अक्टूबर 18, 2024, शुक्रवार

वर्ष का अट्ठाईसवाँ सामान्य सप्ताह

सन्त लूकस सुसमाचार लेखक : पर्व

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📒 पहला पाठ : तिमथी के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 4:10-17b

10) क्योंकि देमास इस संसार की ओर आकर्षित हो गया और वह मुझे छोड़ कर थेसलनीके चला गया है। क्रेसेन्स गलातिया चला गया और तीतुस, दलमातिया।

11) केवल लूकस मेरे साथ है। मारकुस को अपने साथ ले कर आओ, क्योंकि मुझे सेवाकार्य में उन से बहुत सहायता मिलती है।

12) मैंने तुखिकुस को एफ़ेसुस भेजा है।

13) आते समय लबादा, जिसे मैंने त्रोआस में कारपुस के यहाँ छोड़ दिया था, और पुस्तक, विशेष कर चर्मपत्र लेते आओ।

14) सिकन्दर सुनार ने मेरे साथ बहुत अन्याय किया। प्रभु उस को उसके कर्मों का फल देगा।

15) तुम भी उस से सावधान रहो, क्योंकि उसने हमारी शिक्षा का बहुत विरोध किया।

16) जब मुझे पहली बार कचहरी में अपनी सफाई देनी पड़ी, तो किसी ने मेरा साथ नहीं दिया -सब ने मुझे छोड़ दिया। आशा है, उन्हें इसका लेखा देना नहीं पड़ेगा।

17) परन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की और मुझे बल प्रदान किया, जिससे मैं सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ और सभी राष्ट्र उसे सुन सकें।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 10:1-9

1) इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।

2) उन्होंने उन से कहा, ’’फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।

3) जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ।

4) तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो।

5) जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’

6) यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।

7) उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो।

8) जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो।

9) वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।

📚 मनन-चिंतन

आज, हम संत लूकस का पर्व मनाते हैं, जो हमारे विश्वास में एक प्रिय व्यक्ति हैं। संत लूकस न केवल एक वैद्य थे बल्कि येसु के वफादार अनुयायी भी थे। उन्होंने मसीह के जीवन, शिक्षाओं और सभी लोगों के लिए उस प्रेम की कहानी साझा करते हुए, चार सुसमाचारों में से एक लिखा।

लूकस का सुसमाचार विशेष है क्योंकि यह येसु की करुणा और दया पर प्रकाश डालता है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि येसु दर किनार कर दिये गये लोगों जैसे कि गरीबों, बीमारों और समाज के अंतिम छोर पर रहने वाले लोगों तक कैसे पहुंचे। यह हमें याद दिलाता है कि ईश्वर के लिए प्रत्येक व्यक्ति महत्वपूर्ण है, और हमें भी ऐसा ही करने के लिए बुलाया गया है।

संत लूकस ने प्रेरित चरित की भी रचना की, जिसमें दर्शाया गया है कि प्रारंभिक कलीसिया पवित्र आत्मा के माध्यम से कैसे विकसित हुई। यह हमें सिखाता है कि हम, विश्वासियों के एक बड़े समुदाय का हिस्सा हैं, जो दुनिया में ईश्वर के प्रेम को फैलाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।

आज जब हम संत लूकस का सम्मान करते हैं, आइए हम उनके उदाहरण से प्रेरित हों। हम दयालु, खुले दिल वाले और दूसरों की सेवा करने के इच्छुक हों। आइए हम यह भी याद रखें कि हमारे शब्द और कार्य हमारे आसपास के लोगों के साथ ईसा मसीह का संदेश को साझा करते हैं।

इस पर्व के दिन, आइए हम, संत लूकस से आस्था की हमारी यात्रा में हमारा मार्गदर्शन करने और हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में ईश्वर के प्रेम का साक्षी बनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रार्थना करें। आमेन.

फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


Today, we celebrate the feast of St. Luke, a beloved figure in our faith. St. Luke was not only a doctor but also a faithful follower of Jesus. He wrote one of the four Gospels, sharing the story of Christ’s life, teachings, and love for all people.

