1) सन्तों और ईसा मसीह के विश्वासियों के नाम पौलुस का पत्र, जो ईश्वर द्वारा ईसा मसीह का प्रेरित नियुक्त हुआ है।
2) हमारा पिता ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें।
3) धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता! उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं।
4) उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त हो कर उसकी दृष्टि में पवित्र तथा निष्कलंक बनें।
5) उसने प्रेम से प्रेरित हो कर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे। इस प्रकार उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार
6) अपने अनुग्रह की महिमा प्रकट की है। वह अनुग्रह हमें उसके प्रिय पुत्र द्वारा मिला है,
7) जो अपने रक्त द्वारा हमें मुक्ति अर्थात् अपराधों की क्षमा दिलाते हैं। यह ईश्वर की अपार कृपा का परिणाम है,
8) जिसके द्वारा वह हमें प्रज्ञा तथा बुद्धि प्रदान करता रहता है।
9 (9-10) उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार निश्चय किया था कि वह समय पूरा हो जाने पर स्वर्ग तथा पृथ्वी में जो कुछ है, वह सब मसीह के अधीन कर एकता में बाँध देगा। उसने अपने संकल्प का यह रहस्य हम पर प्रकट किया है।
47) धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुम नबियों के लिए मक़बरे बनवाते हो, जब कि तुम्हारे पूर्वजों ने उनकी हत्या की।
48) इस प्रकार तुम अपने पूर्वजों के कर्मों की गवाही देते हो और उन से सहमत भी हो, क्योंकि उन्होंने तो उनकी हत्या की और तुम उनके मक़बरे बनवाते हो।
49) ’’इसलिए ईश्वर की प्रज्ञा ने यह कहा-मैं उनके पास नबियों और प्रेरितों को भेजूँगा; वे उन में कितनों की हत्या करेंगे और कितनो पर अत्याचार करेंगे।
50) इसलिए संसार के आरम्भ से जितने नबियों का रक्त बहाया गया है-हाबिल के रक्त से ले कर ज़करियस के रक्त तक, जो वेदी और मन्दिरगर्भ के बीच मारा गया था-
51) उसका हिसाब इस पीढ़ी को चुकाना पड़ेगा। मैं तुम से कहता हूँ, उसका हिसाब इसी पीढ़ी को चुकाना पड़ेगा।
52) ’’शास्त्रियों, धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुमने ज्ञान की कुंजी ले ली। तुमने स्वयं प्रवेश नहीं किया और जो प्रवेश करना चाहते थे, उन्हें रोका।’’
53) जब ईसा उस घर से निकले, तो शास्त्री, और फ़रीसी बुरी तरह उनके पीछे पड़ गये और बहुत-सी बातों के सम्बन्ध में उन को छेड़ने लगे।
54) वे इस ताक में थे कि ईसा के किसी-न-किसी कथन में दोष निकाल लें।
आज का सुसमाचार- पाखंड के खतरों और हमारे विश्वास को प्रामाणिक रूप से जीने के महत्व के बारे में एक मजबूत अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। फरीसियों ने नबियों के लिए सुंदर मकबरें बनाने में बहुत प्रयास किया, लेकिन वे नबियों के संदेशों को सुनने और उनके अनुसार जीने में असफल रहे। वे बाहरी रूप से तो अच्छे दिखते थे, परन्तु उनका हृदय ईश्वर से दूर था।
हमें अपने जीवन में इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हम वास्तव में अपने विश्वास के अनुसार जी रहे हैं। क्या हम यह कहते हैं कि हम प्रेम, दया और न्याय में विश्वास करते हैं, लेकिन उन मान्यताओं के विपरीत कार्य करते हैं? क्या हम इस बात से अधिक चिंतित हैं कि हम दूसरों के सामने कैसे दिखते हैं बजाय इसके कि हम उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं? येसु हमें अपने हृदयों की जांच करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कहते हैं कि हमारे कार्य हमारी मान्यताओं या विश्वास के अनुरूप हों।
इसके साथ-साथ, येसु इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे फरीसी दूसरों को ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने से रोक रहे थे। यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा है। क्या हम इस तरह से जीवन जी रहे हैं जिससे हम दूसरों को ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता ढूंढने में मदद कर सकें, या क्या हम ऐसी बाधाएं पैदा कर रहे हैं जो लोगों को ईश्वर से दूर रख रही हैं? हम अपने व्यवहारों, करुणा की कमी या अपने निर्णयात्मक तरीकों से अनजाने में दूसरों को हतोत्साहित कर सकते हैं। इसके विपरीत, हमें अपने आस-पास के लोगों को ईश्वर का प्रेम और अनुग्रह पाने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए।
आइए आज हम अपने विश्वास में सच्चे होने के लिए प्रतिबद्ध हों। हम अपने दैनिक कार्यों में जिस पर विश्वास करते हैं, उसी अनुसार जीने का प्रयास करें, अपने आस-पास के सभी लोगों के प्रति प्रेम और करुणा दिखाएं। हमारा जीवन येसु के हृदय को प्रतिबिंबित करे जिससे सभी लोग ईश्वर के राज्य में आमंत्रित हो सकें न कि दूर होवें। जब हम अपने कार्यों को ईश्वर के सत्य के साथ जोड़ते हैं, तो हम न केवल स्वयं उनके करीब आते हैं, बल्कि हम दूसरों को भी उनके प्रेम और अनुग्रह का अनुभव करने में मदद करते हैं।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today’s passage serves as a strong reminder about the dangers of hypocrisy and the importance of living out our faith authentically. The Pharisees put a lot of effort into creating beautiful tombs for the prophets, but they failed to listen to the prophets’ messages and to live by them. They looked good on the outside, but their hearts were far from God.
