19) आप लोग अब परेदशी या प्रवासी नहीं रहे, बल्कि सन्तों के सहनागरिक तथा ईश्वर के घराने के सदस्य बन गये हैं।
20) आप लोगों का निर्माण भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा मसीह हैं।
21) उन्हीं के द्वारा समस्त भवन संघटित हो कर प्रभु के लिए पवित्र मन्दिर का रूप धारण कर रहा है।
22) उन्हीं के द्वारा आप लोग भी इस भवन में जोड़े जाते हैं, जिससे आप ईश्वर के लिए एक आध्यात्मिक निवास बनें।
12) उन दिनों ईसा प्रार्थना करने एक पहाड़ी पर चढ़े और वे रात भर ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहे।
13) दिन होने पर उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उन में से बारह को चुन कर उनका नाम ’प्रेरित’ रखा-
14) सिमोन जिसे उन्होंने पेत्रुस नाम दिया और उसके भाई अन्द्रेयस को; याकूब और योहन को; फि़लिप और बरथोलोमी को,
15) मत्ती और थोमस को; अलफाई के पुत्र याकूब और सिमोन को, जो ’उत्साही’ कहलाता है;
16) याकूब के पुत्र यूदस और यूदस इसकारियोती को, जो विश्वासघाती निकला।
17) ईसा उनके साथ उतर कर एक मैदान में खड़े हो गये। वहाँ उनके बहुत-से शिष्य थे और समस्त यहूदिया तथा येरुसालेम का और समुद्र के किनारे तीरूस तथा सिदोन का एक विशाल जनसमूह भी था, जो उनका उपदेश सुनने और अपने रोगों से मुक्त होने के लिए आया था।
18) ईसा ने अपदूतग्रस्त लोगों को चंगा किया।
19) सभी लोग ईसा को स्पर्श करने का प्रयत्न कर रहे थे, क्योंकि उन से शक्ति निकलती थी और सब को चंगा करती थी।
आज संत सिमोन और संत यूदा थदेयुस के पर्व पर हम, उनके द्वारा प्रेरित के रूप में निभाये गये उनकी विशेष भूमिका को याद करते हैं। हालाँकि हम उनके जीवन के बारे में उतना नहीं जानते जितना कि अन्य प्रेरितों के बारे में, परंतु उन्होनें निश्ठा से येसु का अनुसरण किया और अपने जीवन को सुसमाचार फैलाने के लिए समर्पित किया। उनका जीवन हमें यह सिखाती हैं कि येसु के करीब रहने का मतलब उन्हे सुनना, उनसे सीखना और दूसरों को उनके प्रेम और शक्ति को जानने में मदद करने के बारे में है।
हम अपने जीवन में येसु के प्रति निष्ठावान बने रहकर, यहां तक कि उस समय भी जब हमें कोई न देख रहा हो या हमारे कार्य उतने प्रभावशाली न समझा जाये, उस समय भी येसु के प्रति निष्ठावान बने रहकर हम संत सिमोन और संत यूदा के उदाहरण का पालन कर सकते हैं। उनकी तरह, हमें भी अपनी योग्यता के अनुसार येसु और दूसरों की सेवा करने के लिए बुलाया गया हैं।
संत युदा को अक्सर असंभव स्थितियों के संरक्षक संत के रूप में जाना जाता है, जो हमें यह याद दिलाता हैं कि कोई भी स्थिति हों वह ईश्वर के लिए बिलकुल भी कठिन नहीं है। संत सिमोन, जिन्हें कभी-कभी उत्साही भी कहा जाता है, हमें येसु का अनुसरण करने में उत्साह और समर्पण के महत्व को दर्शाते हैं।
आइए हम इन संतों से प्रार्थना करें और उनकी मदद मांगें ताकि हम मसीह के सच्चे अनुयायी बन सकें।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today, on the feast of St. Jude and St. Simon, we remember their special role as apostles. Though we may not know as much about their lives as we do with some of the other apostles, they faithfully followed Jesus and dedicated their lives to spreading the Good News. Their lives show us that being close to Jesus is about listening to Him, learning from Him, and helping others come to know His love and power.
In our own lives, we can follow the example of St. Jude and St. Simon by being faithful to Jesus, even in times when we might feel unnoticed or uncertain of the impact we’re making. Like them, we are called to serve Jesus and others in whatever way we can.
