अगस्त 31, 2024, शनिवार

वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:26-31

26) इस बात पर विचार कीजिए कि बुलाये जाते समय दुनिया की दृष्टि में आप लोगों में बहुत कम लोग ज्ञानी, शक्तिशाली अथवा कुलीन थे।

27) ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं।

28) गण्य-मान्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं,

29) जिससे कोई भी मनुष्य ईश्वर के सामने गर्व न करे।

30) उसी ईश्वर के वरदान से आप लोग ईसा मसीह के अंग बन गये है। ईश्वर ने मसीह के अंग बन गये है। ईश्वर ने मसीह को हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता और उद्धार बना दिया है।

31) इसलिए, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है- यदि कोई गर्व करना चाहे, तो वह प्रभु पर गर्व करे।


📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 25:14-30

14) "स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी।

15) उसने प्रत्येक की योग्यता का ध्यान रख कर एक सेवक को पाँच हज़ार, दूसरे को दो हज़ार और तीसरे को एक हज़ार अशर्फियाँ दीं। इसके बाद वह विदेश चला गया।

16) जिसे पाँच हज़ार अशर्फि़यां मिली थीं, उसने तुरन्त जा कर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच हज़ार अशर्फियाँ कमा लीं।

17) इसी तरह जिसे दो हजार अशर्फि़याँ मिली थी, उसने और दो हज़ार कमा ली।

18) लेकिन जिसे एक हज़ार अशर्फि़याँ मिली थी, वह गया और उसने भूमि खोद कर अपने स्वामी का धन छिपा दिया।

19) "बहुत समय बाद उन सेवकों के स्वामी ने लौट कर उन से लेखा लिया।

20) जिसे पाँच हजार असर्फियाँ मिली थीं, उसने और पाँच हजार ला कर कहा, ’स्वामी! आपने मुझे पाँच हजार असर्फियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और पाँच हजार कमायीं।’

21) उसके स्वामी ने उस से कहा, ’शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।’

22) इसके बाद वह आया, जिसे दो हजार अशर्फि़याँ मिली थीं। उसने कहा, ’स्वामी! आपने मुझे दो हज़ार अशर्फि़याँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और दो हज़ार कमायीं।’

23) उसके स्वामी ने उस से कहा, ’शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आन्नद के सहभागी बनो।’

24) अन्त में वह आया, जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने कहा, ’स्वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं।

25) इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर अपना धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह आपका है, इस लौटाता हूँ।’

26) स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ’दुष्ट! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनता हूँ और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ,

27) तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता।

28) इसलिए ये हज़ार अशर्फियाँ इस से ले लो और जिसके पास दस हज़ार हैं, उसी को दे दो;

29) क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।

30) और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।

📚 मनन-चिंतन

हमें जीवन में अक्सर यह शिकायत होती है कि ईश्वर ने हमें ये नहीं दिया,वो नहीं दिया। हम ईश्वर से बार-बार इसकी शिकायत भी करते रहते हैं। हम में से शायद ही ऐसा कोई होगा जो उसके पास जो है उससे संतुष्ट हो। शायद अमीर लोगों को लगता है कि कहीं एक दिन वे गरीब न हो जाए, इसलिए वे दिन रात मेहनत करते रहते हैं। गरीब लोगों को लगता है कि चाहे हम कितना भी कमा ले, हम कभी भी अमीर नहीं बन सकते, और इसीलिए वे रोज़ी के लिए ही कमाते हैं। इसी तरह जो लोग खूबसूरत दिखते हैं वे अपनी खूबसूरती को और भी निखारते रहते हैं, बॉडी बिल्डर्स शरीर की और भी मांसपेशियां बनाते रहते हैं। प्रिय भाइयों, ईश्वर हमें अच्छी तरह जानता है। वह हमारे चप्पे-चप्पे को जानता है। वह जानता है कि हमें कितनी जरूरत है। इसलिए, वह हमारी आवश्यकताओं और क्षमताओं के अनुसार हमें अपने आशीर्वाद से भरता रहता है। यदि ईश्वर हमें हमारी क्षमताओं से अधिक आशीर्वाद देता है, तो सुसमाचार में तीसरे सेवक की तरह, हम भी इन आशीर्वादों को जमीन में गाड़ देंगे, और यह सब व्यर्थ हो जाएगा। इसलिए ईश्वर ने हमें जो भी आशीर्वाद दिया है, हमें उसमें खुश रहना चाहिए।

- ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

We often complain in life that God has not given us this or that. We also complain about this to God again and again. Hardly any of us would be satisfied with what he has. Perhaps rich people fear that one day they might become poor, so they keep working hard day and night. Poor people feel that no matter how much they earn, they can never become rich, and that is why they work just to earn a living. Similarly, those who look beautiful keep enhancing their beauty even more, body builders keep building more body muscles. Dear brothers, God knows us well. He knows our every nook and cranny. He knows what and how much we need. Therefore, He keeps filling us with His blessings according to our needs and abilities. If God gives us more blessings than our capabilities, then like the third servant in the Gospel, we too will bury these blessings in the ground, and all this will go in vain. That is why we should be happy with whatever blessings God has given us.

-Bro. Kapil Dev (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

ईश्वर कैसा है? आज के दृष्टान्त से हम कह सकते हैं कि ईश्वर जोखिम लेने वाला है। वह हमें संसाधन देता है और वह चाहता है कि हम उसे विकसित करें। ईश्वर एक रचनात्मक ईश्वर है। इस दृष्टांत के मनुष्य की सदृश, ईश्वर आप पर विश्वास करता हैं और आपको विश्वास है कि आप उनके संसाधनों का बुद्धिमानी से और उद्यमशीलता की भावना के साथ प्रबंधन करेंगे। प्रबंधन एक विशेषाधिकार प्राप्त जिम्मेदारी है जिसके लिए किसी को जवाबदेह ठहराया जाएगा। मसीह की अनुपस्थिति के दौरान किए जाने की क्षमता के अनुसार विभिन्न प्रकार की ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं। जब वह लौटेगा, तो वह उन विश्वासियों को समान रूप से पुरस्कृत करेगा जो ईश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे और उन दुष्टों का न्याय करेंगे जिन्हें बहिष्कृत किया गया है। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने इन प्रतिभाओं या धन को ईश्वर के वचन, बपतिस्मा, प्रार्थना और क्षमा युखरिस्त और ईश्वर का राज्य के रूप में सूचीबद्ध किया है, जिसमें स्वयं ईश्वर मौजूद है और हमारे बीच जीवित है। ऐसा होता है कि ख्रीस्त विश्वासी बपतिस्मा, युखरिस्त और दृढीकरण प्राप्त करने के बाद में इन उपहारों को पूर्वाग्रह के मनोभाव के नीचे और ईश्वर की झूठी छवि के नीचे दफना देते है।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.


📚 REFLECTION

What is God like? From today’s parable, we could say that God is a risk-taker. He gives us resources and he wants us to make them grow. God is a creative God. Like the master in this parable, God believes in you and has confidence that you will manage his resources wisely and with an entrepreneurial spirit. Stewardship is a privileged responsibility for which one will be held accountable. The variety of responsibilities has been assigned in accordance to ability to be carried out during the absence of the Messiah. When He returns, he will proportionately reward the faithful who will enter the kingdom and to judge the wicked who are excluded. Pope Benedict XVI lists these talents or riches as the Word of God, Baptism, prayer, and forgiveness, the Eucharist, the Kingdom which is God himself present and alive in our midst. It so happens that Christians after having received Baptism, Eucharist and Confirmation subsequently bury these gifts beneath a blanket of prejudice and beneath a false image of God.

-Fr. Snjay Kujur SVD