In our own lives, we must reflect on whether we are truly living out our faith. Do we say we believe in love, kindness, and justice, yet act in ways that contradict those beliefs? Are we more concerned about how we appear to others than about how we treat them? Jesus calls us to examine our hearts and ensure that our actions align with our beliefs.
Additionally, Jesus highlights how the Pharisees were blocking others from entering the Kingdom of God. This is a critical lesson for us. Are we living in such a way that we help others find their way to God, or do we create barriers that keep people away? We might unintentionally discourage others by our attitudes, our lack of compassion, or our judgmental ways. Instead, we should strive to encourage those around us to seek God’s love and grace.
Today, let us commit to being genuine in our faith. Let’s strive to live out what we believe in our daily actions, showing love and compassion to everyone around us. May our lives reflect the heart of Jesus, inviting others into His Kingdom rather than turning them away. When we align our actions with God’s truth, we not only grow closer to Him ourselves, but we also help others experience His love and grace.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
प्रभु अपने लोगों की भलाई के लिए नबियों को समय-समय पर भेजता रहता है। वे हमारे बीच ईश्वर का सन्देश लेकर आते हैं, पश्चाताप और ईश्वर की ओर वापस लौटने का सन्देश। लेकिन कुछ बुरे लोग ईश्वर के उन संदेशवाहकों की बातें सुनने और मन परिवर्तन के बदले उन पर अत्याचार करते थे और उन्हें मार डालते थे। आज भी यह क्रम निरंतर जारी है। आज प्रभु येसु हमें याद दिलाते हैं कि नबियों और ईश्वर के संदेशवाहकों का त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। वह फल लाएगा और जो लोग उन्हें सताते हैं और उन पर अत्याचार करते हैं, उन्हें दण्ड मिलेगा। और जो लोग प्रभु के कारण अत्याचार सहते हैं, उन्हें प्रभु सम्मानित करेगा।
ईश्वर भले लोगों को उनके अत्याचार सहने के लिए पुरस्कार क्यों देगा? आज के पहले पाठ में सन्त पौलुस हमें याद दिलाते हैं, कि संसार के प्रारम्भ से ईश्वर ने अपनी संतति बनने के लिए चुन लिया था। प्रभु येसु द्वारा पिता ईश्वर ने हमारे पाप क्षमा किए और हमें अपने पुत्र-पुत्रियों के रूप में अपनाया है। इसके बदले में हमें ईश्वर की भलाई और उदारता की घोषणा करनी है, इसके लिए चाहे हमें कितने ही कष्ट क्यों ना उठाने पड़ें। ईश्वर इसके लिए हमें शक्ति दे।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
God sends prophets and apostles for the good of the people. They come with the message of God, a message for repentance and returning to God. But some wicked people persecuted and killed them instead of listening to them and converting themselves. The same thing continues even today. Today Jesus reminds us that the sacrifices of the prophets and apostles and their shedding of blood will not go in vain. The evil people who persecute and kill will be held accountable and be punished. On the other hand those who suffer, will be rewarded amply.
