotion or meaning that the individual may be trying to convey. When we truly attend to what another person is saying, we not only hear their words, we also are attentive to their tone of voice, facial expression, anxiety level or their sense of calm. We also may get a sense of what they have not said. Much of our day is spent hearing what others are saying. However, Jesus also wants us to listen to Him. He desires that we truly attend to what He is saying. In his Holy Rule, St. Benedict instructs us: “listen with the ear of your heart!” Listening with our ears is second nature to us. However when we “listen with our hearts,” we are fully present and attentive to the other person. Today Jesus will invite you (and me) to “listen attentively with the ear of your heart.” Will we take the time and give Him the attention He desires?

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

प्रभु येसु एक बुध्दिमान व्यक्ति और एक बेवकूफ व्यक्ति की बात करते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति अपना घर चट्टान पर बनाता है और बेवकूफ व्यक्ति रेत पर अपना घर बनाता है। प्रभु एक उदार व्यक्ति और एक कंजूस की चर्चा नहीं करते; न ही एक सावधान आदमी और एक लापरवाह आदमी की बात। उनका विषयवस्तु ज्ञान है। चट्टान पर निर्माण करने वाले के पास ज्ञान होता है जबकि रेत पर निर्माण करने वाले के पास इसका अभाव होता है। समझदार व्यक्ति ईश्वर का वचन सुनता है और उस पर कार्य करता है। कुछ भी उसे विचलित, परेशान या नष्ट नहीं कर सकता। उसकी नींव पक्की है। ईश्वर का वचन सर्वज्ञ ईश्वर का ज्ञान है। जो वास्तव में, ईश्वरीय शब्द को प्राप्त करता है, वह ईश्वर का ज्ञान ही प्राप्त करता है। वह ईश्वर के ज्ञान को अपना कर्म बनाता है। स्वाभाविक रूप से वह असफल नहीं हो सकता। आइए हम ईश्वर से इस ज्ञान की कृपा मांगें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus distinguishes between a wise man who builds his house on rock and a stupid man who builds his house on sand. Jesus does not distinguish between a spendthrift and a miser; nor between a careful man and a careless man. What is in question is the wisdom of the person. The person who builds on the rock has wisdom while the person who builds on sand lacks it. The sensible man listens to the Word of God and acts on it. Nothing can shake, disturb or destroy him. He has an unshakeable foundation. The Word of God is the wisdom of the omniscient God. One who receives the Word, in fact, receives the wisdom of God. He makes the wisdom of God his own in action. Naturally he cannot fail. Let us ask the Lord for the grace of this wisdom.

-Fr. Francis Scaria