1) "उस समय स्वर्गदूतों का प्रधान और तुम्हारी प्रजा की रक्षा करने वाला मिकाएल उठ खड़ा होगा। जैसा कि राष्ट्रों की उत्पत्ति से अब तक कभी नहीं हुआ है। किन्तु उस समय तुम्हारी प्रजा बच जायेगी- वे सब, जिनका नाम पुस्तक में लिखा रहेगा।
2) जो लोग पृथ्वी की मिट्टी में सोये हुए थे, वे बड़ी संख्या में जाग जायेंगे, कुछ अनन्त जीवन के लिए और कुछ अनन्त काल तक तिरस्कृत और।कलंकित होने के लिए। धर्मी आकाश की ज्योति की तरह प्रकाशमान होंगे
3) और जिन्होंने बहुतों को धार्मिकता की शिक्षा दी है, वे अनन्त काल तक तारों की तरह चमकते रहेंगे।
11) प्रत्येक दूसरा पुरोहित खड़ा हो कर प्रतिदिन धर्म-अनुष्ठान करता है और बार-बार एक ही प्रकार के बलिदान चढ़ाया करता है, जो पाप हरने में असमर्थ होते हैं।
12) किन्तु पापों के लिए एक ही बलिदान चढ़ाने के बाद, वह सदा के लिए ईश्वर के दाहिने विराजमान हो गये हैं,
13) जहाँ वह उस समय की राह देखते हैं, जब उनके शत्रुओं को उनका पावदान बना दिया जायेगा;
14) क्योंकि वह जिन लोगों को पवित्र करते हैं, उन्होंने उन को एक ही बलिदान द्वारा सदा के लिए पूर्णता तक पहुँचा दिया है।
18) जब पाप क्षमा कर दिये गये हैं, तो फिर आप के लिए बलिदान की आवश्यकता नहीं रही।
24) "उन दिनों के संकट के बाद सूर्य अन्धकारमय हो जायेगा, चन्द्रमा प्रकाश नहीं देगा,
25) तारे आकाश से गिर जायेंगे और आकाश की शक्तियाँ विचलित हो जायेंगी।
26) तब लोग मानव पुत्र को अपार सामर्थ्य और महिमा के साथ बादलों पर आते हुए देखेंगे।
27) वह अपने दूतों को भेजेगा और वे चारों दिशाओं से, आकाश के कोने-कोने से, उसके चुने हुए लोगों को एकत्र करेंगे।
28) "अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो। जब उसकी टहनियाँ कोमल बन जाती हैं और उन में अंकुर फूटने लगते हैं, तो तुम जान जाते हो कि गरमी आ रही है।
29) इसी तरह, जब तुम लोग यह सब देखोगे, तो जान लो कि वह निकट है, द्वार पर ही है।
30) मैं तुम से यह कहता हूँ कि इस पीढ़ी का अन्त हो जाने के पूर्व ही ये सब बातें घटित हो जायेंगी।
31) आकाश और पृथ्वी टल जायें, तो टल जायें, परन्तु मेरे शब्द नहीं टल सकते।
32) "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता- न तो स्वर्ग के दूत और न पुत्र। केवल पिता ही जानता है।
जैसे-जैसे हम सामान्य काल के अंत की ओर बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे हमारा ध्यान अंतिम चीजों की ओर खिंच जाता है। ईश्वर ने ही सारी सृष्टि रची है, वह हमारे दिल में निवास करता है, मनुष्य उसका प्रतिरूप है। सारी सृष्टि उसकी इच्छा प्रकट करती है। कभी-कभी सारी सृष्टि में घटने वाली घटनाएं उसकी ओर से संकेत बनकर आती हैं। प्रकृति उसकी संदेश वाहक बन जाती है। प्रभु येसु आज इसी तरह के प्रकृति के संदेश को पहचानने और समझने का अहवाहन करते हैं। जब प्रभु के द्वितीय आगमन का समय आएगा तो किस तरह से प्राकृतिक चिन्ह और संकेत दिखाई देंगे। पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा की क्या स्थिति होगी।
संसार का अन्त कैसा होगा अथवा कब होगा, हम नहीं जानते लेकिन प्रभु येसु हमें याद दिलाते हैं कि उस घड़ी और समय के बारे में पिता ईश्वर ही जानते हैं। लेकिन हमें प्रकृति और जीवन में घटने वाले विभिन्न संकेतों को समझते रहना होगा। हम अपना जीवन चाहे जैसे भी जीते हों, ईश्वर हमें सही राह पर चलाने की कोशिश करते रहते हैं। कभी-कभी हमारे जीवन में घटने वाली अच्छी और बुरी घटनाएं ईश्वर की ओर से संकेत के रूप में घटती हैं। जब कोई परेशानी या संकट आता है तो हमें इस ओर भी ध्यान देना है कि इस कष्ट और परेशानी के द्वारा ईश्वर हमसे क्या कहना चाहता है।
✍फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)As we move closer to the end of ordinary times, our attention is drawn toward the final things. God, who created all of creation, resides in our hearts, and humanity is created in His image and likeness. All of creation reflects His will. Sometimes, events occurring in creation serve as signs and indications from Him. Nature becomes His messenger. Today, Jesus calls us to recognize and understand such messages from nature. He speaks of the signs and natural phenomena that will appear at the time of His second coming—what the state of the earth, sun, and moon will be.
