अक्टूबर 25, 2024, शुक्रवार

वर्ष का उन्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:1-6

1) ईश्वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें - यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कै़दी हूँ।

2) आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें

3) और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।

4) एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।

5) एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा।

6) एक ही ईश्वर है, जो सबों का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्याप्त है।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 12:54-59

54) ईसा ने लोगों से कहा, “यदि तुम पश्चिम से बादल उमड़ते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, ’वर्षा आ रही है‘ और ऐसा ही होता है,

55) जब दक्षिण की हवा चलती है, तो कहते हो, ’लू चलेगी’ और ऐसा ही होता है।

56 ढोंगियों! यदि तुम आकाश और पृथ्वी की सूरत पहचान सकते हो, तो इस समय के लक्षण क्यों नहीं पहचानते?

57) ’’तुम स्वयं क्यों नहीं विचार करते कि उचित क्या है?

58) जब तुम अपने मुद्यई के साथ कचहरी जा रहे हो, तो रास्ते में ही उस से समझौता करने की चेष्टा करो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायकर्ता के पास खींच ले जाये और न्यायकर्ता तुम्हें प्यादे के हवाले कर दे और प्यादा तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे।

59) मैं तुम से कहता हूँ, जब तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं निकल पाओगे।’’

📚 मनन-चिंतन

आज येसु हमें आध्यात्मिक रूप से सजग रहने की शिक्षा दे रहे हैं। जैसे हम मौसम या रोजमर्रा की चीजों पर ध्यान देते हैं, वैसे ही वे चाहते हैं कि हम यह भी समझें कि ईश्वर हमारे जीवन में क्या कर रहे हैं। क्या हम उनकी उपस्थिति को महसूस कर रहे हैं? क्या हम उनकी बात सुन रहे हैं कि हमें अपने जीवन को कैसे जीना चाहिए, कहाँ बदलाव लाना चाहिए, या दूसरों के साथ शांति कैसे बनानी चाहिए?

कई बार, हम अपने रोजमर्रा के कामों - जैसे काम, योजनाएँ, या चिंताओं-में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि जो वास्तव में महत्वपूर्ण है, उसे नजरअंदाज कर देते हैं। येसु हमसे कह रहे हैं कि हम ईश्वर के कार्यों के संकेतों पर ध्यान दें, विशेष करके के उस समय जब बात हमारे रिश्तों को सुधारने या माफी माँगने की होती है।

इसे अपने जीवन में लागू करने का एक आसान तरीका है कि हर दिन थोड़ा समय निकालें, प्रार्थना करें और सोचें कि हम कैसे जी रहे हैं। क्या हमारे जीवन में कोई झगड़े हैं जिन्हें सुलझाने की जरूरत है? क्या हम ईश्वर की आवाज सुन रहे हैं जो हमें अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए आह्वान कर रहे हैं? येसु हमें यह भी याद दिलाते हैं कि शांति बनाने या ईश्वर के साथ सही संबंध में आने के लिए इंतजार न करें। वे हमें अभी कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं, न कि बाद में।

तो, क्या हम अपने जीवन के आध्यात्मिक ‘‘मौसम’’ पर ध्यान दे रहे हैं? आइए हम यह सुनिश्चित करें कि हम ईश्वर की उस पुकार को न चूकें जो हमें शांति में जीने, पश्चाताप करने, और उनके करीब आने के लिए बुला रही है।

फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


Today Jesus is teaching us to be spiritually aware. Just like we pay attention to the weather or other everyday things, He wants us to notice what God is doing in our lives. Are we aware of His presence? Are we listening to what He’s telling us about how we should live, change, or make peace with others?

Sometimes, we get so busy with our daily routines—work, plans, or worries—that we miss what really matters. Jesus is asking us to pay attention to the signs of God’s work, especially when it comes to fixing our relationships or asking for forgiveness.

A simple way to put this into practice is by taking time each day to pray and think about how we’re living. Are there conflicts we need to resolve? Are we

listening to God’s call to make changes in our lives?

Jesus also reminds us not to wait to make peace or to get right with God. He urges us to act now, not later.

So, are we paying attention to the spiritual “weather” in our lives? Let’s make sure we don’t miss God’s call to live in peace, to repent, and to grow closer to Him.

-Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज के पहले पाठ में संत पौलुस शांति के सम्बन्ध में आत्मा की एकता के बारे में बात करते हैं। एफ़ेसियों से विनम्र एवं सहनशील बने रहने का अनुरोध करते हैं, एक दूसरे को प्रेम के साथ सहन करने के लिए कहते हैं। हम सभी प्रभु येसु में एक शरीर और एक आत्मा हैं। यदि हमारे बीच एकता और सद्भाव नहीं होगा तो हम एक ही ख्रिस्त के शरीर कैसे बन सकते हैं? हम दुनिया के सामने ईश्वर के प्रेम का साक्ष्य और प्रमाण कैसे दे सकते हैं? जहाँ आपसी एकता एवं प्रेम नहीं है वहाँ शांति कैसे रहेगी और जहाँ शांति नहीं हैं, वहाँ हम ईश्वर की उपस्थिति में अनन्त शांति कैसे पा सकते हैं? यदि हमें स्वर्गिक जीवन में शांति प्राप्त करनी है तो पहले इस जीवन में शांति के लिए कार्य करना है।