St. Jude is often known as the patron saint of impossible causes, reminding us that no situation is too difficult for God. St. Simon, sometimes called Simon the Zealot, shows us the importance of passion and commitment in following Jesus.
Let us pray to these saints, asking for their intercession to help us be faithful followers of Christ.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
धर्मविधि प्रेरितों के पर्व की श्रृंखला को जारी रखती है, जो आज हमें दो प्रेरितो की याद दिलाती है, जो सुसमाचार में लगभग अज्ञात हैं। आज हम बारह प्रेरितों में से दो के जीवन और मिशन का जश्न मनाते हैं: काना के सिमोन और यूदस जो याकूब का पुत्र था। आज के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि येसु बारह को चुनते है। उन बारहों को, जो एक बिल्कुल नए लोगों का प्रतीक हैं, येसु ने उनकी गुणवत्ता और योग्यता को ध्यान में रखते हुए नहीं, बल्कि पूरी रात की प्रार्थना, पिता के साथ गहन संवाद के बाद बुलाया था। संत लूकस, अपने सुसमाचार वृत्तांतों में, हमें कई अवसरों पर दिखाते है कि येसु के लिए प्रार्थना कितनी महत्वपूर्ण था। प्रार्थना अपने स्वर्गीय पिता के साथ घनिष्ठ और प्रेमपूर्ण संवाद का साक्षात्कार था। हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि बारह का समूह कलीसिया का पूर्वरूपण है , जहां सभी करिश्माओं, लोगों और जाति, सभी मानवीय गुणों के लिए जगह होनी चाहिए जो येसु के साथ एकता में अपनी रचना और एकता पाते हैं। संत सिमोन और यूदस दोनों हमें ईसाई धर्म की सुंदरता को नए सिरे से खोजने और इसे बिना थके जीने में मदद करें, यह जानते हुए कि इसके लिए एक मजबूत और साथ ही शांतिपूर्ण गवाही कैसे दी जाए।
✍फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.The liturgy continues the series of feasts of the apostles, reminding us today of two who are almost unknown. We celebrate the life and mission of two of the Twelve Apostles: Simon the Cananaean and Jude Thaddaeus. In the gospel today we read Jesus choosing the twelve. Those Twelve, symbol of a whole new people, were called by Jesus not out of consideration for their quality and merit, but from a night of prayer, of intense communion with the Father. Luke, in his Gospel accounts, shows us on numerous occasions how important for Jesus was prayer. Prayer was encounter of intimate and loving dialogue with his Heavenly Father. Let us also bear in mind that the group of the Twelve is the prefiguration of the Church. , where there must be room for all charisms, peoples and races, all human qualities that find their composition and unity in communion with Jesus. May both Simon and Jude help us to rediscover the beauty of the Christian faith ever anew and to live it without tiring, knowing how to bear a strong and at the same time peaceful witness to it.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
आज माता कलीसिया सन्त सिमोन और सन्त यूदा थदेउस का पर्व मनाती है। इन महान संतों के प्रति लोगों में विशेष भक्ति है, विशेष रूप से सन्त यूदा थदेउस के प्रति। सन्त जूड को असहाय परिस्थितियों में फँसे हुए लोगों के संरक्षक सन्त के रूप में जाना जाता है। न केवल सन्त सिमोन और सन्त जूड बल्कि अनेक प्रेरितों और संतों की नीव पर ही इस आध्यात्मिक भवन का निर्माण हुआ है, जिसके हम भी सदस्य हैं। माता कलिसिया आधुनिक संसार की चुनौतियों के समक्ष अड़िग होकर डटी हुई है और शैतान के सारे आक्रमणों को निष्क्रिय कर देती है। माता कलिसिया इस दुनिया के लिए नैतिकता के आदर्श के रूप में उपस्थित है।
प्रभु येसु ने स्वयं प्रेरितों की नीव पर इस आध्यात्मिक भवन का निर्माण किया है। उन्होंने प्रार्थना के बाद उनको अपने साथ रहने और संसार में भेजे जाने के लिए चुना था। प्रभु येसु ने उन्हें अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी के लिए तैयार किया था। उन्होंने हम में से प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसी तरह प्रार्थना की है। उन्होंने हमें हमारे नाम से पुकारा है और चुना है। भले ही हम प्रेरितों और शहीदों की तरह नींव के पत्थर नहीं बन सकते लेकिन वह ईटें ज़रूर बन सकते हैं जो इस भवन को आकार देती हैं। यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अपने आप को इस परिवार के योग्य सदस्य बनाएँ, इसमें प्रेरित और सन्त हमारे मार्गदर्शक हैं।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today mother church celebrates the feast of St. Simon and St. Jude. There is great devotion to these great saints very especially to Saint Jude who is patron of the hopeless cases. Not only apostles Jude and Simon, but innumerable apostles, martyrs and saints form the foundation of this spiritual building of which we are also members. The mother church stands strong amidst the challenges of modern world, continuous attacks of evil one. The church strongly stands as a custodian of morality in the world today.
