6) मुझे आश्चर्य होता है कि जिसने आप लोगों को मसीह के अनुग्रह द्वारा बुलाया, उसे आप इतना शीघ्र त्याग कर एक दूसरे सुसमाचार के अनुयायी बन गये हैं।
7) दूसरा तो है ही नहीं, किन्तु कुछ लोग आप में अशान्ति उत्पन्न करते और मसीह का सुसमाचार विकृत करना चाहते हैं।
8) लेकिन जो सुसमाचार मैंने आप को सुनाया, यदि कोई- चाहे वह मैं स्वयं या कोई स्वर्गदूत ही क्यों न हो- उस से भिन्न सुसमाचार सुनाये, तो वह अभिशप्त हो!
9) मैं जो कह चुका हूँ, वही दुहराता हूँ- जो सुसमाचार आप को मिला है, यदि कोई उस से भिन्न सुसमाचार सुनाये, तो वह अभिशप्त हो!
10) मैं अब किसका कृपापात्र बनने की कोशिश कर रहा हूँ - मनुष्यों का अथवा ईश्वर का? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूँ? यदि मैं अब तक मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता, तो मैं मसीह का सेवक नहीं होता।
11) भाइयो! मैं आप लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने जो सुसमाचार सुनाया, वह मनुष्य-रचित नहीं है।
12) मैंने किसी मनुष्य से उसे न तो ग्रहण किया और न सीखा, बल्कि उसे ईसा मसीह ने मुझ पर प्रकट किया।
25) किसी दिन एक शास्त्री आया और ईसा की परीक्षा करने के लिए उसने यह पूछा, ’’गुरूवर! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’
26) ईसा ने उस से कहा, ’’संहिता में क्या लिखा है?’’ तुम उस में क्या पढ़ते हो?’’
27) उसने उत्तर दिया, ’’अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो’’।
28) ईसा ने उस से कहा, ’’तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे।’’
29) इस पर उसने अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए ईसा से कहा, ’’लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?’’
30) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’एक मनुष्य येरुसालेम से येरीख़ो जा रहा था और वह डाकुओं के हाथों पड़ गया। उन्होंने उसे लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ कर चले गये।
31) संयोग से एक याजक उसी राह से जा रहा था और उसे देख कर कतरा कर चला गया।
32) इसी प्रकार वहाँ एक लेवी आया और उसे देख कर वह भी कतरा कर चला गया।
33) इसके बाद वहाँ एक समारी यात्री आया और उसे देख कर उस को तरस हो आया।
34) वह उसके पास गया और उसने उसके घावों पर तेल और अंगूरी डाल कर पट्टी बाँधी। तब वह उसे अपनी ही सवारी पर बैठा कर एक सराय ले गया और उसने उसकी सेवा शुश्रूषा की।
35) दूसरे दिन उसने दो दीनार निकाल कर मालिक को दिये और उस से कहा, ’आप इसकी सेवा-शुश्रूषा करें। यदि कुछ और ख़र्च हो जाये, तो मैं लौटते समय आप को चुका दूँगा।’
36) तुम्हारी राय में उन तीनों में कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?’’
37) उसने उत्तर दिया, ’’वही जिसने उस पर दया की’’। ईसा बोले, ’’जाओ, तुम भी ऐसा करो’’।
आज के दृष्टांत के माध्यम से येसु हमें सिखाते हैं कि एक सच्चे पड़ोसी होने का मतलब किसी जरूरतमंद के प्रति प्यार और दया दिखाना है, चाहे वे कोई भी हों। यह इस बारे में नहीं है कि कोई कहां से है, वे कैसे दिखते हैं, या उनकी पृष्ठभूमि क्या है - यह एक ऐसे हृदय के बारे में है जो दयालु है और मदद करने को तैयार है।
येसु हमें सीमाओं से परे प्रेम करने की चुनौती देते हैं। अच्छे सामरी की तरह, हमें दया दिखाने के लिए बुलाया गया है, न केवल उन लोगों के प्रति जिन्हें हम जानते हैं या पसंद करते हैं, बल्कि उन सभी के प्रति भी जिनसे हमारा सामना होता है, विशेष रूप से जरूरतमंदों के प्रति। किसी को पार करके चलना आसान है, जैसा कि याजक और लेवी ने किया था, लेकिन येसु हमें रुकने, अपने आस-पास की पीड़ा को देखने और कार्य करने के लिए कहते हैं।
जब हम इस पाठ पर विचार करते हैं, आइए अपने आप से पूछेंः हमारे जीवन में वे कौन लोग हैं जिन्हें हमारी सहायता और करुणा की आवश्यकता है? हम अपने कार्यों के माध्यम से दूसरों को ईश्वर का प्रेम दिखाते हुए, अच्छे सामरी की तरह कैसे बन सकते हैं? हम हमेशा अपने पड़ोसी से प्यार करने के लिए तैयार रहें, जैसा कि येसुु हमें करने के लिए कहते हैं।
✍फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Through today’s parable Jesus teaches us that being a true neighbor means showing love and mercy to anyone in need, no matter who they are. It’s not about where someone is from, what they look like, or their background—it’s about having a heart that is compassionate and willing to help.
