7) मैंने प्रार्थना की और मुझे विवेक मिला। मैंने विनती की और मुझ पर प्रज्ञा का आत्मा उतरा।
8) मैंने उसे राजदण्ड और सिंहासन से ज्यादा पसन्द किया और उसकी तुलना में धन-दौलत को कुछ नहीं समझा।
9) मैंने उसकी तुलना अमूल्य रत्न से भी नहीं करना चाहा; क्योंकि उसके सामने पृथ्वी का समस्त सोना मुट्ठी भर बालू के सदृश है और उसके सामने चाँदी कीच ही समझी जायेगी।
10) मैंने उसे स्वास्थ्य और सौन्दर्य से अधिक प्यार किया और उसे अपनी ज्योति बनाने का निश्चय किया; क्योंकि उसकी दीप्ति कभी नहीं बुझती।
11) मुझे उसके साथ-साथ सब उत्तम वस्तुएँ मिल गयी और उसके हाथों से अपार धन-सम्पत्ति।
12) क्योंकि ईश्वर का वचन जीवन्त, सशक्त और किसी भी दुधारी तलवार से तेज है। वह हमारी आत्मा के अन्तरतम तक पहुँचता और हमारे मन के भावों तथा विचारों को प्रकट कर देता है। ईश्वर से कुछ भी छिपा नहीं है।
13) उसी आँखों के सामने सब कुछ निरावरण और खुला है। हमें उसे लेखा देना पड़ेगा।
17) ईसा किसी दिन प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, ’’भले गुरु! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’
18) ईसा ने उस से कहा, ’’मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ कोई भला नहीं।
19) तुम आज्ञाओं को जानते हो, हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता-पिता का आदर करो।’’
20) उसने उत्तर दिया, ’’गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ’’।
21) ईसा ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उस से कहा, ’’तुम में एक बात की कमी है। जाओ, अपना सब कुछ बेच कर ग़रीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।“
22) यह सुनकर उसका चेहरा उतर गया और वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
23) ईसा ने चारों और दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, ’’धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!
24) शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। ईसा ने उन से फिर कहा, ’’बच्चों! ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!
25) सूई के नाके से हो कर ऊँट निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश़्ा करना कठिन है?’’
26) शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक दूसरे से बोले, ’’तो फिर कौन बच सकता है?’’
27) उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए ईसा ने कहा, ’’मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, ईश्वर के लिए नहीं; क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है’’।
28) तब पेत्रुस ने यह कहा, ’’देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं।’’
29) ईसा ने कहा, ’’मैं तुम से यह कहता हूँ- ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो
30) और जो अब, इस लोक में, सौ गुना न पाये- घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ-ही-साथ अत्याचार और परलोक में अनन्त जीवन।
आज का सुसमाचार हमें यह सोचने के लिए चुनौती देता है कि वह कौन सी चीज है जो हमें येसु का पूरी तरह से अनुसरण करने से रोक रही है। धनी व्यक्ति ने सभी आज्ञाओं का पालन किया, लेकिन अपने धन के प्रति उसके लगाव ने उसे अपना पूरा दिल ईश्वर को देने से रोक दिया। येसु यह नहीं कह रहे हैं कि धन अपने आप में बुरा है, परंतु यह कह रहें है कि वह कोई भी चीज़ हो - चाहे वह पैसा हो, संपत्ति हो, या अन्य प्राथमिकताएँ - जो हमारे और ईश्वर के बीच खड़ी हैं, हमें उनके राज्य में पूरी तरह से प्रवेश करने से रोक सकती हैं।
येसु हमें ऐसी किसी भी चीज को त्यागने के लिए आमंत्रित करते हैं जो हमें उन पर पूरी तरह भरोसा करने और उनका अनुसरण करने से रोकती है। इसका हमेशा यह मतलब नहीं है कि हमें अपनी सारी संपत्ति बेचने की जरूरत है, बल्कि इसका मतलब यह है कि हमें अपने दिलों की जांच करनी चाहिए कि हम किन चिज़ो पर आश्रित हैं जो हमें ईश्वर से पूरी तरह प्रेम करने और दूसरों की सेवा करने से रोक रही है।
जब हम आज के वचनों पर विचार करते हैं, आइए हम अपने आप से पूछें कि हम ऐसी क्या चीज़ को पकड़े हुए हैं जो हमें येसु का पूरी तरह से अनुसरण करने से रोक रहा है? हममें उन चीज़ों को जाने देने और ईश्वर पर भरोसा करने का साहस हो, यह जानते हुए कि जब हम ऐसा करते हैं, तो हमें शाश्वत जीवन का सच्चा खजाना प्राप्त होता है।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today’s Gospel passage challenges us to think about what might be holding us back from fully following Jesus. The rich man kept the commandments, but his attachment to his wealth prevented him from giving his whole heart to God. Jesus is not saying that wealth itself is bad, but that anything—whether it is money, possessions, or other priorities—that stands between us and God can prevent us from fully entering His kingdom.
