2) मैंने एक अन्य दूत को पूर्व से ऊपर उठते देखा। जीवन्त ईश्वर की मुहर उसके पास थी और उसने उन चार दूतों से, जिन्हें पृथ्वी और समुद्र को उजाड़ने का अधिकार मिला था, पुकार कर कहा,
9) इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे
10) और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, "सिंहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!"
11) तब सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब-के-सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की आराधना की,
12) "आमेन! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति ! आमेन !"
13) वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, "ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहाँ से आये हैं?
14) मैंने उत्तर दिया, "महोदय! आप ही जानते हैं" और उसने मुझ से कहाँ, "ये वे लोग हैं, जो महासंकट से निकल कर आये हैं। इन्होंने मेमने के रक्त से अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं।
1) पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है।
2) प्यारे भाइयो! अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है।
3) जो उस से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह शुद्ध है।
(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए उनके शिष्य उनके पास आये।
(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
(3) "धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(4) धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
(5) धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
(6) घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं! वे तृप्त किये जायेंगे।
(7) धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।
(8) धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
(9) धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
(10) धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(11) धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
(12) खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा।
आज माता कलिसिया सभी संतों का महापर्व मनाती है। हम अपने जीवन में कभी-कभी ऐसे लोगों से मिलते हैं जो मौन रूप से चुपचाप ऐसा पवित्र जीवन जीते हैं कि वे दूसरों के लिए आदर्श और उदाहरण बन जाते हैं। उन्हें किसी के परिचय की जरूरत नहीं होती। वे अपने जीवन में हर पल हर क्षण ईश्वर की इच्छा पूरी करने पर ही अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। वास्तव में हम सभी संत बनने के लिए बुलाए गए हैं। और जो व्यक्ति अपने जीवन की इस महान बुलाहट को भूल जाता है वह भटक जाता है। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमें आशीर्वचनों के रूप में सन्त बनने एवं स्वर्गीय मंजिल पाने के लिए मार्गदर्शक संकेतक प्रदान करते हैं। जो अपने जीवन में इनका पालन कर लेगा वह न केवल जीवंत सन्त बन जाएगा बल्कि प्रभु येसु के परिवार में शामिल हो जाएगा। एक सन्त हमेशा अपने जीवन ईश्वर को प्रसन्न करने के बारे में सोचता रहता है। क्या मैं अपने जीवन में सन्त बनने की राह पर अग्रसर हूँ?
✍फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)Today, Mother Church celebrates the great feast of all saints. In our lives, we sometimes meet people who silently and quietly live such a holy life that they become ideals and examples for others. They do not need anyone’s introduction. They focus their attention on fulfilling God's will in every moment of their lives. In truth, we are all called to become saints. Those who forget this great calling in their lives become lost. In today’s Gospel, the Lord provides us with guiding signs to become blessed and attain heavenly rewards. Those who follow these in their lives will not only become living saints but will also join the family of the Lord Jesus. A saint constantly thinks about how to please God in their life. Am I on the path to becoming a saint in my life?