Jesus challenges us to love beyond boundaries. Like the Good Samaritan, we are called to show kindness, not just to those we know or like, but to everyone we encounter, especially those in need. It’s easy to walk by, as the priest and Levite did, but Jesus asks us to stop, see the suffering around us, and take action.
As we reflect on this passage, let’s ask ourselves: Who are the people in our lives that need our help and compassion? How can we be like the Good Samaritan, showing God’s love to others through our actions? May we always be willing to love our neighbor, as Jesus calls us to do.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
कोई भी ऐसा मनुष्य पैदा नहीं ईश्वर के वचन को या आज्ञाओं को बदल सके, लेकिन ईश्वर की आज्ञाओं को समझना और उन पर चलना हमारे लिए आसान नहीं है। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु सबसे महत्वपूर्ण आज्ञाओं को एक ही आज्ञा में समाहित कर देते हैं। अगर हमें ईश्वर की उपस्थिति में, अनन्त जीवन पाना है तो हमें ईश्वर को अपने तन-मन और सारी शक्ति से प्यार करना है और अपने पड़ौसी को अपने समान प्यार करना है। इस आज्ञा के दर असल तीन पहलू हैं, और तीनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
अगर हमें ईश्वर को प्यार करना है तो उससे पहले हमें दूसरों को प्यार करना होगा, क्योंकि सन्त योहन याद दिलाते हैं कि यदि कोई यह कहता है कि मैं ईश्वर को प्यार करता हूँ, लेकिन वह अपने भाई से बैर करता है तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को, जिसे वह देखता है, प्यार नहीं करता तो वह ईश्वर को, जिसे उसने कभी नहीं देखा, प्यार नहीं कर सकता (१ योहन ४:२०)। ईश्वर अदृश्य है लेकिन हमें दूसरों में उसके दर्शन करने हैं और उसकी उपस्थिति को पहचानना है। प्रभु येसु कहते हैं कि अपने पड़ौसी को अपने समान प्यार करो, यानी कि जिस तरह से हम खुद का ख़्याल रखते हैं, भूख लगने पर खाना खाते हैं, बीमार होने पर इलाज कराते हैं, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं; उसी तरह से हमें दूसरे जरूरतमन्द लोगों के बारे में भी सोचना है। जो जरूरतमन्द हैं, वही हमारे पड़ौसी हैं।
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
No one among human beings have been born who could change God's word or gods commandments but to understand gods commandments and to walk on the path shown by God it's not an easy task. Jesus sums up most important commandments in one in today's gospel. If we have to live in the eternal presence of God, then we have to love God with all our heart, soul and might and also love our neighbour as ourselves. This commandment has three aspects, and all the three aspects are connected with each other and are complementary to each other.
