14 (14-15) मैं उस पिता के सामने, जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर प्रत्येक परिवार का मूल आधार है, घुटने टेक कर यह प्रार्थना करता हूँ
16) कि वह अपने आत्मा द्वारा आप लोगों को अपनी अपार कृपानिधि से आभ्यन्तर शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करें,
17) जिससे विश्वास द्वारा मसीह आपके हृदयों में निवास करें, प्रेम में आपकी जड़ें गहरी हों और नींव सुदृढ़ हो।
18) इस तरह आप लोग अन्य सभी सन्तों के साथ मसीह के प्रेम की लम्बाई, चैड़ाई, ऊँचाई और गहराई समझ सकेंगे।
19) आप लोगों को उनके प्रेम का ज्ञान प्राप्त होगा, यद्यपि वह ज्ञाने से परे है। इस प्रकार आप लोग, ईश्वर की पूर्णता तक पहुँच कर, स्वयं परिपूर्ण हो जायेंगे।
20) जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य सम्पन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से अत्यधिक परे है,
21) उसी को कलीसिया और ईसा मसीह द्वारा पीढ़ी दर-पीढ़ी युग-युगों तक महिमा! आमेन!
49) ’’मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे!
50) मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!
51) ’’क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।
52) क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध।
53) पिता अपने पुत्र के विरुद्ध और पुत्र अपने पिता के विरुद्व। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।’’
पृथ्वी पर फूटः जब प्रभु येसु इस विषय में कहते हैं कि वे पृथ्वी पर शांति नही अपितु फूट या विभाजन लाते हैं उनका यह कहने का तात्पर्य क्या था? क्या वे वहीं नहीं जो हमें प्रेम, एकता और मेल-मिलाप के लिए बुलाते हैं? यह पाठ एक गहरी सच्चाई को दर्शाता है। येसु का अनुसरण, कभी-कभी कठिन निर्णय लेने की मांग करता है, जो आगे चल कर संघर्ष का कारण बन सकता है। येसु झगड़े या विभाजन का समर्थन नहीं कर रहे हैं, बल्कि यह बता रहे हैं कि सुसमाचार दुनिया के मूल्यों के लिए चुनौती उत्पन्न करता है। उनका संदेश, जिसमें गहरी प्रेम, न्याय, और बदलाव की बात होती है, कभी-कभी तनाव पैदा कर सकता हैः खासकर जब लोग बदलाव का विरोध करते हैं या ऐसी चीजों को पकड़कर रखते हैं जो ईश्वर के मार्गों के खिलाफ होती हैं।
आज के समय में, हम जीवन के कई क्षेत्रों में इस तनाव का अनुभव करते हैं। अपने ईसाई विश्वास को जीना कभी-कभी हमारे आसपास के लोगों से गलतफहमियों या विरोध का कारण बन जाता है, कभी-कभी तो हमारे अपने परिवार के भीतर भी इनका सामना करना पड़ सकता है। सत्य, न्याय, और धर्म के लिए खड़े होना असहज विभाजन पैदा कर सकता है, विशेषकर जब हम अन्याय, लालच, या स्वार्थ के सिस्टम को चुनौती देते हैं।
येसु हमें शिष्यता की कीमत चुकाने के लिए तैयार रहने के लिए कहते हैं। उनका अनुसरण करने का मतलब यह हो सकता है कि हमें ऐसे कठिन फैसले लेने होंगे जो हमें दुनिया की उम्मीदों से अलग कर दें। इसका मतलब हो सकता है कि हम उन लोगों का समर्थन करें जो समाज में उपेक्षित हैं, गलत कामों के खिलाफ आवाज उठाएं, या ऐसे तरीके से जिएं जो समाज की सामान्य धारणाओं को चुनौती देते हों। इसका यह मतलब नहीं है कि हम जानबूझकर विवाद चाहते हैं, लेकिन मसीह के प्रति निष्ठावान रहने से कभी-कभी टकराव हो सकता है।
आज के पाठ का यह अंश, हमें याद दिलाता है कि शिष्यत्व की कीमत वास्तविक है, लेकिन इसका इनाम उससे कहीं अधिक हैः वह है एक ऐसा जीवन जो ईश्वर की इच्छाओं के साथ मेल खाता है और उनके साथ गहरा संबंध बनाता है।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
What does Jesus mean when He says He brings division? Isn’t He the one who calls us to love, unity, and reconciliation? This passage reveals a deeper truth: following Jesus sometimes demands difficult choices that can lead to conflict. Jesus isn’t advocating for strife, but rather acknowledging that the gospel challenges worldly values. His message of radical love, justice, and transformation can create tension—especially when people resist change or hold onto what is contrary to God’s ways.
In our present day, we experience this tension in many areas of life. Living out our Christian faith can lead to misunderstandings or even opposition from those around us, sometimes even within our own families. Standing up for truth, justice, and righteousness can create uncomfortable divisions, particularly when we challenge systems of injustice, greed, or selfishness.
Jesus calls us to be ready for the cost of discipleship. Following Him may mean making hard choices that set us apart from the world’s expectations. This might involve standing up for those who are marginalized, speaking out against wrongdoing, or living counter-culturally in ways that challenge the status quo. It’s not that we seek conflict, but rather that being faithful to Christ sometimes brings it.