✍ -Fr. Johnson B. Maria(Gwalior Diocese)
कलीसिया हर वर्ष पवित्र महिलाओं और पुरूषों के उदाहरण, साक्षी और प्रार्थना को याद करती है जिन्हें कलीसिया ने संतों के रूप में पहचाना है। ये संतजन प्रेरणास्त्रोत से अधिक बढ़कर है। वे परिवार के सदस्य हैं, जिनके साथ हम प्रार्थना के बंधन में एक रिश्ता साझा करते हैं, जिसे संतों का समुदाय कहा जाता है। आज का सुसमाचार आर्शीवचन के माध्यम से हमें येसु की खुशी-आर्शीवाद-धन्यवाद के विषय में शिक्षा का स्मरण कराता है। आर्शीवचन को स्व्रीस्तीय जीवन के लिए एक रूपरेखा या मार्गदर्शिका के रूप में समझा जा सकता है। संत वे लोग है जो येसु के जीवन की भांति आर्शीवचनों की भावना को जीते थे। इस दिन हमें भी अपने जीवन को आर्शीवचन की भावना और वादों को आदर्श बनाने के लिए प्रेरित किया जाता और चुनौती दी जाती है।
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)Every year the Church recalls the example, witness, and prayer of the holy women and men who have been identified by the Church as Saints. These saints are more than just role models; they are family members with whom we continue to share relation, in a bond of prayer, called the Communion of Saints. Every year when we celebrate this day, the Gospel we proclaim recalls for us Jesus' teaching about happiness, the Beatitudes. Jesus' blueprint for happiness reflects little of what the world might call happiness. The Beatitudes can be understood as a framework for Christian living. Because of this, it is natural that we proclaim this Gospel on the Feast of All Saints. Saints are people who lived the spirit of the Beatitudes as Jesus lived. On this day, we too are challenged to model our lives on the spirit and promises of the Beatitudes.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
आज कार्लो अक्यूतिस एक जाना माना नाम है तथा पूरे संसार भर में विशेष रूप से इंटरनेट एवं सोशियल मिडिया पर छाया हुआ है जिसे इंटरनेट का संरक्षक भी माना जा रहा है। एक ऐसा नौजवान है जिसे संत पापा फ्रांसिस ने 10 अक्टूबर 2020 को धन्य घोषित किया और अब वे संत बनने की श्रेणी में अग्रिम हैं। एक ऐसा नौजवान जिसने इस आधुनिक दुनिया में एक सच्चे ख्रीस्तीय का जीवन बिताया। यूख्रीस्तीय आराधना एवं पवित्र मिस्सा बलिदान के प्रति उनकी विशेष रूचि और लगाव था। जब उनके पार्थिव शरीर को धन्य की उपाधि हेतु निकाला गया तब उनका शरीर अजीर्ण पाया गया, सुरक्षित पाया गया। इस नौजवान ने हमे बताया कि किस प्रकार इस आधुनिक युग में भी एक प्रभुमय या संतो भरा जीवन बिताया जा सकता है।
आज काथलिक कलीसिया सभी संतो का पर्व मना रही है। कार्लो के समान ऐसे कई लोग है जिसे काथलिक कलीसिया ने संत घोषित किया है और कई संत बनने की प्रक्रिया में शामिल है। आज वह दिन है जब हम उन सभी संतो को याद करते है जिन्होने अपना जीवन ईश्वर को सर्म्पित करते हुए बिताया तथा हमें बताया कि किस तरह से हम ईश्वर के समीप जा सकते है या किस प्रकार हम इस युग में ईश्वर के साथ समय बिता सकते है।
जब कभी हम से पूछा जाता हैं कि हम जीवन में क्या बनना चाहते हैं तो हमारा जवाब रहता डॉकटर, इंजीनियर, पुलिस, आर्मी, गायक, डांसर, वैज्ञानिक, नेता इत्यादि परंतु कोई यह नहीं कहना चाहता या बहुत ही कम यानि कि ना के बराबर ही लोग कहते हैं कि मैं संत बनना चाहता हूॅं या चाहती हूॅं। वह इसलिए कि अधिकतर हमारी सोच संतो के प्रति यह रहती है कि संत बनने के लिए हमें पवित्र बनना पड़ेगा, बहुत त्याग-तपस्या करना पड़ेगा, बहुत प्रार्थना और उपवास करना पड़ेगा, लोगों के कल्याण के लिए बहुत कष्ट सहना पड़ेगा, या फिर यह तो फादर-सिस्टर के लिए है, संत तो जन्म से ही पवित्र होते है जन्म से ही असधारण होते हैं आदि इस सोच के कारण अधिकतर लोग संत बनने का ख्याल को त्याग देते हैं। ऐसी बात नहीं है कि हमें संत पंसद नहीं है या उनका जीवन हमें प्रभावित नहीं करता; संतो का जीवन हमें बहुत प्रभावित करता है, और हम उनके जीवन को सुनना या उनके जीवन में हुई अद्भुत घटनाओं, चमत्कारों को सुनना और उनसे प्रार्थना करना पसंद है परंतु संतों जैसा जीवन जीने के लिए ना के बराबर लोग ही आगे आते है।
