7) मसीह ने जिस मात्रा में देना चाहा, उसी मात्रा में हम में प्रत्येक को कृपा प्राप्त हुई है।
8) इसलिए धर्मग्रन्थ कहता है- वह ऊँचाई पर चढ़ा और बन्दियों को ले गया। उसने मनुष्यों को दान दिये।
9) वह चढ़ा - इसका अर्थ यह है कि वह पहले पृथ्वी के निचले प्रदेशों में उतरा।
10) जो उतरा, वह वही है जो आकाश से भी ऊपर चढ़ा, जिससे वह सब कुछ परिपूर्ण कर दे।
11) उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और कुछ को चरवाहे तथा आचार्य होने का वरदान दिया।
12) इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को नियुक्त किया, जिससे मसीह के शरीर का निर्माण तब तक होता रहे,
13) जब तक हम विश्वास तथा ईश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न कर लें।
14) इस प्रकार हम बालक नहीं बने रहेंगे और भ्रम में डालने के उद्देश्य से निर्मित धूर्त मनुष्यों के प्रत्येक सिद्धान्त के झोंके से विचलित हो कर बहकाये नहीं जायेंगे।
15) हम प्रेम से प्रेरित हो कर सत्य बोलें और इस तरह मसीह की परिपूर्णता प्राप्त करें। वह हमारे शीर्ष हैं।
16) और उन से समस्त शरीर को बल मिलता है। वह शरीर अपनी सब सन्धियों द्वारा सुसंघटित हो कर प्रत्येक अंग की समुचित सक्रियता से अपनी परिपूर्णता तक पहुँचता और प्रेम द्वारा अपना निर्माण करता है।
1) उस समय कुछ लोग ईसा को उन गलीलियों के विषय में बताने आये, जिनका रक्त पिलातुस ने उनके बलि-पशुओं के रक्त में मिला दिया था।
2) ईसा ने उन कहा, ’’क्या तुम समझते हो कि ये गलीली अन्य सब गलीलियों से अधिक पापी थे, क्योंकि उन पर ही ऐसी विपत्ति पड़ी?
3) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे।
4) अथवा क्या तुम समझते हो कि सिल़ोआम की मीनार के गिरने से जो अठारह व्यक्ति दब कऱ मर गये, वे येरुसालेम के सब निवासियों से अधिक अपराधी थे?
5) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे।’’
6) तब ईसा ने यह दृष्टान्त सुनाया, ’’किसी मनुष्य की दाखबारी में एक अंजीर का पेड़ था। वह उस में फल खोजने आया, परन्तु उसे एक भी नहीं मिला।
7) तब उसने दाखबारी के माली से कहा, ’देखो, मैं तीन वर्षों से अंजीर के इस पेड़ में फल खोजने आता हूँ, किन्तु मुझे एक भी नहीं मिलता। इसे काट डालो। यह भूमि को क्यों छेंके हुए हैं?’
