अगस्त 30, 2024, शुक्रवार

वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:17-25

17) क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने नहीं; बल्कि सुसमाचार का प्रचार करने भेजा। मैंने इस कार्य के लिए अलंकृत भाषा का व्यवहार नहीं किया, जिससे मसीह के क्रूस के सन्देश का प्रभाव फीका न पड़े।

18) जो विनाश के मार्ग पर चलते हैं, वे क्रूस की शिक्षा को ’’मूर्खता’’ समझते हैं। किन्तु हम लोगों के लिए, जो मुक्ति के मार्ग पर चलते हैं, वह ईश्वर का सामर्थ्य है;

19) क्योंकि लिखा है-मैं ज्ञानियों का ज्ञान नष्ट करूँगा और समझदारों की चतुराई व्यर्थ कर दूँगा।

20) हम में ज्ञानी, शास्त्री और इस संसार के दार्शनिक कहाँ हैं? क्या ईश्वर ने इस संसार के ज्ञान को मूर्खता-पूर्ण नहीं प्रमाणित किया है?

21) ईश्वर की प्रज्ञा का विधान ऐसा था कि संसार अपने ज्ञान द्वारा ईश्वर को नहीं पहचान सका। इसलिए ईश्वर ने सुसमाचार की ’’मूर्खता’’ द्वारा विश्वासियों को बचाना चाहा।

22) यहूदी चमत्कार माँगते और यूनानी ज्ञान चाहते हैं,

23) किन्तु हम क्रूस पर आरोपित मसीह का प्रचार करते हैं। यह यहूदियों के विश्वास में बाधा है और गै़र-यहूदियों के लिए ’मूर्खता’।

24) किन्तु मसीह चुने हुए लोगों के लिए, चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, ईश्वर का सामर्थ्य और ईश्वर की प्रज्ञा है;

25) क्योंकि ईश्वर की ’मूर्खता’ मनुष्यों से अधिक विवेकपूर्ण और ईश्वर की ’दुर्बलता’ मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली है।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 25:1-13

1) उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं।

2) उन में से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार।

3) नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं।

4) समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्पियों में तेल भी लायीं।

5) दूल्हे के आने में देर हो जाने पर ऊँघने लगीं और सो गयीं।

6) आधी रात को आवाज़ आयी, ’देखो, दूल्हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’

7) तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं।

8) नासमझ कुँवारियों ने समझदारों से कहा, ’अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’।

9) समझदारों ने उत्तर दिया, ’क्या जाने, कहीं हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो, तुम लोग दुकान जा कर अपने लिए ख़रीद लो।’

10) वे तेल ख़रीदने गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया।

11) बाद में शेष कुँवारियाँ भी आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए’।

12) इस पर उसने उत्तर दिया, ’मैं तुम से यह कहता हूँ- मैं तुम्हें नहीं जानता’।

13) इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी।

📚 मनन-चिंतन

हमारा जीवन हर प्रकार के अवसरों से भरा होता है। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम ऐसे इन अवसरों का सदुपयोग करने के लिए कितने जागरूक रहते हैं। समझदार कुवरियों ने भविष्य में होने वाली कमियों को भापते हुए अपने आप को हर परिस्थिति के लिए तैयार रखती हैं। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से दुःख में एक जागरूकता का नमूना प्रकट किया है। हमारे जीवन में भी ऐसे मोड आ सकते हैं। जब प्रभु येसु दूसरी बार अपने राज्य में महिमा के साथ आएंगे, तब क्या वे हमें उनके राज्य में ले जाने के लिए जागरूक और तैयार पाएंगे। क्या हम भी मूर्ख नासमझ कुवरियों की तरह अंतिम समय में अपने-आप को तैयार करेंगे? प्यारे मित्रों, ईश्वर का राज्य निकट है। हमें ईश्वर के राज्य को पाने के लिए अभी से तैयारी करने की आवश्यकता है। हमें भले और अच्छे कार्य करने की आवश्यकता है। हमें प्रभु येसु द्वारा बताई गई सभी अच्छी बातों का पालन करना है। हम मसीही कार्यों द्वारा स्वर्गराज्य में खुशी के पात्र बन सकेंगे।

- ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Our lives are filled with various opportunities. It depends on us how alert we remain to seize them. Wise virgins, anticipating future shortages, keep themselves prepared for every circumstance. They have demonstrated awareness in times of sorrow through their wisdom. We can encounter such moments in our lives as well. When Lord Jesus returns inhis glory, will He find us alert and prepared to enter His kingdom? Are we determined to prepare ourselves, not like foolish, unaware virgins, but like the wise for the end times? Dear friends, the kingdom of God is near. We need to prepare ourselves now to attain God's kingdom. We need to engage in good and righteous deeds. We must follow all the good teachings given by Lord Jesus. Through Christian deeds, we can become worthy of happiness in the Kingdom of Heaven.