If we have to love God God, we will have love others before loving God, because St. John reminds us ‘Those who say, “I love God,” and hate their brothers or sisters, are liars; for those who do not love a brother or sister whom they have seen, cannot love God whom they have not seen’ (1 John 4:20). God is invisible but he can be seen in others, his presence can be felt in others. Jesus calls us to love our neighbour as ourselves, which means as we eat food when we feel hungry, we wear clothes, we get treatment when we fall sick, same way we have to attend to the needs of others. All those who are needy are our neighbours.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
ईश्वर हमसे प्यार करता है। हम आज से पहले पाठ के रूप में गलातियों के नाम संत पौलुस का पत्र से सुनते हैं। संत पौलुस का दावा है कि जिस सुसमाचार का उसने प्रचार किया वह कुछ ऐसा था जो उसने येसु मसीह के रहस्योद्घाटन के माध्यम से सीखा था, न कि उसे कोई पुरुषों के द्वारा दिया गया कुछ। इसलिए वह लोगों को इस सुसमाचार को किसी अन्य संदेश में बदलने के बारे में चेतावनी देता है।
आज का सुसमाचार पाठ में यह सवाल है, "मेरा पड़ोसी कौन है?"। यह प्रश्न पूछने में शात्री का उद्देश्य खुद को सही ठहराने का था, न की अपने पडोसी कौन है यह जानना और उसे मदद करना। प्रभु येसु ने उत्तर के रूप में भला सामरी का दृष्टांत सुनाया जिसमें यह बताया गया है कि कैसे कोई व्यक्ति जरूरतमंद लोगों की मदद करने के द्वारा एक अच्छा पड़ोसी बन सकता है।
कलीसिया के धर्म पुरखों ने इस दृष्टांत के पात्रों में इस्राइली जनता को और स्वयं येसु को देखते हैं। पड़ोसियों को प्यार करने से हम येसु को ही प्यार करते हैं। अच्छे पड़ोसी बनकर दूसरों को प्यार करने से हम स्वयं येसु की तरह व्यवहार करते हैं। यही है वह सुसमाचार का मर्म जिसका संत पौलुस ने प्रचार किया था।
येसु कहता है, “जाओ, तुम भी ऐसा ही करो!” हम अपने आपसे पूछें: क्या मैं एक अच्छा पड़ोसी हूँ या नहीं? और एक अच्छा पड़ोसी बनने के लिए मुझे क्या करने की आवस्यकता है?
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
God loves us. From today we listen to the letter to the Galatians in the first reading. Paul asserts that the Gospel that he preached was something that he learnt through a revelation of Jesus Christ, not something given to him by men. Therefore he warns people about diluting or replacing it with any other message.
The gospel contains the question, “who is my neighbour?’. The lawyer asked the question to justify himself rather than know and help the neighbour. The parable of the good Samaritan which Jesus gave as an answer ends up showing how one can and need to be a good neighbour - by loving, caring for, and helping those in need.
The Fathers of the Church have seen in this parable the story of Israel and Jesus himself as the good Samaritan. By loving the neighbours in need we are loving Jesus himself. By loving others by becoming good neighbours we are behaving like Jesus himself. This is the undiluted Gospel that Paul was preaching about.
Jesus says, “Go and do the same yourself!” Let us ask ourselves: Am I a good neighbour? What do I need to do to become a good neighbour?
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)
12) प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरुसालेम लौटे। यह पहाड़ येरुसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।
13) वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे-पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस।
14) ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।
26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,
27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।
29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।
30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।
31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।
32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,
33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’
34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’
35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;
37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’
38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
रोज़री की माता का पर्व कलीसिया के सबसे प्रेरक पर्वों में से एक है। यह तुरंत हमारे विचार को माता मरियम और उनकी सबसे लोकप्रिय आम प्रार्थना माला विनती की ओर ले जाता है। पर्व को इतना लोकप्रिय और शक्तिशाली बनाने के लिए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 7 अक्टूबर 1571 को एक समूह की सेना ने तुर्की की नाभि सेना को हराया था। सन्त पापा पायस पान्चवे ने जीत का श्रेय धन्य कुंवारी मरियम की मध्यस्था को दिया, जिसे युद्ध के दिन पूरे यूरोप में माला विनती करने के अभियान के माध्यम से आमंत्रित किया गया था। यह ख्रिस्तीय देशों की एक ऐतिहासिक जीत थी क्योंकि तुर्की साम्राज्य ख्रिस्तीय दुनिया विशेषकर यूरोप के लिए खतरा था। यदि तुर्की सेना को युद्ध जीतती, तो यूरोप का सांस्कृतिक, धार्मिक चेहरा पहले जैसा नहीं होता। तब से, माला विनती के माध्यम से मरियम की भक्ति दूर-दूर तक बढ़ी है। लोगों ने ईश्वर की शक्ति का अनुभव किया है और रोजरी की माता मरियम के माध्यम से चमत्कारी अनुग्रह प्राप्त किया है।
✍फादर रोनाल्ड मेलकम वॉनThe feast of Our Lady of Rosary is one of the most inspiring feasts in the church. It immediately takes our thought to blessed Mother Mary and the most common prayer Rosary. The historical background plays an important role for the feast to be so popular and powerful. It was on 7th October 1571 that the army of a league defeated the Turkey navel army. Pope St. Pius V attributed the victory to the intercession of the Blessed Virgin Mary, who was invoked on the day of the battle through a campaign to pray the Rosary throughout Europe. It was a landmark victory of the Christian countries as the Turkey empire was threatening the Christian world especially Europe. If the turkey forces were to win the battle, then the cultural, religious face of Europe would not have been the same.