हमें लगता हैं कि संत बनने के लिए हमें बड़े-बड़े कार्य करने पड़ेंगे परंतु ऐसा नहीं है संत वे होते है जो छोटे-छोटे कार्य ईमानदारी एवं निष्ठापूर्वक प्रभु को समर्पित करते हुए करते जाते है और प्रभु ईश्वर उनके जीवन द्वारा महान चिन्ह और चमत्कार प्रकट करते है।
संत लोग भी हमारे ही तरह होते हैं हमारे ही तरह जन्म लेते है हमारी ही तरह दैनिक कार्य करते हैं, लोगों के साथ उठते बैठते है, हॅंसते-गाते हैं लोगों के साथ खुशनुमा समय बिताते हैं। तो फिर ऐसा क्या है जोे संतो को इस संसार का होते हुए भी इस संसार से अलग बनाता हैं?
इसे जानने के लिए हमें आज का पहला पाठ को ध्यान से समझना पड़ेगा जो कि प्रकाशना ग्रंथ से लिया गया है। संत योहन दिव्य दर्शन में देखते हैं कि सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक विशाल जनसमूह सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े होकर तथा सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब के सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिरकर ईश्वर की जय-जयकार एवं आराधना करते हुए कह रहे हैं, हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य, और शक्ति। आमेन! यह हमें बताता है कि स्वर्ग में उपस्थित सभी स्वर्गदूत, संतगण या दिव्य प्राणी सब के सब प्रभु की आराधना एवं महिमा करते हैं अर्थात दूसरे शब्दों में स्वर्ग में ईश्वर की निरंतर महिमा और आराधना होती हैं।
जो चिज संतो को इस संसार का होते हुए भी इस संसार से अलग बनाता हैं, वह हैं वे अपने जीवन द्वारा स्वर्ग के वातावरण को इस संसार में अवतरित या पूरित करना। अर्थात् जिस प्रकार की महिमा एवं सम्मान ईश्वर की स्वर्ग में होती है संत व्यक्ति उसी प्रकार की महिमा एवं सम्मान इस संसार में रहते हुए करते है। प्रभु की महिमा करना मतलब ईश्वर के यश को इस संसार में ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए फैलाना। प्रभु की महिमा करना केवल संतो ंके लिए ही नहीं परंतु हम सब के लिए संभव है। और ऐसा नहीं है कि हम प्रभु की महिमा नहीं करतेें परंतु हमारे और संतो में यह अंतर रहता हैं कि हम प्रभु की महिमा हमारे जरूरत या समय, या किसी स्थिति के अनुसार करते है। परंतु संतों ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रभु की महिमा करते हुए बिताया। उन्होने अपना जीवन के कार्यो द्वारा ईश्वर की महिमा की जैसे छोटी पुष्प की संत तेरेसा ने साधारण कार्य ईश्वर को सर्म्पित करते हुए श्रद्धापूर्वक किया, संत थोमस अक्वीनस और संत अगस्तीन ने अपने ईश्वरीय ज्ञान और कलीसिया शिक्षाओं के द्वारा ईश्वर की महिमा करी, संत अंथोनी ने प्रचार द्वारा ईश्वर की महिमा करी, सुसमाचार लेखकों ने सुसमाचार द्वारा ईश्वर की महिमा करी, संत मदर तेरेसा ने बेसहारा लोगों की सेवा कर प्रभु के प्रेम की महिमा को दुनिया में दिखाया, संत अल्फोंसा ने दुःख सहते हुए ईश्वर की महिमा करी इसी तरह कई संत है जिन्होने अपनी शिक्षाओं, अपनी लेखों, प्रचार, उपदेश, आध्यात्मिकता, सरल जीवन, प्रार्थना आदि के द्वारा ईश्वर की महिमा करी।
संतों ने जितने भी कार्य किये प्रभु येसु को प्रथम स्थान पर रख कर किया उन्होने अपना जीवन ईश्वर की महिमा में बिताया न कि स्वयं की महिमा में और यही चीज संतो को हम सभी से अलग करती है। हम अक्सर अपना जीवन अपनी महिमा हेतु बिताते है हम अपनी प्रशंसा हेतु कार्य करते है और इस कारण हम ईश्वर की महिमा करना भूल जाते है। जिस प्रकार 1कुरि. 10ः31 बताता है हम भी ‘चाहे खायें या पियें, या जो कुछ भी करें, सब ईश्वर की महिमा के लिए करें।’
