अक्टूबर 04, 2024, शुक्रवार

वर्ष का छब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 38:1,12-21,40:3-5

1) प्रभु ने आँधी में से अय्यूब को इस प्रकार उत्तर दिया:

12) क्या तुमने अपने सारे जीवन में किसी भोर को बुलाया अथवा उषा को उसका स्थान बतलाया?

13) क्या तुमने आदेश दिया कि वह पृथ्वी के छोरों को पकड़ कर झटका दे, जिससे दुष्ट जन उसके तल से लुप्त हो जाये?

14) मुहर लगने से जैसे मिट्टी बदलती है, उसी तरह पृथ्वी बदलती है और वस्त्र की तरह उस पर रंग चढ़ जाता है।

15) उषा दृष्टों से उनका प्रकाश छीन लेती है और उनका ऊपर उठा हुआ हाथ तोड़ देती है।

16) क्या तुम समुद्र के स्रोतों तक उतरे हो या गर्त के तल पर टहल चुके हो?

17) क्या तुम्हें मृत्यु के फाटक दिखाये गये? क्या तुमने अधोलोक के फाटक देखे?

18) क्या तुम को पृथ्वी के विस्तार का कुछ अनुमान है? यदि तुम जानते हो, तो यह सब मुझे बता दो।

19) प्रकाश के निवास का मार्ग कहाँ है और अंधकार का आवास कहाँ है?

20) क्या तुम दोनों को उनके अपने स्थान की ओर, उनके अपने निवास के मार्ग पर ले जा सकते हो?

21) यदि तुम यह सब जानते हो, तो उन से पहले तुम्हारा जन्म हुआ था और तुम्हारे वर्षों की संख्या असीम है!

3) अय्यूब ने यह कहते हुए प्रभु को उत्तर दिया:

4) मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं तुझे क्या उत्तर दूँ! मैं होंठों पद अपनी उँगली रखता हूँ।

5) मैं एक बार बोला, मैं दुबारा उत्तर नहीं दूँगा; मैं दो बार बोला, मैं और कुछ नहीं कहूँगा।

📚 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 10:13-16

13) ’’धिक्कार तुझे, खोराजि़न! धिक्कार तुझे, बेथसाइदा! जो चमत्कार तुम में किये गये हैं, यदि वे तीरुस और सीदोन में किये गये होते, तो उन्होंने न जाने कब से टाट ओढ़ कर और भस्म रमा कर पश्चात्ताप किया होता।

14) इसलिए न्याय के दिन तुम्हारी दशा की अपेक्षा तीरुस और सिदोन की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।

15) और तू, कफ़रनाहूम! क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा उठाया जायेगा? नहीं, तू अधोलोक तक नीचे गिरा दिया जायेगा?

16) ’’जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है और जो तुम्हारा तिरस्कार करता है, वह मेरा तिरस्कार करता है। जो मेरा तिरस्कार करता है, वह उसका तिरस्कार करता है, जिसने मुझे भेजा है।’’

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार पाठ में, येसु हमें उनके संदेश को अस्वीकार करने के परिणामों के बारे में बात करते हैं। वह खोराज़िन, बेथसाइदा और कफ़रनाहूम शहरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताते हैं कि यदि वहां किए गए चमत्कार तिरुस और सीदोन में किए गए होते, तो उन लोगों ने पश्चाताप किया होता। इस पाठ का मुख्य विषय ईश्वर की पुकार का उत्तर देने का महत्व है। येसु समझाते हैं कि जो शहर उनकी शिक्षाओं और कार्यों को देखने के बाद भी उनकी उपेक्षा करते हैं, उन्हें बड़े न्याय का सामना करना पड़ेगा। यह हमें सिखाता है कि सत्य को जानने के साथ साथ जिम्मेदारियॉं भी आती है। जब हम ईश्वर के प्रेम और सत्य का सामना करते हैं, तो हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया देने, अपना ह्दय बदलने और ईश्वर के अनुसार जीने के लिए बुलावा मिलता है।

जैसा कि उन कस्बों में हुआ, हम भी कभी-कभी ईश्वर के संदेशों के प्रति उदासीन या असंवेदनशील हो जाते हैं। हम उनके शब्द सुन सकते हैं, चर्च जा सकते हैं, या दुनिया में उनके कार्य को देख सकते हैं, लेकिन अगर हम विश्वास और कार्यों के साथ सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, तो हम उनके करीब आने का अवसर खो देते हैं। येसु हमें याद दिलाते हैं कि उन्हें सुनना सिर्फ उनके शब्दों को सुनना नहीं है, बल्कि उन्हें जीना भी है। हर बार जब हम उनके संदेश को प्यार करते, सेवा करते और साझा करना चुनते हैं, तो हम ईश्वर की पुकार का जवाब देते हैं।

