अक्टूबर 31, 2024, गुरुवार

वर्ष का तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 6:10-20

10) अन्त में यह-आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य से बल ग्रहण करें,

11) आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों;

12) क्योंकि हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि इस अन्धकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पड़ता है।

13) इसलिए आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें।

14) आप सत्य का कमरबन्द कस कर, धार्मिकता का कवच धारण कर

15) और शान्ति-सुसमाचार के उत्साह के जूते पहन कर खड़े हों।

16) साथ ही विश्वास की ढाल धारण किये रहें। उस से आप दुष्ट के सब अग्निमय बाण बुझा सकेंगे।

17) इसके अतिरिक्त मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार-अर्थात् ईश्वर का वचन-ग्रहण करें।

18) आप लोग हर समय आत्मा में सब प्रकार की प्रार्थना तथा निवेदन करते रहें। आप लोग जागते रहें और सब सन्तों के लिए निरन्तर विनती करते रहें।

19) आप मेरे लिए भी विनती करें, जिससे बोलते समय मुझे शब्द दिये जायें और मैं निर्भीकता से उस सुसमाचार का रहस्य घोषित कर सकूँ,

20) जिस सुसमाचार का मैं बेडि़यों से बँधा हुआ राजदूत हूँ। आप विनती करें, जिससे मैं निर्भीकता से सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ, जैसा कि मेरा कर्तव्य है।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 13:31-35

31) उसी समय कुछ फ़रीसियों ने आ कर उन से कहा, "विदा लीजिए और यहाँ से चले जाइए, क्योंकि हेरोद आप को मार डालना चाहता है"।

32) ईसा ने उन से कहा, "जा कर उस लोमड़ी से कहो-मैं आज और कल नरकदूतों को निकालता और रोगियों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन मेरा कार्य समापन तक पहुँचा दिया जायेगा।

33) आज, कल और परसों मुझे यात्रा करनी है, क्योंकि यह हो नहीं सकता कि कोई नबी येरूसालेम के बाहर मरे।

34) “येरूसालेम! येरूसालेम! तू नबियों की हत्या करता और अपने पास भेजे हुए लोगों को पत्थरों से मार देता है। मैंने कितनी बार चाहा कि तेरी सन्तान को एकत्र कर लूँ, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने डैनों के नीचे एकत्र कर लेती है, परन्तु तुम लोगों ने इनकार कर दिया।

35) देखो, तुम्हारा घर उजाड़ छोड़ दिया जायेगा। मैं तुम से कहता हूँ, तुम मुझे तब तक नहीं देखोगे, जब तक तुम यह न कहोगे, ’धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं’!“

📚 मनन-चिंतन

आज का पाठ हमें दिखाता है कि येसु कितने बहादुर और प्रेमपूर्ण है। भले ही वें खतरे में हों, तब भी वे अपने मिशन कार्य पर ध्यान केंद्रित रखते हैं, जो कि लोगों को चंगाई करना और बचाना है। हेरोद को दिया हुआ उनका जवाब यह दिखाता है कि वे ईश्वर का काम करने के लिए कितने दृढ़ हैं, चाहे जो भी हो।

येसु को येरुसालेम के लिए, जो अक्सर उनसे मुख फेर लेती है, उस पर बहुत दुख होता है। वह लोगों को एक साथ लाना चाहते हैं, जैसे एक मुर्गी अपने चूजों को एकत्र करती है। यह भाव हमें यह बताता है कि ईश्वर उन लोगों की कितनी परवाह करते हैं। यह हमें यह याद दिलाता है कि ईश्वर का दिल हमेशा हमें बचाने और हमारा मार्गदर्शन करने के लिए खुला रहता है।

हम येसु की बहादुरी और दया से सीख सकते हैं। हमें भी अपने जीवन में, मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है या डर लग सकता है, लेकिन हम यह दृढ़ भरोसा कर सकते हैं कि पिता ईश्वर हमारे साथ हैं, जैसे वे येसु के साथ थे। आईये, हम अपने हृदयों को उनके प्रेम के लिए खोलें और उनके पीछे चलने के लिए तैयार रहें, यह जानते हुए कि वह हमें बचाना चाहता है और हमारा देखभाल करता हैं।

फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


Today’s passage shows us how brave and loving Jesus is. Even when He faces danger, He stays focused on His mission to heal and save people. His reply to Herod shows that He is determined to do God’s work, no matter what happens.

Jesus feels deep sadness for Jerusalem, a city that has often turned away from Him. He wants to gather the people together, like a mother hen protecting her chicks, which shows how much He cares for them. This reminds us that God’s heart is always open to us, wanting to protect and guide us.

We can learn from Jesus’ bravery and kindness. In our lives, we might face tough times or feel scared, but we can trust that God is with us, just like He was with Jesus. Let’s open our hearts to His love and be willing to follow Him, knowing that He wants to protect and take care of us.

-Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

कुछ फरीसी लोग प्रभु येसु को यह चेतावनी देने आते हैं कि हेरोद उन्हें मार डालने के लिए खोज रहा है। प्रभु येसु निडरता से बताते हैं कि वह अपना सेवा कार्य करते रहेंगे, क्योंकि वह जानते थे कि उनकी मंज़िल कलवारी का क्रूस थी और उस मंज़िल से पहले या दूर कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। वह इसलिए निडर थे क्योंकि उन्हें अपने मिशन कार्य में भरोसा और विश्वास था। पिता ईश्वर की इच्छा पूरी करने से ही उन्हें आगे बढ़ते रहने की शक्ति मिलती थी। जब हम अपने जीवन में ईश्वर की इच्छा पूरी करते हैं तो हमें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हर कदम पर ईश्वर हमको सम्भाल लेंगे।

ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीना उतना भी आसान नहीं है। क्योंकि आज भी हेरोद के समान बहुत से दुश्मन हैं जो भले लोगों को मार डालने के लिए खोजते रहते हैं। बुराई कभी थकती नहीं है। लेकिन यदि हम सन्त पौलुस के बताए अनुसार तैयारी करते हैं तो हम बुराई पर, शैतान पर विजय पा सकते हैं। वे बताते हैं कि हमें सत्य की पेटी बांधनी है, धार्मिकता का कवच, हमारे पैरों के लिए तत्परता के जूते, विश्वास की ढाल, मुक्ति का टोप और आत्मा की तलवार से सुसज्जित होना है। जब हम ईश्वरीय हथियार से लैस होंगे तो हम प्रभु येसु की तरह निडर और उत्साही बनेंगे और ईश्वर के कार्य को निरंतर आगे बढ़ाएँगे। ईश्वर हमें उनकी इच्छा के अनुसार जीवन बिताने की शक्ति प्रदान करे।

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Some Pharisees come to Jesus to warn him that Herod wanted to kill him. Jesus boldly proclaims that he has been doing his mission work and will continue to do so, because he knew his destination was the cross on Calvary, before that and away from that nobody could do anything to him. He had courage because he had the conviction in his mission work. Doing the will of the Father gave him the fuel to keep on going. When we do God’s will in our life, we need not to be afraid of anybody or anything, because God will take care of us.

Today doing God’s will and walking on the path of the Lord is the toughest challenge for us. Like Herod, there are many who are looking for us to kill. The devil is always at work. However, we can win over the devil by preparing ourselves as per the direction of Saint Paul in the first reading of today. We need to fasten the belt of truth, put on the breastplate of righteousness, the readiness as the shoes for our feet, shield of faith, helmet of salvation and sword of the spirit. When we are equipped with the armour of God, we can be bold and courageous like Jesus and continue God's mission. May God strengthen us to live according to His will.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन -3

आज का पहला पाठ जो संत पौलुस का एफेसियों के नाम पत्र से लिया गया है, आध्यात्मिक सुरक्षा और संरक्षण के बारे में बोलता है। हम सभी को सुरक्षा की जरूरत है, खासकर हमारे दुश्मनों से बचे रहने के लिए। हमारा सामर्थ्य और शक्ति पर्याप्त नहीं है; हमें प्रभु की शक्ति और संरक्षण में मजबूत होने की जरूरत है। जीवन की बुराईयों का सामना करने और अपने जीवन में बने रहने के लिए यह बहुत आवश्यक है। मानव और सांसारिक शक्ति, रणनीति और हथियार पर्याप्त और विश्वसनीय नहीं हैं; दिव्य कवच ही सुनिश्चित सुरक्षा है। संत पौलुस हमें कहता है कि हमें सच्चाई, धार्मिकता, सुसमाचार का उत्साह, विश्वास, मुक्ति और परमेश्वर के वचन को धारण करना चाहिए जिससे हम शत्रु का सामना करने में समर्थ हो जाएँ। इन आध्यात्मिक शास्त्रों से लैस व्यक्ति कभी पराजित नहीं हो सकता।

आज का अनुवाक्य इस बात पर ज़ोर देता है, "धन्य है प्रभु, मेरी चट्टान"। जो कोई भी प्रभु पर भरोसा करता है, वह उसकी सुरक्षा का अनुभव करेगा।

आज का सुसमाचार येसु के साहस और आत्मविश्वास को प्रदर्शित करता है और विरोध के बावजूद सुसमाचार का प्रचार करने की उसकी इच्छा को दर्शाता है।

क्या तुम अपने दुश्मनों से डरते हो? क्या तुम अक्सर अपने संघर्षों में असफल रहते हो ? क्या तूम अपनी ताकत पर भरोसा करते हो और प्रभु पर नहीं? ईश्वर और उसके कवच धारण करो!

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Today’s first reading from the letter of St. Paul to the Ephesians speaks about spiritual protection. We all need protection, especially from our enemies. Our strength is not good enough, we need to grow strong in the Lord, with the strength of his power. This is needed to resist the worst and to stand your ground. Human and worldly power, tactics and weapons are not sure enough; divine armour is sure protection. St. Paul enumerates the divine weapons of truth, integrity, eagerness to spread the gospel, faith and the word of God. Equipped with these one can never fail.

The responsorial psalm of today emphasizes this, “Blessed be the Lord, my rock”. Anyone who trusts in the Lord will experience his protection.

The gospel demonstrates the courage and confidence of Jesus and his desire to preach the gospel in spite of the opposition and threats to his life. His courage and strength came from the love of his Father.

Are we afraid of our enemies? Do we fail often in our struggles? Could it be because we rely on our strength and not on the Lord? Put on the Lord and his armour!

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)