Jesus invites us to let go of anything that keeps us from trusting and following Him completely. This doesn’t always mean we need to sell all our possessions, but it does mean we should examine our hearts. What do we hold on to that might be keeping us from fully loving God and serving others?
As we reflect on this passage, let’s ask ourselves: What are we holding on to that might be keeping us from fully following Jesus? May we have the courage to let go and trust God, knowing that when we do, we receive the true treasure of eternal life.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
धनी होना कोई पाप नहीं है। एक धनवान युवक येसु के पास आया और पूछा, "अनन्त जीवन पाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए।" यह देखकर बहुत खुशी हुई कि एक धनी, युवा और सफल व्यक्ति आध्यात्मिक मामलों में दिलचस्पी रखता है। आम तौर पर उनकी उम्र के लोग जिंदगी के रोमांच को दूसरी चीजों में ढूंढते हैं। लेकिन यह आदमी वास्तव में भला प्रतीत होता है। वह गंभीर था और उसने येसु का अनुसरण किया है और यही कारण है कि वह इतना गंभीर प्रश्न लेकर उसके पास आया है। इसके अलावा, येसु के बारे में उसकी समझ भी काफी अधिक है। फरीसियों और अन्य कुलीन वर्ग के विपरीत जो मानसिक रूप से आलोचनात्मक थे, इस युवक ने येसु का आदर करते हुये उन्हें 'भला गुरु' कहा। इन सबसे ऊपर, उसने प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की, जब येसु ने उसे सन्हिता का पालन करने के लिए कहा, तो उसने उत्तर दिया कि वह बचपन से ही ऐसा करता रहा है। ईश्वर के कार्यों में इतनी गहराई तक जाने के बाद भी वह अंतिम परीक्षा में असफल रहा क्योंकि वह उस बात को पूरा नहीं कर सका जो प्रभु ने उसे करने के लिए कही थी। वह अपनी संपत्ति से दूर नहीं हो सका। वह अत्याधिक अधिकारों का व्यक्ति था। उसका अपने प्रति और स्वामित्व का मोह होना स्वाभाविक था।
समस्या तब उत्पन्न होती है जब वह ईश्वर के साथ और अधिक निकट होने का स्वप्न देखने लगता है। ईश्वर के करीब होने के लिए कुछ मांगें शामिल होंगी जिन्हें वह पूरा करने के लिए तैयार नहीं था। हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि निश्चित रूप से उसके दिल में ईश्वर की सेवा करने की इच्छा थी, लेकिन 'नियम और शर्तें’ लागू खंड के साथ। वह लाभप्रद स्थिति से परमेश्वर की सेवा करना चहाता था। अपने साथ धन, संपत्ति, परिवार और दोस्तों के साथ, वह अनन्त जीवन के लिए काम करना चहेगा।
अमीर आदमी की दुखद कहानी उन सभी के लिए आईना रही है जो खुद को और अपनी संपत्ति को ईश्वर से ज्यादा प्यार करते हैं। वास्तव में, वे सभी इस बात को भूल जाते हैं कि धनऔर महिमा ईश्वर की ओर से आती है। और अगर वे ईश्वर के साथ हमारे रिश्ते में बाधा बन जाते हैं तो हमें एक अच्छा संतुलन बनाना चाहिए और ईश्वर को अपने जीवन की प्राथमिकता बनाना चाहिए।