8) परन्तु माली ने उत्तर दिया, ’मालिक! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद दूँगा।
9) यदि यह अगले वर्ष फल दे, तो अच्छा, नहीं तो इसे काट डालिएगा’।’’
आज येसु हमें सिखा रहे हैं कि विपत्ति या कष्ट इसलिए नहीं आते क्योंकि लोग दूसरों से अधिक पापी होते हैं। इसके बजाय, वे हम सभी से कह रहे हैं कि हम अपने जीवन पर ध्यान दें और पश्चाताप करें-अर्थात, पाप से मुड़कर ईश्वर की ओर लौटें। वे नहीं चाहते कि हम दूसरों का न्याय करने में समय बर्बाद करें, बल्कि अपने और ईश्वर के रिश्ते पर ध्यान केंद्रित करें।
अंजीर के पेड़ का दृष्टांत हमें ईश्वर के धैर्य का संदेश देती है। जैसे उस पेड़ को फल देने के लिए एक और मौका दिया गया, वैसे ही ईश्वर हमें भी समय और अवसर देते हैं ताकि हम बदल सकें, बढ़ सकें, और उनके मुताबिक जीवन जी सकें। लेकिन हमें इस समय को हल्के में नहीं लेना चाहिए। ईश्वर चाहते हैं कि हम अपने जीवन को फलदायी बनाएं -अच्छे काम करके, दूसरों से प्रेम करके, और उनकी राह पर चलके।
आज के पाठ के इस अंश का एक सरल संदेश यह है कि हमारे जीवन में बदलाव करने का समय अभी है। ईश्वर धैर्यवान हैं, लेकिन हमें हमेशा उनके पास लौटने, पश्चाताप करने और एक अर्थपूर्ण जीवन जीने का इंतजार नहीं करना चाहिए। जैसे अंजीर के पेड़ को एक और साल दिया गया, हमें आज भी ईश्वर के करीब आने और अच्छे फल देने वाले जीवन जीने का मौका मिला है।
तो, आज हमारे लिए सवाल यह हैः क्या हम ईश्वर द्वारा दिए गए समय का सही उपयोग कर रहे हैं? क्या हम अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं और बदल रहे हैं ताकि हम मसीह के और करीब आ सकें? आइए, हम पश्चाताप करने और ईश्वर का सम्मान करते हुए जीने का इंतजार न करें, परंतु अभी से अपने जीवन में बदलाव लाने की कोशिश करें।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today Jesus is teaching us that tragedy or suffering doesn’t happen because people are worse sinners than others. Instead, He’s telling us all to look at our own lives and repent—meaning, to turn away from sin and turn back to God. He doesn’t want us to waste time judging others, but to focus on our own relationship with God.
The parable of the fig tree shows God’s patience with us. Just like the tree that’s given another chance to bear fruit, God gives us time and opportunities to change, grow, and live the way He wants us to. But we shouldn’t take this time for granted. God wants us to live fruitful lives by doing good, loving others, and following His ways.
A simple takeaway from this passage is that now is the time to make changes in our lives. God is patient, but we shouldn’t wait forever to turn to Him, repent, and start living with purpose. Just like the fig tree was given another year, we have the chance today to grow closer to God and live lives that bear good fruit.
So, today the question for us is: are we using the time God gives us wisely? Are we growing and changing to become more like Christ? Let’s not wait to repent and live in a way that honours God.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
आज हम अपने चेहते सन्त पापा योहन पौल द्वितीय की स्मृति मनाते हैं। उनका पवित्र जीवन चारों ओर से लोगों को आकर्षित करता था, फिर भी अपने आप को एक साधारण व्यक्ति और पापी मानते थे और प्रत्येक सप्ताह पाप स्वीकार के लिए जाते थे। कभी-कभी जब कुछ लोग परेशानियों का सामना करते हैं, या ऐसा लगता है मानो ईश्वर उन्हें दण्ड दे रहा है तो हम सोचते हैं, कि ऐसा उनके बहुत सारे पापों के कारण हो रहा है। आज प्रभु येसु हमारे सामने दो उदाहरण रखते हैं, जो उनके बारे में लोगों की सामान्य सोच को दर्शाता है जो दर्दनाक मौत का शिकार हुए थे। यदि हम अभी तक सुरक्षित और जीवित हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि हम कम पापी हैं इसलिए ईश्वर हमसे खुश हैं।
कोविद १९ की दूसरी लहर में हमने लोगों को मिनटों के अंदर प्राण त्यागते हुए देखा है। बहुत सारे लोगों ने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उनकी मृत्यु इस तरह से अकस्मात् ही हो जाएगी। वास्तव में हम में से यह कोई नहीं जानता कि कब मौत से हमारी आँखें चार हो जाएँ। और मान लीजिए कि हम पाप की स्थिति में मौत के आग़ोश में समा जाते हैं, तो हमारी मौत के बाद हमारा क्या होगा? इसलिए आज प्रभु येसु हमें तैयार रहने और पश्चाताप करने का आह्वान करते हैं, क्योंकि हो सकता है ईश्वर ने हमें यही आख़री मौक़ा दिया हो, यही आख़री दिन हो, यही आख़री क्षण हो हमारे लिए पश्चाताप करने का। ऐसे कितने ही लोग हैं जो अंत समय तक पापस्वीकार करने नहीं जाते। किसे मालूम है कि कब हमारा समय आख़री समय हो?
