1) मसीह ने स्वतन्त्र बने रहने के लिए ही हमें स्वतन्त्र बनाया, इसलिए आप लोग दृढ़ रहें और फिर दासता के जुए में नहीं जुतें।
2) मैं, पौलुस, आप लोगों से यह कहता हूँ- यदि आप ख़तना करायेंगे, तो आप को मसीह से कोई लाभ नहीं होगा।
3) मैं ,खतना कराने वाले हर एक व्यक्ति से फिर कहता हूँ कि उसे समस्त संहिता का पालन करना है।
4) यदि आप अपनी धार्मिकता के लिए संहिता पर निर्भर रहना चाहते हैं, तो आपने मसीह से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया और ईश्वर की कृपा को खो दिया है।
5) हम तो उस धार्मिकता की तीव्र अभिलाषा करते हैं; जो विश्वास पर आधारित हैं और आत्मा द्वारा प्राप्त होती है।
6) यदि हम ईसा मसीह से संयुक्त हैं तो न ख़तने का कोई महत्व है और न उसके अभाव का। महत्व विश्वास का है, जो प्रेम से अनुप्रेरित है।
37) ईसा के उपदेश के बाद किसी फ़रीसी ने उन से यह निवेदन किया कि आप मेरे यहाँ भोजन करें और वह उसके यहाँ जा कर भोजन करने बैठे।
38) फ़रीसी को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उन्होंने भोजन से पहले हाथ नहीं धोये।
39) प्रभु ने उस से कहा, ’’तुम फ़रीसी लोग प्याले और थाली को ऊपर से तो माँजते हो, परन्तु तुम भीतर लालच और दुष्टता से भरे हुए हो।
40) मूर्खों! जिसने बाहर बनाया, क्या उसी ने अन्दर नहीं बनाया?
41) जो अन्दर है, उस में से दान कर दो, और देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए शुद्ध हो जायेगा।
आज के सुसमाचार के माध्यम से, येसु आंतरिक रूप से परिवर्तन के लिए आह्वान करते हैं। वह फरीसियों से कहते है कि यदि जो अन्दर है, उस में से दान कर दो, और देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए शुद्ध हो जायेगा (लूकस 11ः41)। यह हमें सिखाता है कि सच्ची स्वच्छता और धार्मिकता प्रेम, करुणा और उदारता से भरे हृदय से आती है, न कि केवल बाहरी कार्यों से।
अपने स्वयं के जीवन में, हम कभी-कभी अपने आंतरिक मनोभाव और अभिप्रायांे की उपेक्षा करते हुए दिखावे पर ध्यान केंद्रित करने के जाल में फंस सकते हैं । येसु हमें अपने हृदयों और प्रेरणाओं की जाँच करने के लिए आमंत्रित करते हैं। क्या हम वास्तव में प्रेमपूर्ण और दयालु हैं, या हम केवल बेमन से उस कार्य को कर रहे हैं?
जब हम इस पाठ पर विचार कर रहे हैं, आइए हम विचार करें कि हमारे हृदयों की स्थिति क्या है? क्या हम आंतरिक परिवर्तन के बजाय बाहरी दिखावे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं? आइये हम यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारे कार्य हमारे भीतर मसीह के वास्तविक स्वरूप को दर्शाते हैं, हम अपने हृदयों को प्रेम और दया से भरकर स्वच्छ करने का प्रयास करें।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Through today’s Gospel passage Jesus calls for a transformation from the inside out. He tells the Pharisees that if they give what is inside to the poor, everything will be clean for them (Luke 11:41). This teaches us that true cleanliness and righteousness come from a heart filled with love, compassion, and generosity, not just from external actions.
In our own lives, we can sometimes fall into the trap of focusing on appearances while neglecting our inner attitudes and intentions. Jesus invites us to examine our hearts and motivations. Are we truly loving and kind, or are we just going through the motions?
