4) ये साक्षी वे जैतून के दो पेड़ और दो दीपाधार हैं, जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े हैं।
5) यदि कोई इन्हें हानि पहुँचाना चाहता है तो इनके मुँह से आग निकलती है और वह इनके शत्रुओं को नष्ट करती है। जो इन्हें हानि पहुँचाना चाहेगा, उसे उसी प्रकार मरना होगा।
6) इन्हें आकाश का द्वार बन्द करने का अधिकार है। इनकी भविष्यवाणी के समय पानी नहीं बरसेगा। इन्हें पानी को रक्त में बदलने का और जब-जब चाहें, तब-तब पृथ्वी पर हर प्रकार की महामारी भेजने का अधिकार है।
7) जब ये अपना साक्ष्य दे चुके होंगे, तो अगाध गत्र्त से ऊपर उठने वाला पशु इन से युद्ध करेगा और इन्हें पराजित कर इनका वध करेगा।
8) इनकी लाशें उस महानगर के चैक में पड़ी रहेंगी, जो लाक्षणिक भाषा में सोदोम या मिस्र कहलाता है और जहाँ इनके प्रभु को क्रूस पर आरोपित किया गया था।
9) साढ़े तीन दिनों तक हर प्रजाति, वंश, भाषा और राष्ट्र के लोग इनकी लाशें देखने आयेंगे और इन्हें कब्र में रखने की अनुमति नहीं देंगे।
10) पृथ्वी के निवासी इनके कारण उल्लसित हो कर आनन्द मनायेंगे और एक दूसरे को उपहार देंगे, क्योंकि ये दो नबी पृथ्वी के निवासियों को सताया करते थे।
11) किन्तु साढ़े तीन दिनों बाद ईश्वर की ओर से इन दोनों में प्राण आये और ये उठ खड़े हए। तब सब देखने वालों पर आतंक छा गया।
12) स्वर्ग से एक वाणी इन से यह कहती हुए सुनाई पड़ी, "यहाँ, ऊपर आओ", और ये अपने शत्रुओं के देखते-देखते बादल में स्वर्ग चले गये।
27) इसके बाद सदूकी उनके पास आये। उनकी धारणा है कि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता। उन्होंने ईसा के सामने यह प्रश्न रखा,
28) "गुरूवर! मूसा ने हमारे लिए यह नियम बनाया-यदि किसी का भाई अपनी पत्नी के रहते निस्सन्तान मर जाये, तो वह अपने भाई की विधवा को ब्याह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे।
29) सात भाई थे। पहले ने विवाह किया और वह निस्सन्तान मर गया।
30) दूसरा और
31) तीसरा आदि सातों भाई विधवा को ब्याह कर निस्सन्तान मर गये।
32) अन्त में वह स्त्री भी मर गयी।
33) अब पुनरूत्थान में वह किसकी पत्नी होगी? वह तो सातों की पत्नी रह चुकी है।"
34) ईसा ने उन से कहा, "इस लोक में पुरुष विवाह करते हैं और स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं;
35) परन्तु जो परलोक तथा मृतकों के पुनरूत्थान के योग्य पाये जाते हैं, उन लोगों में न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं।
36) वे फिर कभी नहीं मरते। वे तो स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं और पुनरूत्थान की सन्तति होने के कारण वे ईश्वर की सन्तति बन जाते हैं।
37) मृतकों का पुनरूत्थान होता हैं मूसा ने भी झाड़ी की कथा में इसका संकेत किया है, जहाँ वह प्रभु को इब्राहीम का ईश्वर, इसहाक का ईश्वर और याकूब का ईश्वर कहते है।
38) वह मृतकों का नहीं, जीवितों का ईश्वर है, क्योंकि उसके लिये सभी जीवित है।"
39) इस पर कुछ शास्त्रियों ने उन से कहा, "गुरुवर! आपने ठीक ही कहा"।
40) इसके बाद उन्हें ईसा से और कोई प्रश्न पूछने का साहस नहीं हुआ।
कोई भी मनुष्य स्वर्ग या इस जीवन के बाद के जीवन के बारे में अधिकार के साथ कोई भी जानकारी नहीं दे सकता, सिर्फ वही दे सकता है जो वहाँ से आया है। हमें स्वर्गीय जीवन के बारे में नहीं मालूम है इसलिए हम अपनी सीमित मानव बुद्धि और समझ से उस जीवन के बारे में तरह-तरह के कयास लगाते हैं। सिर्फ स्वर्गीय जीवन को ही नहीं बल्कि परलोक की अन्य बातों को भी समझना मुश्किल है। लेकिन हम जानते हैं कि हमारा प्रभु स्वर्ग से आया है, वह स्वर्गराज्य और उसकी बातों को भली-भाँति जानते हैं और अधिकार के साथ उसके बारे में बता भी सकते हैं। इसी प्रकार की सदुकियों की गलफहमी को आज वे दूर करते हैं। हे प्रभु स्वर्ग की बातों के बारे में हमारी अज्ञानता को मिटाइए!
