12) आप याद रखें कि पहले आप मसीह से अलग थे, इस्राएल के समुदाय के बाहर थे, विधान की प्रतिज्ञाओं से अपरिचित और इस संसार में आशा और ईश्वर से रहित थे।
13) आप लोग पहले दूर थे, किन्तु ईसा मसीह से संयुक्त हो कर आप अब मसीह के रक्त द्वारा निकट आ गये है;
14) क्योंकि वही हमारी शान्ति हैं। उन्होंने यहूदियों और गैर-यहूदियों को एक कर दिया है। दोनों में शत्रुता की जो दीवार थी, उसे उन्होंने गिरा दिया है।
15) और अपनी मृत्यु द्वारा विधि-निषेधों की संहिता को रद्द कर दिया। इस प्रकार उन्होंने यहूदियों तथा गैर-यहूदियों को अपने से मिला कर एक नयी मानवता की सृष्टि की और शान्ति की स्थापित की है।
16) उन्होंने क्रूस द्वारा दोनों का एक ही शरीर में ईश्वर के साथ मेल कराया और इस प्रकार शत्रुता को नष्ट कर दिया।
17) तब उन्होंने आ कर दोनों को शान्ति का सन्देश सुनाया - आप लोगों को, जो दूर थे और उन लोगों को, जो निकट थे;
18) क्योंकि उनके द्वारा हम दोनों एक ही आत्मा से प्रेरित हो कर पिता के पास पहुँच सकते हैं।
19) आप लोग अब परेदशी या प्रवासी नहीं रहे, बल्कि सन्तों के सहनागरिक तथा ईश्वर के घराने के सदस्य बन गये हैं।
20) आप लोगों का निर्माण भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा मसीह हैं।
21) उन्हीं के द्वारा समस्त भवन संघटित हो कर प्रभु के लिए पवित्र मन्दिर का रूप धारण कर रहा है।
22) उन्हीं के द्वारा आप लोग भी इस भवन में जोड़े जाते हैं, जिससे आप ईश्वर के लिए एक आध्यात्मिक निवास बनें।
35) ’’तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें।
36) तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये, तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें।
37) धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा! मैं तुम से यह कहता हूँः वह अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठायेगा और एक-एक को खाना परोसेगा।
38) और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर उसी प्रकार जागता हुआ पायेगा!
आज का सुसमाचार पाठ हमें एक महत्वपूर्ण याद दिलाता है कि हमें मसीह की वापसी के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में, हम अक्सर दिनचर्या, व्यस्तता और ध्यान भटकाने वाली चीजों में उलझ जाते हैं। हम आत्मिक रूप से सुस्त हो सकते हैं और यह भूलने पर मजबूर हो सकते हैं कि हमें हर दिन उद्देश्य और विश्वास के साथ जीने के लिए तथा सतर्क और जागरूक रहने के लिए बुलाया गया है।
येसु हमें कहते हैं कि हमें ‘‘अपने दीपक जलाए रखना’’ चाहिए, जिसका मतलब है आत्मिक रूप से जागरूक और सक्रिय रहना। इसका अर्थ यह हो सकता है कि हम रोज प्रार्थना करें, दयालुता के काम करें, अपने विश्वास में जुड़े रहें, और दूसरों की सेवा करने के अवसरों को पहचानें। यह भविष्य के बारे में चिंता करने का नहीं, बल्कि अभी के समय में ईश्वर की इच्छा के प्रति तैयार और उत्तरदायी रहने का संदेश है।
इस संदेश का सबसे सुंदर और चौंकाने वाला हिस्सा वह है जब स्वामि अपने ईमानदार सेवकों की सेवा करता है। यह ईश्वर के हृदय को दर्शाता हैः वह उन लोगों का सम्मान और आदर करता है जो उसके प्रति ईमानदार रहते हैं। जब हम तैयारी के साथ, ईश्वर के प्रति खुले दिल से और उसके उद्देश्य के अनुसार जीवन जीते हैं, तो हमें उनकी आशीश, शांति और खुशी का अनुभव होता है।
आज हमारे लिए सवाल यह हैः क्या हम सतर्क सेवकों की तरह जी रहे हैं, जो प्रभु की वापसी के लिए तैयार हैं? डर के साथ नहीं, बल्कि आनंदमय अपेक्षा के साथ, यह जानते हुए कि मसीह अभी हमारे साथ हैं और हमारी ईमानदार सेवा का अनंत महत्व है। आइए हम सतर्क रहें और अपने दीपक को उज्ज्वल रखें, उस दुनिया में जहाँ हमारी आत्मिक जागरूकता को अक्सर धूमिल कर दिया जाता है।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today’s passage is a powerful reminder for us to live in a state of readiness for Christ’s return. In our daily lives, it’s easy to get caught up in routines, distractions, and the busyness of life. We might become spiritually complacent, forgetting the bigger picture—that we are called to be watchful and alert, living each day with purpose and faithfulness.
