1) आप लोग अपने अपराधों और पापों के कारण मर गये थे;
2) क्योंकि आपका आचरण पहले इस संसार की रीति के अनुकूल, आकाश में विचरने वाले अपदूतों के नायक के अनुकूल था, उस आत्मा के अनुकूल था, जो अब तक ईश्वर के विरोधियों में क्रियाशील है।
3) हम सभी पहले उन विरोधियों में सम्मिलित थे, जब हम अपनी वासनाओं के वशीभूत हो कर अपने शरीर और मन की वासनाओं को तृप्त करते थे। हम दूसरों की तरह अपने स्वभाव के कारण ईश्वर के कोप के पात्र थे।
4) परन्तु ईश्वर की दया अपार है। हम अपने पापों के कारण मर गये थे, किन्तु उसने हमें इतना प्यार किया
5) कि उसने हमें मसीह के साथ जीवन प्रदान किया। उसकी कृपा ने आप लोगों का उद्धार किया।
6) उसने ईसा मसीह के द्वारा हम लोगों को पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में बैठाया।
7) उसने ईसा मसीह में जो दयालुता दिखायी, उसके द्वारा उसने आगामी युगों के लिए अपने अनुग्रह की असीम समृद्धि को प्रदर्शित किया।
8) उसकी कृपा ने विश्वास द्वारा आप लोगों का उद्धार किया है। यह आपके किसी पुण्य का फल नहीं है। यह तो ईश्वर का वरदान है।
9) यह आपके किसी कर्म का पुरस्कार नहीं -कहीं ऐसा न हो कि कोई उस पर गर्व करे।
10) ईश्वर ने हमारी रचना की। उसने ईसा मसीह द्वारा हमारी सृष्टि की, जिससे हम पुण्य के कार्य करते रहें और उसी मार्ग पर चलते रहें, जिसे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है।
13) भीड़ में से किसी ने ईसा से कहा, ’’गुरूवर! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे लिए पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर दें’’।
14) उन्होंने उसे उत्तर दिया, ’’भाई! किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया?’’
15) तब ईसा ने लोगों से कहा, ’’सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो; क्योंकि किसी के पास कितनी ही सम्पत्ति क्यों न हो, उस सम्पत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती’’।
16) फिर ईसा ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, ’’किसी धनवान् की ज़मीन में बहुत फ़सल हुई थी।
17) वह अपने मन में इस प्रकार विचार करता रहा, ’मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फ़सल रख दूँ।
18) तब उसने कहा, ’मैं यह करूँगा। अपने भण्डार तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा
19) और अपनी आत्मा से कहूँगा-भाई! तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है, इसलिए विश्राम करो, खाओ-पिओ और मौज उड़ाओ।’
20) परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, ’मूर्ख! इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और तूने जो इकट्ठा किया है, वह अब किसका ह़ोगा?’
21) यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।’’
आज की दुनिया में, यह बहुत आसान है कि हम धन, सफलता, और भौतिक सुरक्षा को सबसे ऊपर मानने की भूल कर बैठें। समाज हमें अक्सर यह सिखाता है कि जितना संभव हो उतना कमाने के लिए कड़ी मेहनत करो, क्योंकि इससे हमें खुशी और शांति मिलेगी। ठीक उसी तरह जैसे येसु की दृष्टात में एक अमीर मूर्ख आदमी था, हम भी ‘‘बड़े गोदाम’’ बनाने में लगे रहते हैं-चाहे वह अधिक संपत्ति जुटाने, धन बढ़ाने, या व्यक्तिगत उपलब्धियों की होड़ हो-यह सोचते हुए कि इससे हमें संतोश और सुरक्षा मिलेगी।
लेकिन येसु हमें चेतावनी देते हैं कि जीवन सिर्फ भौतिक धन के बारे में नहीं है। उस अमीर आदमी की गलती यह नहीं थी कि वह अमीर था, बल्कि यह थी कि उसने अपने धन पर भरोसा किया और सोचा कि वही उसे पूरी संतुष्टि देगा, और उसने अपने और ईश्वर के रिश्ते को नजरअंदाज कर दिया। यह दृष्टात हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम किसके लिए जी रहे हैं? क्या हम अपनी आत्मिक दौलत से ज्यादा सांसारिक धन पर ध्यान दे रहे हैं?
