अगस्त 27, 2024, मंगलवार

वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 2:1-3a,14-17

1) भाइयो! हमारे प्रभु ईसा मसीह के पुनरागमन और उनके सामने हम लोगों के एकत्र होने के विषय में हमारा एक निवेदन, यह है।

2) किसी भविष्यवाणी, वक्तव्य अथवा पत्र से, जो मेरे कहे जाते हैं, आप लोग आसानी से यह समझ कर न उत्तेजित हों या घबरायें कि प्रभु का दिन आ चुका है।

3) कोई आप लोगों को किसी भी तरह न बहकाये।

14) उसने हमारे सुसमाचार द्वारा आप को बुलाया, जिससे आप हमारे प्रभु ईसा मसीह की महिमा के भागी बनें।

15) इसलिए, भाइयो! आप ढारस रखें और उस शिक्षा में दृढ़ बने रहें, जो आप को हम से मौखिक रूप से या पत्र द्वारा मिली है।

16) हमारे प्रभु ईसा मसीह स्वयं तथा ईश्वर, हमारा पिता - जिसने हमें इतना प्यार किया और हमें चिरस्थायी सान्त्वना तथा उज्जवल आशा का वरदान दिया है-

17) आप लोगों को सान्त्वना देते रहें तथा हर प्रकार के भले काम और बात में सुदृढ़़ बनाये रखें।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 23:23-26

23) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम पुदीने, सौंप और जीरे का दशमांश तो देते हो, किन्तु न्याय, दया और ईमानदारी, संहिता की मुख्य बातों की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना तुम्हारे लिए उचित था।

24) अन्धे नेताओ! तुम मच्छर छानते हो, किन्तु ऊँट निगल जाते हो।

25) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम प्याले और थाली को बाहर से माँजते हो, किन्तु भीतर वे लूट और असंयम से भरे हुए हैं।

26) अन्धे फ़रीसी! पहले भीतर से प्याले को साफ़ कर लो, जिससे वह बाहर से भी साफ़ हो जाये।

📚 मनन-चिंतन

यदि जीवन स्वार्थ व असंयम से भरा हो, तो हम क्या ही अच्छा कर सकते हैं। हम सदा वही करेंगे जो हमारे अहंकार व स्वार्थ को संतुष्ट करता हो। सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि, शास्त्री व फरीसी एक पाखंड से भरा जीवन व्यतीत कर रहे थे। इनके इस पाखंड व ढोंग से बहुत-से परिवार नष्ट हो गए थे। प्रभु येसु उन्हें ढोंगी, पाखंडी व मूर्ख कहकर इसलिए संबोधित करते हैं, क्योंकि वे कभी न्याय की बात नहीं करते थे। प्रभु येसु कहते है, अपने प्याले को बाहर से ही नहीं, बल्कि अंदर से साफ कर लो, जिससे वह बाहर से भी साफ दिखे। हाँ प्यारे भाइयो और बहनो, हमें भी शास्त्री और फरीसियों की तरह अपने अंतःकरण को साफ करने की आश्यकता हैं। पहले कुरि 3:16 में वचन कहता है, ”क्या आप यह नहीं जानते कि आपके की आप ईश्वर के मंदिर है और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है।” वचन कहता है ख्रीस्त आप में निवास करते हैं। यदि हम चाहते हैं कि, ईश्वर हममें निवास करें, हमारे साथ रहे; तो हमें अपने-अपने अंत:करण को साफ करना होगा। क्योंकि कुत्ते भी बैठने से पहले अपनी जगह को साफ करते हैं। ईश्वर का आत्मा हममें निवास करना चाहता है। परन्तु जब आत्मा देखती है कि हमारा मन विभिन्न प्रकार की बुराइयों से भरा हुआ है तो इस देख आत्मा को हमारे साथ रहने में घुटन होने लगती है और वह हमें छोड़कर चला जाता है। इसलिए हमें अपने शरीर को आत्मा का मन्दिर बनाने के लिए तैयारी की आवश्कता है।

- ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

If life is full of selfishness and incontinence, then what good can we do? We will always do only that which satisfies our ego and selfishness. In the Gospel we read that the scribes and Pharisees were living a life full of hypocrisy. Many families were destroyed by their hypocrisy. Lord Jesus addresses them as hypocrites, and fools because they never talked about justice. Lord Jesus says, clean your cup not only from outside, but from inside, so that it looks clean from outside also. Yes, dear brothers and sisters, we too need to cleanse our conscience like the scribes and Pharisees. The Word says in First Corinthians 3:16, “Do you not know that you are the temple of God and that the Spirit of God lives in you?” The Word says Christ lives in you. If we want God to reside in us, to be with us; So, we have to clean our conscience. Even dogs clean their place before sitting. The Spirit of God wants to reside in us. But when the soul sees that our mind is filled with various types of evils, then the Spirit starts feeling suffocated in living with us and it leaves us. Therefore, we need preparation to make our body a temple of the Holy Spirit.

