सितंबर 08, 2024, इतवार

वर्ष का तेईसवाँ सामान्य इतवार

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📒 पहला पाठ : इसायाह 35:4-7अ

4) घबराये हुए लोगों से कहो- “ढारस रखों डरो मत! देखो, तुम्हारा ईश्वर आ रहा है। वह बदला चुकाने आता है, वह प्रतिशोध लेने आता है, वह स्वयं तुम्हें बचाने आ रहा है।“

5) तब अन्धों की आँखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंगे। लँगड़ा हरिण की तरह छलाँग भरेगा। और गूँगे की जीभ आनन्द का गीत गायेगी।

6) मरुस्थल में जल की धाराएँ फूट निकलेंगी, रेतीले मैदानों में नदियाँ बह जायेंगी,

7) सूखी धरती झील बन जायेगी और प्यासी धरती में झरने निकलेंगे। जहाँ पहले सियारों की माँद थी, वहाँ सरकण्डे और बेंत उपजेंगे।


📒 दूसरा पाठ : याकूब 2:1-5

1) भाइयो! आप लोग हमारे महिमान्वित प्रभु ईसा मसीह में विश्वास करते हैं, इसलिए भेदभाव और चापलूसी से दूर रहें।

2) मान लें कि आप लोगों की सभा में सोने की अंगूठी और कीमती वस्त्र पहने कोई व्यक्ति प्रवेश करता है और साथ ही फटे-पुराने कपड़े पहने कोई कंगाल।

3) यदि आप कीमती वस्त्र पहने व्यक्ति का विशेष ध्यान रख कर उस से कहें- "आप यहाँ इस आसन पर विराजिए" और कंगाल से कहें- "तुम वहाँ खड़ रहो" या "मेरे पांवदान के पास बैठ जाओ"।

4) तो क्या आपने अपने मन में भेदभाव नहीं आने दिया और गलत विचार के अनुसार निर्णय नहीं दिया।

5) प्यारे भाइयो! सुन लें। क्या ईश्वर ने उन लोगों को नहीं चुना है, जो संसार की दृष्टि में दरिद्र हैं, जिससे वे विश्वास के धनी हो जायें और उस राज्य के उत्तराधिकारी बनें, जिसे असने अपने भक्तों को प्रदान करने की प्रतिज्ञा की है?


📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 7:31-37

31) ईसा तीरूस प्रान्त से चले गये। वे सिदोन हो कर और देकापोलिस प्रान्त पार कर गलीलिया के समुद्र के पास पहुँचे।

32) लोग एक बहरे-गूँगे को उनके पास ले आये और उन्होंने यह प्रार्थना की कि आप उस पर हाथ रख दीजिए।

33) ईसा ने उसे भीड़ से अलग एकान्त में ले जा कर उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डाल दीं और उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया।

34) फिर आकाश की ओर आँखें उठा कर उन्होंने आह भरी और उससे कहा, "एफ़ेता", अर्थात् "खुल जा"।

35) उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बन्धन छूट गया, जिससे वह अच्छी तरह बोला।

36) ईसा ने लोगों को आदेश दिया कि वे यह बात किसी से नहीं कहें, परन्तु वे जितना ही मना करते थे, लोग उतना ही इसका प्रचार करते थे।

37) लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही। वे कहते थे, "वे जो कुछ करते हैं, अच्छा ही करते है। वे बहरों को कान और गूँगों को वाणी देते हैं।"

📚 मनन-चिंतन

आज के पाठ बड़े ही आशामय संदेश से पूर्ण हैं। मसीह के बारे में अनेक नबियों ने कुछ चिन्ह दिए थे कि मसीह के आगमन के समय संसार का वातावरण कैसा होगा। उन्हीं चिन्हों में एक यह भी था कि अंधे देखने लगेंगे, बहरे सुनने लगेंगे, लंगड़े छलांग मारने लगेंगे और गूंगे गाने लगेंगे (देंखें इसायाह 35:5) जैसा कि हम आज के पहले पाठ में मनन करते हैं। प्रभु येसु के आगमन के बाद यह भविष्यवाणी पूर्ण हुई। प्रभु येसु ने लोगों को पवित्र आत्मा की शक्ति से चंगा किया, और ईश्वरीय राज्य के आने का संकेत दिया। लेकिन चिन्ह और चमत्कार दिखाना ही प्रभु येसु के आने का मुख्य उद्देश्य नहीं था। प्रभु येसु के आने का मुख्य उद्देश्य था मानव जाति का पिता ईश्वर के साथ मेल-मिलाप कराना, साथ ही एक दूसरे का आपस में मेल-मिलाप कराना। जब तक पूर्ण रूप से ऐसा नहीं हो जाता तब तक प्रभु के मिशन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हमारी है।