जब ईश्वर ने इब्राहीम को बुलाया, तो उसने उसे महान प्रतिज्ञाओं के भंडार के साथ बुलाया। वह राष्ट्रों का पिता होगा और उसके पास एक अचल भूमि होगी जो ईश्वर उसे देगा। उनकी संतान अपार और अपार धन्य होगी। फिर भी, अब्राहम को सब कुछ पीछे छोड़कर ईश्वर के पीछे चलना पड़ा। ईश्वर के साथ नए रिश्ते के लिए अपने पास जो कुछ भी था उसे त्याग देना महत्वपूर्ण था। अय्यूब की धार्मिकता को साबित करने के लिए, अय्यूब के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह हर उस चीज़ से वंचित हो जाए जो उसके पास थी और जिसे वह प्यार करता था। उसे दिवालिया और बेघर कर दिया गया था। यहां तक कि इस प्रक्रिया में उनका स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ गया। परन्तु वह ईश्वर से लिपटा रहता है और सब कुछ छीन लिए जाने पर भी अपने आप को धर्मी ठहराता है।
जब एलियाह ने एलीशा को बुलाया, तब एलीशा बैलों के जोड़े से खेत जोतने में लगा था। उसने जानवरों को मार डाला, लकड़ी से उसने उसे पकाया किया और एलिय्याह का अनुसरण किया। यह प्रतीकात्मक रूप से एक शक्तिशाली प्रस्तुति थी कि किस तरह से व्यक्ति को अपने अतीत को पीछे छोड़कर प्रभु का अनुसरण करना चाहिए। एलीशा ने उसकी सारी संपत्ति को भी नष्ट कर दिया ताकि पुराने पेशे की ओर मुड़कर न देखा जाए।
चेलों ने सब कुछ पीछे छोड़ दिया और येसु के पीछे हो लिए। अमीर आदमी सुरक्षित और सुरक्षित रहने के लिए अपने धन पर निर्भर था। लेकिन यह ईश्वर है जो हमें सुरक्षा प्रदान करता है। येसु का यह कथन कि ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना, किसी धनी के स्वर्ग तक पहुँचने से आसान है।
प्रारंभिक कलीसियाई समुदाय उत्पीड़न के बावजूद सबसे अधिक संतुष्ट समुदाय थे। इसका कारण यह था कि उन्होंने सब कुछ बेच दिया और येसु-मार्ग का अनुसरण किया। जब तक हम सांसारिक चीजों को पकड़ कर रखते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे लिए एक दूर की वास्तविकता बने रहते है।
राजा साऊल उसी क्षेत्र में असफल रहा। उसे सब कुछ नष्ट करने के लिए कहा गया लेकिन वह अपने लिए सबसे अच्छे जानवर रखने के लालच का विरोध नहीं कर सका। आईये हम साह्स दिखाये और अपना सबकुछ ईश्वर का अनुसरण करने के लिये छोड दे।
✍फादर रोनाल्ड मेलकम वॉनBeing rich is not a sin. A rich young man came to Jesus and asked, “What must I do to have eternal life.” it was quite heartwarming to see that a rich, young, and successful person is interested in spiritual matters. Normally people of his age find the thrill of life in other things. But this man is really good stuff. He had been serious and has followed Jesus and that’s the reason he has come to him with such a serious question. Moreover, his understanding of Jesus is also reasonably high. Unlike the Pharisees and the other elite class who were manically critical. He was respectful of Jesus, he called him, ‘Good Master’. To top it all he passed the initial test, when Jesus asked him to keep the law he replied that he had been doing so from his childhood onwards. After having gone so deep with the works of God yet he failed the ultimate test as he could not fulfill what the Lord asked him to do. He could not do away with his property. He was a man of great possession. It was natural for him to have a belongingness and possessiveness towards it.
