15) मैंने प्रभु ईसा में आप लोगों के विश्वास और सभी सन्तों के प्रति आपके भ्रातृप्रेम के विषय में सुना है। मैं आप लोगों के कारण ईश्वर को निरन्तर धन्यवाद देता
16) और अपनी प्रार्थनाओं में आप लोगों का स्मरण करता रहता हूँ।
17) महिमामय पिता, हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर, आप लोगों को प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान करे, जिससे आप उसे सचमुच जान जायें।
18) वह आप लोगों के मन की आँखों को ज्योति प्रदान करे, जिससे आप यह देख सकें कि उसके द्वारा बुलाये जाने के कारण आप लोगों की आशा कितनी महान् है और सन्तों के साथ आप लोगों को जो विरासत मिली है, वह कितनी वैभवपूर्ण तथा महिमामय है,
19) और हम विश्वासियों के कल्याण के लिए सक्रिय रहने वाले ईश्वर का वही सामर्थ्य कितना अपार है।
20) ईश्वर ने मसीह वही सामर्थ्य प्रदर्शित किया, जब उसने मृतकों में से उन्हें पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में अपने दाहिने बैठाया।
21) स्वर्ग में कितने ही प्राणी क्यों न हों और उनका नाम कितना ही महान् क्यों न हो, उन सब के ऊपर ईश्वर ने इस युग के लिए और आने वाले युग के लिए मसीह को स्थान दिया।
22) उसने सब कुछ मसीह के पैरों तले डाल दिया और उन को सब कुछ पर अधिकर दे कर कलीसिया का शीर्ष नियुक्त किया।
23) कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से, पूर्णता तक पहुँचाते हैं।
8) ’’मैं तुम से कहता हूँ, जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मानव पुत्र भी ईश्वर के दूतों के सामने स्वीकार करेगा।
9) परन्तु जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, वह ईश्वर के दूतों के सामने अस्वीकार किया जायेगा।
10) ’’जो मानव पुत्र के विरुद्ध कुछ कहेगा, उसे क्षमा मिल जायेगी, परन्तु पवित्र आत्मा की निन्दा करने वाले को क्षमा नहीं मिलेगी।
11) ’’जब वे तुम्हें सभागृहों, न्यायाधीशों और शासकों के सामने खींच ले जायेंगे, तो यह चिन्ता न करो कि हम कैसे बोलेंगे और अपनी ओर से क्या कहेंगे;
12) क्योंकि उस घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें सिखायेगा कि तुम्हें क्या-क्या कहना चाहिए।’’
‘‘जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मानव पुत्र भी ईश्वर के दूतों के सामने स्वीकार करेगा।’’ (लूकस 12:8)। यह वचन हमें इस बात पर विचार करने के लिए आमंत्रित करता है कि अपने विश्वास के लिए खड़े होने का वास्तविक मतलब क्या है।
जब हम येसु को स्वीकार करते हैं, तो हम जो विश्वास करते हैं उसके बारे में तथ्य दर्शाते हैं। यह शब्द मात्र से कहीं ऊपर हैं। ये इस बारे में है कि हम अपना जीवन कैसे जीते हैं। हमारे रोजमर्रा के कार्यों में जैसे कि हम दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, हम चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं; इस सभी क्षणों में हमारे पास यह दिखाने का मौका रहता है कि हम मसीह के हैं। यह उतना ही आसान हो सकता है जितना कि हमारे कामकाज में ईमानदारी दिखाना, संघर्ष कर रहे लोगों के प्रति दयालुता दिखाना, या सही बात के लिए खड़े होना।
अपने विश्वास को खुले तौर पर साझा करना हमेशा आसान नहीं होता है। कभी-कभी हम इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि दूसरे क्या सोचेंगे या उनकी प्रतिक्रिया कैसी होगी। लेकिन येसु हमें आश्वस्त करते हैं कि जब हम यह कदम उठाते हैं, तो वह हमारे साथ होते हैं। वे वादा करते हैं कि यदि हम उसे स्वीकार करते हैं, तो वह हमें ईश्वर के सामने स्वीकार करेंगें। यह एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि हमारा विश्वास निष्फल नहीं परन्तु मायने रखता है तथा हम कभी अकेले नहीं हैं।
ऐसे समय में जब हम अनिश्चित या भयभीत महसूस करते हैं, हम भरोसा करें कि पवित्र आत्मा हमें उस क्षण हमारी लिए आवश्यक सही शब्द और साहस खोजने में मदद करेगा। याद रखें कि विश्वास के छोटे-छोटे संकेत भी बड़ा प्रभाव डाल सकती हैं। एक मुस्कान, दूसरों के लिए सुनने हेतु कान, या प्रोत्साहन का एक शब्द, किसी के जीवन में मसीह के प्रेम को प्रतिबिंबित कर सकता है।
आइए हम अपने विश्वास के लिए खड़े होने के अवसरों का सही उपयोग करें, यह जानते हुए कि जब हम ऐसा करते हैं, तो हम ईश्वर के करीब आते हैं और दूसरों को प्रभु की ज्योति देखने में मदद करते हैं। आमेन.