-Bro. Kapil Dev (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज के सुसमाचार में येसु अपने समय के धार्मिक नेताओं को पवित्रता और सच्चाई की कमी के लिए चेतावनी देना जारी रखते है। बाहर से, फरीसियों और शास्त्रियों का व्यवहार त्रुटिहीन है, लेकिन अंदर एक सच्ची सुसमाचार भावना का अभाव है। अंदर वे लोभ और आत्मग्लानि से भरे हुए हैं। सच्ची सुसमाचार भावना सभी के लिए प्रेम, सत्यनिष्ठा, करुणा और न्याय की भावना है। उनकी प्रथाओं ने इरादे पर व्यवहार को जोर दिया। आध्यात्मिक जीवन के लिए इरादा और कार्य दोनों महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कानून का पालन किया लेकिन गरीबों को भूल गए। इसलिए येसु कह रहे हैं कि फरीसी छोटी-छोटी बातों की चिंता तो करते हैं लेकिन महत्वपूर्ण बातों की उपेक्षा कर देते हैं।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.


📚 REFLECTION

In today’s gospel Jesus continues to warn the religious leaders of his time for their lack of holiness and genuineness. On the outside, the behaviour of the Pharisees and Scribes is impeccable but inside there is a lack of a true Gospel spirit. Inside they are full of greed and self-indulgence. The true gospel spirit is one of love, integrity, compassion and a sense of justice for all. Their practices emphasized behaviour over intention. Intention and action are both important to a spiritual life. They practiced the law but forgot the poor. Therefore Jesus is saying that the Pharisees worry about the small things but neglect the important.

-Fr. Snjay Kujur SVD

📚 मनन-चिंतन -3

आम तौर पर हम देखते हैं कि प्रभु येसु कठोर शब्दों अथवा ग़लत भाषा का प्रयोग नहीं करते भले ही उन्हें कोई कितना भी उकसाए। वे विरले ही क्रोधित या आपा खोते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन जब कुछ गम्भीर बात थी, तो उन्हें कभी-कभी ग़ुस्सा भी आया। ऐसा उदाहरण हम मन्दिर में देखते हैं। (देखें योहन 2:13-16)। वह क्रोधित हुए क्योंकि उन्होंने देखा कि लोगों ने ईश्वर के निवास स्थान को व्यवसाय के स्थान में बदल दिया है। वह ईश्वर को पाने का पवित्र स्थान था लेकिन उन्होंने उसे चोर और लुटेरों का अड्डा बना कर रख दिया था, इसलिए प्रभु को ग़ुस्सा आया।

आज की दुनिया में भी हम ऐसी स्थिति देखते हैं, जहाँ ज़िम्मेदार व्यक्ति ईश्वर के नियमों को बदलते और अपने स्वार्थ के लिए तोड़ते-मरोड़ते हैं। वे ईश्वर नियमों की ग़लत व्याख्या करते हैं। वे नियम जो लोगों के लिए ईश्वर के क़रीब आने के मार्गदर्शक थे, उन्हें कुछ ज़िम्मेदारों ने लोगों के लिए अनावश्यक भार में बदल दिया है। जो धर्मगुरु लोगों को ईश्वर के नियमों पर चलने में मदद करने के लिए थे, वे लोगों को ईश्वर से दूर जाने का कारण बन रहे थे। प्रभु येसु ऐसे नेताओं को ढोंगी कहकर बुलाते हैं, ढोंगी, अर्थात जो वास्तव में कुछ और हैं, लेकिन दिखाते कुछ और हैं। ऐसे लोगों से ईश्वर क्रुद्ध होता है। क्या मेरे किसी व्यवहार से ईश्वर को ग़ुस्सा आता है?

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

We normally see Jesus avoiding to use harsh language or bad words even when provoked or challenges. He is very rarely seen angry or out of control. But when the matters were serious, they did make him angry. We see such example in the temple (see Jn.2:13-16). He was angry because he saw that people had turned God’s house into a business place. It was supposed to be the place of meeting God but they had made it a den of robbers and that made him angry.

We see today a similar situation, responsible people changing and modifying God’s rules and using them according to their own conveniences. They are misinterpreting God’s law. The laws that are supposed to become guiding principles for the people for coming closer to God, they have become unnecessary burdens for the people, because of those responsible leaders who were supposed to help people. He calls them hypocrites, the people who were something else and showed to be something else, that makes God angry. Does any of my behaviour make God angry?

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)