It is Jesus himself who has established this strong building on the foundation of the apostles. He prayed and chose them to be with him and to be sent out. He prepared them for the most important task of their life. He has also prayed for each and every one of us. He has called us by name and chosen us. We may not be the foundation stones like the apostles and martyrs, but we are bricks that give shape to the building. It is our responsibility to make ourselves worthy members of this building and the apostles and saints are the torch bearers for us.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
आज हम दो प्रेरित संतों का त्यौहार मनाते हैं - संत साइमन और संत यूदस। साइमन को उत्साही कहा जाता है, और यूदस को याकूब का पुत्र।
इफिसियों के नाम संत पौलुस का पत्र हमें याद दिलाता है कि कलीसिया प्रेरितों और नबियों की नींव पर बनाया गया है। उनका महत्व इस तथ्य में है कि वे कलीसिया का मुख्य आधारशिला, येसु मसीह, से जुड़े हुए हैं। प्रेरित वे हैं जिन्हें स्वयं येसु ने अपने साथ रहने केलिए चुने थे, जिन्होंने यीशु के साथ समय बिताया, जिन्हें येसु ने सुसमाचार प्रचार करने और शैतान की शक्ति से लोगों को मुक्त करने और उन्हें चंगाई प्रदान करने के लिए भेजा। प्रेरित शब्द का अर्थ है "जो भेजा जाता है"; एक विशेष मिशन के लिए ईश्वर के द्वारा भेजे जाने वाले है प्रेरित लोग। प्रेरितों के सुसमाचार कार्य पर आधारित है अलग अलग कलीसियायें।
हम उन दो संतों के जीवन के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं जिनका पर्व आज हम मनाते हैं। संत यूदस दुनिया के कई हिस्सों में असंभव और कठिन अनुग्रहों की प्राप्ति के लिए पुकारे जाने वाला लोकप्रिय संत है और हमारे लोगों के बीच उनके प्रति बहुत बड़ी भक्ति है। आज का सुसमाचार हमें याद दिलाता है कि प्रेरित लोग इसलिए शक्तिशाली हैं क्योंकि वे येसु के सुसमाचार और सेवा में भागीदारी हैं।
आइए हम प्रेरितों द्वारा प्राप्त विश्वास के महा दान के लिए प्रभु का धन्यवाद करें। येसु के आज्ञा के अनुसार कलीसिया द्वारा जारी सुसमाचार प्रचार कार्य, चंगाई और स्वास्थ्य सेवायें और लोगों के उद्धार के लिए किये जाने वाले विभिन्न सेवाओं केलिए भी हम ईश्वर को धन्यवाद दें। प्रार्थना करें कि हम भी अपने स्तर पर प्रेरितों के कार्यों से जुड़े रहें। प्रेरित संत साइमन और यूदस हमारे लिए प्रार्थना कर।
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
Today we celebrate the feast of two apostles about whom not much is known – Saints Simon and Jude. Simon is called the zealot , and Jude the son of James. The first reading from St. Paul’s letter to the Ephesians reminds us that the Church is built on the foundation of the prophets and apostles. Their importance is in the fact they are connected to the main cornerstone, that is Jesus Christ himself.
Apostles are those who spent time with Jesus, whom Jesus wanted to be with him, whom he sent out to preach the gospel and to heal and deliver people from the power of devil. The word apostle means “ one who is sent”, especially on a mission.
We do not know much about the life of the two saints whose feast we celebrate today. St. Jude is popular in many parts of the world as the patron of impossible things and there is a great devotion to him among our people. Today’s gospel passage reminds us that the apostles are powerful they participate in the very ministry of Jesus. They are sent by Jesus to be his messengers.
Let us thank the Lord for the gift of faith that we have received from the apostles. Let us also be grateful for the ministry of preaching, healing and deliverance that are exercised in the Church according to the command of Jesus.
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)