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
“Everyone who acknowledges me before others, the Son of Man also will acknowledge before the angels of God” (Luke 12:8). This verse invites us to reflect on what it means to truly stand up for our faith.
When we acknowledge Jesus in our lives, we’re making a statement about what we believe. It’s about more than just words; it’s about how we live our lives.
In our everyday actions—how we treat others, how we respond to challenges—we have the chance to show that we belong to Christ. This can be as simple as being honest in our dealings, showing kindness to those who are struggling, or standing up for what is right.
It’s not always easy to share our faith openly. Sometimes we worry about what others might think or how they might react. But Jesus reassures us that when we take that step, He is with us. He promises that if we acknowledge Him, He will acknowledge us before God. This is a powerful reminder that our faith matters and that we are never alone.
In times when we feel uncertain or afraid, we can trust that the Holy Spirit will help us find the right words and the courage we need. Remember that even small gestures of faith can have a big impact. A smile, a listening ear, or a word of encouragement can reflect Christ’s love in someone’s life.
Let’s take the opportunity to stand for our faith, knowing that when we do, we are drawing closer to God and helping others to see His light. Amen.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
अपने बपतिस्मा के द्वारा हमने प्रभु येसु को ग्रहण किया है, और ईश्वर के पुत्र-पुत्रियाँ बनना स्वीकार किया है। अपने बपतिस्मा की प्रतिज्ञाओं को दुहरा कर हम शैतान के छल-प्रपंचो का परित्याग करते हैं। हम अपने जीवन में या तो प्रभु येसु को अपनायेंगे या शैतान के बहकावे में आएँगे, दोनों को एक साथ स्वीकार नहीं कर सकते। यदि हम प्रभु येसु को अस्वीकार करते हैं, तो स्वतः ही हम शैतान के चंगुल में फँस जाएँगे, क्योंकि जब हम प्रकाश को रोक देते हैं तो अंधकार स्वयं आ जाता है, दर असल प्रकाश की अनुपस्थिति ही अंधकार कहलाती है। यदि हम अपने जीवन में प्रभु को स्वीकार करते हैं तो हमें उनकी घोषणा भी करनी है। ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब हम अपने जीवन को ईश्वर की इच्छा और आज्ञाओं के अनुसार जिएँगे।
हम जानते हैं कि एक दिन हम प्रभु का सामना करेंगे, प्रभु येसु जैसे हैं वैसे ही उन्हें देखेंगे। हम अपने पूरे जीवन उन्हें प्यार करते हैं, उनके शरीर और रक्त के द्वारा पोषण ग्रहण करते हैं। हमारे हृदय और आत्मा की एकमात्र अभिलाषा है अपने प्रिय मुक्तिदाता प्रभु येसु से मिलन जिसने हमें असीम प्रेम किया और अपने आप को हमारे लिए बलिदान कर दिया। लेकिन कैसा हो कि जब हम स्वर्ग पहुँचें तो अपने स्वर्गदूतों के समक्ष प्रभु हमें पहचानने से इनकार कर दें, और कहें “दूर हटो और मेरे सामने से चले जाओ, क्योंकि मैं तुम्हें नहीं जानता!” यदि हम ईश्वर के प्रेम को पाना चाहते हैं तो पहले हमें उन्हें प्यार करना है और संसार के सामने ईश्वर के प्रेम की घोषणा करनी है। प्रभु सदा हमारी रक्षा करने और हमारा मार्गदर्शन करने के लिए सदा हमारे साथ हैं।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Through our baptism we have received Christ and accepted to be the children of God. By renewing our baptismal vows we cast away all the attractions of evil. We cannot accept Christ at the same time also accept Satan in our life. If we deny or reject Christ, we automatically accept Satan in our life. When the shun the light, the darkness automatically comes in the absence of light. If we have accepted Christ in our life, we also need to boldly proclaim him. This most efficiently can be done by living our lives according to God’s will and commands.