जब हम इस पाठ पर विचार करते हैं, हमें यह सोचना चाहिए कि हम अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति के प्रति बेहतर उत्तर कैसे दे सकते हैं। कौन से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ हमें अपने हृदयों को उसके प्रेम के प्रति और अधिक खोलने की आवश्यकता है? क्या हम सत्य पर कार्य करने के लिए तैयार हैं? आइये हम ईश्वर के आह्वान को स्वीकार करने और उनके प्रेम को दूसरों के साथ साझा करने के लिए प्रेरित हों, ताकि हम उन शहरों की तरह न बनें जो उत्तर देने का अवसर चूक गए।

फादर डेनिस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


In today’s Gospel, Jesus speaks about the consequences of rejecting His message. He focuses on the towns of Chorazin, Bethsaida, and Capernaum, highlighting that if the miracles He performed there had been done in Tyre and Sidon, those cities would have repented.

The central theme of this passage is the importance of responding to God’s call. Jesus emphasizes that the towns that witnessed His works and teachings yet chose to ignore Him would face greater judgment. This teaches us that knowing the truth brings responsibility. When we encounter God’s love and truth, we are called to respond positively, to change our hearts, and to live according to His ways.

Just like those towns, we can sometimes become complacent or indifferent to God’s messages in our lives. We may hear His words, attend church, or see His work in the world, but if we don’t actively respond with faith and action, we miss the opportunity to grow closer to Him. Jesus also reminds us that listening to Him is not just about hearing His words but about living them out. Each time we choose to love, serve, and share His message, we are responding to God’s call.

As we reflect on this passage, let’s ask ourselves how we can better respond to God’s presence in our lives. Are there areas where we need to open our hearts more fully to His love? Are we willing to act on the truth we know? May we be inspired to embrace God’s call and share His love with others, so we don’t become like those towns that missed their opportunity to respond.

-Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

यदि येसु आज हमारे परिवार, पल्ली या समुदाय से मिलने आते, तो वे क्या कहते? क्या वे उसी तरह की चेतावनी जारी करते जैसा उन्होंने कोरजिन और बेथसायदा को दी थी? येसु जहाँ भी गए उन्होंने लोगों के विश्वास को बढ़ाने के महान कार्य किए। कोराज़िन और बेथसैदा को ईश्वर के आगमन के दर्शन का आशीर्वाद मिला था। उन्होंने सुसमाचार सुना और उन अद्भुत कामों का अनुभव किया जो येसु ने उनके लिए किए थे।

येसु इन नगरों पर क्यों विलाप करते हैं और कड़ी चेतावनी देते हैं? जिन लोगों ने यहाँ सुसमाचार सुना था, उन्होंने शायद उदासीनता के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की। येसु ने उन्हें उनकी निष्क्रियता के लिए डांटा! पश्चाताप परिवर्तन की मांग करता है - हृदय और जीवन के तरीके में परिवर्तन। येसु का क्रोध पाप और हर उस चीज़ की ओर निर्देशित है जो हमें ईश्वर की इच्छा पूरी करने से रोकती है। प्रेम में वह हमें अपने सत्य और स्वतंत्रता, अनुग्रह और प्रेम-कृपा, न्याय और पवित्रता के मार्ग पर चलने के लिए बुलाता है। क्या हम उसके वचन को विश्वास और आज्ञाकारिता के साथ ग्रहण करते हैं या संदेह और उदासीनता के साथ?

- फादर रोनाल्ड वाँन


📚 REFLECTION

If Jesus were to visit our family, parish or community today, what would he say? Would he issue a warning like the one he gave to Chorazin and Bethsaida? And how would you respond? Wherever Jesus went he did mighty works to show the people how much God had for them. Chorazin and Bethsaida had been blessed with the visitation of God. They heard the good news and experienced the wonderful works which Jesus did for them.

Why does Jesus lament and issue a stern warning? The people who heard the gospel here very likely responded with indifference. Jesus scolds them for doing nothing! Repentance demands change — a change of heart and way of life. Jesus' anger is directed toward sin and everything which hinders us from doing the will of God. In love he calls us to walk in his way of truth and freedom, grace and loving-kindness, justice and holiness. Do we receive his word with faith and obedience or with doubt and indifference?

-Fr. Ronald Vaughan