अगस्त 28, 2024, बुधवार

वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : 2 थेसलनीकियों 3:6-10, 16-18

6) भाइयों! हम आप को प्रभु ईसा मसीह के नाम पर आदेश देते हैं कि आप उन भाइयों से अलग रहें, जो काम नहीं करते और उस परम्परा के अनुसार नहीं चले, जो आप लोगों को मुझ से प्राप्त हुई।

7) आप लोगों को मेरा अनुकरण करना चाहिए- आप यह स्वयं जानते हैं। आपके बीच रहते समय हम अकर्मण्य नहीं थे।

8) हमने किसी के यहाँ मुफ़्त में रोटी नहीं खायी, बल्कि हम बड़े परिश्रम से दिन-रात काम करते रहे, जिससे आप लोगों में किसी के लिए भी भार न बनें।

9) इमें इसका अधिकार नहीं था- ऐसी बात नहीं, बल्कि हम आपके सामने एक आदर्श रखना चाहते थे, जिसका आप अनुकरण कर सकें।

10) आपके बीच रहते समय हमने आप को यह नियम दिया- ’जो काम करना नहीं चाहता, उसे भोजन नहीं दिया जाये’।

16) शान्ति का प्रभु स्वयं आप लोगों को हर समय और हर प्रकार शान्ति प्रदान करता रहे! प्रभु आप सब के साथ हो!

17) मैं, पौलुस, अपने हाथ से यह नमस्कार लिख देता हूँ। यह मेरे सब पत्रों की पहचान है। यह मेरी लिखावट है।

18) हमारे प्रभु ईसा मसीह की कृपा आप सब पर बनी रहे!

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 23:27-32

27) ’’ढोंगी शास्त्रियों ओर फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम पुती हुई कब्रों के सदृश हो, जो बाहर से तो सुन्दर दीख पड़ती हैं, किन्तु भीतर से मुरदों की हड्डियों और हर तरह की गन्दगी से भरी हुई हैं।

28) इसी तरह तुम भी बाहर से लागों को धार्मिक दीख पड़ते हो, किन्तु भीतर से तुम पाखण्ड और अधर्म से भरे हुए हो।

29) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम नबियों के मकबरे बनवा कर और धर्मात्माओं के स्मारक सँवार कर

30) कहते हो, ’’यदि हम अपने पुरखों के समय जीवित होते, तो हम नबियों की हत्या करने में उनका साथ नहीं देते’।

31) इस तरह तुम लोग अपने विरुद्ध यह गवाही देते हो कि तुम नबियों के हत्यारों की संतान हो।

32) तो, अपने पुरखों की कसर पूरी कर लो।

📚 मनन-चिंतन

यदि हमें भोजन बिना नमक के भरोसा जाए तो हम क्या ही भोजन का आनंद लेंगे। इसी तरह यदि हम ईश्वर की आज्ञाओं और प्रभु येसु की शिक्षाओं को जीवन में लागू नहीं करेंगे तो हमारा जीवन भी बेस्वाद भोजन की तरह हो जाएगा। सुसमाचार में प्रभु येसु शास्त्रियों और फरीसियों को बार-बार ढोंगी व पाखंडी इसलिए कहते रहे, क्योंकि वे ईश्वर की आज्ञाओं को अच्छे से जानते तो थे परन्तु उनका पालन नहीं करते थे। यदि वे आज्ञाओं का पालन भी करते, तो वे ईश्वर के साथ संबंध बनाने के लिए नहीं, बल्कि लोगों को दिखाने के लिए आज्ञाओं का पालन किया करते थे। वे बाहरी रूप से ईश्वर में दीख पड़ते थे, परन्तु उनका हृदय ईश्वर से कोसों दूर था। उनकी नज़र ईश्वर पर तो दीख पड़ती थी, परन्तु उनका हृदय भेंट-वस्तुओं व दान-पत्रों पर टिका रहता था। वे ऐसी खोई हुई भेड़ थी, जिन्हें ईश्वर के साथ मेल-मिलाप कराने के लिए प्रभु येसु जैसे व्यक्ति की जरूरत थी जो उन्हें बता सके कि पिता ईश्वर बलिदानों से नहीं, भेट-दानों से नहीं, बल्कि तुम्हारे प्रेम और उसकी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न होता है। शास्त्रियों और फरीसियों के लिए ईश्वर की इच्छा थी कि वे अपने पाखंडी जीवन को त्यागकर प्रभु येसु में विश्वास करें। साथ ही, अपनी महिमा के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर की महिमा बखेरने के लिए अपना जीवन व्यतीत करें।

- ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

If we have to eat food without salt, then will we be able to enjoy it? Similarly, if we do not implement the commandments of God and the teachings of Lord Jesus in our life, then our life will also become like tasteless food. In the gospel, Lord Jesus repeatedly called the scribes and Pharisees hypocrites because they knew the commandments of God very well but did not follow them. Even if they followed the commandments, they did so not to build a relationship with God, but to show off to people. Externally they appeared to be good, but their hearts were far away from God. Their eyes were focused on God, but their hearts remained focused on gifts and donations. They were lost sheep who needed a person like Lord Jesus to be reconciled to God who could tell them that God the Father was pleased not with sacrifices, not with gifts, but with your love and fulfilling His will. God's will for the scribes and Pharisees was to abandon their hypocritical lives and believe in Lord Jesus. Let us learn live our lives not for our own glory, but to glorify God.

-Bro. Kapil Dev (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

जीवित इंसानों के साथ क़ब्रों की तुलना करना उचित नहीं है, लेकिन प्रभु येसु अपने समय के शास्त्रियों और फरिसीयों को सफ़ेदी से पुती हुई क़ब्रों से तुलना करते हैं। कब्र के अंदर भयानक मंजर होता है। जब जीवित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसे कब्र में दफ़नाया जाता है, तो कुछ समय बाद वह लाश सड़ने और गलने लगती है और कुछ दिनों में भयंकर बदबू देने लगती है। विज्ञान के शब्दों में कहें तो एक कब्र के अंदर बहुत बड़ी विघटन क्रिया होती है, अंततः हड्डियों के सिवा कुछ नहीं बचता। लेकिन बाहर से कब्र के अंदर होने वाली क्रिया हमें दिखाई नहीं देती और इसलिए हम उसकी भयानक रूप की कल्पना भी नहीं कर सकते।

प्रभु येसु फरिसियों और शास्त्रियों को उन्हीं क़ब्रों से तुलना करते हैं। यहाँ हमें यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि प्रभु येसु उन्हीं फरीसी और शास्त्रियों को धिक्कारते हैं जो अपनी बुलाहट अर्थात ईश्वर द्वारा दी ज़िम्मेदारी को बखूबी नहीं निभा रहे थे। वे बाहर से अपने आप को बहुत पवित्र और शरीफ़ दिखाते थे, लेकिन अंदर से वे घोर बुराई और पाप से भरे हुए थे। ईश्वर हमारे जीवन के छुपे हुए पहलुओं को भी देख सकते हैं, उसकी नज़रों से कुछ भी नहीं छुपा है। क्या मैं अंदर से बुरा और बाहर से अच्छा दिखने की कोशिश करता हूँ? आइए हम अपने आप को ईश्वर को समर्पित करें ताकि वह हमें सच्चे इंसान और अपनी महती दया के योग्य बना दे। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Tombs are not a beautiful thing to compare with a living person, but Jesus compares the teachers of the law and Pharisees with white washed tombs. A tomb is a horrible place to be in. When a human being dies and we bury the body in the tomb, it starts decomposing, flesh gets rotten and there is horrible smell within few days. Scientifically big process takes place inside a tomb and finally there remain only bones. But outside nothing is seen and therefore we can’t even imagine how horrible it is inside a tomb.

Jesus compares the teachers of the law and Pharisees with those tombs. Here we have to be careful that he is cursing and condemning the teachers of the law or Pharisees who are not living according to their calling, according to the responsibility given to them by God. They show themselves outwardly very religious and holy of holies, but inside they were filled with wickedness and evil. God can see even unseen aspects of our life, he knows us inside out. Am I a real person, a person bad within and showing good out? Let us surrender ourselves to God that he may make us genuine persons, persons clean and worthy of his mercy. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)