दूसरी चीज़ जो संतों को इस संसार से अलग बनाता है वह है संसार के अनुसार नहीं अपितु ईश्वरीय अनुसार जीवन बिताना जिसे हम आज के सुसमाचार में पढ़ते हैं जो कि अर्शीवचन से जाना जाता है। जितना भी वचन आर्शीवचन में कहें गये है आज का युग इसके विपरीत सोच रखता है जैसे आजकल कौन अपने आप को दीन और नम्र बनाने की सोचता सब अपने आपको बड़ा और महान मानना चाहते है। परंतु संतो ने अपने के जीवन में आर्शीवचन के गुण को अपनाये और बताया कि इस संसार में रहते हुए भी यह जीवन जिया जा सकता है।
सब संतो का पर्व हम सब के लिए एक प्रेरणा श्रोत और दिव्य जानकारी से विभूषित है। आईये हम संतो द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने का प्रयास करें क्योकि हम सब संत बनने के लिए बुलाये गये है। आमेन
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today Carlo Aqutis is well known name and all the more he is famous all over especially in the field of internet and social media and also known as the patron of internet. A youth whom Pope Francis declared him Blessed on 10th October 2020 and now he is on the way to sainthood; A youth who lived a true Christian live in this modern world. He was fond of Eucharistic Adoration and Holy Mass. When his body was exhumed for the purpose of blessed it was found incorruptible. This youth has taught us that in this modern time how we can still live a divine and saintly life.
Today the Catholic Church is celebrating all Saints Feast. Like Carlo there are many whom Catholic Church have canonized Saints and some are still on the process of Sainthood. This day we remember all Saints who by surrendering their lives to God taught us how we can be near to God and how we can live in the presence of God even in this modern time.
Whenever we are being asked that what we want to become in life then our usual answers use to be Doctor, Engineer, Police, Army, Singer, Dancer, Scientist, Politician etc. but nobody wants to say or minimal people will say that I want to become a Saint. This is all because of our mind set and view with regard to saints. We think that to become Saint we also have to become holy, we have to do many sacrifices, we have to do lot of prayers and fasting, we have to undergo pain and suffering for the welfare of the people or this live is only for fathers and sisters, or saints are holy and extraordinary from childhood onwards etc. Because of all these mindset people do not want to be a saint. They are happy as they are. It is not that we do not like saints or we are not affected by their lives. Saints lives affects us and we like to listen about them and about the wonderful works happened in their lives and even we pray to them but to live a saintly live very few people come forward.
We think that to become saint we have to extraordinary or big-big works but it is not like that saints are those who do the ordinary works in faithfulness and with full dedication by surrendering their life to God and God does extraordinary works through their lives.
Saints too are like us- Like us they are being born, like us they did their daily tasks, they lived among the people spending their pleasant life by talking, laughing, helping, doing daily tasks and sharing their lives with the people. Then what is the thing which makes them different from this world?
