22) परन्तु धर्मग्रन्थ ने सब कुछ पाप के अधीन कर दिया है, जिससे ईसा मसीह में विश्वास के द्वारा विश्वास करने वालों के लिए प्रतिज्ञा पूरी की जाये।
23) विश्वास के आगमन से पहले हम को उसके प्रकट होने के समय तक संहिता के निरीक्षण में बन्दी बना दिया गया था।
24) इस प्रकार जब तक मसीह नहीं आये और हम विश्वास के द्वारा धार्मिक नहीं बने, तब तक संहिता हमारी निरीक्षक रही।
25) किन्तु अब विश्वास आया है और हम निरीक्षक के अधीन नहीं रहे।
26) क्योंकि आप लोग सब-के-सब ईसा मसीह में विश्वास करने के कारण ईश्वर की सन्तति हैं;
27) क्योंकि जितने लोगों ने मसीह का बपतिस्मा ग्रहण किया, उन्होंने मसीह को धारण किया है।
28) अब न तो कोई यहूदी और न यूनानी, न तो कोई दास है और न स्वतन्त्र, न तो कोई पुरुष है और न स्त्री-आप सब ईसा मसीह में एक हो गये हैं।
29) यदि आप लोग मसीह के है, तो इब्राहीम की सन्तान है और प्रतिज्ञा के अनुसार उनके उत्तराधिकारी।
27) ईसा ये बातें कह ही रहे थे कि भीड़ में से कोई स्त्री उन्हें सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर में बोल उठी, ’’धन्य है वह गर्भ, जिसने आप को धारण किया और धन्य हैं वे स्तन, जिनका आपने पान किया है!
28) परन्तु ईसा ने कहा, ’’ठीक है; किन्तु वे कहीं अधिक धन्य हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं’’।
भीड़ में से उस स्त्री को जिसने यह पुकारा ‘‘धन्य है वह गर्भ, जिसने आप को धारण किया और धन्य हैं वे स्तन, जिनका आपने पान किया है’’ उसे उत्तर देते हुए, येसु अपनी माँ, मरियम को दिए गए सम्मान को खारिज नहीं कर रहे हैं। इसके बजाय, वह एक गहरे आशीष अर्थात् वह जो ईश्वर के वचन को सुनने और उसके अनुसार जीने से आता है - की ओर इशारा कर रहे है । मरियम स्वयं इसका एक आदर्श उदाहरण है, क्योंकि उन्होने ईश्वर का संदेश सुना और विश्वास से भरे हृदय से उनका पालन किया।
येसु हमें सिखाते हैं कि आशीष का सच्चा मार्ग ईश्वर के वचन का पालन करने में मिलता है। यह केवल धर्मग्रंथ सुनने या ईश्वर की शिक्षाओं को जानने के बारे में नहीं है, बल्कि उन वचनों को हमारे कार्यों और निर्णयों का मार्गदर्शन करने देने के बारे में है। ईश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही हमें उसके करीब लाती है और हमें एक धन्य जीवन की ओर ले जाती है।
जब हम इन वचनों पर विचार करते हैं, आइए हम अपने आप से पूछें कि क्या हम ईश्वर का वचन सुन रहे हैं और उसे अपने जीवन को आकार देने दे रहे हैं? क्या हम न केवल अपने दिल में बल्कि अपने कार्यों में भी उनकी शिक्षाओं का पालन कर रहे हैं? सच्चा आशीष ईश्वर की इच्छा का पालन करते हुए जीने से आता है, और यही वह बात है जो येसु हममें से प्रत्येक को करने के लिए कहते हैं।
आइए हम हर दिन ईश्वर की बात सुनें और उसका ईमानदारी से अनुसरण करें, यह जानते हुए कि यही सच्ची खुशी और आशीष का मार्ग है।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
While repling to the woman who calls out, “Blessed is the mother who gave you birth and nursed you,” Jesus is not dismissing the honor given to His mother, Mary. Instead, He is pointing to a deeper blessing—one that comes from hearing and living according to God’s Word. Mary herself is a perfect example of this, as she listened to God’s message and obeyed with a heart full of faith.
Jesus teaches us that the true path to blessing is found in following God’s Word. It’s not just about hearing Scripture or knowing God’s teachings, but about letting those words guide our actions and decisions. Obedience to God’s will is what brings us closer to Him and leads us to a blessed life.
As we reflect on this passage, let’s ask ourselves: Are we hearing God’s Word and letting it shape our lives? Are we following His teachings, not just in our hearts but also in our actions? True blessing comes from living in obedience to God’s will, and that’s what Jesus calls each of us to do.
