17) अब तुम कमर कस कर तैयार हो जाओ और मैं तुम्हें जो कुछ बताऊँ, वह सब सुना दो। तुम उनके सामने भयभीत मत हो, नहीं तो मैं तुम को उनके सामने भयभीत बना दूँगा।
18) देखो! इस सारे देश के सामने, यूदा के राजाओं, इसके अमीरों, इसके याजकों और इसके सब निवासियों के सामने, मैं आज तुम को एक सुदृढ़ नगर के सदृश, लोहे के खम्भे और काँसे की दीवार की तरह खड़ा करता हूँ।
19) वे तुम्हारे विरुद्ध लडेंगे, किन्तु तुम को हराने में असमर्थ होंगे; क्योंकि मैं तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हारे साथ रहूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है।
17) हेरोद ने अपने भाई फि़लिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ़्त्तार किया और बन्दीगृह में बाँध रखा था; क्योंकि हेरोद ने हेरोदियस से विवाह किया था
18) और योहन ने हेरोद से कहा था, ’’अपने भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है’’।
19) इसी से हेरोदियस योहन से बैर करती थी और उसे मार डालना चाहती थी; किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाती थी,
20) क्योंकि हेरोद योहन को धर्मात्मा और सन्त जान कर उस पर श्रद्धा रखता और उसकी रक्षा करता था। हेरोद उसके उपदेश सुन कर बड़े असमंजस में पड़ जाता था। फिर भी, वह उसकी बातें सुनना पसन्द करता था।
21) हेरोद के जन्मदिवस पर हेरोदियस को एक सुअवसर मिला। उस उत्सव के उपलक्ष में हेरोद ने अपने दरबारियों, सेनापतियों और गलीलिया के रईसों को भोज दिया।
22) उस अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अन्दर आ कर नृत्य किया और हेरोद तथा उसके अतिथियों को मुग्ध कर लिया। राजा ने लड़की से कहा, ’’जो भी चाहो, मुझ से माँगो। मैं तुम्हें दे दॅूंगा’’,
23) और उसने शपथ खा कर कहा, ’’जो भी माँगो, चाहे मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो, मैं तुम्हें दे दूँगा’’।
24) लड़की ने बाहर जा कर अपनी माँ से पूछा, ’’मैं क्या माँगूं?’’ उसने कहा, ’’योहन बपतिस्ता का सिर’’।
25) वह तुरन्त राजा के पास दौड़ती हुई आयी और बोली, ’’मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दे दें’’
26) राजा को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण वह उसकी माँग अस्वीकार करना नहीं चाहता था।
27) राजा ने तुरन्त जल्लाद को भेज कर योहन का सिर ले आने का आदेश दिया। जल्लाद ने जा कर बन्दीगृह में उसका सिर काट डाला
28) और उसे थाली में ला कर लड़की को दिया और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया।
29) जब योहन के शिष्यों को इसका पता चला, तो वे आ कर उसका शव ले गये और उन्होंने उसे क़ब्र में रख दिया।
आज माता कलीसिया संत योहन बप्तिस्ता की शहादत का दिवस मना रही है। संत योहन ने निडर होकर हेरोद से कहा था कि अपने भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है। संत योहन प्रभु येसु के अग्रदूत थे, जिन्होंने प्रभु येसु के आगमन की बहुत-सी भविष्यवाणियां की और उनका पथ तैयार किया। हेरोद खुद संत योहन को धर्मात्मा मानता था। हम योहन के जीवन में देखते हैं कि वे कभी-कभी एक नन्हे बच्चे की तरह विनम्र हो जाया करते थे जैसे कि वचन संत मारकुस 1:7 में कहता है, “जो मेरे बाद आने वाले हैं वह मुझ से भी अधिक शक्तिशाली है। मैं तो झुक कर उनके जूते का फीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ।” कभी-कभी वे एक शेर की तरह दहाड़ते हुए मत्ति 3:7 में फरीसियों और सदुकियों से कहा करते थे, “सांप के बच्चों! किसने तुम लोगो को आगामी कोप से भागने के लिए सचेत किया?” कभी-कभी वे हेरोद जैसे महान राजा का भी सामना करता था। सुसमाचार के अनुसार, संत योहन ने अपने जीवन में सच्चा और सीधा पथ अपनाया था। इतिहास गवाह है कि जो व्यक्ति सत्य की राह अपनाता है उसके जीवन में दुख-संकट का पहाड़ टूट पड़ता ही है। संत योहन के जीवन में भी ऐसा ही हुआ था। जब उन्होंने हेरोद व हेरोदियस के रिश्ते पर आवाज उठाई, हेरोद ने संत योहन को बंदीगृह में डालवा दिया। हेरोदियस द्वेष से भर गई और वह एक मौके की तलाश करने लगी। हेरोद के जन्मदिवस पर हेरोदियस ने अपनी बेटी के नृत्य के द्वारा हेरोद को मुग्ध किया, जिसके फलस्वरूप हेरोद को संत योहन का सिर कटवाकर उसे देना पड़ा।
✍ - ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today Mother Church is celebrating the martyrdom day of Saint John the Baptist. Saint John boldly forbade Herod to keep his brother’s wife Herodias with him. Saint John was the forerunner of Lord Jesus, who made many predictions of the arrival of Lord Jesus and prepared his path. Herod himself considered Saint John to be a religious person. We see in the life of John that he was at times humble like a little child as the Word says in St. Mark 1:7, “He who is coming after me is mightier than I. I am not even worthy of bending down and untying his shoelaces.” Sometimes he roared like a lion and said to the Pharisees and Sadducees as in Matthew 3:7, You brood of vipers! “Who warned you to flee from the coming wrath? Sometimes even to a great king like Herod, in St. Mark 6:18 said, “It is not lawful for you to have your brother's wife.” According to the Gospel, Saint John followed a true and straight path in his life. History is witness to the fact that a person who follows the path of truth faces a mountain of sorrows and troubles in his life. The same thing happened in the life of Saint John. When John raised his voice on the relationship between Herod and Herodias, Herod put him in prison. Herodias was filled with jealousy and began looking for an opportunity. On Herod's birthday, Herodias charmed Herod with his daughter's dance. As a result, Herod had to get Saint John's head cut off.
