22) उस में लिखा है कि इब्राहीम के दो पुत्र थे - एक दासी से और एक स्वतन्त्र पत्नी से।
23) दासी के पुत्र का जन्म प्रकृति के अनुसार हुआ, किन्तु स्वतन्त्र पत्नी के पुत्र का जन्म प्रतिज्ञा के अनुसार।
24) इन बातों का एक लाक्षणिक अर्थ है। वे दो स्त्रियाँ दो विधानों की प्रतीक हैं। एक अर्थात् सीनई पर्वत का विधान दासता के लिए सन्तति उत्पन्न करता है - यह हागार है,
26) किन्तु दिव्य येरुसालेम स्वतन्त्र है। वही हमारी माता है;
27) क्योंकि लिखा है - वन्ध्या! तुमने कभी पुत्र नहीं जना, अब आनन्द मनाओ। तुमने प्रसव-पीड़ा का अनुभव नहीं किया, उल्लास के गीत गाओ; क्योंकि विवाहिता की अपेक्षा परित्यक्ता के अधिक पुत्र होंगे।
31) इसलिए भाइयो! हम दासी की नहीं, बल्कि स्वतन्त्र पत्नी की सन्तति हैं।
1) मसीह ने स्वतन्त्र बने रहने के लिए ही हमें स्वतन्त्र बनाया, इसलिए आप लोग दृढ़ रहें और फिर दासता के जुए में नहीं जुतें।
29) भीड़-की-भीड़ उनके चारों ओर उमड़ रही थी और वे कहने लगे, ’’यह एक विधर्मी पीढ़ी है। यह एक चिन्ह माँगती है, परन्तु नबी योनस के चिन्ह को छोड़ इसे और कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगा।
30) जिस प्रकार योनस निनिवे-निवासियों के लिए एक चिन्ह बन गया था, उसी प्रकार मानव पुत्र भी इस पीढ़ी के लिए एक चिन्ह बन जायेगा।
31) न्याय के दिन दक्षिण की रानी इस पीढ़ी के लोगों के साथ जी उठेगी और इन्हें दोषी ठहरायेगी, क्योंकि वह सुलेमान की प्रज्ञा सुनने के लिए पृथ्वी के सीमान्तों से आयी थी, और देखो-यहाँ वह है, जो सुलेमान से भी महान् है!
32) न्याय के दिन निनिवे के लोग इस पीढ़ी के साथ जी उठेंगे और इसे दोषी ठहरायेंगे, क्योंकि उन्होंने योनस का उपदेश सुन कर पश्चात्ताप किया था, और देखो-यहाँ वह है, जो योनस से भी महान् है!
आज के सुसमाचार में, येसु उन भीड़ से बात करते हैं जो उनसे संकेत मांग रहे हैं। वे कहते है, ‘‘यह पीढ़ी एक चिन्ह माँगती है, परन्तु नबी योनस के चिन्ह को छोड़ इसे और कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगाश् (लूकस 11ः29)। येसु योनस की कहानी का उल्लेख करते हैं, जिसने निनिवे के लोगों को पश्चाताप का उपदेश देने से पहले एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन बिताए थे।
येसु समझाते हैं कि जैसे योनस निनिवे के लोगों के लिए एक चिन्ह था, वैसे ही वे इस पीढ़ी के लिए एक चिन्ह होंगे। वे इस बात पर जोर देते हैं कि निनिवे के लोगों ने योनस के संदेश पर पश्चाताप किया, जबकि कई लोग जो येसु और उनके चमत्कारों को देखते हैं, परंतु अभी भी वे उन पर विश्वास करने से इनकार करते हैं। वे दक्षिण की रानी जिसने सुलेमान का ज्ञान सुनने के लिए लंबी दूरी तय की थी, का भी उल्लेख करते है, और कहते है कि वह रानी न्याय के समय उन लोगों के विरुद्ध उठेगी जो उसे नहीं पहचानते (लूकस 11ः31-32)।
यह पाठ हमें विश्वास के महत्व के बारे में शिक्षा देता है। लोग येसु पर विश्वास करने के लिए चमत्कारी संकेतों की तलाश में थे, लेकिन उन्होंने बताया कि उनके पास पहले से ही वह सब कुछ है जो उन्हें चाहिए। कभी-कभी हम भी ईश्वर पर भरोसा करने से पहले अपने जीवन में संकेत या पुष्टि की तलाश करते हैं। परंतु येसु हमें केवल संकेतों या चिन्ह पर निर्भर रहने के बजाय उनके वचनों और कार्यों के आधार पर विश्वास रखने के लिए कहते हैं।