We know one day we have to see God face-to-face. We will see Christ as he is. Whole life we love him and be nourished by his body and blood. The only craving of our heart and soul is to meet the love of our life, our saviour Jesus who loved us beyond all limits. What if we reach heaven and Jesus denies us before the angels? What if he says, "Go away because! I do not know you? If we have to be loved by God, we need to first love him and proclaim him before this world. He's always with us to guide and protect us.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
एफेसियों के लिए संत पौलुस की प्रार्थना जो हम आज का पहला पाठ में सुनते हैं उनके लिए उनका प्रेम का एक सुंदर अभिव्यक्ति है और साथ ही उनके लिए ईश्वर का आशीर्वाद की कामना भी है। वह ज्ञान और आध्यात्मिक अंतरदृष्टी के लिए प्रार्थना करता है ताकि वे ईश्वर को पूरी तरह से जान सकें। वह मन की आँखों की ज्योति के लिए प्रार्थना करता है ताकि वे येसु मसीह के माध्यम से ईश्वर में प्रतिज्ञात आशा का आशीर्वाद देख सकें। येसु न केवल सारी सृष्टि का प्रभु और शासक है, बल्कि वह कलीसिया का प्रमुख भी है, जो उसका शरीर है।
येसु कलीसिया की, जो अपने शरीर है, परवाह करता है। कल के सुसमाचार की शिक्षा के समान प्रभु येसु आज का सुसमाचार में भी कहता हैं कि डरने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि ईश्वर हमें हमारी सहायता करने के लिए पवित्र आत्मा देगा। हमें निडर होकर येसु में अपना विश्वास व्यक्त करन है। निश्चित रूप से प्रभु भक्तों का विरोध, और यहां तक कि उत्पीड़न भी होगा। लेकिन पवित्र आत्मा उन लोगों की सहायता करेगा जो ईश्वर में भरोसा करते हैं। ऐसे अवसर में चिंतित होना स्वाभाविक है। परंतु येसु हमें ढाड़स बांधाते हुए कहता है, “यह चिंता न करो कि हम कैसे बोलेंगे और अपनी ओर से क्या कहेंगे; क्योंकि उन घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें सिखाएगा कि तुम्हें क्या-क्या कहना चाहिए।”
सोचिये, हमारे जीवन में पवित्र आत्मा की दिव्य सहायता का होना कितना सौभाग्य की बात है! क्या आप अपने विश्वास को व्यक्त करने के लिए सही शब्द खोजने के लिए संघर्ष करते हैं? अपने आप को पवित्र आत्मा को आत्मसमर्पण कीजिये और वह निश्चित रूप से आपका मार्गदर्शन और आपकी सहायता करेगा।
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
St. Paul’s prayer for the Ephesians is a beautiful expression of his concern for them as well as God’s promised blessings for them. He prays for a spirit of wisdom and perception of God’s revelation so that they may know Him fully. He prays for enlightenment of the mind so that they can see blessings of hope in God through Jesus Christ. Jesus is not only the Lord and ruler of the whole of creation but he is also the head of the Church, which is his body.
Jesus cares for his body, the Church. In continuation of yesterday’s gospel passage, Jesus says, that there is no need to be afraid because God will give us the Holy Spirit to assist us. We are called to fearlessly declare our faith in Jesus. There will certainly be resistance, opposition and even persecution. But the Holy Spirit will assist those who trust in God. “Do not worry about how to defend yourselves or what to say, because when the time comes, the Holy Spirit will teach you what you must say.”
What a privilege it is to have the divine assistance of the Holy Spirit in our lives! Do you struggle to find the right words to express your faith? Surrender yourself to the Holy Spirit and he will surely guide you and assist you.
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)