In order to know this we need to understand today’s first reading which is from the book of Revelation . St. John in his vision sees a great multitude from every nation, tribe, people and language standing before the throne and before the Lamb. And all the angels were standing around the throne and around the elders and the four living creatures. Falling down on their faces they were worshipping God saying, “Praise and glory and wisdom and thanks and honour and power and strength be to our God forever and ever. Amen!” This tells us that all the angels, saints and divine beings who are living in heaven are worshipping and Glorifying God. In other words there is continuous glorification and worship goes on in heaven.
What make saints different from others is that through their lives they bring the heavenly atmosphere to this world. That is as the glorification and honour of God is happening in heaven similarly Saints glorify and honour God by living on this earth. Glorifying God means making known the name of God by obeying and spreading the Word of God. Glorifying God can also be done by us too. It is not that we don’t glorify God. We do glorify God but the difference is that we glorify God according to the time, situation and need. But Saints live their whole life glorifying God everyday. Through their daily work they glorified God like St. Teresa of little flower glorified God by doing her daily work with full dedication, St. Thomas Aquinas and St. Augustine glorified God through their divine knowledge and teachings of Catholic Church, St. Anthony glorified God through the preaching, Evangelists glorified God through the Gospel writing, St. Mother Teresa glorified God by serving the poor and destitute, St. Alphonsa glorified God by bearing the sufferings for others. Like this there are many saints who have glorified God through their teachings, writings, preaching, sermons, spirituality, simple life, prayer and so on.
Saints have done all their work keeping God at the first place and they lived their lives glorifying God not glorifying self and this is what makes us different from them. We usually spend our lives for our glorification, we do the works so that we may receive appreciation from people and for this reason we fail to glorify God all the time. We too need to do as St. Paul says in 1 Cor. 10:31, “Whether you eat or drink or whatever you do, do all to the glory of God.”
Another thing which makes Saints different from the world is that they lived godly live rather than worldly life which we read in today’s gospel passage popularly known as the beatitudes. The present world totally has different thoughts and view than what is being written in the beatitudes. Like in this present world who would like to be poor in spirit and humble, today all wants to be called big and want to be called great. But Saints imbibed the quality of beatitudes and showed the world that even in this time too we can live this live.