जब हम इस सुसमाचार पर विचार करते हैं, आइए हम अपने आप से पूछें कि क्या हम चिन्ह की तलाश कर रहे हैं, या हम येसु और उनके संदेश पर भरोसा करने के लिए तैयार हैं? हम उनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए अपने दिल खोलें, और विश्वास और पश्चाताप के साथ जवाब देने के लिए तैयार रहें, जैसा कि निनिवे के लोगों ने किया था।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
In today’s Gospel from Luke 11:29-32, Jesus speaks to the crowds who are seeking a sign from Him. He says, “This generation asks for a sign, but none will be given it except the sign of Jonah” (Luke 11:29). Jesus refers to the story of Jonah, who spent three days in the belly of a great fish before preaching repentance to the people of Nineveh.
Jesus explains that just as Jonah was a sign to the Ninevites, He will be a sign to this generation. He emphasizes that the people of Nineveh repented at Jonah’s message, while many who see Jesus and His miracles still refuse to believe. He further mentions the Queen of the South, who traveled a long distance to hear the wisdom of Solomon, and says that she will rise up at the judgment against those who do not recognize Him (Luke 11:31-32).
This passage teaches us about the importance of faith. The people were looking for miraculous signs to believe in Jesus, but He points out that they already have everything they need in Him. Sometimes we may also look for signs or confirmations in our lives before we choose to trust God. Yet, Jesus calls us to have faith based on His words and actions rather than relying solely on signs.
As we reflect on this Gospel, let’s ask ourselves: Are we seeking signs, or are we ready to trust in Jesus and His message? May we open our hearts to His wisdom and guidance, and be willing to respond with faith and repentance, just as the people of Nineveh did.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
इसराएल प्रभु द्वारा विशेष रूप से चुनी हुई प्रजा थी, इसलिए प्रभु उसे बहुत प्यार करते थे। साथ ही प्रभु सिर्फ़ इसराएल के ही नहीं बल्कि सारी सृष्टि के प्रभु हैं। लेकिन प्रभु की चुनी हुई प्रजा में कुछ लोगों ने प्रभु द्वारा चुने जाने का महत्व नहीं समझा और प्रभु से दूर हो गए पाप के दलदल में फँस गए। आज सन्त पौलुस हमें याद दिलाते हैं कि हम मुक्ति की सन्तान हैं; ईश्वर के पुत्र-पुत्रियाँ हैं। यदि हम पाप के दास बने रहेंगे तो ईश्वर की सन्तान कैसे बने रह सकते हैं? जो प्रभु द्वारा विशेष रूप से नहीं चुने गए हैं, वे ही इस महान वरदान का महत्व समझते हैं।
नबी योनस का उदाहरण हमें यह समझाता है कि प्रभु न केवल अपनी चुनी हुई प्रजा के प्रति उदार व दयालु है, बल्कि जो भी अपने पापों को त्यागकर प्रभु की ओर मुड़ता है, प्रभु उन्हें प्यार करता है। प्रभु येसु अपने समय की विधर्मी पीढ़ी को धिक्कारते हैं क्योंकि उन्होंने प्रभु द्वारा चुने हुए लोग होने के सौभाग्य को नहीं पहचाना बल्कि प्रभु येसु को अस्वीकार कर पापमय जीवन को अपनाया। शीबा की महारानी और निनेवेह के लोग भी इस विधर्मी पीढ़ी को धिक्कारेंगे क्योंकि इस पीढ़ी ने प्रभु दयालुता एवं प्रेम को नहीं पहचाना।क्या हम प्रभु की विशेष प्रजा होने पर गौरव करते हैं?