Jesus is telling us to “keep our lamps burning,” which means staying spiritually awake and active. This could involve daily prayer, acts of kindness, staying engaged with our faith, and being attentive to opportunities to serve others. It’s not about being anxious about the future, but about being ready and responsive to God’s will in our lives right now.
The beautiful and surprising part of this passage is the image of the master serving the faithful servants. It shows the heart of God: He honors and delights in those who remain faithful. When we live in readiness, with hearts open to God and lives aligned with His purposes, we experience His blessing, peace, and joy.
The question for us today is: Are we living as watchful servants, prepared for the Lord’s return? Not with fear, but with joyful expectation, knowing that Christ is with us now and that our faithful service has eternal significance. Let us be vigilant, keeping our lamps burning bright in a world that often dims our spiritual awareness.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
ईश्वर हमसे प्यार करता है। उस प्रेम का महान संकेत यह है कि उसने हमें येसु मसीह के माध्यम से शांति प्रदान की है। और हमें परमेश्वर के घराने के सदस्य बनाये गये है। हम एक पवित्र मंदिर में बनाया जा रहा है, जहाँ परमेश्वर आत्मा में रहता है। ईश्वर हमसे इतना प्यार करता है कि वह वास्तव में हमारे भीतर बसता है। जैसा कि संत पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखे अपने पत्र में लिखा है, "क्या आप यह नहीं जानते कि आप ईश्वर के मंदिर हैं और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है?" (1 Cor 3:16)
आज के सुसमाचार में हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का एक और संकेत है। ईश्वर हम पर भरोसा करता है और हमें कई जिम्मेदारियां सौंपता है। वह हमसे विश्वास और सतर्कता की उम्मीद करता है। जैसा कि संत मदर तेरेसा ने कहा, "ईश्वर चाहता है कि हम विश्वसनीय हों, सफल नहीं"। प्रभु के द्वारा हमें सौंपी हुई जिम्मेदारियों को विश्वासपूर्वक करने में ही आध्यात्मिक सफलता है। धन्य हैं वे सेवक जिन्हें अपस्वामी तैयार और वफादार पाएंगे!
आज हमें अपने जीवन के महान मूल्य के मनन चिंतन करने के लिए कहा जाता है। क्या आपको एहसास है कि आप ईश्वर का मंदिर हैं जहां उनका आत्मा निवास करता है? अपने आप से पूछें - क्या आप अपने जीवन और उसकी जिम्मेदारियों को आशीर्वाद के रूप में या बोझ के रूप में लेते हैं?
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
God loves us. The great sign of that love is that he has brought us peace through Jesus Christ. And we have been made members of the household of God. We are being built into a holy temple where God lives, in the Spirit. God loves us so much that he really dwells within us. As St. Paul writes in his letter to the Corinthians, “Do you not know that you are God’s temple and that God’s Spirit dwells in you?” (1 Cor 3:16).
We find another sign of God’s love for us in today’s gospel. God trusts us and entrusts us with many responsibilities. He expects faithfulness and alertness from us. As Mother Teresa said, “God wants us to be faithful, not successful”. Spiritual success is in doing faithfully what the Lord has entrusted us to do. Blessed are those whom the Master will find ready and faithful!
Today we are called to reflect on the great value of our lives. Do you realize that you are the temple of God where his Spirit lives? Ask yourself - do you take your life and its responsibilities as a blessing or as a burden?
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)