Luke’s Gospel is special because it highlights Jesus’ compassion and mercy. He emphasizes how Jesus reached out to the marginalized—the poor, the sick, and those on the edges of society. This reminds us that everyone is important to God, and we are called to do the same.

St. Luke also wrote the Acts of the Apostles, showing how the early Church grew through the Holy Spirit. This teaches us that we are part of a larger community of believers, working together to spread God’s love in the world.

As we honour St. Luke today, let us be inspired by his example. May we be compassionate, open-hearted, and willing to serve others. Let us also remember that our words and actions can share the message of Christ with those around us.

On this feast day, let’s ask St. Luke to guide us in our journey of faith, encouraging us to be witnesses of God’s love in our everyday lives. Amen.

-Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज हम संत लुकास, लेखक का पर्व मनाते हैं। सुसमाचार और प्रेरित चरित के लेखक संत लुकास अन्ताकिया से थे। सुसमाचार के माध्यम से, संत लुकास मसीह के जीवन की एक झलक देता है और प्रेरित चरित में संत पौलुस की मिशनरी यात्राओं का विवरण देता है। संत लुकास का सुसमाचार कई मायनों में अद्वितीय है। सुसमाचार में, संत लुकास पापियों और पीड़ितों के लिए मसीह की करुणा पर जोर देते है। संत लुकास का सुसमाचार गरीबों और उत्पीड़ितों पर ध्यान केंद्रित करता है, कम भाग्यशाली लोगों के लिए कोमलता और करुणा को प्रोत्साहित करता है। संत लुकास गैरयहूदियो के बिच सुसमाचार प्रचार के महत्व पर जोर देता है। संत लुकास के सुसमाचार में महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। वे उन महिलाओं के बारे में लिखते हैं जो येसु के शिष्य थे। वे पौलुस के एकमात्र साथियों में से थे जिसने रोम में उसके अंतिम कारावास और मृत्यु के दौरान उसका साथ नहीं छोड़ा। आज का सुसमाचार मिशनरी और सुसमाचार के उद्घोषक बनने का निमंत्रण है। एक मिशनरी पूरी तरह से ईश्वर पर निर्भर रहता ह। यह उनकी स्वतंत्रता और कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।

फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.

📚 REFLECTION


Today we celebrate the feast of St. Luke, the evangelist. Luke, the writer of the Gospel and the Acts of the Apostles was from Antioch. Through the Gospel, Luke gives a glimpse of Christ's life and in the Acts of the apostle accounts the missionary journeys of Paul. The gospel of Luke is unique in many ways. In the Gospel, Luke emphasizes Christ's compassion for sinners and for those who suffer. The gospel of Luke focuses on the poor and oppressed, encouraging tenderness and compassion for the less fortunate. Luke stresses the importance of evangelizing to the Gentiles. Women have an important place in Luke's gospel. Luke writes about the women who accompanied Jesus. Luke was among the only companions of Paul who did not abandon him during his final imprisonment and death in Rome. Today’s gospel is an invitation to be missionaries and proclaimer of the gospel. A missionary solely depends on the God and it is a sign of their freedom and of full dedication to the task.

-Fr. Sanjay Kujur SVD

📚 मनन-चिंतन -3

आज माता कलीसिया सुसमाचार लेखक सन्त लूकस का पर्व मनाती है। सन्त लूकस को सुसमाचार लेखक एवं प्रेरित चरित के लेखक के रूप में पहचाना जाता है। वे कई बार सन्त पौलुस के साथ मिशनरी यात्राओं पर गए थे। उन्होंने क़रीब से देखा कि जहाँ भी प्रभु का वचन ले ज़ाया गया वहीं प्रभु के सुसमाचार ने लोगों का जीवन बदल दिया।उन्होंने उन कष्टों और अत्याचार को भी क़रीब से देखा होगा जो संसार के कोने-कोने में सुसमाचार प्रचार के समय प्रेरितों ने सहा था। उससे पता चला कि किस तरह से लोग सुसमाचार के लिए प्यासे हैं, और शायद इन्हीं बातों ने सन्त लूकस को यह महसूस कराया कि प्रभु की दाखबारी में मज़दूरों की कमी है।