All saints feast is a source of inspiration and filled with divine knowledge. Let’s try to walk the path which saints have shown us because we all are called to be a saint. Amen
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
आज कार्लो अक्यूतिस एक जाना माना नाम है तथा पूरे संसार भर में विशेष रूप से इंटरनेट एवं सोशियल मिडिया पर छाया हुआ है जिसे इंटरनेट का संरक्षक भी माना जा रहा है। एक ऐसा नौजवान है जिसे संत पापा फ्रांसिस ने 10 अक्टूबर को धन्य घोषित किया और अब वे संत बनने की श्रेणी में अग्रिम हैं। एक ऐसा नौजवान जिसने इस आधुनिक दुनिया में एक सच्चे ख्रीस्तीय का जीवन बिताया। यूख्रीस्तीय आराधना एवं पवित्र मिस्सा बलिदान के प्रति उनकी विशेष रूचि और लगाव था। जब उनके पार्थिव शरीर को धन्य की उपाधि हेतु निकाला गया तब उनका शरीर अजीर्ण पाया गया, सुरक्षित पाया गया। इस नौजवान ने हमे बताया कि किस प्रकार इस आधुनिक युग में भी एक प्रभुमय या संतो भरा जीवन बिताया जा सकता है।
आज काथलिक कलीसिया सभी संतो का पर्व मना रही है। कार्लो के समान ऐसे कई लोग है जिसे काथलिक कलीसिया ने संत घोषित किया है और कई संत बनने की प्रक्रिया में शामिल है। आज वह दिन है जब हम उन सभी संतो को याद करते है जिन्होने अपना जीवन ईश्वर को सर्म्पित करते हुए बिताया तथा हमें बताया कि किस तरह से हम ईश्वर के समीप जा सकते है या किस प्रकार हम इस युग में ईश्वर के साथ समय बिता सकते है।
जब कभी हम से पूछा जाता हैं कि हम जीवन में क्या बनना चाहते हैं तो हमारा जवाब रहता डॉकटर, इंजीनियर, पुलिस, आर्मी, गायक, डांसर, वैज्ञानिक, नेता इत्यादि परंतु कोई यह नहीं कहना चाहता या बहुत ही कम यानि कि ना के बराबर ही लोग कहते हैं कि मैं संत बनना चाहता हूॅं या चाहती हूॅं। वह इसलिए कि अधिकतर हमारी सोच संतो के प्रति यह रहती है कि संत बनने के लिए हमें पवित्र बनना पड़ेगा, बहुत त्याग-तपस्या करना पड़ेगा, बहुत प्रार्थना और उपवास करना पड़ेगा, लोगों के कल्याण के लिए बहुत कष्ट सहना पड़ेगा, या फिर यह तो फादर-सिस्टर के लिए है, संत तो जन्म से ही पवित्र होते है जन्म से ही असधारण होते हैं आदि इस सोच के कारण अधिकतर लोग संत बनने का ख्याल को त्याग देते हैं। ऐसी बात नहीं है कि हमें संत पंसद नहीं है या उनका जीवन हमें प्रभावित नहीं करता; संतो का जीवन हमें बहुत प्रभावित करता है, और हम उनके जीवन को सुनना या उनके जीवन में हुई अद्भुत घटनाओं, चमत्कारों को सुनना और उनसे प्रार्थना करना पसंद है परंतु संतों जैसा जीवन जीने के लिए ना के बराबर लोग ही आगे आते है।
हमें लगता हैं कि संत बनने के लिए हमें बड़े-बड़े कार्य करने पड़ेंगे परंतु ऐसा नहीं है संत वे होते है जो छोटे-छोटे कार्य ईमानदारी एवं निष्ठापूर्वक प्रभु को समर्पित करते हुए करते जाते है और प्रभु ईश्वर उनके जीवन द्वारा महान चिन्ह और चमत्कार प्रकट करते है।
संत लोग भी हमारे ही तरह होते हैं हमारे ही तरह जन्म लेते है हमारी ही तरह दैनिक कार्य करते हैं, लोगों के साथ उठते बैठते है, हॅंसते-गाते हैं लोगों के साथ खुशनुमा समय बिताते हैं। तो फिर ऐसा क्या है जोे संतो को इस संसार का होते हुए भी इस संसार से अलग बनाता हैं?