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Israel was specially chosen by God and therefore God had special concern for his chosen people. At the same time he is God of whole universe and all belong to him. But some of God’s chosen people took this special privilege lightly and chose to remain in sin. Therefore today Saint Paul reminds us that we are free children of God. If we remain slaves of sin, how can we be called children of freedom and children of God? Those who are not specially chosen they realise the value of this privilege of being specially loved.
The example of Jonah reminds us that God is kind and merciful not only towards his especially chosen people but also for all those who repent and accept God's sovereignty. Jesus condemns the generation of his time because they did not realise that they were God’s chosen people and God sent his only son to call them back to himself and free them from the slavery of sin. The Queen of the South and the people of Nineveh will be greatest witnesses of God's universal love and mercy, and those who reject that love and mercy, will be condemned.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
तीन दिन पहले हमने सुसमाचार सुना था जहाँ कुछ लोगों ने येसु पर अपदूतों के नायक बेलज़ेबुल के माध्यम से शैतानों को निकालने का आरोप लगाया था। उन्होंने न केवल येसु में पवित्र आत्मा की शक्ति को ना पहचाना बल्कि उन्होंने उसके कामों में शैतान का हाथ देखा। आज के सुसमाचार में हम देखते है की लोग येसु से एक चिन्ह की मांग करते हैं जिसके द्वारा यह साबित कर सके कि येसु ईश्वर का पुत्र है। येसु का कहना है कि इस दुष्ट पीढ़ी को जो एकमात्र चिन्ह दिया जायेगा वह योना का चिन्ह है। जैसे योना निनिवे के लोगों के लिए एक चिन्ह बन गया था, वैसे मानव पुत्र इस पीढ़ी के लिए होगा। ईश्वर ने योना को निनिवे के लोगों के पास इसलिए भेजा की वे पश्चाताप करे, और वहां के लोगों ने उसके उपदेश पर पश्चाताप किया। येसु योना से बड़ा है फिर भी लोग उस पर विश्वास करने से इनकार करते हैं!
ऐसे कई तरीके हैं जिनसे लोग ईश्वर के वचन का विरोध और अस्वीकार करते हैं। ईश्वर के वचन को न सुनने का लोगों के कई कारण हैं। जैसा कि हम योहन 3:19 में पढ़ते हैं, “दंडाज्ञा का कारण यह है कि ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अंधकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कर्म बुरे थे।” ईश्वर ने हमें मुक्त होने के लिए बुलाया है परंतु कई ऐसी चीजें हैं जो हमें गुलाम बनाए रखती हैं।
ईश्वर का वचन बुराई से दूर रहने और ईश्वर की ओर मुड़ने का निमंत्रण है। क्या आपको परमेश्वर के वचन के प्रति अरुचि है? अपने भीतर देखें कि ईश-वचन को सुनने और येसु के निकट आने से आपको क्या रोक रहा है।
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
Three days ago we heard the gospel passage where some people accused Jesus of casting out devils through Beelzebul, the prince of devils. They not only did not recognize the Holy Spirit at work in Jesus but attributed it to the counter spirit! In today’s gospel we find the people ask for a sign, to prove that Jesus is the Son of God. Jesus says that the only sign that will be given to this wicked generation is the sign of Jonah. As Jonah became a sign to the people of Nineveh, so the Son of Man will be to this generation. God sent Jonah to preach repentance to the people of Nineveh and they repented at his preaching. Here is Jesus, greater than Jonah, and the people are refusing to believe in him.
There are many ways in which people resist and reject the word of God. And there are many reasons why people do not want to listen to God and his word. As we read in John 3:19, “And this is the judgement, that the light has come into the world, and men loved darkness rather than light, because their deeds were evil”. God has called us to be free. But there are many things that keep us slaves.
God’s word is an invitation to turn away from evil and turn towards God. Do you have dislike for the word of God? Look within to see what is preventing you from listening to the word of God and coming near to Jesus.
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)