आज के सुसमाचार में भी प्रभु इसी बात का आह्वान करते हैं कि फसल के स्वामी से मज़दूर भेजने के लिए प्रार्थना करो, क्योंकि फसल तो बहुत है लेकिन मज़दूर थोड़े हैं। प्रभु के ये शब्द आज भी सत्य हैं। प्रभु येसु कुछ गिने-चुने लोगों के लिए नहीं बल्कि सारी मानवजाति के लिए क्रूस पर बलिदान हुए। उनका वह बलिदान उनके लिए भी था, जो उन्हें अभी तक नहीं जानते हैं। उन अनजान लोगों प्रभु के इस बलिदान का सुसमाचार कौन सुनाएगा? वह प्रत्येक व्यक्ति जिसने ईश्वर के प्रेम को अपने जीवन में अनुभव किया है, उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह अपने उस अनुभव को दूसरों के साथ बाँटे। हमारे देश में हम भले ही थोड़े से हों लेकिन हमारा जीवन दूसरों को नई राह दिखा सकता है। आज फसल बहुत है, वे लोग बहुत हैं जो सुसमाचार के लिए भूखे और प्यासे हैं। क्या मैं प्रभु की दाखबारी में सुसमाचार के प्रचार के लिए अपना कुछ योगदान दे सकता हूँ?

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today the mother Church celebrates the feast of St. Luke, the evangelist. Saint Luke is considered as the writer of the gospel according to Luke and also Acts of the Apostles. He was with Saint Paul in his missionary journeys. He witnessed how the Good News of Jesus changed the lives of the people wherever it was taken. He must have also witnessed the hardships and sufferings that were faced by the apostles and disciples who took the gospel to the ends of the world. All these situations indicate that the people still thirst for the message of salvation, that situation made St. Luke to experience the lack of labourers in the vineyard of the Lord.

As Jesus says in today's gospel about praying for the labourers to the Lord of the vineyard, because the harvest is plenty but the labourers are few. These words stand true even today. Jesus died on the cross for whole humanity, not just for a limited number of people. He died even for those who do not know him yet. So who will bring this good news to those people? Everyone who has experienced the love of God, is obliged to share it with others. In our country we are just around 2 percent, which is nothing compared to the total number of people. Today there is plenty of harvest, people who are ready to listen to the good news but labourers are a few. Can I offer my service to the spread of the Good News of the kingdom?

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन-4

लोगों की एक सामान्य प्रवृत्ति होती है कि वे यात्रा के दौरान होने वाली किसी भी घटना का सामना करने के लिए उन चीजों की एक सूची तैयार करते हैं जिन्हें उन्हें ले जाने की आवश्यकता होती है। जब येसु ने अपने शिष्यों को भेजा तो उन्होंने उन्हें निर्देश दिए कि उन्हें अपनी मिशन यात्रा में क्या करना चाहिए। उन्हें बीमारों को चंगा करके लोगों को प्रभु के लिए तैयार करना था, यह प्रचार करना था कि ईश्वर का राज्य निकट आ गया है, उन्हें शांति प्रदान करना, आदि। ऐसा करने से वे दुनिया के दुर्व्यवहार और हिंसा का सामना करेंगे। वे असुरक्षित हो जाएंगे लेकिन यह चिंता की बात नहीं है। प्रभु जिस बात को बताने की कोशिश कर रहे हैं वह यह है कि कार्य, संदेश और मिशन किसी भी अन्य तैयारी से अधिक महत्वपूर्ण हैं। उसके एकमात्र संसाधन येसु के द्रारा भेजा जाना है। ज्यादातर समय हम बड़ी चीजों की योजना बनाते हैं जिन्हे हम बहुत कम पूरा कर पाते हैं। हमें केवल येसु के प्रति एक स्पष्ट दृष्टि, ईश्वर द्रारा प्रद्त्त आंतरिक उपहार और विश्वास में खुले दिल के अलावा कोई संसाधन रखने की आवश्यकता नहीं है।