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today we celebrate the memory of our holy Pope Saint John Paul II. His holiness was known far and wide yet he considered himself a sinner and went for regular confession. Sometimes when people suffer or seem to be punished by God, we judge them that it is because of their many sins. Jesus gives two examples today from past about how people generally considered those people who died a violent death. If we are still alive, it does not mean that our sins are few therefore God is generous to us.
During the second wave of COVID-19, we have seen how people lost their lives in just a matter of minutes. Many never even imagined that they would die suddenly. In fact, we never know when we will be face to face with our death. And if we meet our death in the state of sins, without repentance, what will happen to us in the life to come? Therefore, today Jesus exhorts us to be ready and repent, because God might have given last chance, last day, or last minute for us to do so. There are many who do not go to receive the sacrament of reconciliation for long time. Who knows we may not get another chance?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
ईश्वर हमसे प्यार करता है। इसलिए हममें से प्रत्येक को ईश्वर की कृपा का हिस्सा दिया गया है, जैसा कि मसीह ने उसे आवंटित किया है। हर वरदान का उद्देश्य यह है कि हमें इसका उपयोग मसीह का शरीर,यानि कलीसिया के निर्माण के लिए करें। यदि हम सच्चाई और प्रेम से जीते हैं तो हमारा आध्यात्मिक विकास होता है। मसीह कलीसिया का प्रमुख है और हम सभी सदस्य हैं। विश्वासियों का समूह, कलीसिया, प्रेम में बनाया गया है।
आज का सुसमाचार में हम यह संदेश सुनते हैं कि यदि हम पश्चाताप नहीं करते हैं तो हम सभी नष्ट हो जाएंगे। पश्चाताप करने का प्रकट रूप है कि हम ईश्वर के राज्य अनुयोज्य फल उत्पन्न करें। येसु अंगूर के बाग में अंजीर के पेड़ के दृष्टांत का वर्णन करते हैं, जो तीन साल से फल नहीं दे रहा था। बगीचे की देखरेख करने वाले व्यक्ति के अनुरोध पर, स्वामी ने फल उत्पन्न करने के लिए एक और वर्ष, एक और मौका प्रदान करता है; अन्यथा इसे काट दिया जाएगा।
ईश्वर हमें पश्चाताप करने के लिए आमंत्रित करता है। खुश खबरि यह है कि वह हमें फल उत्पन्न करने के लिए कुछ और समय एवं मौका देता है। अवसर चूकना नहीं है। प्रभु की हनशीलता हमारी मुक्ति के लिए एक अवसर है। cf (2Pet 3:15) "क्या तुम ईश्वर की असीम दयालुता, सहनशीलता और धैर्य का तिरस्कार करते और यह नहीं समझते कि ईश्वर की दयालुता तुम्हें पश्चाताप की ओर ले जाना चाहती है ?"(रोम 2: 4)।
आप के जीवन के किस बात में या क्षेत्र में पश्चाताप की आवस्यकता है? अवसर और समय गंवाए बिना प्रभु की ओर चलो!
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
Each one of us has been given a share of God’s grace, as Christ has allotted it. The purpose of every gift is that we should use it for the building up of the body of Christ, the Church. We grow in all ways if we live by the truth and in love. Christ is the head of the Church and we are all members. The Church is built up in love.
In the gospel we hear the message that if we do not repent, we all will perish. The way to repent is by producing the fruits befitting the kingdom of God. Jesus narrates the parable of the fig tree in the vineyard, which was not producing fruits for three years. At the request of the man who looked after the garden the master gave more year to bear fruits; it not it would be cut down.
God is inviting us to repent. The good news is that he gives us one more opportunity with some more time to produce fruits. The opportunity is not to be missed. “Think of our Lord’s patience as your opportunity to be saved” (2Pet 3:15). “”Are you not disregarding his, tolerance and patience, failing to realize that this generosity of God is meant to bring you to repentance/” (Rom 2:4).
What is the area of repentance that the Lord is reminding you about? Act upon it without delay!
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)