इसे जानने के लिए हमें आज का पहला पाठ को ध्यान से समझना पड़ेगा जो कि प्रकाशना ग्रंथ से लिया गया है। संत योहन दिव्य दर्शन में देखते हैं कि सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक विशाल जनसमूह सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े होकर तथा सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब के सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिरकर ईश्वर की जय-जयकार एवं आराधना करते हुए कह रहे हैं, हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य, और शक्ति। आमेन! यह हमें बताता है कि स्वर्ग में उपस्थित सभी स्वर्गदूत, संतगण या दिव्य प्राणी सब के सब प्रभु की आराधना एवं महिमा करते हैं अर्थात दूसरे शब्दों में स्वर्ग में ईश्वर की निरंतर महिमा और आराधना होती हैं।
जो चिज संतो को इस संसार का होते हुए भी इस संसार से अलग बनाता हैं, वह हैं वे अपने जीवन द्वारा स्वर्ग के वातावरण को इस संसार में अवतरित या पूरित करना। अर्थात् जिस प्रकार की महिमा एवं सम्मान ईश्वर की स्वर्ग में होती है संत व्यक्ति उसी प्रकार की महिमा एवं सम्मान इस संसार में रहते हुए करते है। प्रभु की महिमा करना मतलब ईश्वर के यश को इस संसार में ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए फैलाना। प्रभु की महिमा करना केवल संतो ंके लिए ही नहीं परंतु हम सब के लिए संभव है। और ऐसा नहीं है कि हम प्रभु की महिमा नहीं करतेें परंतु हमारे और संतो में यह अंतर रहता हैं कि हम प्रभु की महिमा हमारे जरूरत या समय, या किसी स्थिति के अनुसार करते है। परंतु संतों ने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रभु की महिमा करते हुए बिताया। उन्होने अपना जीवन के कार्यो द्वारा ईश्वर की महिमा की जैसे छोटी पुष्प की संत तेरेसा ने साधारण कार्य ईश्वर को सर्म्पित करते हुए श्रद्धापूर्वक किया, संत थोमस अक्वीनस और संत अगस्तीन ने अपने ईश्वरीय ज्ञान और कलीसिया शिक्षाओं के द्वारा ईश्वर की महिमा करी, संत अंथोनी ने प्रचार द्वारा ईश्वर की महिमा करी, सुसमाचार लेखकों ने सुसमाचार द्वारा ईश्वर की महिमा करी, संत मदर तेरेसा ने बेसहारा लोगों की सेवा कर प्रभु के प्रेम की महिमा को दुनिया में दिखाया, संत अल्फोंसा ने दुःख सहते हुए ईश्वर की महिमा करी इसी तरह कई संत है जिन्होने अपनी शिक्षाओं, अपनी लेखों, प्रचार, उपदेश, आध्यात्मिकता, सरल जीवन, प्रार्थना आदि के द्वारा ईश्वर की महिमा करी।
संतों ने जितने भी कार्य किये प्रभु येसु को प्रथम स्थान पर रख कर किया उन्होने अपना जीवन ईश्वर की महिमा में बिताया न कि स्वयं की महिमा में और यही चीज संतो को हम सभी से अलग करती है। हम अक्सर अपना जीवन अपनी महिमा हेतु बिताते है हम अपनी प्रशंसा हेतु कार्य करते है और इस कारण हम ईश्वर की महिमा करना भूल जाते है। जिस प्रकार 1कुरि. 10ः31 बताता है हम भी ‘चाहे खायें या पियें, या जो कुछ भी करें, सब ईश्वर की महिमा के लिए करें।’
दूसरी चीज़ जो संतों को इस संसार से अलग बनाता है वह है संसार के अनुसार नहीं अपितु ईश्वरीय अनुसार जीवन बिताना जिसे हम आज के सुसमाचार में पढ़ते हैं जो कि अर्शीवचन से जाना जाता है। जितना भी वचन आर्शीवचन में कहें गये है आज का युग इसके विपरीत सोच रखता है जैसे आजकल कौन अपने आप को दीन और नम्र बनाने की सोचता सब अपने आपको बड़ा और महान मानना चाहते है। परंतु संतो ने अपने के जीवन में आर्शीवचन के गुण को अपनाये और बताया कि इस संसार में रहते हुए भी यह जीवन जिया जा सकता है।
सब संतो का पर्व हम सब के लिए एक प्रेरणा श्रोत और दिव्य जानकारी से विभूषित है। आईये हम संतो द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने का प्रयास करें क्योकि हम सब संत बनने के लिए बुलाये गये है। आमेन
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा
Today Carlo Aqutis is well known name and all the more he is famous all over especially in the field of internet and social media and also known as the patron of internet. A youth whom Pope Francis declared him Blessed on 10th October and now he is on the way to sainthood; A youth who lived a true Christian live in this modern world. He was fond of Eucharistic Adoration and Holy Mass. When his body was exhumed for the purpose of blessed it was found incorruptible. This youth has taught us that in this modern time how we can still live a divine and saintly life.