इससे एक महत्वपूर्ण सीख यह मिलती है कि हमें समय-समय पर अपनी प्राथमिकताओं की जांच करनी चाहिए। क्या हम अपने संसाधनों जैसे कि समय, प्रतिभा, और धन, का उपयोग ईश्वर का आदर करने और दूसरों की सेवा करने में कर रहे हैं? येसु हमें सिखाते हैं कि अपने लिए सब कुछ जमा करने के बजाय, हमें ‘‘ईश्वर के लिए धनी’’ बनना चाहिए, यानी कि हमें अपने और ईश्वर के रिश्ते में निवेश करना चाहिए, दूसरों से प्रेम करना चाहिए, और अस्थायी लाभों से अधिक शाश्वत मूल्यों को महत्व देना चाहिए।
सच्ची सुरक्षा और संतोष उन चीजों से नहीं आती जो हम जमा करते हैं, बल्कि उस जीवन से आती है जो ईश्वर पर केंद्रित हो, और उदार, कृतज्ञ और वास्तविक महत्व की चीजों पर केंद्रित हृदयों से आती है।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
In today’s world, it’s easy to fall into the trap of valuing wealth, success, and material security above all else. Society often encourages us to work hard to accumulate as much as possible, with the promise that riches will bring us happiness and peace. Like the rich fool in the parable, we can become preoccupied with building “bigger barns”—whether that’s acquiring more possessions, wealth, or personal achievements—thinking that these will guarantee us fulfilment and security.
However, Jesus warns us that life is about more than material wealth. The rich fool’s mistake was not in being wealthy, but in trusting his wealth to provide ultimate satisfaction and ignoring his relationship with God. The parable challenges us to ask ourselves: What are we living for? Are we more focused on earthly wealth than on spiritual riches?
A practical takeaway is to regularly assess our priorities. Are we using our resources—our time, talents, and wealth—in ways that honour God and serve others? Instead of hoarding what we have for ourselves, Jesus calls us to be “rich toward God,” which means investing in our relationship with Him, loving others, and seeking eternal values over temporary gains.
True security and fulfilment come not from what we accumulate, but from living a life centered on God, with hearts that are generous, grateful, and focused on what truly matters.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
प्रभु येसु स्वर्ग के एवं अनन्त जीवन के महान रहस्यों को हमें समझाने के लिए हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन से ही उदाहरण लेते हैं। आज प्रभु हमें लालच नहीं करने की हिदायत देते हैं। यह जीवन की कड़वी सच्चाई है कि हम अपने जीवन में आराम के संसाधन जुटाने के लिए दौलत कमाते हैं, जितना भी धन-दौलत हमारे पास है, उससे हम संतुष्टि नहीं पाते हैं। कोई व्यक्ति भले ही अपनी सामान्य ज़रूरतों के लिए पर्याप्त कमा ले लेकिन वह भी कम पड़ जाता है। कोई व्यक्ति भले ही अमीर हो, जीवन के सारे सुख नसीब हों, लेकिन फिर भी दौलत से उसका मन नहीं भरता है। हमारे पास चाहे सब कुछ हो, लेकिन फिर भी और अधिक चाहिए। लेकिन प्रभु येसु हमें याद दिलाते हैं कि हमारा जीवन मात्र धन-दौलत और कमाने के लिए ही नहीं है, बल्कि उससे बढ़कर है।
इस दुनिया की कोई भी दौलत या धन से हमारी ज़िंदगी नहीं ख़रीदी जा सकती, वही ज़िंदगी ईश्वर ने हमें मुफ़्त में दी है। क्या हमारा धन-दौलत हमें मृत्यु से बचा सकता है, हारी-बीमारी से उबार सकता है? जो भी धन-दौलत मेरे पास है, क्या उससे ख़ुशी और मन की शांति ख़रीदी जा सकती है? यदि इस संसार की दौलत ईश्वरीय राज्य के मूल्यों को पैदा नहीं कर सकती तो ऐसी दौलत बेकार है। फिर भी यदि वह दौलत किसी की भलाई के लिए उपयोग की जाती है, परहित के लिए लगाई जाती है, तो शायद उसका आध्यात्मिक फ़ायदा मिल जाए। भले कार्यों में लगायी गई हमारी यह सांसारिक दौलत हमारे लिए स्वर्ग की पूँजी दिला सकती है। वही स्वर्ग की पूँजी हमारे लिए इस संसार की पूँजी से अधिक ज़रूरी है। आइए हम उसी स्वर्ग की पूँजी को कमाने में खुद को लगा दें।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Jesus takes up day-to-day incidences for giving us great mysteries of eternal life. Today we reflect about how to avoid covetousness. This is the bitter truth of life that we work for earning a comfortable life, and we are never satisfied with what we already have. Even if a person earns enough to meet the daily needs, he would want more. The person maybe very rich, having all the luxuries of life, yet there is no satisfaction. Nothing is enough, we want more. But Jesus says, one's life does not consist in the abundance of one's positions and possessions.
