23) मैं अपने महान् नाम की पवत्रिता प्रमाणित करूँगा, जिस पर देश-विदेश में कलंक लग गया है और जिसका अनादर तुम लोगों ने वहाँ जा कर कराया है। जब मैं तुम लोगों के द्वारा राष्ट्रों के सामने अपने पवत्रि नाम की महिमा प्रदर्शित करूँगा, तब वे जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
24) ’’मैं तुम लोगों को राष्ट्रों में से निकाल कर और देश-विदेश से एकत्र कर तुम्हारे अपने देश वापस ले जाऊँगा।
25) मैं तुम लोगों पर पवत्रि जल छिडकूँगा और तुम पवत्रि हो जाओगे। मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवत्रिता से और तुम्हारी सब देवमूर्तियों के दूषण से शुद्ध कर दूँगा।
26) मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।
27) मैं तुम लोगों में अपना आत्मा रख दूँगा, जिससे तुम मेरी संहिता पर चलोगे और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करोग।
28) तुम लोग उस देश में निवास करोगे, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।
1) ईसा उन्हें फिर दृष्टान्त सुनाने लगे। उन्होंने कहा,
2) ’’स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जिसने अपने पुत्र के विवाह में भोज दिया।
3) उसने आमन्त्रित लोगों को बुला लाने के लिए अपने सेवकों को भेजा, लेकिन वे आना नहीं चाहते थे।
4) राजा ने फिर दूसरे सेवकों को यह कहते हुए भेजा, ’अतिथियों से कह दो- देखिए! मैंने अपने भोज की तैयारी कर ली है। मेरे बैल और मोटे-मोटे जानवर मारे जा चुके हैं। सब कुछ तैयार है; विवाह-भोज में पधारिये।’
5) अतिथियों ने इस की परवाहा नहीं की। कोई अपने खेत की और चला गया, तो कोई अपना व्यापार देखने।
6) दूसरे अतिथियों ने राजा के सेवकों को पकड़ कर उनका अपमान किया और उन्हें मार डाला।
7) राजा को बहुत क्रोध आया। उसने अपनी सेना भेज कर उन हत्यारों का सर्वनाश किया और उनका नगर जला दिया।
8) ’’तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ’विवाह-भोज की तैयारी तो हो चुकी है, किन्तु अतिथि इसके योग्य नहीं ठहरे।
9) इसलिए चैराहों पर जाओ और जितने भी लोग मिल जायें, सब को विवाह-भोज में बुला लाओ।’
10) सेवक सड़कों पर गये और भले-बुरे जो भी मिले, सब को बटोर कर ले आये और विवाह-मण्डप अतिथियों से भर गया।
11) ’’राजा अतिथियों को देखने आया, तो वहाँ उसकी दृष्टि एक ऐसे मनुष्य पर पड़ी, जो विवाहोत्सव के वस्त्र नहीं पहने था।
12) उसने उस से कहा, ’भई विवाहोत्सव के वस्त्र पहने बिना तुम यहाँ कैसे आ गये?’ वह मनुष्य चुप रहा।
13) तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ’इसके हाथ-पैर बाँध कर इसे बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।’
14) क्योंकि बुलाये हुए तो बहुत हैं, लेकिन चुने हुए थोडे़ हैं।’’
आज के सुसमाचार पाठ में, हम देखते हैं कि कई लोगों को राज्य के भोज में आमंत्रित किया गया था, लेकिन उनमें से कोई भी उस भोज के योग्य नहीं पाया गया। आमंत्रित लोग ईश्वर के विशेष रूप से चुने गए लोग थे जो उनके लिए विशेष रूप से तैयार किए गए भोजन की शोभा बढ़ाएंगे। ईश्वर ने इन लोगों को आमंत्रित किया क्योंकि वह उनसे प्रेम करता था और चाहता था कि वे ईश्वर के राज्य की झलक संजोकर रखें। लोगों ने ईश्वर के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया और उन लोगों को मार डाला जो उनका स्वागत करने आये थे। स्वयं ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्रेम को अक्सर स्वीकार नहीं किया जाता है। ईश्वर के साथ भी ऐसा ही हुआ। ईश्वर के प्रेम की शुरुआत स्वयं ईश्वर द्वारा की जाती है। इसी तरह रोजमर्रा की जिंदगी में भी ऐसा होता है। हम भी अक्सर किसी के द्वारा दिए गए सच्चे प्यार को नजरअंदाज कर देते हैं। प्रेम का यह भोजन ईश्वर के प्रेम का अतिप्रवाह है जिसे किसी भी प्रकार के बर्तन में समाहित नहीं किया जा सकता है। इसलिए, ईश्वर का विशेष प्रेम जो चुने हुए लोगों के लिए था, सभी के लिए फैला हुआ है जैसा कि आज के सुसमाचार में लिखा है, जिसे भी तुम पाओ उसे दावत पर लाओ। ये लोग विशेषाधिकार प्राप्त हैं और ईश्वर की संगति का आनंद लेते हैं। ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को यह विशेषाधिकार दिया था। अब यह हम पर निर्भर है कि हम इस विशेषाधिकार को संजोएं या उन लोगों की तरह ईश्वर के प्रेम को अस्वीकार कर दें, जिन्होंने भोज में ईश्वर के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था।
✍ - ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
In today's gospel reading, we see many were invited to the banquet of the Kingdom but none of them were found worthy to that feast. The invited people were the specially chosen people of God who will grace the meal prepared specially for them. God invited these people because He loved them and wanted them to cherish the glimpse of kingdom of God. The people rejected God’s invitation and killed those who came to receive them. The love offered by God Himself is not often acknowledged. It so happened with God. God’s love is initiated by God Himself. Similarly, it happens in day-to-day life. We too often ignore the true love offered by one. This meal of love is an overflow of God’s love which cannot be contained in any type of vessel. Therefore, God’s special love which was meant for chosen ones is extended to everyone as it is written in today’s Gospel, whomever you find bring them to the feast. These people are privileged and enjoyed the company of God. God had given this privilege to each person. Now it is up to us to cherish this privilege or to rejects God’s love like those who rejected God’s invitation to the banquet.