✍फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)Among human beings there is nobody who can give us information with authority about heaven or life after this life, except for the one who has come from there. We do not know about heavenly life, and so, with our limited human intellect and understanding, we make various assumptions about it and guess things. Not only heavenly life, but understanding other aspects of the afterlife is also difficult. However, we know that our Lord has come down from heaven. He knows the kingdom of heaven and its truths perfectly and can speak about them with authority. Today, He clears the misunderstandings of the Sadducees in this regard. O Lord, dispel our ignorance about heavenly matters!
✍ -Fr. Johnson B. Maria(Gwalior Diocese)
हमारे सांसारिक जीवन में, जीवन को जारी रखने के लिए विवाह और प्रजनन आवश्यक हैं। परन्तु हमारे स्वर्गीय जीवन में, हम कभी नहीं मरेंगे, इसलिए हमें कभी भी संपत्ति के बारे में और हमारे मरने के बाद हमारी संपत्ति का वारिस कौन होगा चिंता करने की जरूरत नहीं होगी। हम तर्कसंगत तर्कों के साथ पुनरुत्थान को सिद्ध नहीं कर सकते। हम उन चीजों को नहीं समझ सकते जो हमने नहीं देखी हैं। हमें उन्हें विश्वास के द्वारा स्वीकार करना है, ठीक उसी तरह जैसे हमें विश्वास के द्वारा ईश्वर के वचन को स्वीकार करना है।
येसुु ने मूसा का हवाला देते हुए सदूकियों के पुनरुत्थान को अस्वीकार करने पर टिप्पणी की है। सदूकी केवल पुराने विधान की पहली पाँच पुस्तकों में विश्वास करते थे, जिसमें मूसा द्वारा लिखी गई पुस्तकें भी शामिल थीं। इन पुस्तकों में पुनरुत्थान के बारे में बात नहीं की गई थी। जब ईश्वर ने जलती हुई झाड़ी से मूसा से बात की, तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं इब्राहीम, इसहाक और याकूब का ईश्वर हूं।’’ यदि मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं होता, तो ईश्वर ‘मैं उनका परमेश्वर हूं।’ के बजाय कहते, ‘मैं उनका परमेश्वर था,’। ‘मैं हूँ’ वाक्यांश, यह साबित करता है कि हमारी आत्मा शारीरिक मृत्यु से बच जाती है और इसका अर्थ है कि मसीह में मृत व्यक्ति जब वह वापस आएगा तो जी उठेगा।
सुसमाचार का यह अंश अगले जीवन के बारे में है। यह इस बारे में है कि हमारे मरने के बाद क्या होता है, खासकर यदि हम मसीह के अनुयायी हैं। सदूकियों के लिए, मृत्यु जीवन की यात्रा का अंत था। येसु ने प्रकट किया कि ईश्वर जीवन का प्रभु है न कि मृत्यु का प्रभु। विश्वासियों के लिए, मृत्यु जीवन के केवल एक चरण का अंत है और एक नए, गौरवशाली जीवन की शुरुआत है - एक ऐसा जीवन जिसे हम अभी मुश्किल से ही समझना शुरू कर सकते हैं और पूरी तरह से तब समझ पाएंगे जब हम प्रभु के चरणों में बैठेंगे। मसीह के पुनरुत्थान ने जीवन की महिमा की, और विश्वासियों के लिए पुनरुत्थान की आशा उनकी महिमा करती है। पुनरुत्थान हमें आशा देता है।
पुनरुत्थान को समझने के लिए, हमें अपने विचारों का विस्तार करना होगा कि ईश्वर कौन है और क्या है और हम क्या कर सकते हैं। हम अपने सीमित मानवीय तर्क से ईश्वर को सीमित नहीं कर सकते। ईश्वर लगातार हमें आश्चर्यचकित करते हैं। उन्होने हमारे लिए जो भविष्य की योजना बनाई है वह एक शानदार योजना है जो हमारी कल्पना से कहीं अधिक है और जो हम कल्पना कर सकते हैं उससे अलग है।
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
In our earthly life, marriage and procreation are necessary for life to continue. But in our heavenly life, we will never die, so we will never have to worry about property and who will inherit our property after we die. We can’t prove the resurrection with rational arguments. We can’t understand things we have not seen. We have to accept them by faith, just like we have to accept God’s Word by faith.
Jesus commented on the Sadducees’ rejection of the resurrection by referring to Moses. The Sadducees only believed in the first five books of the Old Testament, including the books written by Moses. These books did not talk about the resurrection. When God spoke to Moses from the burning bush, he said, “I am the God of Abraham, Isaac and Jacob.” If there was no life after death, God would have said, “I was their God,” instead of “I am their God.” The phrase “I am” proves that our soul survives physical death and implies that the dead in Christ will rise when he returns.
The Gospel passage is about the next life. It’s about what happens after we die, especially if we are followers of Christ. For the Sadducees, death was the end of life’s journey. Jesus reveals that God is a god of life and not a god of death. For believers, death is just the end of one phase of life and the beginning of a new, glorious life-a life that we can only barely begin to understand now and will completely understand when we sit at the Master’s feet. Christ’s resurrection glorified life, and the hope of the resurrection for believers glorifies them. The resurrection gives us hope.
In order for us to understand the resurrection, we have to expand our ideas about who and what God is and what we can do. We can’t limit God with our own limited human reasoning. God continually surprises us. The future he has planned for us is a glorious one that is far more than we can imagine and different from what we can imagine.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)