फादर रोनाल्ड मेलकम वॉन

📚 REFLECTION


There is a general tendency for people to prepare a list of the things that they need to carry during the journey to cover any eventualities that may occur. However, the Lord Jesus sent out his disciples with the bare essential from that point of view. He gave them instructions so as to what they ought to be doing in their mission journeys. They were to prepare the people for the Lord by healing the sick, preaching that the kingdom of God has come near, giving them peace, etc. In doing so they would be exposed to abuse and violence of the world. They would be rendered vulnerable but it is not a thing to be worried about. The point the Lord is driving at home is that the work, the message, and the mission are more important than any other preparation. The only resource is being sent by him. Most of the time we plan big things which end up doing substantially very little. We need to carry no resources only a clear vision, unique interior gifts, and an open heart.

-Fr. Ronald Melcum Vaughan

📚मनन-चिंतन - 5

प्रभु येसु ने अपने आगे उन गाँवों और शहरों में बहत्तर शिष्यों को दो-दो करके भेजा जहाँ वे स्वयं जाने वाले थे। भेजे जाने से पहले, उन्हें याद दिलाया जाता है कि फसल समृद्ध है, लेकिन मजदूर कम हैं। हम जानते हैं कि अगर समय पर फसल की कटाई नहीं की गई तो वह बर्बाद हो सकती है। प्रभु उम्मीद करते हैं कि वे बिना किसी समय या प्रयास को बर्बाद किए ईमानदारी से कठोर परिश्रम करें। इस प्रकार येसु ईश्वर के राज्य के संदेश को फैलाने के कार्य की तात्कालिकता पर जोर देते हैं। हमें ईमानदारी से कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है और बाकी येसु पर छोड़ दें जो उन लोगों से मिलने जाएंगे, जिनसे हम पहले ही मिल चुके हैं। हमारे प्रयासों में जो भी कमी है, वे उसे दूर करेंगे।

अनुदेशों में प्रभु येसु कहते हैं, “यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।”। ईश्वर के उपहार उन लोगों पर ठहरेंगे जो उनके योग्य हैं। बाइबल में हम ईश्वर के कई वादे पाते हैं लेकिन उन वादों से लाभ उठाने के लिए हमें उनके योग्य बनने की आवश्यकता है। एसाव ने पहलौठे के लिए प्रतिज्ञात कृपाओं के लिए खुद को योग्य साबित नहीं किया; लेकिन याकूब हर तरह से प्रभु की कृपा पाना चाहता था। वह प्रभु से कहता है, "जब तक तुम मुझे आशीर्वाद नहीं दोगे, तब तक मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगा" (उत्पत्ति 32:27)। क्या मैं प्रभु के आशीर्वाद के योग्य बनने के लिए प्रयास करता हूँ?

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚SHORT REFLECTION

Jesus sent seventy-two disciples in pairs ahead of him to towns and villages he himself would be visiting. After their visit Jesus would visit those towns and villages. Before they are sent, they are reminded that the harvest is rich but the labourers are few. We are aware that if the harvest is not reaped in time, it can go waste. It follows that they are expected to work hard sincerely without wasting any time or effort. Thus Jesus insists on the urgency of the work of spreading the message of the Kingdom of God. We need to sincerely do our best and leave the rest to Jesus who would be visiting those whom we have already visited. We will supplement for whatever is lacking in our efforts.

In the instructions Jesus says, “If a man of peace lives there, your peace will go and rest on him; if not, it will come back to you”. The gifts of God will rest on people who are worthy of them. In the Bible we find many promises of God but in order to benefit from those promises we need to become worthy of them. Esau did not prove himself worthy to receive the gifts promised to the first-born; but Jacob wanted to get the gifts of God by all means. He says to the Lord, “I will not let you go, unless you bless me” (Gen 32:26). Do I make efforts to become worthy of the blessings of the Lord?

-Fr. Francis Scaria