नवंबर 09, 2024, शनिवार

लातरेन महामन्दिर का प्रतिष्ठान - पर्व

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📒 पहला पाठ: एज़ेकिएल का ग्रन्थ 47:1-2,8-9,12

1) वह मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मन्दिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मन्दिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मन्दिर के दक्षिण पाश्र्व के नीचे से बह रहा था।

2) वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पाश्र्व से टपक रहा है।

8) उसने मुझ से कहा, ’’यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है।

9) यह नदी जहाँ कहीं गुज़रती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलिया पाय जायेंगी, क्योंकि वह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है। और जहाँ कहीं भी पहुचती है, जीवन प्रदान करती है।

12) नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़े उगेंगे- उनके पत्ते नहीं मुरझायेंगें और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे; क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 2:13-22

13) यहूदियों का पास्का पर्व निकट आने पर ईसा येरुसालेम गये।

14) उन्होंने मन्दिर में बैल, भेड़ें और कबूतर बेचने वालों को तथा अपनी मेंज़ों के सामने बैठे हुए सराफों को देखा।

15) उन्होंने रस्सियों का कोड़ा बना कर भेड़ों और बेलों-सहित सब को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, सराफों के सिक्के छितरा दिये, उनकी मेजे़ं उलट दीं

16) और कबूतर बेचने वालों से कहा, ‘‘यह सब यहाँ से हटा ले जाओ। मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ।’’

17) उनके शिष्यों को धर्मग्रन्थ का यह कथन याद आया- तेरे घर का उत्साह मुझे खा जायेगा।

18) यहूदियों ने ईसा से कहा, ‘‘आप हमें कौन-सा चमत्कार दिखा सकते हैं, जिससे हम यह जानें कि आप को ऐसा करने का अधिकार है?’’

19) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘इस मन्दिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों के अन्दर फिर खड़ा कर दूँगा’’।

20) इस पर यहूदियों ने कहा, ‘‘इस मंदिर के निर्माण में छियालीस वर्ष लगे, और आप इसे तीन दिनों के अन्दर खड़ा कर देंगे?’’

21) ईसा तो अपने शरीर के मन्दिर के विषय में कह रहे थे।

22) जब वह मृतकों में से जी उठे, तो उनके शिष्यों को याद आया कि उन्होंने यह कहा था; इसलिए उन्होंने धर्मग्रन्ध और ईसा के इस कथन पर विश्वास किया।

📚 मनन-चिंतन

कहा जाता है कि ईश्वर सब जगह है, हमारे हृदय में है, हमारे घर में है, हमारे चारों ओर है। और अगर ईश्वर सब जगह है तो फिर उससे प्रार्थना करने के लिए गिरिजाघर जाने की क्या आवश्यकता है? आखिर एक गिरिजाघर का हमारे विश्वासी जीवन के लिए क्या महत्व है? एक गिरिजाघर विशेष रूप से प्रभु द्वारा नियुक्त एवं पवित्र किया हुआ स्थान है। जिस तरह से भोजन तैयार करने के लिए एक विशेष स्थान रसोईघर होता है, भोजन करने के लिए भोजनालय होता है, उसी तरह ईश्वर से संवाद के लिए गिरिजाघर होता है। यह स्थान हमें न केवल ईश्वर से जुडने के लिए विशेष वातावरण उपलब्ध कराता है बल्कि एक-दूसरे से जुड़े रहने का भी अवसर प्रदान करता है। जब हम गिरिजाघर के वास्तविक उद्देश्य को भुला देते हैं तो ईश्वर को अच्छा नहीं लगता, उन्हें क्रोध आता है। क्या हम ईश्वर के पवित्र स्थान को उचित महत्व देते हैं?

फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


It is said that God is present everywhere: in our hearts, in our homes, around us. And if God is everywhere, then what is the need to go to a church to pray? After all, what significance does a church hold in our spiritual life? A church is a place specially appointed and sanctified by the Lord. Just as there is a specific place for preparing food, the kitchen, and a specific place for eating, the dining room, similarly, the church is the place for communication with God. This place not only provides a special environment for us to connect with God but also offers an opportunity to stay connected with one another. When we forget the true purpose of the church, God is displeased, and He becomes angry. Do we give proper importance to God's holy dwelling place?

-Fr. Johnson B. Maria(Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

येसु गुस्से में थे। मंदिर पूजा, आराधना और प्रार्थना करने के लिए एक पवित्र स्थान है। पैसे बदलने वाले और व्यापारी इस मंदिर को अपवित्र कर रहे थे। येसु बिना संकोच के व्यंग्यात्मक रूप से उनसे कहते हैं। मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ। वह कोड़ा बनाते हैं और पैसे बदलने वालों को मंदिर से बाहर निकाल देते हैं। आज हमें स्वयं से पूछना है- क्या हम चर्च की पवित्रता का सम्मान करते हैं जहां हम पूजा करते हैं? यह पवित्रता उन सभी सैकडों विश्वासियों की प्रार्थनाओं से बढ जाती है जो इस पवित्र स्थान में ईमानदारी से प्रार्थना करते है। अगली बार जब आप किसी भी चर्च में प्रवेश करें तो सावधान रहें और उस पवित्र स्थान की पवित्रता का अनुभव करें। आप स्वयं पवित्र हैं क्योंकि आप पवित्र आत्मा का मंदिर है अतः इस पवित्रता को बनाये रखें।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


Jesus was enraged! The temple was a holy and sacred place for worship and prayer. The money changers and merchants were defiling this temple. Jesus doesn’t hesitate. He sarcastically tells them to stop making God’s house a place of business. He takes a whip and drives the money changers out of the temple! Today may we ask ourselves: do we honor the sacredness of the Church where we worship? I know at times I simply take it for granted. Or I might treat it as just another building. At other times, I am awed by the grandeur, the silence and the sacredness of our Church. However, this sacredness is magnified by the prayers of all the hundreds of believers who faithfully prayed in this sacred space! The Church where you worship also is sacred. The next time you are in Church be attentive to and experience the sacredness of your holy place. May you carry this “sacredness” with you throughout your life!