✍ -Bro. Kapil Dev (Gwalior Diocese)
क्या आपको कभी किसी समारोह का निमंत्रण मिला हो और आप वहा उपस्थित नहीं होना चाहते थे? केवल एक चीज है जो सुसमाचार में वर्णित पहले आमंत्रित अतिथियों को दूसरे आमंत्रित अतिथियों से अलग करती है। वह है उपस्थिति। दूसरे आमंत्रित अतिथि विवाह भोज में उपस्थित हुए जब की पहले आमंत्रित अतिथि उपस्थित नहीं हुए । उपस्थित होने का अर्थ है, ईश्वर के सामने योग्य होना। राजा बिना विवाहोत्सव के वस्त्र वाले व्यक्ति को "मित्र" कहता है। ऐसा लगता है कि वे एक-दूसरे को जानते हैं, लेकिन "मित्र" ने अभी भी अपने पुराने कपड़ों के साथ आने का फैसला किया है। परिणामस्वरूप वह विवाह भोज में से निकाल दिया गया। विवाहोत्सव का वस्त्र स्पष्ट रूप से विश्वास और बपतिस्मा का प्रतिक है जो सुसमाचार के प्रति एक जीवंत प्रतिबद्धता के साथ संयुक्त है।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.
Have you ever received an invitation to a function and you really did not want to attend? There’s only one thing that distinguishes the first-invited guests from the second-invited guests. Presence. The second-invited guests showed up. The first-invited guests did not. To show up and be present is to be worthy before God. Notice that the King calls the person without the weeding garment “Friend”. They do seem to know each other, but the “friend” has still chosen to come with his own garments. In this case, the King is not “furious” but the result is that the invited wedding guest is still removed from the feast. The wedding garment clearly stands for faith and baptism combined with a lived out commitment to the Gospel.
✍ -Fr. Snjay Kujur SVD
आज हम एक बड़े ही सुंदर दृष्टांत पर मनन-चिंतन करेंगे। एक ऐसा दृष्टांत जिसमें एक राजा है जो सब प्रकार के लोगों को चाहे भले हों या बुरे, भोज में शामिल करता है क्योंकि बुलाए गये लोग उसके बुलावे का सम्मान नहीं करते। तब वह उन सभी का सर्वनाश करता है जो उसके बुलावे के अस्वीकार करते हैं। साथ ही हम यह भी देखते हैं कि भले ही राजा ने सबको बुला लिया लेकिन एक व्यक्ति विवाह की पोशाक के बिना ही अर्थात् बिना तैयारी के आ जाता है, और राजा उसके हाथ-पैर बांधकर बाहर अंधकार में फेंकने का आदेश देता है, जहाँ वे रोयेंगे और दाँत पीसेंगे।
यह बात स्पष्ट है कि यह दृष्टांत यहूदियों के लिए था जो स्वर्गराज्य के उत्तराधिकारी बनने के लिए बुलाए गए थे, लेकिन वे ईश्वर के बुलावे को अस्वीकार कर देते हैं, और प्रभु येसु को मुक्तिदाता मसीह के रूप में स्वीकार नहीं करते जिसके कारण ईश्वर की मुक्ति सभी के लिए उपलब्ध हो जाती है, सारी बंदिशें तोड़ दी जाती हैं। सब तरह के लोग चाहे अच्छे हों या बुरे, सब ईश्वर के विवाह भोज में भाग ले सकते हैं, बशर्ते वे विवाह की पोशाक में हों। जब ईश्वर पापियों के लिए खुला निमंत्रण देते हैं तो अपने पापों को त्यागकर पश्चाताप रूपी पोशाक की आवश्यकता है। यदि हम पश्चाताप रूपी पोशाक में नहीं हैं तो ईश्वर के विवाह भोज में शामिल नहीं हो सकते। ईश्वर हमें ईश्वरीय राज्य के योग्य बना सकते हैं, लेकिन पहला कदम पश्चाताप के रूप में हमारी तरफ़ से होना है।
✍ - फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
We have a beautiful parable for our reflection today. A parable of the king who brings all kinds of people, bad and good alike because invited and chosen people did not respond positively. Then he destroys those who refuse his invitation. At the same time we see, though the king brought in everyone but one of them was not in wedding garments which means he came unprepared and king orders the attendants to bind his hands and feet and cast outside into the darkness where there will be wailing and grinding of teeth.
This is certainly clear that this parable is about Jews who were chosen to be the heirs of the kingdom of God and yet they refused to accept Jesus as their Messiah and therefore salvation is opened for all, all boundaries are removed. All people whether good or bad, worthy or unworthy can partake in God’s banquet, but only one thing is needed, the wedding garment. When God gives an open invitation to the sinners, what is most required is the wedding garment of repentance, giving up of our sins. If we do not wear the garment of repentance, we cannot partake in the banquet of God. God can make us worthy but first step is repentance, which is from our side.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)