Since then, the devotion to Mary through the Rosary has grown far and wide. People have experienced the power of God and obtained miraculous favors through the intercession of Our Lady of Rosary
✍ -Fr. Ronald Melcum Vaughan
आज कलीसिया माला-विनती की माता मरिया का त्योहार मनाती है। माला-विनती पवित्र वचन पर मनन-चिंतन की प्रार्थना है। माला-विनती में हम ’प्रणाम मरिया” प्रार्थना बार-बार दोहराते हैं। “प्रणाम मरिया, कृपापूर्ण, प्रभु आपके साथ हैं” - यह लूकस 1:28 का पवित्र वचन है। प्रभु का दूत प्रभु का सन्देश लेकर आता है। अगर वह माता मरियम को प्रणाम करता है, तो वह प्रभु के आदेश के अनुसार ही करता है। अगर वह कहता है कि आप कृपापूर्ण है और प्रभु आपके साथ है, तो वह भी प्रभु की प्रेरणा से ही कहता है। “आप नारियों में धन्य हैं और धन्य हैं आप के गर्भ का फल येसु” – यह लूकस 1:42 का एलिज़बेथ द्वारा घोषित पवित्र वचन है। पवित्र वचन कहता है कि एलिज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर ऊँचे स्वर से बोल उठी (देखें लूकस 1:42)। ’प्रणाम मरिया’ प्रार्थना के दूसरे भाग में हम माता मरियम को ‘ईश्वर की माँ’ कह कर उनसे हम पापियों के लिए अब और हमारी मृत्यु के समय प्रार्थना करने की याचना करते हैं। माता मरियम एक ही समय पिता ईश्वर की बेटी हैं, पुत्र ईश्वर की माता हैं और पवित्र आत्मा की दुल्हन हैं। उनका बेटा येसु ईश्वर हैं, इसलिए येसु की माता होने के कारण उन्हें हम ’ईश्वर की माता’ कहते हैं। लूकस 1:43 में एलिज़बेथ उन्हें “मेरे प्रभु की माता” कहती हैं। परम्परा के अनुसार प्रभु येसु के सार्वजनिक कार्यों के शुरू होने से पहले ही संत यूसुफ़ की मृत्यु हुयी थी। प्रभु येसु की मृत्यु के समय माता मरियम क्रूस के नीचे खडी थी। संत यूसुफ़ और प्रभु येसु की मृत्यु के समय उपस्थित माता मरियम से ही हम अब और हमारी मृत्यु के समय हमारे लिए प्रार्थना करने की याचना करते हैं। इस प्रकार यह प्रार्थना ईशवचन तथा मुक्ति के रहस्यों का मनन-ध्यान है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Today the Church celebrates the Feast of Our Lady of the Rosary. Rosary is a prayer based on the meditation of the Word of God. During the rosary we repeatedly recite ‘Hail Mary’. “Hail Mary, Full of Grace, the Lord is with you” – these are words from Lk 1:28. The angel of the Lord brings the message of the Lord to Mary. It is at the instruction of the Lord that the angel greets Mary in these words. It is at the inspiration of the Lord that the angel describes her as ‘full of grace’. “Blessed are you among women and blessed is the fruit of your womb Jesus” – these are the Word of the Lord uttered by Elizabeth. The Bible says, “And Elizabeth was filled with the Holy Spirit, and exclaimed with a loud cry” (Lk 1:42). These are, therefore, words inspired by the Spirit of the Lord. In the second part of the prayer we, addressing Mary as Mother of God, beg her to pray for us now and at the hour of our death. Jesus is God and therefore Jesus’ mother is Mother of God. Our Lady is at the same time the daughter of God the Father, mother of God the Son and the spouse of the Holy Spirit. In Lk 1:43 Elizabeth calls her ‘Mother of my Lord’. Thus this prayer is completely a meditation of the inspired Word of God and of the mysteries of our salvation. Who can pray for us now at the hour of our death better than Mary who not only lived with Jesus and Joseph, her husband, but also assisted them at their death?
✍ -Fr. Francis Scaria