The problem arises when he begins to dream to be with God more closely. To be close to God would involve certain demands which he was not ready to fulfill. We can infer that he definitely had a heart and desire to serve God but with the ‘terms and conditions’ applied clause. He would serve God from an advantageous situation. With money, property, family, and friends on his side, he would work for eternal life.
The sad story of the rich man has been a mirror to all those who love themselves and their possession more than God. In fact, they forget all riches and glory comes from God. And if they become a hindrance in our relationship with God then we ought to strike a good balance and make God the priority of our life.
When God called Abraham, he called him with the stock of great promises. He was to be the father of the nations and possess a great land that God would give him. His progeny would be immense and immensely blessed. Nevertheless, Abraham had to leave everything behind and follow the Lord. Giving up everything he had was pivotal for the new venture with God. To prove Job’s righteousness, it was important for Job to be tested by extreme deprivation of everything he possessed and loved. He was rendered bankrupt and homeless. Even his health was jeopardized in the process. But he clings to God and proved himself righteous even when everything was taken away.
When Elijah called Elisha, Elisha was busy plowing the field with the pair of bulls. He killed the animals, with the wood of York he prepared and followed Elijah. It was symbolically a powerful presentation of the way one must leave behind his past and follow the Lord. Elisha even destroys all his possession so that there is no looking back to the old profession.
Disciples left everything behind and followed Jesus. The rich man depended on his riches to be safe and secure. But it is God who provides us security. Jesus’ statement that it is easier for the camel to pass through the eye of the needle than for a rich man to reach heaven.
The initial church communities were the most satisfied communities in spite of the persecution. The reason was they sold off everything and followed the Way. As long as we hold on to the earthly things God would always be a distant reality for us.
King Saul failed in the same area. He was asked to destroy everything but he could not resist the lure of keeping the best animals for himself. Come let us show courage and love God more than anything else.
✍ -Fr. Ronald Melcum Vaughan
ईश्वर ने हम मनुष्यों को अपने प्रतिरूप बनाया है और हमे स्वतंत्रता प्रदान की है जिससे हम बिना किसी बंधन, बिना किसी दबाव के, खुल के जी सके और अपने मन, विवेक और ज्ञान के अनुसार जीवन जी सकें और कार्य कर सकें। विधि-विवरण ग्रंथ 30:19 कहता है, ‘‘मैं आज तुम लोगों के विरुद्ध स्वर्ग और पृथ्वी को साक्षी बनाता हूँ - मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवित रह सकें।’’ हमारे समक्ष दोनो हैं जीवन और मृत्यु और हम किसे चुनते हैं यह हम प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है। आज का सुसमाचार हमें इसी चुनाव के विषय में बताता है।
