अक्टूबर 29, 2024, मंगलवार

वर्ष का तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 5:21-33

21) हम मसीह के प्रति श्रद्धा रखने के कारण एक दूसरे के अधीन रहें।

22) पत्नी प्रभु जैसे अपने पति के अधनी रहे।

23) पति उसी तरह पत्नी का शीर्ष है, जिस तरह मसीह कलीसिया के शीर्ष हैं और उसके शरीर के मुक्तिदाता।

24) जिस तरह कलीसिया मसीह के अधीन रहती है, उसी तरह पत्नी को भी सब बातों में अपने पति के अधीन रहना चाहिए।

25) पतियो! अपनी पत्नी को उसी तरह प्यार करो, जिस तरह मसीह ने कलीसिया को प्यार किया। उन्होंने उसके लिए अपने को अर्पित किया,

26) जिससे वह उसे पवित्र कर सकें और वचन तथा जल के स्नान द्वारा शुद्ध कर सकें;

27) क्योंकि वह एक ऐसी कलीसिया अपने सामने उपस्थित करना चाहते थे, जो महिमामय हो, जिस में न दाग हो, न झुर्री और न कोई दूसरा दोष, जो पवित्र और निष्कलंक हो।

28) पति अपनी पत्नी को इस तरह प्यार करे, मानो वह उसका अपना शरीर हो।

29) कोई अपने शरीर से बैर नहीं करता। उल्टे, वह उसका पालन-पोषण करता और उसकी देख-भाल करता रहता है। मसीह कलीसिया के साथ ऐसा करते हैं,

30) क्योंकि हम उनके शरीर के अंग हैं।

31) धर्मग्रन्थ में लिखा है- पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे।

32) यह एक महान रहस्य है। मैं समझता हूँ कि यह मसीह और कलीसिया के सम्बन्ध की ओर संकेत करता है।

33) जो भी हो, आप लोगों में हर एक अपनी पत्नी को अपने समान प्यार करे और पत्नी अपने पति का आदर करे।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 13:18-21

18) ईसा ने कहा, ’’ईश्वर का राज्य किसके सदृश है? मैं इसकी तुलना किस से करूँ?

19) वह उस राई के दाने के सदृश है, जिसे ले कर किसी मनुष्य ने अपनी बारी में बोया। वह बढ़ते-बढ़ते पेड़ हो गया और आकाश के पंछी उसकी डालियों में बसेरा करने आये।’’

20) उन्होंने फिर कहा, ’’मैं ईश्वर के राज्य की तुलना किस से करूँ?

21) वह उस ख़मीर के सदृश है, जिसे ले कर किसी स्त्री ने तीन पंसेरी आटे में मिलाया और सारा आटा ख़मीर हो गया।’’

📚 मनन-चिंतन

लूकस 13:18-21 में, येसु दो दृष्टांत साझा करते हैं जो हमें ईश्वर के राज्य के बारे में सिखाती हैं। वे इसे सरसों के बीज और खमीर से तुलना करते हैं।

ये दृष्टांत हमें याद दिलाती हैं कि ईश्वर का राज्य भले ही छोटे स्तर पर शुरू होता हो, लेकिन इसमें बढ़ने और जीवन को बदलने की बड़ी क्षमता होती है। जिस प्रकार सरसों का बीज, जो शुरुआत में छोटा लगता है, उसी प्रकार हमारी आस्था भी छोटी या महत्वहीन लग सकती है, लेकिन ईश्वर की मदद से, वह आस्था अपने में एक अद्भुत और प्रभावशाली अवस्था में बदल सकती है।

खमीर हमें यह दिखाता है कि कैसे ईश्वर का थोड़ा सा प्रेम और अनुग्रह सब कुछ बदल सकता है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमारे कार्य, चाहे वह कितने छोटे ही क्यों न हों, उनका बड़ा प्रभाव हो सकता है। जब हम जीवन में दया, प्रेम और दूसरों क्षमा करते हैं, तो हम इस दुनिया में ईश्वर के राज्य के बीज बोते हैं।

आइए हम यह याद रखें कि हर छोटे विश्वास के द्वारा किया गया कार्य का हमेशा महत्व होता है। ईश्वर हमारे छोटे-छोटे कार्य के प्रयासों को महानता में परिवर्तित कर सकते हैं। इसलिए, चाहे हम अपनी आस्था में बड़े महसूस करें या छोटे, आइए हम ईश्वर की शक्ति पर भरोसा करते रहें कि वह हमारे भीतर और चारों ओर अपने राज्य को बढ़ा सके।

फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


In Luke 13:18-21, Jesus shares two parables that teach us about the Kingdom of God. He compares it to a mustard seed and yeast.

These parables remind us that the Kingdom of God may begin small, but it has great potential to grow and transform lives. Just like the mustard seed, which seems tiny at first, our faith might also feel small or insignificant. But with God’s help, that faith can grow into something wonderful and impactful.

The yeast shows us how a little bit of God’s love and grace can spread and change everything around us. It reminds us that our actions, no matter how small, can have a big impact. When we show kindness, love, and forgiveness, we are planting seeds of the Kingdom in the world.

Let’s remember that every small act of faith matters. God can take our little efforts and turn them into something great. So, whether we feel big or small in our faith, let’s keep trusting in God’s power to grow the Kingdom in and around us.

-Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

प्रभु येसु हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन से कई उदाहरण लेकर ईश्वरीय राज्य के रहस्यों को हमें समझाते हैं। उदाहरण के लिए जिसने अमरीका देखा है, वह अमरीका के बारे में हमें अच्छे से समझा सकता है। उसी तरह से प्रभु येसु स्वर्ग से हमारे बीच आए हैं, इसलिए वह हमें स्वर्गीय पिता और स्वर्ग के बारे में सब कुछ समझा सकते हैं, भले ही हमने अभी तक स्वर्ग नहीं देखा है। वहीं हम इस दुनिया में अपने जन्म से ही हैं और इसलिए इस दुनिया के बारे में, इसके तौर-तरीक़ों के बारे में भली-भाँति जानते हैं।

प्रभु येसु हमारी समझ की परे की चीज़ों को समझाने के लिए हमारी समझ में आ जाने वाली चीज़ों का उदाहरण देते हैं। आज प्रभु येसु दो उदाहरणों द्वारा हमें ईश्वर के राज्य के बारे में समझाते हैं। वह राई के दाने का उदाहरण देते हैं, और दूसरा उदाहरण ख़मीर का देते हैं। राई का दाना बहुत छोटा होता है, लेकिन वह बढ़कर बड़ा पौधा बन जाता है। उसी तरह से ईश्वरीय राज्य में भी बड़ी सम्भावनाएँ छुपी हैं, जहाँ सारे संसार के लोग शरण पा सकते हैं। जिस तरह से थोड़ा सा ख़मीर सारे आटे को ख़मीरा बना देता है, उसी तरह से ईश्वरीय राज्य के मूल्य सारी दुनिया को बदल सकते हैं। आइए हम भी उसी ईश्वरीय राज्य के सच्चे वाहक बनें।

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Jesus uses many examples and metaphors from our day-to-day life for explaining about the kingdom of God. A person coming from America, may know a lot of things about America. Jesus has come down from heaven and the Father, therefore he knows everything about heaven and heavenly father, but if we have not gone to heaven yet, we cannot understand much about there. On the other hand, we have been in this world since our birth, therefore we can understand a lot of things about this world.

Jesus takes the example from the things that we understand to explain the things that we cannot understand. Today Jesus gives two examples from our day-to-day life to explain, what kingdom of God is like. He uses the example of mustard seed and another example of leaven. Mustard seed is very tiny but it grows into a big plant. Similarly, the kingdom of God has hidden potential to grow and give shelter to the people of whole world. Leaven is little, but when mixed with the flour it changes the whole flour. The values of the kingdom of God have power to change the whole world. May we become the heroes of the same kingdom!

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन -3

आज का पहला पाठ में संत पौलुस विवाहित जीवन में प्रेम के महत्त्व के बारे में बताते है। यह मसीह और उसके शरीर, कलीसिया के बीच संबंध पर आधारित होना चाहिए। पति और पत्नी को मसीह की आज्ञा मानते हुए एक-दूसरे को समर्पित करना है। उनके रिश्ते को आपसी प्यार और सम्मान से निर्देशित होना चाहिए।

आज का अनुवाक्य प्रभु पर श्रद्धा रखने वालों के लिए प्रतिज्ञात आशीर्वादों के बारे में है।

ईश्वर के राज्य के बारे में आज के सुसमाचार पाठ में येसु के दो छोटे दृष्टांत हैं: राई का दाना और खमीर का दृष्टान्त। ईश्वर के राज्य की अपनी छोटी और विनम्र शुरुआत है। ईश्वर अपने रहस्यमय तरीकों से इसे विकसित करेगा, फल देगा और इसे परिपूर्णता तक ले जायेगा। कलीसिया के सदस्यों और परिवारों के बीच संबंधों को ईश्वर के राज्य का सारांश, यानी प्रेम के सूत्र द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। प्यार और दयालुता के छोटे और अक्सर गुमनाम कार्यों के द्वारा ही लोग अपने जीवन में ईश्वर का प्रेम और संरक्षण के अनुभव करते हैं। हम किसी का या किसी चीज़ का तिरस्कार न करें क्योंकि वे छोटे या तुच्छ हो। ईश्वर की दृष्टि में हर कोई कीमती और मूल्यवान है। राई का दाना से उत्पन्न पौधा आकाश के पक्षियों को आश्रय दे सकता है! जैसा कि संत मदर तेरेसा कहती हैं, शांति एक मुस्कान से शुरू होती है!

क्या आप दूसरों को घृणा करते हैं क्योंकि वे छोटे या तुच्छ हैं? क्या आप कुछ करने के लिए अनिच्छुक हैं क्योंकि यह छोटा है या तुच्छ है? आज दया के कुछ छोटे और अनाम कार्य करें। याद रखें कि आप ऐसा करने में ईश्वर के राज्य की वृद्धि में योगदान देते हैं !

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

In today’s first reading St. Paul speaks about the implications of love in married life. It must be based on the relations between Christ and his body, the Church. Husband and wife must give to one another in obedience to Christ. Their relationship must be guided by mutual love and respect.

The responsorial psalm speaks about the blessings in store for those who fear the Lord.

The gospel contains two small parables of Jesus about the Kingdom of God: the parable of the mustard seed and the yeast. The Kingdom of God has its small and humble beginnings. God in his mysterious ways will make it grow, bear fruit and bring it to fulfilment. Relations between members of the church and families must be guided by the quintessence of the Kingdom of God, that is, love. It is small and often anonymous acts of love and kindness that help people experience God’s love and concern in their lives. Let us not despise someone or something because they are small or insignificant. Everyone is precious and valuable in God’s sight. A mustard seed can give shelter to the birds of the air! As St. Mother Teresa says, peace begins with a smile!

Do you despise people because they are small or insignificant? Are you reluctant to do something because it is small or little? Do some small and anonymous acts of kindness today. Remember you will be contributing to the growth of the Kingdom of God!

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)