As we reflect on this passage, let’s consider: What is the condition of our hearts? Are we focusing on outward appearances instead of inner transformation? May we strive to clean our hearts by filling them with love and kindness, ensuring that our actions reflect the true nature of Christ within us.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
प्रभु येसु हमें पाप की दासता से मुक्त करने के लिए आए थे। प्राचीन काल में ईश्वर द्वारा दिए हुए आज्ञाओं और नियमों को यहूदियों ने इतने अधिक नियमों में बदल दिया कि कई बार एक आम इंसान के लिए उन सारे नियमों का पालन करना बहुत मुश्किल हो गया था। जो भी उन नियमों का पालन नहीं करता वह मुक्ति के योग्य नहीं था, स्वर्ग नहीं जा सकता था। प्रभु येसु उन नियमों को मिटाने नहीं आए थे, और ना ही वह लोगों को उन नियमों के भार से बचाने आए थे, वे तो स्वर्ग की ओर एक नई राह दिखाने आए थे, पूर्ण स्वतंत्रता की राह, प्रेम की राह, क्षमा की राह।
यदि हमारे मन में दरिद्रों के लिए प्रेम नहीं है, और हम खुद को धार्मिक व्यक्ति मानते हैं, तो ऐसी धार्मिकता किस काम की? हम चाहे अपने धर्म के सारे नियम-क़ानूनों का पालन कर लें और स्वयं को दुनिया के सामने एक पवित्र और धर्मी व्यक्ति दिखाएँ, लेकिन हमारा मन नफ़रत से भरा है, लालच और अनेक बुराइयों से भरा है, तो ऐसे गन्दे मन वाला व्यक्ति धार्मिक कैसे कहला सकता है? आज प्रभु येसु हमें अपना हृदय और मन टटोलने का आह्वान करते हैं, और हमें चुनौती देते हैं, कि यदि धर्मी और पवित्र व्यक्ति बनना है तो हमें बाहरी शुद्धता से अधिक मन शुद्धता पर ध्यान देना है।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Jesus came to deliver us from the bondage of sin. In olden days Jews had multiplied the statutes given by God. The rules and religious regulations became so many in number that very often it became very difficult for common people to fulfil them all. Anybody who failed to keep the laws, they did not deserve to be saved. Jesus did not come to abolish, neither he was sent as an answer to their undue emphasis on the laws. He came to show another way to freedom, the way of love, the way of forgiveness.
If there is no love for the poor in our hearts but we claim to be a holy person, what is the use of being such self-righteous person? We may follow all the rules and regulations of our religion and pretend ourselves to be clean and blameless person, but from within we are filled with hatred, jealousy, greed etc, then how can a person with so filthy heart, be called a holy person? Today Jesus calls us to look within ourselves and be clean not only externally but more importantly internally.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
आज के सुसमाचार में हम यीशु को एक फरीसी के घर में पाते हैं, जिसने उन्हें अपने यहाँ भोजन के लिए आमंत्रित किया था। फरीसि लोग, जो अपने अनुष्ठानों पर बहुत ध्यान देते थे, येसु को भोजन से पहले बिना हाथ धोये देखकर आश्चर्यचकित थे। येसु यह मौका का उपयोग करते हुए बाहरी अनुष्ठानों पर जोर देने के बजाय आंतरिक शुद्धता के महत्व के बारे में सिखाने लगते है। येसु किसी भी तरह से बाहरी शुद्धता के महत्व से इनकार नहीं कर रहा था। यह कितनी मूर्खतापूर्ण बात होगी अगर कोई प्लेट के बाहर की सफाई जैसी बातों पर जोर दे, मगर अपने अंदर की गंदगी और जबरन वसूली जैसी मलिन बातों को देखने से इंकार कर दें? येसु इस गन्दगी और दुष्टता, जबरन वसूली, दूसरों के प्रति बुराई एवं अन्यापूर्ण कार्यों को दूर करने का एक मार्ग सुझाता है, वह है, दूसरों को भिक्षा देना, जो आत्मिक शुद्धिकरण का एक प्रभावशाली तरीका है। यही बात संत पौलुस आज का पहला पाठ में बताते है, " यदि हम इसा मसीह से संयुक्त हैं, तो न ख़तने का कोई महत्त्व है और न उसके आभाव का। महत्त्व विश्वास का है, जो प्रेम से अनुप्रेरित है।"
क्या आप बाहर और अन्दर दोनों तरह से शुद्ध हो? यह अच्छा है कि लोग चर्च में आने पर अपना टिप-टॉप दिखने का ध्यान रखते हैं। कितना बेहतर होगा अगर वे अपने भीतर के रूप-रंग पर ध्यान दें - पवित्र वचनों को सुनकर, आवश्कतानुसार पश्चाताप कर के, दूसरों के साथ सामंजस्य स्थापित करके, अपनी दुष्ट और अन्यायपूर्ण तरीकों को छोड़कर, उदारतापूर्वक पड़ोसी की मदद करके। अपने सर्वश्रेष्ठ बाहरी रूप को देखो और अपने भीतर की अवस्था को भी! प्रार्थना कीजिये कि पवित्र वचनों के सहारे अपने आतंरिक स्वस्छता के लिए हमें मदद मिले !
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
In today’s gospel we find Jesus in the house of a Pharisee who invited him to dine at his house. Pharisees, who paid great attention to rituals was surprised that Jesus had not washed the hands before the meals. This was occasion for Jesus to teach about the importance of inner purity rather than just emphasizing on external rituals. Jesus was in no way denying the importance of external signs. How foolish it is to clean the outside of the cup and plate but refuse to see the dirt, like wickedness and extortion, inside? Jesus proposes a way to clean the wickedness and extortion, the evil and unjust actions towards others. That is to give alms, as a way of purification. This is what St. Paul refers to in the first reading, “Whether you are circumcised or not makes no difference – what matters is faith that makes its power felt through love”.
Are you a clean person - both outside and inside? It is good that people take care to look their best when they come to the church. How much better it would be if they were to take care of their inner looks – by listening to the word, repenting where needed, reconciling with others, giving up wicked and unjust ways, helping the neighbour in generosity,… Look at your best self and then look at your inner self! Let the word of God help you to cleanse your inside!
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)