आज के सुसमाचार में हम एक ऐसे व्यक्ति के विषय में जानते हैं जो कि एक गुणवत्ता भरा या उत्कृष्ट जीवन व्यतीत कर रहा था, परंतु उसे अनंत जीवन की आस थी। संत मत्ती के सुसमाचार में इस व्यक्ति को नवयुवक की सन्ज्ञा दी गई हैं जिसके पास आगे का पूरा जीवन हैं। उपदेशक ग्रंथ 12:1 कहता है, ‘‘अपनी जवानी के दिनों में अपने सृष्टिकर्ता को याद रखों’’। अक्सर हम देखते हैं कि मनुष्य ईश्वर की शरण उम्र ढलने पर या कुछ संकट आने पर जाता है परन्तु इस युवक के पास पूरी जिंदगी रहने के बावजूद भी वह प्रभु की शरण में जाने की सोचता है। संत लूकस का सुसमाचार इस व्यक्ति को कुलीन अर्थात् सुशील या उच्च वर्ग के व्यक्ति की संज्ञा देता है, इसका मतलब यह कि वह व्यक्ति अपने आचरण या अपने काबिलियत के कारण किसी उच्च पद में पद्स्थ था। यह व्यक्ति एक धनी व्यक्ति था। अक्सर लोग धन होने का गलत अर्थ निकालते हैं। धनी होना पाप या गलत नहीं। वचन हमें यह नहीं कहता कि धन सभी बुराईयो की जड़ है परंतु कहता है, ‘‘धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है।’’ (1 तिमथी 6:10)। यह व्यक्ति एक नैतिक जीवन जी रहा था, वह आज्ञाओं का पालन करता आ रहा था, जैसे हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, किसी को न ठगना, माता-पिता का आदर करना। यह बताता है कि उस मनुष्य का जीवन एक अच्छा जीवन था और उसके पास वह सब कुछ था जो कि एक साधारण मनुष्य इस जीवन में चाहता है, परंतु यह सब होने के बावजूद भी यह व्यक्ति कुछ कमी महसूस करता है। इसलिए वह येसु के पास अनंत जीवन, अनंत आनंद की तलाश में आता है। अक्सर हम देखते कि लोग अपना सारा समय, उम्र धन कमाने में लगा देते है और जब वे उसे प्राप्त कर लेते हैं तब भी उन्हें उनका जीवन खाली ही लगता है। यही उस धनी व्यक्ति के साथ भी हुआ। इसलिए व येसु के पास आता है।
संत योहन का सुसमाचार 3:16, ‘‘ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करें।’’ यह वचन बताता है कि ईश्वर के पुत्र में विश्वास करनें से हम अनंत जीवन प्राप्त कर सकते हैं केवल अच्छें कार्य या अच्छे बने रहकर ही नही। ‘‘ईश्वर ने अपने पुत्र द्वारा हमें अनन्त जीवन प्रदान किया है। जिसे पुत्र प्राप्त है, उसे वह जीवन प्राप्त है और जिसे पुत्र प्राप्त नहीं है, उसे जीवन प्राप्त नहीं (1 योहन 5:11)। ‘‘मैं तुम्हें अनंत जीवन प्रदान करता हूँ।’’(योहन 10:58)। ‘‘जो पुत्र में विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है’’(योहन 3:38)। ‘‘वे तुझे, एक ही सच्चे ईश्वर को और ईसा मसीह को, जिसे तूने भेजा है जान लें- यही अनन्त जीवन है’’(योहन 17:3)। ये सभी वचन बताते हैं कि प्रभु येसु ही अनंत जीवन है, जो अनंत जीवन प्रदान करतें है, जो उन पर विश्वास करता हैं, अनुसरण करता है उसे अनंत जीवन प्राप्त है।
उस धनी व्यक्ति को मालूम था कि येसु के द्वारा उसे अनंत जीवन प्राप्त हो सकता है, इसलिए वह दौड़कर येसु के पास आता है। प्रभु उस के मन के विचारो और कमी को समझ जाते है। इसलिए वह उन्हें सीधे रूप से नही कहते जैसे कि वह अक्सर कहते थे, ‘‘मेरे पीछे चले आओ’’ या ‘‘मेरा अनुसरण करों’’ परंतु प्रभु ने उस मनुष्य के मन को समझकर उससे कहा, ‘‘जाओ, अपना सब कुछ बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।’’