-Bro. Kapil Dev (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

सुसमाचार में जो बात समझदार कुँवरियो को नासमझ से अलग करती है वह यह है कि समझदार एक लंबी प्रतीक्षा के लिए तैयार थे। जब वे बाहर गए तो उनके बीच एक नजदीकी भावना थी, फिर भी एक पूरी तरह से उचित गतिविधि ने कुछ समय के लिए उनका ध्यान खींचा। तेल पवित्र आत्मा का प्रतीक है। संत योहन के सुसमाचार १६: १३, १४ में हम पढ़ते हैं: "जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा।" तब आत्मा का कार्य ईश्वर के वचन को लेना और उसके द्वारा येसु मसीह को प्रकट करना है।आत्मा में जीवन जो एक को गहरा, पूर्ण और स्थायी संबंध में ले जाता है, उसमें दिव्य जीवन प्रदान करना शामिल है। यह आत्मा के प्रति प्रतिबद्धता का एक गहरा स्तर है जो जीवन के अप्रत्याशित मांगों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। यदि हम समय और मौका रहते ही आध्यात्मिक भंडार का निर्माण नहीं करेंगे, तो बीमारी, मृत्यु, वित्त या नौकरी की हानि, या उत्पीड़न जैसे संकट की घडी में हमारे पास इनसे मुकाबिला करने के लिए आध्यात्मिक भंडार नहीं होगा। हमारी ताकत की असली परीक्षा तब नहीं होती है जब चीजें ठीक चल रही होती, बल्कि तब जब चीजें ठीक नहीं होती और हम उसके ऊपर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.


📚 REFLECTION

In the gospel what distinguishes the wise maidens from the foolish ones is that the wise are ready for an extended wait. There was a sense of imminence when they went out, yet a perfectly proper activity took their attention for a time. Oil is the symbol of the Holy Spirit. In John 16:13, 14, we read: "When the Spirit of truth comes, he will guide you into all the truth.” The Spirit's task then is to take the Word of God, and through it reveal Jesus Christ. Life in spirit that take one deeper and into a fuller, permanent relationship will involve the imparting of divine life. It is a deeper level of commitment to the Spirit which is essential to meet the unexpected demands life will thrust at us. If we are not willing to take time and build up our spiritual reserves while we have the chance, a time may come when a crisis happens in our life- a sickness, a death, a loss of finances or a job, or persecution and we will find that we do not have the spiritual reserves to get through. The real test of our strength is not when things are going well, but how we react when things do not go well.

-Fr. Snjay Kujur SVD

📚 मनन-चिंतन - 3

आज माता कलीसिया महान संत अगस्तिन का पर्व मनाती है, जो धर्माध्यक्ष एवं कलिसिया के महान विद्वान हैं। धर्माध्यक्ष का कार्य कलिसिया की अगुआई करना है और डॉक्टर अथवा विद्वान वह है जो कलिसिया की शिक्षाओं में त्रुटियों को दूर करता है। संत अगस्टिन अपने समय के एक महान और विख्यात विद्वान थे। वह सब कुछ के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। उनका एकमात्र उद्देश्य हर तरह का ज्ञान प्राप्त करना था, लेकिन बाद में उनकी माता की प्रार्थनाओं द्वारा उनका मन ईश्वर की ओर अभिमुख हुआ और जो ज्ञान वह खोज रहे थे वह उनके लिए मूर्खता बन गया और सुसमाचार उनके लिए अनंत प्रज्ञा का स्रोत बन गया।

आज के सुसमाचार में हम दस कुँवारियों को देखते हैं जिनमें से पाँच मूर्ख थीं और पाँच समझदार। जिन्होंने दूल्हे से मिलने के लिए उचित तैयारी की थे वे समझदार मानी जाती हैं लेकिन जिन्होंने भविष्य के लिए उचित तैयारी नहीं की उन्हें मूर्ख माना जाता है, और वे विवाह भोज में सम्मिलित होने से वंचित हो जाती हैं। इस दुनिया में हमारा जीवन दूल्हे की प्रतीक्षा करने के समान है और हमारे भले कार्य, हमारा पुण्य और अच्छाई वह तेल है जो हमारी मशाल को जलाए रखता है। हमें बिलकुल भी पता नहीं कि हमारा अंत कब आएगा, हो सकता है हमें दूल्हे से मिलने के लिए पर्याप्त तेल ख़रीदने का मौक़ा ही ना मिले। आइए हम समय रहते, रात होने से पहले ही अपने लिए पर्याप्त तेल की व्यवस्था कर लें, अभी भी मौक़ा है।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today Mother Church celebrates the feast of great saint Augustine, Bishop and doctor of the Church. Bishop is the one who leads the Church and doctor is the one who corrects the errors or heals the mistakes. St. Augustine was one of the great and wise scholar of his time. He wanted to know everything about everything. Gaining wisdom was his quest but later through the prayers of his mother, St. Monica he turned to God and the wisdom which he was seeking became foolishness for him and gospel became the source of eternal wisdom for him.