Nothing in this world can buy us life that God gives us freely. Can our wealth save us from death, save us from sickness? Can the money that I have, be used for buying happiness and peace? If the money of this world is of no use for inculcating the values of the kingdom of God, then such a wealth is useless. Nevertheless if the wealth of this world is used for good works, for helping others, then in return of such charitable work we earn wealth that is useful in heaven. That wealth is more important than the wealth of this world. Let us strive to earn that wealth in heaven.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
हम सभी अपने पापों और अपराधों के कारण मर चुके थे जब हम इस दुनिया के मार्ग पर चल रहे थे। जब हम कामुक जीवन जी रहे थे, पूरी तरह से अपनी शारीरिक इच्छाओं और अपने स्वयं के विचार से से शासित थे तो हम सभी मर चुके थे। लेकिन परमेश्वर ने हमें इतना प्यार किया कि उसने हमें मसीह के साथ जीवन में लाया। ईश्वर हमारे प्रति प्रेममय, दयालु और उदार है; वह हमें अपनी कृपा से बचाते हैं।
हमें आज का अनुवाक्य में इस सत्य की याद दिलाई जाती है - "उसने हमें बनाया, हम उसके हैं"। ऐसे प्यार के लिए हमें ईश्वर का शुक्रिया अदा करना चाहिए और उनके नाम को धन्य करना चाहिए।
आज का सुसमाचार का दृष्टान्त एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जिसने अपने धन पर भरोसा किया। उसने खुद को मूर्ख साबित किया क्योंकि उसके धन उसकी आत्मा को नहीं बचा सके। हमें एक बार फिर याद दिलाया जाता है कि हम ईश्वर की कृपा से मुक्ति पाते हैं जो कि ईश्वर की ओर से एक उपहार है। ईश्वर हमें अपने वरदान और समृद्धि देता है क्योंकि वह हमसे प्यार करता है। लेकिन जब हम धन पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और ईश्वर को, जो सभी आशीर्वादों के दाता है, भूल जाते हैं, तो हम कयामत और मौत के रास्ते पर हैं।
आप किसमें भरोसा करते हैं और गर्व करते हैं - ईश्वर की कृपा या आपके भौतिक संपत्ति में? हमें संत पौलुस के साथ यह कहना चाहिए, "आपकी कृपा मेरे लिए पर्याप्त है"।
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
We were all dead because of our sins and crimes in which we used to live when we were following the way of this world. When we were living sensual lives, ruled entirely by our own physical desires and our own idea we were all dead. But God loved us so much that he brought us to life with Christ. God is loving, merciful and generous towards us. We are saved by grace.
We are reminded of this truth in today’s Response – “He made us, we belong to him”. For such love we must thank God and bless his name.
The gospel story is about a man who trusted in his riches to save him. He proved himself to be a fool because his riches could not save his soul. We are once again reminded that we are saved by grace which is a gift from God. God gives us his gifts and prosperity because he loves us. But when we focus our attention on the riches and forget God - the Giver of all blessings - then we are on the way to doom and death.
In what do you rely and glory in - in the grace of God or in your material possessions? We must be able to say with St. Paul, “Your grace is enough for me”.
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)