प्रभु उसके सामने अनंत जीवन पाने के लिए एक चुनाव रखते हैः धन या ईसा का अनुसरण। वह व्यक्ति ईसा का अनुसरण करना भी चाहता परंतु धन को छोड़ना भी नहीं चाहता था। परंतु वचन कहता है,‘‘कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन- दोनों की सेवा नहीं कर सकते।’’ (मत्ती 6:24)। उस व्यक्ति ने येसु को छोड़ धन का चुनाव किया और उदासीन होकर अनंत जीवन पाने का अवसर को खो दिया। क्योंकि धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है (1 तिमथी 6:10)। ईश्वर धन-सम्पत्ति, आलीशान घर, आधुनिक उपकरण होने के विरुद्ध नहीं अपितु उनके प्रति अत्याधिक लगाव और ईश्वर को छोड़ उन पर निर्भरता के विरुद्ध है। ईश्वर माता-पिता, भाई-बहनों के विरुद्ध में नहीं हैं परन्तु वे ईश्वर से परित्याग या विमुखता के विरुद्ध में है (मारकुस 10:29-30)।
येसु उसे ज्ञात कराना चाहते थे कि उसका मन बँटा हुआ है। वह अपने धन पर आश्रित है। येसु चाहते थे कि वह अपना जीवन ईश्वर को सम्पूर्ण रूप से अर्पित करें और ईश्वर पर आश्रित जीवन बितायें। परंतु उसने धन पर निर्भर होना स्वीकारा। अक्सर हम मनुष्य अपनी धन-सम्पत्ति, कला, ज्ञान, कौशल, बुद्धि, समझदारी पर ज्यादा निर्भर रहते है, जिस कारण हम ईश्वर को समय न देकर ईश्वर से दूर चले जाते है।
आज के सुसमाचार के विपरीत एक और उदाहरण है जो हमें ईश्वर की कृपा का वर्णन बताता है, और वह है विश्वास के पिता इब्राहीम का उदाहरण। हम जानते हैं कि इब्राहीम की कोई संतान नहीं थी। जब इब्राहीम की कोई संतान नहीं थी तो वह अधिकतर समय ईश्वर के साथ व्यतीत करता था- ईश्वर के साथ चलना, बाते करना आदि। परंतु जब उसे ईश्वर द्वारा एक पुत्र प्राप्त होता हैं तो वह उस पुत्र के प्रेम में मुग्ध हो जाता है और धीरे-धीरे वह ईश्वर को छोड़ अपने पुत्र के साथ ज्यादा समय बिताने लगता है। ईश्वर उसके ईश्वरीय प्रेम और विश्वास की परीक्षा लेने हेतु उसे अपने पुत्र की बलि चढ़ाने को कहते हैं। हम जान सकते हैं कि उस पिता की क्या मनोव्यथा रही होगी, जिसे बरसों बाद एक पुत्र प्राप्त हुआ परंतु उसे उसको त्यागना होगा। इस दुविधा भरे क्षण में वह अपने पुत्र को छोड़ ईश्वर की आज्ञा को चुनता है और वह इस चुनाव में ईश्वर को तो पाता ही है परंतु अपने पुत्र को भी पाता हैं।
अक्सर मनुष्य सोचता है कि अगर मैं ईश्वर का अनुसरण करुँगा या उसकी आज्ञाओं पर चलूँगा तो बहुत कुछ खोना पडे़गा परंतु वह यह नही समझता कि ईश्वर को पाने से वह सब कुछ को पा लेता है जैसे कि इब्राहीम ने पाया परंतु उस धनी व्यक्ति ने सब कुछ पाकर भी खो दिया। ‘‘जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।’’ (मत्ती 16:25) अर्थात् जो इस संसार में ईश्वर के लिए सबकुछ खो देता है वह असलियत में खोता नहीं परंतु उससे कही गुणा ज्यादा और कीमती चीज़ पाता है। ईसा ने कहा, ’’ मैं तुम से यह कहता हूँ- ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो और जो अब, इस लोक में, सौ गुना न पाये- घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ ही साथ अत्याचार और परलोक में अनन्त जीवन’’ (मारकुस 10:29-30)।
✍फ़ादर डॆनिस तिग्गा