May we seek to listen to God and follow Him faithfully each day, knowing that this is the way to true happiness and blessing.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक हम चारों ओर से तरह-तरह के सम्बंधों से घिरे रहते हैं। एक दिन ये सारे रिश्ते-नाते टूट जाएँगे, लेकिन ईश्वर से हमारा रिश्ता सबसे महत्वपूर्ण और सदा रहने वाला है। भीड़ में से जब एक स्त्री ने प्रभु येसु की माता मरियम को धन्य कहा क्योंकि इस महान पुत्र ने उसी धन्य माता से पोषण ग्रहण किया, उसी की उँगली पकड़कर चलना सीखा तो प्रभु येसु उसे बताते हैं कि धन्य हैं वे जो ईश्वर की इच्छा पूरी करते हैं, यानि कि ईश्वर से हमारा सम्बन्ध, इन पारिवारिक सम्बन्धों से बढ़कर है।
माता मरियम केवल इसीलिए धन्य नहीं कि वे प्रभु येसु की माँ बनीं उससे भी बढ़कर इसलिए कि उन्होंने अपने जीवन में ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए “हाँ” कहा। हमारे लिए यह सौभाग्य की बात है कि हम सब भी प्रभु येसु के इसी आध्यात्मिक परिवार के सदस्य हैं। यही बात सन्त पौलुस हमें आज के पहले पाठ में याद दिलाते हुए कहते हैं कि चाहे हम किसी भी राष्ट्र, या भाषा, या जाति के क्यों ना हों, प्रभु येसु ख्रिस्त में विश्वास के द्वारा हम एक ही परिवार के सदस्य बन गए हैं। इस परिवार में शामिल होने के कारण हम सौभाग्यशाली हैं, अतः हम उसी के अनुसार जीवन भी बिताएँ।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
From the very moment that we are born, we are surrounded by numerous relationships. One day these worldly relationships may end, but our relationship with God is the highest and never-ending relationship. When a woman from crowd considered Jesus’ mother as great because she gave birth to such a great son who received his nourishment from his mother, who learned to take his first steps, holding her hand. But Jesus corrects this woman in the crowd telling that our relationship with God is more important than our relationship with our earthly family members.
Mother Mary is not only blessed because she gave birth to Jesus, but on the first place she is blessed because she said “yes” to God’s will. The good news is that we all belong to this family of Jesus. That's what in the first reading of today St. Paul reminds us that whatever maybe our origin, whatever maybe our nationality, our language, we all have become one because of our faith in Jesus Christ. Through our Lord Jesus we are all privileged to belong to this one family and thus we are blessed abundantly.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
ईश्वर हमसे प्यार करता है। उसने हमें विश्वास के माध्यम से अपनी सन्तान होने का विशेषाधिकार दिया है। मसीह में बपतिस्मा लेने वाले सभी लोग उनमें एक हो गए हैं। इसलिए विश्वासियों की भाषा, संस्कृति, धन, शक्ति, आदि के आधार पर कोई अंतर और भेद-भाव नहीं हैं; हम सभी येसु मसीह में एक हैं।
आज के सुसमाचार में ईश्वर के प्रति यह उचित संबंध व्यक्त किया गया है। जब भीड़ में से एक महिला ने ऊँची आवाज में येसु से कहा, "धन्य है वह गर्भ, जिसने आपको धारण किया और धन्य हैं वे स्तन, जिनका आपने पान किया है,” येसु ने उसे उत्तर दिया, "ठीक है; किन्तु वे कहीं अधिक धन्य हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं।" येसु मसीह में विश्वास के माध्यम से हमें मुक्ति मिली है। पवित्र सुसमाचार द्वारा हमें विश्वास प्राप्त होता है। इसलिए ईश्वर के साथ हमारा संबन्ध किसी शारीरिक या पारिवारिक रिश्ते पर आधारित नहीं है, बल्कि ख्रीस्त में विश्वास पर आधारित है। इसलिए किसी को भी इस अनुग्रह के बाहर नहीं रखा गया है। वे सभी, जो येसु मसीह में विश्वास करते हैं और पवित्र आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर की संतान हैं।
आप किस बात पर गर्व करते हैं? ईश्वर के साथ आपका सम्बन्ध किस बात पर आधारित है? - विश्वास पर या किसी अन्य चीज़ पर - आपका स्थान या अधिकार पर, या कलीसिया के अधिकारीयों के साथ आपकी निकटता पर? क्या आप विभिन्न चीजों के आधार पर विश्वासियों के साथ भेद-भाव करते हैं? क्या आप नहीं जानते हैं कि येसु मसीह में विश्वास करने वाले सभी लोग बिना किसी भेद-भाव के ईश्वर की संतान हैं? आइए हम सभी विश्वासियों को अपने भाई-बहन जैसे स्वीकार करने और उन्हें प्यार करने का अनुग्रह के लिए प्रार्थना करें।
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
We are all children of God thorough faith. For all those baptized in Christ, there are no more distinctions; all of us are one in Christ Jesus.
This proper relation to God is expressed in today’s gospel. When a woman in the crowd raised her voice and said to Jesus, “Happy the womb that bore you and the breasts that you sucked”, Jesus replied, “Still happier are those who hear the word of God and keep it.” We are saved through faith in Jesus Christ. Faith comes from believing in the gospel. So our relationship with God is not based on any physical or family relationship but rather on faith in Jesus. So no one is excluded. All those who believe in Jesus and are led by the Spirit of God are children of God.
In what do you glory? Is your relationship to God based on faith or on something else, like your position or proximity to those in authority in the Church? Do you make distinctions between believers based on different grounds? Know that all those who believe in Jesus are children of God without any distinctions. Let us pray for the grace to accept and love all our brothers and sisters in faith.
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)