Why would God reward the good people who suffer? St. Paul in today’s first reading reminds us that we have been chosen before the foundations of the world, to be God’s children. We are abundantly blessed with spiritual blessings of every kind. Through Jesus Christ we are privileged to receive redemption and forgiveness of our sins. In return, we have to proclaim God’s generosity and goodness towards us, even if we have to suffer in order to make it known to world. May God give us strength.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
आज का पहला पाठ जो एफिसियों नाम संत पौलुस का पत्र से लिया गया है, हमारे प्रति ईश्वर की प्रेममय एवं शाश्वत योजना को दर्शाती है। ईश्वर ने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं। उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम लोगों को चुना,जिससे हम मसीह से संयुक्त हो कर उसकी दृष्टी में पवित्र तथा निष्कलंक बनें।
उनके प्रेम में बने रहने के लिए ईश्वर ने नबियों और अन्य दूतों को समय समय पर भेजा कि हम उनकी योजना को जानें और उनके प्रेम में बने रहें। परंतु लोगों ने उनकी बातों को सुनने से इनकार कर दिया, उन्हें मार डाला। फरिसि और शास्त्री लोग, ईश्वर की योजना और प्रेम की जानकारी रखते हुए, न स्वयं उनके अनुसार जीते थे न दूसरों जीने देते थे। इस बात के लिए येसु फरीसियों और शास्त्रियों की निंदा करता था।
परमेश्वर अपने दूतों और संतों के माध्यम से अपनी कलीसिया को शिक्षा देना और मार्गदर्शन करना जारी रखता है। आज कालिया एक ऐसे महान संत का, अविला की संत तेरेसा, का त्यौहार मानती है। संत तेरेसा कुंवारी और कलीसिया की एक धर्माचार्या के रूप में जानी जाती है। ईश्वर ने संत तेरेसा को चुना और उसे आध्यात्मिक अनुभवों से संपन्न किया।उन्हें ईश्वर ने अपने जीवन, लेखन और शिक्षा द्वारा कलीसिया का नवनीकरण का एक सशक्त साधन बनाया।
आज के दिन हम संत तेरेसा एक के एक उद्धरण को याद करें जिसके द्वारा उनका आध्यात्मिक अनुभव और शिक्षा को हम समझ सकें: “मसीह के पास अब कोई शरीर नहीं है, लेकिन तुम्हारा है। न हाथ, न धरती पर पैर, बल्कि तुम्हारा। आपकी आंखें हैं जिनके माध्यम से मसीह दुनिया में दया की भावना रखते हैं। आपके पैर ऐसे हैं जिनके साथ मसीह अच्छाई करने के लिए चलता है। तुम्हारा वह हाथ है जिसके साथ मसीह दुनिया को आशीर्वाद देता है।“
हम भी संत तेरेसा के समान ईश्वर के सामने पवित्र और निष्कलंक बने रहने केलिए बुलाये गए हैं। यह बुलाहट कुछ लोगों के लिए सीमित नहीं है; हम सभी पवित्रता के लिए बुलाये गए हैं। आइए हम प्रार्थना करें कि हम उस महान बुलाहट को पहचान सकें, जिसे ईश्वर ने हमें अपने प्रेम में बुलाया है और दूसरों को भी ईश्वर के प्रेम का अनुभव करने में मदद कर सकें।
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
The first reading from the letter to the Ephesians shows God’s eternal plan of love for us. God has blessed us in Christ with every spiritual blessing in the heavenly places. Before the foundation of the world, God chose us in Christ, to be holy and spotless, to live through love in his presence.
God sent us his prophets and apostles from time to time to reveal this love of God and his plan and to help us to remain in his love. People refused to listen to them and persecuted and killed them. The Pharisees and the lawyers, entrusted with the knowledge, neither entered themselves nor allowed others to enter. This is the condemnation that Jesus has for Pharisees and lawyers.
God continues to teach and guide the church through his messenger and holy souls. Today the church celebrates the feast of one such great saint, St. Teresa of Jesus (Avila), virgin and Doctor of the Church. God chose her and endowed her with intimate spiritual experiences. God made her an instrument of renewal within the Church by her life, writings and teachings.
Today let us remember a quote from St. Teresa which helps us to understand her spiritual experience and teaching: “Christ has no body now, but yours. No hands, no feet on earth, but yours. Yours are the eyes through which Christ looks compassion into the world. Yours are the feet with which Christ walks to do good. Yours are the hands with which Christ blesses the world.”
Like St. Teresa, we too are called to be holy and blameless in God’s presence. The call to holiness is not limited to some people; all are called to be holy. Let us pray that we may recognize the great vocation to which God has called us in his love and help others also to experience God’s love.
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)