सुसमाचार में प्रभु येसु हमें समय के संकेतों एवं लक्षणों को पहचानने के लिए आगाह करते हैं। हमें अपने जीवन के लिए भले और बुरे में अंतर करना सीखना है। हमें सजा हो जाने से पहले ही अपने मुद्दई से समझौता कर लेना है। शांति स्थापित करने के लिए पहले क्षमा एवं मेल-मिलाप होना ज़रूरी है। इसलिए प्रभु येसु हमसे रास्ते में ही अपने मुद्दई से समझौता करने की सीख देते हैं, अन्यथा हम न्यायालय में पेश किए जाएँगे, दोषी पाए जाकर सजा भुगतेंगे। हमें एक दूसरे को प्रेम से सहन करना है और शांति के साथ मिल-जुल कर रहना है ताकि हम अनन्त शांति के योग्य पाए जाएँ।

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

St. Paul in the first reading today talks about unity of the Spirit in bond of peace. He asks the Ephesians to be humble and gentle, bearing with one another in love. We are all one body and one spirit in Christ. If there is no unity and harmony among us, then how can we be the members of one body of Christ? How can we bear witness to God’s love before the world? Where there is disunity there will be destruction of peace and ultimately deprivation from eternal peace in the presence of God. In order to have peace in the life to come, we first need to maintain peace in this life.

In the gospel today Jesus warns us to see the signs of the time and understand them. We should be prudent enough to see what is right and just for us. We are called to reconcile with our accuser, before we face the consequences. In order to establish peace, there must be reconciliation and forgiveness first. That's why Jesus today warns us to settle with our accuser on the way before we are presented in the court and proved guilty and punished. We need to bear with one another in love so that we live in peace now and in the life to come.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन -3

ईश्वर हमसे प्यार करता है। वह हमें विश्वासियों के समुदाय में इस प्रेम का अनुभव करने के लिए कहता है। कलीसिया एक शरीर है जिसका एक ईश्वर, एक विश्वास और एक बपतिस्मा है। संत पौलुस एफेसियों को याद दिलाता है कि वे मसीह के शरीर के सदस्य होने के कारण अपने इस महान बुलावे के अनुसार जीवन जियें। उनके आपसी संबंध प्रेम,निस्वार्थता, सौम्यता और क्षमाशीलता द्वारा निर्देशित किया जाना है। यह बात आज का अनुवाक्य में प्रतिध्वनित होता है, जो साफ-सुथरे हाथों और शुद्ध हृदय वाले लोगों की सराहना करता है, न कि बेकार चीज़ों की लालसा करनेवलों की।

आज का सुसमाचार में येसु समय के संकेतों की पहचान करने के बारे में शिक्षा देता है। लोग प्रकृति के संकेतों को परखना बहुत अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन वे येसु के सुसमाचार प्रचार से जुड़े संकेतों को परखने में असफल रहे। नबियों के द्वारा घोषित मुक्तिदाता येसु है; यह समझने के लिए यह पर्याप्त था कि लोग येसु के जीवन और सेवा कार्य और उसे सम्बंधित बातों को देखें और समझें। सुसमाचार सुनकर जीवन सुधर का समय अब है; विलम्ब करने पर देर हो जाएगी। हमें अपने जीवन को सुधारने के लिए दिए गए समय का सदुपयोग करना चाहिए। प्रभु में अपना विश्वास अर्पित कर हम अनंत दंड से बच सकता है।

आपके संबंधों का क्या स्वाभाव है? क्या वे निस्वार्थ प्रेम द्वारा निर्देशित हैं जो सौम्यता और क्षमाशीलता में प्रकट होता है? क्या आप समय के संकेतों और उनके अर्थ को पहचान पा रहे हैं? ईश्वर के द्वारा प्रदत्त चिन्हों को पहचानो और उनकी ओर अपना जीवन फिराओ।

- फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

God loves us. He calls us to experience this love in the community of believers which is one Body with one Lord, one faith, and one baptism. St. Paul reminds the Ephesians to live a life worthy of their vocation as members of the Body of Christ. Their mutual relations are to be guided by charity, selflessness, gentleness and patience. This is echoed by the Responsorial Psalm, which commends those with clean hands and pure heart, desiring not worthless things.

In the gospel Jesus speaks about interpreting the signs of the times. The people knew very well to read the signs of nature but they failed to read the signs surrounding Jesus’ preaching. The signs around Jesus are enough for the discerning ones to understand that now is the time announced by the prophets, when people must be converted and acknowledge the Saviour. Tomorrow will be too late. We are on our way to God’s judgement; we must make use of the time given to us to reform our lives. We can be saved from judgement by believing in Jesus.

What characterizes your relationships? Are they guided by selfless love which expresses itself in gentleness and patience? Are we able to see the signs of the times and understand their meaning for our lives?

-Fr. Jolly John (Indore Diocese)