Today the Catholic Church is celebrating all Saints Feast. Like Carlo there are many whom Catholic Church have canonized Saints and some are still on the process of Sainthood. This day we remember all Saints who by surrendering their lives to God taught us how we can be near to God and how we can live in the presence of God even in this modern time.
Whenever we are being asked that what we want to become in life then our usual answers use to be Doctor, Engineer, Police, Army, Singer, Dancer, Scientist, Politician etc. but nobody wants to say or minimal people will say that I want to become a Saint. This is all because of our mind set and view with regard to saints. We think that to become Saint we also have to become holy, we have to do many sacrifices, we have to do lot of prayers and fasting, we have to undergo pain and suffering for the welfare of the people or this live is only for fathers and sisters, or saints are holy and extraordinary from childhood onwards etc. Because of all these mindset people do not want to be a saint. They are happy as they are. It is not that we do not like saints or we are not affected by their lives. Saints lives affects us and we like to listen about them and about the wonderful works happened in their lives and even we pray to them but to live a saintly live very few people come forward.
We think that to become saint we have to extraordinary or big-big works but it is not like that saints are those who do the ordinary works in faithfulness and with full dedication by surrendering their life to God and God does extraordinary works through their lives.
Saints too are like us- Like us they are being born, like us they did their daily tasks, they lived among the people spending their pleasant life by talking, laughing, helping, doing daily tasks and sharing their lives with the people. Then what is the thing which makes them different from this world?
In order to know this we need to understand today’s first reading which is from the book of Revelation . St. John in his vision sees a great multitude from every nation, tribe, people and language standing before the throne and before the Lamb. And all the angels were standing around the throne and around the elders and the four living creatures. Falling down on their faces they were worshipping God saying, “Praise and glory and wisdom and thanks and honour and power and strength be to our God forever and ever. Amen!” This tells us that all the angels, saints and divine beings who are living in heaven are worshipping and Glorifying God. In other words there is continuous glorification and worship goes on in heaven.
What make saints different from others is that through their lives they bring the heavenly atmosphere to this world. That is as the glorification and honour of God is happening in heaven similarly Saints glorify and honour God by living on this earth. Glorifying God means making known the name of God by obeying and spreading the Word of God. Glorifying God can also be done by us too. It is not that we don’t glorify God. We do glorify God but the difference is that we glorify God according to the time, situation and need. But Saints live their whole life glorifying God everyday. Through their daily work they glorified God like St. Teresa of little flower glorified God by doing her daily work with full dedication, St. Thomas Aquinas and St. Augustine glorified God through their divine knowledge and teachings of Catholic Church, St. Anthony glorified God through the preaching, Evangelists glorified God through the Gospel writing, St. Mother Teresa glorified God by serving the poor and destitute, St. Alphonsa glorified God by bearing the sufferings for others. Like this there are many saints who have glorified God through their teachings, writings, preaching, sermons, spirituality, simple life, prayer and so on.
Saints have done all their work keeping God at the first place and they lived their lives glorifying God not glorifying self and this is what makes us different from them. We usually spend our lives for our glorification, we do the works so that we may receive appreciation from people and for this reason we fail to glorify God all the time. We too need to do as St. Paul says in 1 Cor. 10:31, “Whether you eat or drink or whatever you do, do all to the glory of God.”
Another thing which makes Saints different from the world is that they lived godly live rather than worldly life which we read in today’s gospel passage popularly known as the beatitudes. The present world totally has different thoughts and view than what is being written in the beatitudes. Like in this present world who would like to be poor in spirit and humble, today all wants to be called big and want to be called great. But Saints imbibed the quality of beatitudes and showed the world that even in this time too we can live this live.
All saints feast is a source of inspiration and filled with divine knowledge. Let’s try to walk the path which saints have shown us because we all are called to be a saint. Amen
✍ -Fr. Dennis Tigga