1) यदि आप लोगों के लिए मसीह के नाम पर निवेदन तथा प्रेमपूर्ण अनुरोध कुछ महत्व रखता हो और आत्मा में सहभागिता, हार्दिक अनुराग तथा सहानुभूति का कुछ अर्थ हो,
2) तो आप लोग एकचित? एक हृदय तथा एकमत हो कर प्रेम के सूत्र में बंध जायें और इस प्रकार मेरा आनन्द परिपूर्ण कर दें।
3) आप दलबन्दी तथा मिथ्याभिमान से दूर रहें। हर व्यक्ति नम्रतापूर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे।
4) कोई केवल अपने हित का नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।
12) फिर ईसा ने अपने निमन्त्रण देने वाले से कहा, "जब तुम दोपहर या शाम का भोज दो, तो न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें निमन्त्रण दे कर बदला चुका दें।
13) पर जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लँगड़ों और अन्धों को बुलाओ।
14) तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरूत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।"
प्रभु ने हम में से प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग वरदान और कृपायें दीं हैं। और ये वरदान और कृपायें तभी सार्थक और फलप्रद होंगी जब हम इनका उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करेंगे। ईश्वर ने ये हमें इसी उद्देश्य से प्रदान की हैं। जब हम इन्हें दूसरों के लिए उपयोग करते हैं तो इसका फल हमें परलोक में प्रभु ही देंगे। इसलिए प्रभु येसु आज हमें दान या दूसरों को भोजन कराने के बारे में बताते हैं। हमें ऐसे लोगों को भोजन कराना या दान देना चाहिए जो हमें उसका बदला न चुका पाएं। अगर वे उसका बदला नहीं चुका पाएंगे तो प्रभु उनकी ओर से हमें स्वर्ग में पुरस्कार प्रदान कर उसका बदला चुकाएगा। लेकिन अगर हम अपने दान-पुण्य का ढिंढोरा पीट कर उसका फल इसी जन्म में पाना चाहते हैं तो प्रभु से पुरस्कार की आशा कैसे कर सकते हैं?
✍फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)The Lord has given each of us various blessings and graces. These blessings and graces will only be meaningful and fruitful when we use them for the benefit of others. God has provided us with these blessings and graces for this very purpose. When we utilize them for others, the Lord will reward us in the afterlife. That is why today, the Lord teaches us about charity and feeding others. We should feed or give to those who cannot repay us. If they are unable to repay, the Lord will reward us in heaven on their behalf. However, if we seek to announce our charitable deeds and expect to receive rewards in this life, how can we expect to receive a reward from the Lord?
✍ -Fr. Johnson B. Maria(Gwalior Diocese)
ईश्वर दरिद्रों और अनाथों की पुकार को कभी अनसुना नहीं करते। कहते हैं कि ईश्वर के सिवा दरिद्रों का और कोई सहारा नहीं है। आज प्रभु येसु हमें दरिद्रों की देख-भाल करने और उन्हें भोजन कराने का आह्वान करते हैं। जब कोई दरिद्रों और दुर्बलों को बुलाकर भोजन परोसता है, या उनकी मदद करता है तो उसके बदले में देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है, लेकिन चूँकि ईश्वर ही उनका सहारा है, तो वही उनकी ओर से बदला चुकाएगा। वह स्वर्ग में हमारा पूरा हिसाब करेगा। यदि हम उनको बुलाते हैं जो बदले में हमको भी बुला सकते हैं, तो हमारा हिसाब बराबर हो जाता है, और स्वर्ग में हमारे लिए कुछ भी बाक़ी नहीं बचता।
दरिद्रों, अनाथों और दुर्बलों को भोजन कराने का एक पहलू यह भी कि ईश्वर उनमें निवास करते हैं। जब मदर टेरेसा से किसी ने पूछा कि आप बीमारों के घाव क्यों साफ़ करती हो, अनाथों और बेघरों की सेवा क्यों करती हो तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि वह यह सब ईश्वर के लिए करती है जो उन जैसे लोगों में निवास करता है। हमारे अंतिम न्याय के लिए यही मापदण्ड होगा - जब प्रभु येसु भूखा था तो क्या हमने उसे भोजन दिया, जब प्यासा था तो क्या हमने उसे पानी दिया, जब बेघर था, क्या हमने उसे अपने घर में शरण दी? यदि हमने उन छोटे से छोटे लोगों के लिए नहीं किया वह हमने ईश्वर के लिए भी नहीं किया।(देखें मत्ती २५:३१-४६)।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
God answers the pleas of poor and the orphans. It is said, poor have nothing but God on their side. Today Jesus reminds us to take care of the poor and feed them. When someone calls the poor and orphans and gives them food or help, they cannot return it, but since God is on their side, God will see that your favour is returned. God will give the return in heaven. If we invite those who can invite us in return, then the account is settled here on earth itself, but it gains no benefit in the life to come.
Another aspect of feeding the poor, orphans and weak or caring for the sick, is that God dwells in them. St. Mother Teresa, when asked why she cleaned the wounds of the sick or fed the hungry or cared for the orphans, she answered that she did it for God who dwells in them. Our king will judge us on this parameter – when he was hungry, whether we fed him, when he was thirsty, whether we gave him water, when he was homeless whether we gave him shelter. And if we did not do it for the poor, then we did not do it for God. (cf Matt. 25:31- 46).
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)