सन्त याकूब आज के दूसरे पाठ में शायद हमारे वर्तमान समाज का आईना दिखाते हैं, जहाँ एक ही प्रभु में विश्वास करने वाले लोग आपस में बंटे हुए हैं। कोई जाति के नाम पर, कोई भाषा या क्षेत्र के आधार पर और कोई रंग-भेद के कारण एक दूसरे के साथ भेद-भाव करता है। जब हम ईश्वर की शिक्षाओं का पालन नहीं करते तो हम भी गूंगे-बहरे बन जाते हैं। हमें भी अपने आध्यात्मिक गूंगे-बहरेपन से चंगाई की आवश्यकता है। प्रभु हमें छू ले और चंगाई प्रदान करे।

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


Today's readings are filled with the words of hope. Many prophets had given signs about how the world would be at the time of the Messiah's coming. One of these signs was that the blind would see, the deaf would hear, the lame would leap, and the mute would sing (cf Isaiah 35:5), as we reflect in today's first reading. This prophecy was fulfilled after the coming of Lord Jesus. He healed people with the power of the Holy Spirit and signaled the coming of the divine kingdom. However, showing signs and miracles was not the main purpose of Lord Jesus' coming. The primary purpose was to reconcile humanity with God the Father and also to promote mutual reconciliation among people. Until this is fully achieved, the responsibility to continue the Lord's mission rests with us.

Saint James, in today’s second reading, perhaps reflects the mirror of our current society, where people who believe in the same Lord are divided among themselves. Some discriminate based on caste, others on language or region, and some on racial differences. When we do not follow God’s teachings, we too become spiritually mute and deaf. We need healing from our own spiritual blindness and deafness. May the Lord touch us and grant us healing.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

रोग ग्रस्त जीवन न केवल स्वयं के लिए परंतु पूरे परिवार के लिए एक बोझ सा बन जाता है। कोई उस बोझ को उठाता है तो कोई उस बोझ से दूरी बना लेता है। अक्सर हम देखते है परिवार के लोग जब उस रोग ग्रस्त व्यक्ति का बोझ नहीं उठा पाते तो उसे अपने हालात में छोड़ देते है। परंतु आज के सुसमाचार में मानवता का अच्छा उदाहरण देखने को मिलता है जहॉं पर लोग एक बहरे-गूॅंगे को येसु के पास लाते है ताकि येसु उन्हे चंगाई प्रदान करें। लोगो ने उस बहरे-गूॅंगे व्यक्ति की बेबस हालत को देखकर उसके लिए कुछ अच्छा करने की सोची।

ईश्वर ने हम सब को पॉंच इंद्रियों से विभूषित किया है जिससे हमें ज्ञान प्राप्त होता है। इनमें से कोई भी इंद्रियॉं काम करना बंद करदे तो जीवन अधूरा अधूरा सा लगता है। प्रभु येसु इस संसार में जीवन नहीं परंतु परिपूर्ण जीवन देने आये। और इसलिए वे सर्वप्रथम उन लोगों का, जो गूॅंगे, बहरे है, बिमार है या किसी भी प्रकार की समस्या में है उनको चंगाई प्रदान करी जिससे वे समझ जाये कि येसु ही वह मसीह है जो उनके जीवन को पूरिपूर्णता तक ले जा सकता है। हम सब प्रभु येसु से अपने लिए परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।

फादर डेन्नीस तिग्गा

📚 REFLECTION


Sickly life becomes a kind of burden not only for oneself but also for the whole family. Some carry the burden but some keep themselves away from the burden. Usually we see that the people of some family leave the person in his situation when they are unable to bear the burden. But in today’s gospel we come across the beautiful example of humanity where people bring the deaf man who had an impediment in his speech so that Jesus can heal him. Seeing the helpless condition of the deaf-dumb man people thought of doing good for him.

God has blessed us with the five senses with which we acquire the knowledge. Among them if any one senses stop working them life seems to be incomplete. Lord Jesus came in this world not only to give life but life in abundance and for this reason he first healed the persons who were dumb, deaf, sick or people with any infirmities he healed them so that they may understand He is the Christ who will take their life to the fulfillment. We all may receive the fullness of life from Lord Jesus.