We do not know how or when the end of the world will occur, but Jesus reminds us that the Father alone knows the hour and the time. However, we must strive to interpret the various signs in nature and in our life. No matter how we live our lives, God continually attempts to guide us on the right path. Sometimes, the good and bad events that occur in our lives come as signs from God. When troubles or challenges arise, we must reflect on what God may be trying to convey to us through these difficulties and hardships.
✍ -Fr. Johnson B. Maria(Gwalior Diocese)
आज का सुसमाचार प्रभु के दिन की घटनाओं की बात करता है। यहोवा का दिन एक अवधारणा थी जो इस्राएलियों के लिए बहुत परिचित थे। यह वर्तमान युग और आने वाले युग के बीच का दिन है। दानिएल की पुस्तक में आज के पहले पाठ में प्रभु के दिन के विषय में यह बताता हैः
दुनिया का अनजान और अचानक अंतः यह माना जाता था कि प्रभु के दिन का आगमन अचानक और कम से कम अपेक्षित समय होगा। संत पौलुस कहते हैं, ‘‘प्रभु का दिन, रात के चोर की तरह आएगा’’ (1 थेसल 5ः2)। येसुु ने स्वयं इसका संकेत दिया था जब उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारे प्रभु किस दिन आयेंगे। यह अच्छी तरह समझ लो- यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर रात के किस पहर आयेगा, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध लगने नहीं देता। इसलिए तुम लोग भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।’’ मत्ती 24ः42-44
प्रभु के दिन के आगमन पर विनाशः आकाशीय पिंड के विनाश की भविष्यवाणी भी प्रभु के दिन की गयी है। येसु इसायह की पुस्तक 13ः10,13 और योएल 2ः 10, 30-31 से उल्लेख करते है, जहां ब्रह्मांड में अस्तवयस्तता को दर्शाया गया है। उनके अनुसार प्रभु के दिन के आगमन पर प्रकृति में जो कुछ भी है सब में खलबली और उलझन पैदा हो जाएगी। भूकंप, आग और अकाल से प्रकृति में अव्यवस्था पैदा होती है। राष्ट्रों के बीच और परिवार के बीच में ही युद्ध छिड़ जाता है। यह विनाश दो बातों का अनुमान लगाता है अ) ईश्वर ने संसार को नहीं छोड़ा है ब) यह पुनर्निर्माण के लिए एक प्रस्तावना है। पुनर्निर्मित दुनिया में प्रत्येक ईसाई से ईश्वर के प्रति नवीन वफादारी दिखाने, जीवन के एक नए स्तर पर अमल करने के लिए बुलाया जाना तथा जीवन के नए उदाहरण के साथ लोगों का नेतृत्व करने की उम्मीद की जाती है।
✍ -फादर मेलविन चुल्लिकल
Today’s gospel speaks happenings on the Day of the Lord. Day of the Lord was a concept very familiar for Israelites. It is a day between present age and the age to come. Today’s first reading in the book of Daniel we hear about this.
Unknown and sudden end of the world: It was believed that the arrival of the day of the Lord will be sudden and at a least expected time. St. Paul says “The day of the Lord will come like a thief in the night” (1 Thess. 5:2). Jesus himself hinted at it when he said “Therefore keep watch, because you do not know on what day your Lord will come but understand this If the owner of the house had known at what time of night the thief was coming, he would have kept watch and would not have let his house be broken into, So you also must be ready, because the Son of Man will come at an hour when you do not expect him” (Mat. 24: 42- 44).
Destruction at its arrival: Destruction of the heavenly bodies is also foretold on the Day of the Lord. Jesus quotes from Is. 13:10, 13 and Joel 2: 10, 30-31, where the chaos in the universe is depicted. According to them at the arrival of the Day of the Lord everything in the nature falls to commotion and confusion. A disorder is created in the nature with earthquakes, fire and famine. War breaks out between nations and in the family itself. This destruction presupposes two things a) God has not abandoned the world b) it is a prelude for the recreation. In the recreated world every Christian is expected to show new loyalty to God, called to practice a new standard of living and to lead the people with new example of life.