We see ten virgins in the gospel today, five were wise and five foolish. The ones prepared who prepared to meet the bridegroom are considered wise but those who did not prepare for future are considered foolish and they are not allowed to enter the banquet. Our life here on earth is like waiting for the bridegroom and our good works, our charity, our goodness is the oil that keeps our lamps burning. We never know when we shall meet our death, perhaps there will be no time to get more oil when the bridegroom comes. Let us now itself acquire more oil while there is still day, while there is still opportunity.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)

संत एवुप्रासिया

📒 पहला पाठ : गलातियों 2:19-20

19) संहिता के अनुसार मैं संहिता की दृष्टि में मर गया हूँ, जिससे मैं ईश्वर के लिए जी सकूँ। मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ।

20) मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित हैं। अब मैं अपने शरीर में जो जीवन जीता हूँ, उसका एकमात्र प्रेरणा-स्रोत है-ईश्वर के पुत्र में विश्वास, जिसने मुझे प्यार किया और मेरे लिए अपने को अर्पित किया।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 16:24-27

24) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, "जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले;

25) क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।

26) मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन गँवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?

27) क्योंकि मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा-सहित आयेगा और वह प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्म का फल देगा।

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु फरीसी और शास्त्री लोगों से उनके जीवन के आचरण पर कटाक्ष करते है। वे उनके ढ़ोगीपन को उजागर करते हुए उन्हें सचेत करते है। वे बाहर से तो साफ-सुथरा और धर्मी दिखाई देते है परंतु भीतर से वे इसके विपरीत है। प्रभु येसु उनके इस दिखावट भरी जिंदगी से क्रुध और दुख होते है। दिखावटीपन एक छल है जो लोगों को गुमराह करता हैं। हमे अपने जीवन में दूसरों को दिखाने के लिए कार्यं नहीं करना चाहिए। यह हमारे जीवन के विश्वसनीयता को खोने में मजबूर कर देता है और हम स्वतंत्र नहीं अपितु दिखवट भरा-नकली जीवन जीते है।

फादर डेन्नीस तिग्गा

📚 REFLECTION


Lord Jesus makes a sarcasms of Pharisees and scribes on the conduct of their lives. He warns them by exposing their hypocrisy. They appear clean and righteous from outside but they are the opposite from inside. Lord Jesus is angry and saddened by their show off life. Appearance is a trick that misleads people. We should not do things in our lives to show others. It forces us to lose the credibility of our lives and instead of living free life we start living a fake life.

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन -2

नाज़रेत में, येसु को सभागृह से बाहर निकाल दिया गया था। अब कफरनहूम में अशुद्ध आत्मा से वश एक मनुष्य सभागृह में आया था, और उस में से अशुद्ध आत्मा निकालना था। सुसमाचार में वर्णित मनुष्य इस अशुद्ध और दुष्ट आत्मा के वश में था। अपदूत अशुद्ध था, प्रभु के विपरीत। अपदूत ने "येसु को ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष" (४:३४) के रूप में पहचाना। अपदूत कोलाहलपूर्ण और विघटनकारी था। वह ऊँचे स्वर से चिल्ला उठा (४:३३)। ऐसा लगता है कि उसका इरादा येसु की शिक्षा को बाधित करने का था। अपदूत मसीह के उद्देश्यों का विरोध करने की कोशिश कर रहा था और इस प्रकार अंत तक विद्रोही रहा। लेकिन येसु स्थिति के पूर्ण नियंत्रण में थे। येसु के अधिकार को उनकी वचनों की शक्ति से देखा जाना था। येसु के वचन पर, अपदूत ने आज्ञा का पालन किया। वही वचन विस्मयकारी और आश्चर्यजनक था क्योंकि वह उनके अधिकार एवं वास्तविक शक्ति के माध्यम से प्रदर्शित किया गया था। उस दिन ईश्वर और अपदूत का आमना सामना हुआ, आखिरकार ईश्वर की विजयी हुई।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.


📚 REFLECTION

At Nazareth, Jesus had been put out of the synagogue. Now, at Capernaum, a demonized man had come into the synagogue, and the demon must be put out of the man. The man in the gospel was utterly overshadowed, dominated and controlled by this unclean and evil spirit. The demon was unclean, in contrast to the Lord, who was recognized by the demon as “the Holy One of God” (4:34). The demon was loud and disruptive. He cried out with a loud voice (4:33). His intent seems to have been to interrupt and disrupt the teaching of Jesus. The demon was seeking to resist the purposes of Messiah, thus was rebellious to the end. But Jesus was in complete control of the situation. The authority of Jesus was to be seen by the power of His words. At the word of Jesus, demons obeyed. That same Word went from astonishing to amazing as its authority was demonstrated through real power. That day deity confronted the demon and the deity was victorious.

-Fr. Snjay Kujur SVD