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन - 3

आज के सुसमाचार में हम एक बहरे और गूँगे व्यक्ति को देखते हैं जिसे प्रभु येसु चंगाई प्रदान करने का चमत्कार करते हैं। प्रभु येसु के हर चमत्कार के पीछे कुछ न कुछ कारण होता है। कभी प्रभु येसु पिता ईश्वर के सन्देश व इस दुनिया में स्वयं के आने के उद्देश्य को भली-भाँति समझाना चाहते हैं, इसलिये चमत्कार करते हैं (देखिये योहन 9:1-7)। तो कभी अपने मानव स्वभाव के भावुक पहलू को प्रकट करने के लिये (देखिये लूकस 7:11-17)। इसको हम यों भी समझ सकते हैं कि जिस परिस्थिति में चमत्कार किया जाता है, उस परिस्थिति को उत्पन्न करने में ईश्वर की कुछ न कुछ भूमिका भी हो सकती है। उदाहरण के लिए जैसे ईश्वर किसी व्यक्ति का ध्यान एक विशेष पहलू या आदत या जीवन के बारे में खींचना चाहते हैं तो हो सकता है उस व्यक्ति के साथ ऐसी घटना घटे कि उसे उसमें ईश्वर का वह प्रयोजन समझ में आये या उसके द्वारा दूसरों को कोई सन्देश मिले।

सन्त आइरेनियुस का कहना है, ’’ईश्वर की महिमा इसमें है कि इन्सान पूर्ण रूप से जीवित हो।’’ इसे और साधारण भाषा में समझे तो यों कहेंगे ’कोई इन्सान ज़िन्दादिल है, स्वस्थ है, पूर्ण है, वही ईश्वर की महिमा को प्रकट करता है, क्योंकि हम सब ईश्वर के प्रतिरूप हैं और ईश्वर में कुछ भी कमी नहीं है। आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि लोग उस बहरे व्यक्ति को लेकर आते हैं जो गूँगा भी था। हम ज़रा और गहराई से उस व्यक्ति के बारे में सोचें। अगर कोई व्यक्ति बहरा है तो स्वाभाविक तौर से इसकी बहुत अधिक सम्भावना है कि वह व्यक्ति गूँगा भी हो क्योंकि प्रारम्भ में जब हम भाषा सीखते हैं तो अक्सर उसे सुनकर सीखते हैं। बाद में पढना-लिखना सीखते हैं और उस भाषा को और गहराई से व अन्य भाषाओं को भी सीखते हैं। उसके अलावा बोल-चाल के लिये शब्दों में ताल-मेल, उच्चारण, आवाज़ की तीव्रता, पिच आदि भी मायने रखते हैं। बहरे व्यक्ति को यह सब सीखना कठिन है, अतः वे स्वभावतः कुछ बोलना भी नहीं सीख पाते।

एक बहरा व्यक्ति अगर सुन नहीं सकता तो उसके लिये आधी दुनिया तो यों ही कट जाती है। लोग अपने बारे में क्या व्यक्त कर रहे हैं, बहरा व्यक्ति ना तो उसे समझ पाता है और न स्वयं को व्यक्त कर पाता है। अपनी अवाज़, अपनी भावनायें, अपना सुख-दुःख वह दूसरों के साथ नहीं बाँट सकता और न दूसरों के सुख-दुःख को समझ सकता है। आधुनिक युग में तकनीक के आगमन से ऐसे व्यक्तियों का जीवन अत्यन्त सुगम हो गया है लेकिन पुराने ज़माने में हालात बहुत बदतर थे। प्रभु येसु अक्सर व्यक्ति की परेशानी को महसूस कर उसे दूर कर देते थे। गूँगों को वाणी देना, बहरों को कान देना, अन्धों को रोशनी देना, लँगडों को चंगा करना ये सब मसीह के आगमन के लक्षण हैं। क्योंकि ईश्वर किसी को भी कष्ट में नहीं देख सकता। मनुष्यों के दुःख दूर करने, उन्हें मुक्ति प्रदान करने ही प्रभु येसु को पिता ईश्वर ने इस दुनिया में भेजा है।

हम प्रभु येसु के अनुयायी हैं, हम मसीह के प्रतिनिधि हैं। आज की दुनिया में हम हर जगह देखते हैं, सत्य को दबाया जाता है, कमजोरों पर अत्याचार किया जाता है, निर्बलों को परेशान किया जाता है। समाचार पत्र, दूरदर्शन समाचार आदि इसी प्रकार की खबरों से भरे पड़े हैं। उनमें से बहुत से अपराध या बुरे कर्म ऐसे हैं जिनके लिये अगर किसी ने आवाज़ उठाई होती तो वे अपराध किये ही नहीं जाते। अगर आस-पास के लोग गूँगे-बहरे नहीं बन जाते तो शायद किसी निर्दोष की रक्षा हो सकती थी। क्या आज हमें अपनी अन्तरात्मा का बहरापन और गूँगापन प्रभु येसु से दूर कराने की ज़रूरत तो नहीं है? क्या हम दूसरों के कष्टों और दुःखों को सुनते और समझते हैं? क्या हम मानव जीवन को नई राह दिखाने के लिये पिता ईश्वर के प्रतिनिधि बनने के लिये तैयार हैं? ईश्वर हमारी अन्तरात्मा के कान और जीभ के बन्धन खोल दे।

फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)