This passage reminds us that while the cost of discipleship is real, the reward is far greater: a life aligned with God’s purposes and a deeper communion with Him.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
आज का सुसमाचार बड़ा अजीब और ग़लत समझा जाने वाला प्रतीत होता है। अगर कोई ग़ैर ईसाई ऐसे शब्दों को सुनेगा कि प्रभु येसु पृथ्वी पर आग लेकर आए हैं, वह परिवारों में फूट डालने आए हैं, तो ये शब्द ग़लत समझे जा सकते हैं। आग शुद्धीकरण का प्रतीक है। यह सोने को परखने और शुद्ध करने के लिए उपयोग की जाती है, लेकिन हमारे लिए आग पवित्र आत्मा का प्रतीक है। पेंटेकॉस्ट के दिन पवित्र आत्मा आग के रूप में प्रेरितों के ऊपर उतरा था। प्रभु येसु इस दुनिया पवित्र आत्मा लेकर आए हैं, और प्रभु चाहते हैं कि पवित्र आत्मा रूपी यह आग सारे संसार में फैल जाए और सारे संसार को शुद्ध कर दे, सारी बुराइयों को जलाकर भस्म कर दे। जब तक यह आग संसार के कोने-कोने में नहीं फैल जाती तब तक प्रभु का कार्य पूर्ण नहीं होगा।
हम सभी ईश्वर के पवित्र परिवार के सदस्य बनने के लिए बुलाए गए हैं, जिसके शीर्ष स्वयं प्रभु येसु हैं। लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो इस परिवार में शामिल होने के योग्य नहीं पाए जाते हैं, या तो उन्हें पश्चाताप करके खुद को बदलना है, या इस परिवार से वंचित होना है। हमारे परिवारों में भी यह सामान्य है कि कुछ सदस्य आपस में सहमत नहीं होते। यदि हमें ईश्वर के परिवार में शामिल होना है तो ईश्वरीय राज्य के मूल्यों के लिए खड़ा होना पड़ेगा, और हो सकता है कि इसके कारण हमें विरोध का सामना भी करना पड़े। और इसलिए यह स्वाभाविक है इस कारण आपस में फूट भी पड़ सकती है।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today's gospel seems very strange and can be easily misunderstood. When strangers will hear these words of setting fire and bringing division to the families, these words can scandalise if understood wrongly. Fire symbolises purification. It is used to purify gold, but more than that, for us it symbolises holy spirit. Holy spirit came down in the form of tongues of fire on Pentecost. Jesus has come into this world with the gift of Holy Spirit which should engulf the whole world in its holiness and purify everyone. Till this fire of purification spreads every nuke and corners of the world, the purpose of Jesus’ coming will not be completed.
We are all called to be members of the same spiritual family which is formed by God and Jesus being the head of this family. But there are people who are not worthy to be the members of this heavenly family, therefore either they have to repent and be changed or be excluded. In our earthly family, it is common that some members may disagree with each other. If we have to accept to be the members of God’s family then we have to stand for the values of God’s kingdom and there will also be opposition to that. That's why earthly family will surely be divided.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
ईश्वर हमसे प्यार करता है। अक्सर हम दूसरों के प्यार और देखरेख के माध्यम से ईश्वर के प्यार का अनुभव करते हैं। एफेसियों के लिए संत पौलुस की प्रार्थना ऐसे प्रेम की एक सुंदर अभिव्यक्ति है। वह प्रार्थना करता है कि पवित्र आत्मा की शक्ति के माध्यम से वे मजबूत हो जाएँ, ताकि मसीह विश्वास के माध्यम से उनके दिलों में रह सकें। वह कहता है कि वे प्यार में रोपे और विकसित किये गये हैं। इसका मतलब है कि ईश्वर ने उन्हें अपना बना लिया है और प्यार के साथ उनका पालन-पोषण करते हैं। हमारे प्रति ईश्वर के प्रेम कितना बड़ा है!
ईश्वर का यह महान प्रेम आज का अनुवाक्य में व्यक्त किया गया है: "प्रभु पृथ्वी को अपने प्रेम से भर देते हैं।"
आज का सुसमाचार का पाठ में हम येसु के दो विवादास्पत कथन पाते हैं। पहला इस प्रकार है जहां येसु कहता है, “मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ, और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे! मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!" येसु अपने मिशन का वर्णन करने के लिए आग और पानी (बपतिस्मा) के प्रतीकों का उपयोग करता है। अग्नि परीक्षण और निर्णय का प्रतीक है। बपतिस्मा जो उसे प्राप्त करना है, वह उसके दुखभोग और मृत्यु का है। दूसरा विवादास्पत बयान है, "क्या तुम लोग समझते हो की मैं पृथ्वी पर शांति ले कर आया हूँ? मैं हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट हूँ।" इस का अर्थ यह है कि येसु राष्ट्रों और व्यक्तियों के बीच विभाजन का एक स्रोत तब बनेगा जब येसु पर विश्वास नहीं करनेवाले लोग विश्वास करनेवालों के खिलाफ हो जाएंगे, यहां तक कि उनका उतपीठन करेंगे।
आइए हम हमेशा येसु के पक्ष में रहने का अनुग्रह की माँग करें।
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
God loves us. Often we experience that love through the love and care of others. St. Paul’s prayer for the Ephesians is a beautiful expression of such love. He prays that through the power of the Holy Spirit they may grow strong, so that Christ may live in their hearts through faith. He says that they are planted and built in love. It means that God has made them his own and continues to nurture them with his love. What a great love God has for us!
This great love of God is expressed in the Response: “the Lord fills the earth with his love.”
The gospel passage contains two of the intriguing statements of Jesus. The first one says, “I have come to bring fire to the earth, and how I wish it were blazing already! There is a baptism I must still receive, and how great is my distress till it is over!” Jesus uses the terms fire and water (baptism) to describe his mission. Fire is a symbol of testing and judgement. The baptism that he has to receive is that of his passion and death. The second upsetting statement is, “I am here not to bring peace but division!” Jesus is a source of division among nations and individuals in the sense that those who do not believe in Jesus will turn against those who believe and even turn into persecutors.
Let us ask for the grace to be always on the side of Jesus.
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)