✍ -Fr. Melvin Chullickal
आज वर्ष का 33सवाँ इतवार है और पूजन विधि का दूसरा अंतिम इतवार है इस अंतिम सप्ताह में हमें अंतिम दिनों की घटनाओं के बारे में बताया गया है।
किसी गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहा करते थे, वे प्रतिदिन अपने-अपने अंतिम दिनों के जीवन के बारे में वाद-विवाद किया करते थे और यह जानना चाहते थे कि इस दुनिया में कौन ऐसा व्यक्ति है जो अपने जीवन के अंतिम क्षण को जान सके। उनमें से सबसे बुजर्ग ने कहा-’’मुझे पता नहीं, मैं अंतिम दिन तक अपने किताब रूपी जीवन को अच्छी तरह से लिख पाऊंगा या नहीं।’’
प्रिय विश्वासियों, आज के भौतिकवाद में हम भी कई बार अपनी मृत्यु और अंतिम दिन से भयभीत होकर जीवन जीते हैं। हम अपने आप में विश्वास नहीं कर पाते हैं और उस बुजर्ग के समान प्रश्न करते दिखाई देते हैं। लेकिन एक सच्चे ख्रीस्तीय जीवन बिताने वाले के लिए अंतिम दिन एक चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसे आज के तीनों पाठों में विस्तृत रूप में दर्शाया गया है।
हम सभी को ज्ञात है कि हम सब एक न एक दिन इस संसार से विदा ले लेगें और हमारे लिए इस संसार का अंत हो जाएगा। हम भयभीत होकर इस सच्चाई से अपने को दरकिनार कर देते हैं। क्योंकि हम अंतिम दिनों का स्मरण विश्वास के साथ नहीं लेकिन डर कर करते हैं। आज के पाठों में बताया गया है कि हमारी मृत्यु एक सच्चाई है।
जब हम समाचार पत्रों में पढते, रेडियो में समाचार सुनते या टेलीविजन में समाचार देखते हैं तब हमें ज्ञात होता है कि इस संसार में तरह-तरह की विषमताएँ हैं। आज का पहला पाठ जो नबी दानिएल ग्रंथ से लिया गया है, मे बताया गया है कि उस समय समस्त राष्ट्रों में घोर संकट आ जाएगा। यह समय पुनरूत्थान का सूचक है। जो लोग पृथ्वी पर सो रहे हैं वे जाग जाएगें और सदा के लिए जीवित हो जाएगें और जो शापित हैं वे अनंत पाप के सागर में लिप्त हो जाएगें। यह सब अंतिम दिन की भविष्यवाणी है जब धर्मी मानव पुत्र के आने की राह देखेगें।
यह कहने पर अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज मनुष्य अपने मन मस्तिष्क के पाप और उसके दुषप्रभाव से अपने को अलग कर चुका है। उसके लिये पाप और पुण्य कोई महत्व नहीं रखता । वह ईश्वर पर भरोसा नहीं रखता। उसे तो केवल अपने स्वार्थ पूर्ण जीवन ही मायने रखता है। जब हम कलीसिया के इतिहास के पन्नों को पलट कर देखते हैं तो हमें पता चलता है कि ऐसे कई संत और धर्मात्मा अपने अंतिम दिनों को जान गये थे और वे संपूर्ण रूप से ईश्वर में लिप्त थे। हम सभी जानते हैं ईश्वर सबका उध्दार और मुक्ति चाहता है। वह अपने विधान को किसी के ऊपर नहीं थोपता, परन्तु उन्हें पूरी स्वतंत्रता देता है कि मनुष्य ईश्वर में विश्वास करे और जीवन जीये या उनसे अलग रहे।
आज का दूसरा पाठ हमें प्रभु येसु ख्रीस्त के एक मात्र समर्थ बलिदान के बारे में बताता है। वे एक ही बार बलिदान चढ़ाने के बाद सदा के लिए ईश्वर के दाहिने विराजमान हो गये हैं। प्रभु येसु ख्रीस्त ने अपनी मृत्यु और पुनरूत्थान द्वारा हमें पाप मुक्त कर दिया है। आज हमारे लिये चुनौती है कि हम किस प्रकार ईश्वर और अपने पड़ोसी से संबध रखते हैं? क्योंकि मनुष्यों का स्वार्थ और उसके दुषप्रभाव उसे ईश्वर से अलग कर देता है।
आज का सुसमाचार अंतिम दिन को जागरूक और सचेत होकर जीवन जीने के लिए आमंत्रण देता है। क्या यह हमारे जीवने को प्रभावित करता है? क्या हमें दुरदर्शी व्यक्ति बनने के लिये प्रेरित करता है? इन सभी घटनाओं का जिक्र हम पुराने विधान में विशेष करके नबी दानिएल के ग्रंथ में पाते हैं। नये विधान में प्रभु येसु ख्रीस्त जैतून के पेड़ के दृष्टांत द्वारा इसका निरूपण करते हैं और अपने शिष्यों को अगाह करते हैं कि उन्हें सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए सदैव जागरूक और सर्तक रहना होगा।
तो आइए! आज के तीनों पाठों से यह शिक्षा लें कि जब भी हमें विपतियों या संकट का सामना करना पडे़, तो हम धीरज के साथ मानव पुत्र के साथ खडे़ होने के लिए अपने आप को तैयार कर सकें।
✍फादर आइजक एक्का