✍ -Bro. Kapil Dev (Gwalior Diocese)
योहन बपतिस्ता का शहादत दिवस हम सभी को सत्य के लिए खडे़ रहने और हमेशा सत्य के लिए अपनी आवाज उठाने के लिए आमंत्रित करती है। जो सत्य के लिए आवाज़ उठाता है उसे लोग दबाने और मार डालने की कोशिश करते है। सत्य बोलने के कारण शायद हम उन लोगों के शत्रु बन जायें जिनके विषय में हमने सत्य बोला हैं। योहन ने हेरोद द्वारा अपनी भाई की पत्नी को अपनी पत्नी के रूप में रखने के कार्य को गलत ठहराया था। जिस कारण हेरोदियस उस से बैर करती थी और उसे मार डालना चाहती थी। योहन बपतिस्ता सत्य के साक्षी थे इसलिए उन्होनें निडरता पूर्वक सत्य का साथ दिया। सत्य के लिए आवाज़ बनने के कारण उनको मरवा दिया जाता है। लोग मनुष्य का तो अंत कर सकते है परंतु वे उस आवाज़ को कभी नहीं नष्ट कर सकते जो सत्य की ओर है। सच्चाई को इस संसार की कोई भी ताकत नष्ट नहीं कर सकती, इसलिए हम सभी को सत्य के साथ खड़े रहनें की जरूरत है।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाThe Day of the Martyrdom of John the Baptist invites us all to stand up for the truth and always raise our voices for the truth. People try to suppress and kill the one who raises his voice for the truth. By speaking the truth, we may become enemies of those about whom we have spoken the truth. John condemned Herod's act of taking his brother's wife as his wife. Because of which Herodius hated him and wanted to kill him. John the Baptist was a witness to the truth, so he fearlessly supported the truth. He was killed for being the voice for the truth. People can destroy a person but they can never destroy the voice which is for truth. Truth cannot be destroyed by any power in this world, so we all need to stand for the truth.
✍ -Fr. Dennis Tigga
आज हम संत योहन बप्तिस्ता की शहादत को याद करते हैं। जब हम योहन बप्तिस्ता के बारे में विचार करते हैं तो हम देखते हैं कि वह बहुत ही साधारण और मामूली से जान पड़ते हैं, अपने जीवन या पहनावे से बिलकुल ही शाही या आकर्षक नहीं लगता (मत्ती 11:7)। “वह ऊँट के रोओं का कपड़ा पहने और कमर में चमड़े का पट्टा बाँधे रहता था। उसका भोजन टिड्डयाँ और वन का मधु था।” (मत्ती 3:4)। यह कोई ख़ास प्रभावशाली पहनावा नहीं है। लेकिन फिर भी उसने बहुतों के हृदयों को झकझोर दिया और बहुत से लोग उसके पास बपतिस्मा ग्रहण करने आते थे, वे व्यथित होकर उससे पूछते थे, “हमें क्या करना चाहिए?” (लूकस ३:१०)।
उसने मौलिक जीवन जिया और प्रभु का मार्ग तैयार करने की आवाज़ के रूप में आया, और निडर होकर सत्य बोलना और सत्य की राह पर चलना उसका कर्तव्य और ज़िम्मेदारी थी। वह राजा हेरोद से भी नहीं डरता था, और इसलिए जब वह ग़लत कर रहा था तो उसने उसका विरोध किया। अपने मन ही मन राजा भी जानता था कि वह ग़लत कर रहा है, और योहन भी जानता था कि सत्य बोलने के कारण उसे अपनी जान भी गँवानी पड़ सकती है लेकिन “लेकिन इससे क्या फ़ायदा कि इंसान सारा संसार तो प्राप्त कर ले लेकिन अपनी आत्मा गँवा दे” (मारकुस 8:36)। संत योहन हमारे लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि हमें सत्य के लिए, सही के लिए और न्याय के लिए खड़े होना है फिर चाहे हमें कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़े। ईश्वर हमें सत्य के लिए डटकर खड़े होने की साहस प्रदान करे। आमेन।
✍ - फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today we remember the martyrdom of St. John the Baptist. When we think about John the Baptist, we see a very simple man, with simple living, he is not attractive or royal in look or life (Mt.11:7). “He wore a garment of camel’s hair, and a leather belt around his waist and his food was locusts and wild honey”(Mt.3:4). This doesn’t seem very impressive look. But he could stir the hearts of many and many came to him to be baptised, they were moved and asked him, “What then should we do?”(Lk.3:10).
He lived a radical life and as a voice to prepare for the path of the Lord, and it was his duty and responsibility to speak the truth fearlessly. He was not afraid of king Herod and rebuked him when he did wrong. Heart to heart the king knew that John was right, and John also knew that for speaking the truth and correcting the king he could lose his life, but “What does it profit a man to gain the whole world and forfeit his soul?” (Mk. 8:36). St. John the Baptist presents an example for us to follow that we have to stand for right, just and truth, even whatever challenges threaten us. May we get courage and strength to stand for truth in our lives. Amen.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)