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -3

आज सम्पूर्ण कलीसिया रोम के साथ लातरेन महामदिंर का प्रतिष्ठान का पर्व मनाती है जो कि रोम के चार मुख्य मदिंरों या बसीलिकाओं में से एक और प्राचीन है। लातरेन महामदिंर रोम धर्मप्रांत का महागिरजा घर हैं न कि संत पेत्रुस मंदिर या बसीलिका जिसे अक्सर लोग समझने में गलती कर बैठते हैं। लातरेन महामंदिर को संत योहन बपतिस्ता गिरजा से जाना जाता हैं। यह पश्चिम क्षेत्र का सबसे प्राचीन गिरजाघर है जो कि सम्राट कोन्सटेन्टाईन के समय बनाया गया था। लातरेन महामंदिर को सम्पूर्ण दुनिया के सभी शहर के सम्स्त गिरजाघरों की मॉं तथा शीर्ष के रूप में माना जाता हैं।

आज के इस पर्व के अवसर पर काथलिक कलीसिया हमारे समाने उन पाठों को रखती है जो प्रभु के मन्दिर से सन्दर्भ रखते हैं। पहला पाठ जो कि एजे़किएल के ग्रंथ से लिया गया है जहॉं पर नबी एज़ेकिएल अपने उस दर्शन के बारे में बताते है जहॉं पर प्रभु के मंदिर से जल निकल कर नदी की तरह बह रहा और यह जल जहॉं कहीं भी जाती है वहॉं जीवन प्रदान करते जाती है। प्रभु का मंदिर आशीषों का श्रोत है जहॉं से प्रभु की आशीष निकल कर चारों ओर फैलती है और यह जहॉं कहीं भी जाती है उसमें जीवन भर देती हैं।

आज के सुसमाचार में येसु येरूसालेम मंदिर में चल रहें कारोबार को छितर-बितर कर देते हैं तथा पिता के घर को बाजार ना बनाने की हिदायत देते है। प्रभु नबी इसायह के ग्रंथ के वचनों को याद करते है जो 56ः7 में लिखा है, ‘‘मेरा घर सब राष्ट्रों का प्रार्थनागृह कहलायेगा।’’ प्रभु का मंदिर प्रार्थना के लिए निर्मित एक भवन है, जिसे हम सभी को उसकी पवित्रता, गरीमा और उसकी मह्हता को बनाये रखना चाहिए। क्योकि मंदिर एक प्रार्थना का जगह है जहॉं प्रभु अपने बच्चों से वार्तालाप करते है। आगे चल कर प्रभु येसु अपने शरीर के मंदिर के विषय में बताते है। यह हम सभी को यह संदेश देता है कि जिस प्रकार प्रभु येसु का शरीर एक मंदिर था, ठीक उसी प्रकार हम सब का शरीर भी एक मंदिर है जिसमें पवित्र आत्मा निवास करता है, जिसे संत पौलुस 1 कुरि. 3ः16 में भी बताते है।

आज का पर्व हमें अपने शरीर रूपी मंदिर के साथ-साथ अपना गिरजाघर को भी पवित्र बनाये रखने का आह्वान करता है। जिससे प्रभु का निवास हममें तथा गिरजाघरों में पवित्र यूख्रीस्त और बाईबिल के वचन के अनुरूप बना रहें। आज का पर्व सभी गिरजाघरों के लिए आशीष का श्रोत बनें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Today the whole Church along with Rome celebrates the Dedication of the Lateran Basilica which is one and the oldest among the four major basilicas in Rome. Lateran Basilica is the Cathedral of the diocese of Rome, not St. Peter Basilica of which many make mistake. Lateran Basilica is known as the Church of St. John the Baptist. It is the oldest church in the west, built in the time of Emperor Constantine. This Basilica is called “mother and head of all the churches of the city of the world.

On the occasion of this feast, the Catholic Church gives us those readings which are related to the Temple. The first reading which is taken from the book of Ezekiel where prophet Ezekiel tells about his vision of the temple; how the water is flowing as river from the temple and where ever it is going it is giving life. Temple of God is the source of blessings from where the graces spread everywhere and where ever the graces and blessings reach it fills everything with life.

In today’s Gospel we read Jesus scattered the business which was going on in the Jerusalem Temple and asserts them: not to make Father’s house a market place. Lord Jesus remembers the words of Prophet Isaiah which is written in 56:7, “For my house shall be called a house of prayer for all peoples.” Temple of God is a place which is built for the purpose of prayer and we have to keep the holiness, dignity and importance of it; because temple is a place of prayer where Lord talks with his children. Later Jesus talks about the temple of his body. This tells us that as the body of Jesus was God’s temple similarly our body is also the temple of the Holy Spirit which St. Paul also tells in 1Cor 3:16.

Today’s feast invites us to keep holy our churches along with the body as temple, so that God may reside in us as well as in the churches in the holy Eucharist and in word of God. May today’s feast become the source of blessings for all the churches. Amen!

-Fr. Dennis Tigga