अगस्त 16, 2024, शुक्रवार

वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 16:1-15,60,63

1) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,

2) “मानवपुत्र! येरुसालेम को उसके वीभत्स कर्मों का विवरण सुनाओं।

3) उस से कहोः प्रभु-ईश्वर येरुसालेम से यह कहता है- वंश और जन्म ही दृष्टि से तुम कनानी हो। तुम्हारा पिता अमोरी था और तुम्हारी माता हित्ती थी।

4) जन्म के समय तुम्हारी नाल नहीं काटी गयी, शुद्धीकरण के हेतु तुम को पानी से नहीं नहलाया गया। लोगों ने तुम्हारे शरीर पर नमक नहीं लगाया और तुम को कपड़ों में नहीं लपेटा।

5) किसी ने भी तुम्हारे लिए यह सब करने की परवाह नहीं की। किसी को को भी तुम पर ममता नहीं हुई। तुम्हारे जन्म के दिन तुम को घृणित समझ कर खुले मैंदान में छोड़ दिया गया।

6) “उस समय मैं तुम्हारे पास से हो कर जा रहा था। मैंने तुम को तुम्हारे अपने रक्त में लोटता हुआ देखा और तुम से, जो अपने रक्त से सनी हुई थी, कहा- जीती रहो, जीती रहो!

7) तुम मेरी देखरेख में खेत के फूल की तरह बढ़ती गयी। तुम बढ़ कर बड़ी हो गयी। तुम बहुत सुन्दर थी। तुम्हारे स्तन उठने और तुम्हारे केश बढ़ने लगे, किन्तु तुम उस समय तक नग्न और विवस्त्र थी।

8) “जब मैं दुबारा तुम्हारे पास से हो कर गया, तो मैंने देखा कि तुम विवाह-योग्य हो गयी हो। मैंने अपने वस्त्र का पल्ला तुम पर डाल तुम्हारा नग्न शरीर ढक दिया। मैंने शपथ खा कर तुम से समझौता किया और तुम मेरी हो गयी। यह प्रभु की वाणी है।

9) मैंने तुम को पानी से नहलाया, तुम पर लगा हुआ रक्त धो डाला और तुम पर तेल का विलेपन किया।

10) मैंने तुम को बेलबूटेदार कपड़े और बढिया चमडे़ के जूते पहनाये। मैंने तुम को छालटी का सरबन्द और रेशमी वस्त्र प्रदान किये।

11) मैंने तुम को आभूषण पहनाये, तुम्हारे हाथों में कंगन और तुम्हारे गले में हार डाला।

12) मैंने तुम्हारी नाक में नथ लगाया, तुम्हारे कानों में बालियाँ पहनायी और तुम्हारे सिर पर शानदार मुकुट रख दिया।

13) तुम सोने और चाँदी से अलंकृत थी। तुम छालटी, रेशम और बेलबूटेदार कपड़े पहनती थी। तुम्हारा भोजन मैदे, मधु और तेल से बनता था। तुम राजरानी के सदृश अत्यन्त सुुन्दर हो गयी।

14) तुम्हारे सौन्दर्य का ख्याति संसार भर में फैल गयी, क्योंकि मैंने तुम को अपूर्व गौरव प्रदान किया था। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

15) “किन्तु तुम्हारे सौन्दर्य ने तुम को बहका दिया। तुम अपनी ख्याति को दुरुपयोग करते हुए व्यभिचार करने लगी। तुमने किसी भी बटोही को अपना सौन्दर्य बेच दिया।

60) फ़िर भी मैं उस प्रतिज्ञा को याद रखूँगा, जो मैंने तुम्हारी जवानी के दिनों तुम से की थी। मेरा और तुम्हारा विधान सदा के लिए बना रहेगा।

63) जब तुम अपना अतीत याद करोगी, तो तुम लज्जा के मारे एक भी शब्द कहने का साहस नहीं करोगी; क्योकि मैंने तुम्हारे सभी अपराध क्षमा कर दिये। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 19:3-12

3 फ़रीसी ईसा के पास आये और उनकी परीक्षा लेते हुए यह प्रश्न किया, ’’क्या किसी भी कारण से अपनी पत्नी का परित्याग करना उचित है?

4) ईसा ने उत्तर दिया, ’’क्या तुम लोगों ने यह नहीं पढ़ा कि सृष्टिकर्ता ने प्रारंभ से ही उन्हें नर-नारी बनाया।

5) और कहा कि इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोडे़गा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे?

6) इस तरह अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर है। इसलिए जिसे ईश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।’’

7) उन्होंने ईसा से कहा, ’’तब मूसा ने पत्नी का परित्याग करते समय त्यागपत्र देने का आदेश क्यों दिया?

8) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मूसा ने तुम्हारे हृदय की कठोरता के कारण ही तुम्हें पत्नी का परित्याग करने की अनुमति दी, किन्तु प्रारम्भ से ऐसा नहीं था।

9) मैं तुम लोगों से कहता हूँ कि व्यभिचार के सिवा किसी अन्य कारण से जो अपनी पत्नी का परित्याग करता और किसी दूसरी स्त्री से विवाह करता है, वह भी व्यभिचार करता है।’’

10) शिष्यों ने ईसा से कहा, ’’यदि पति और पत्नी का सम्बन्ध ऐसा है, तो विवाह नहीं करना अच्छा ही है’’।

11) ईसा ने उन से कहा ’’सब यह बात नहीं समझते, केवल वे ही समझते हैं जिन्हें यह वरदान मिला है;

12) क्योंकि कुछ लोग माता के गर्भ से नपुंसक उत्पन्न हुए हैं, कुछ लोगों को मनुष्यों ने नपुंसक बना दिया है और कुछ लोगों ने स्वर्गराज्य के निमित्त अपने को नपुंसक बना लिया है। जो समझ सकता है, वह समझ ले।’’

📚 मनन-चिंतन

विवाह एक पवित्र संस्कार है। कैथलिक कलीसिया में यह सात संस्कारों में से एक है। यह एक अटूट बंधन होता है इसमें दो व्यक्तियों का मिलन होता है। इसी विषय को प्रभु येसु लोगों को समझाते हैं जब वे उनसे तलाक के संबंध में प्रश्न करते हैं। येसु उन्हें समझाते हैं कि विवाह एक साधारण रिश्ता नहीं होता है। कुछ लोग येसु की परीक्षा लेने हेतु यह सवाल करते हैं। येसु उन्हें पुराने विधान के द्वारा इस प्रश्न का जवाब देते हैं कि प्रारंभ में ईश्वर ने नर-नारी के रूप में मनुष्य की सृष्टि की एवं ईश्वर ने कहा कि इसके कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और वे एक शरीर होंगे। येसु उन्हें समझाते हैं कि विवाह के द्वारा पति और पत्नी एक शरीर हो जाते हैं और यह संबंध किसी भी साधारण कारणों से आसानी से नहीं टूट सकता है। क्योंकि इसे ईश्वर ने जोड़ा है, एवं इस पर मनुष्य का कोई अधिकार नहीं है। यह एक अटूट संबंध है जिसे हर परिस्थिति में अटूट बनाए रखना है। आजकल के समय में छोटे-से कारण से कई लोग इस रिश्ते को तोड़ देते हैं। वे भूल जाते हैं कि उन्हें ईश्वर ने एक रिश्ते में बांधा है और इस पर उनका कोई अधिकार नहीं है। इस रिश्ते को उन्हें निभाना है। जीवन के उतार चढ़ाव में उन्हें एक दूसरे का साथ देना है, एवं ईश्वर से रिश्ते को अटूट बनाए रखने हेतु प्रार्थना करना है।

ब्रदर रोशन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


Marriage is a holy sacrament. It is one of the seven sacraments in the Catholic Church. It is an unbreakable bond in which two persons unite. Lord Jesus explains this topic to people when they ask him questions about divorce. Jesus explains to them that marriage is not an ordinary relationship. Some people ask this question to test Jesus. Jesus answers this question through the Old Testament that in the beginning God created man as male and female. And God said that due to this man will leave his parents and they will become one body. Jesus explains to them that through marriage husband and wife become one body. And this relationship cannot be broken easily due to any ordinary reasons. Because it is joined by God, and man has no right over it. This is an unbreakable relationship which has to be kept unbreakable in every situation. In today’s time, many people break this relationship due to any small reason. They forget that God has tied them in a relationship and they have no right over it. They have to grow deeper in this relationship. They have to support each other in the ups and downs of life and pray to God to keep the relationship unbreakable.

-Bro. Roshan Damor (Jhabua Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

सुसमाचार में, फरीसियों ने तलाक के संबंध में येसु से प्रश्न किया। येसु ने तलाक को खारिज करने और पुरुषों और महिलाओं को समान स्तर पर रखने के द्वारा इस मुद्दे का समाधान किया। व्यभिचार के अलावा कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देने का विकल्प नहीं चुन सकता। इस विषय पर उनके शिष्यों की आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया हुई। विवाह में एक पुरुष और महिला के बीच के बंधन को जो जीवित रखता है, वह है वफादारी। एक सफल विवाह निष्ठा और विश्वासयोग्यता की मांग करता है। वफादारी, दूसरों को, न कहने से कहीं बढ़कर है, यह आपके जीवनसाथी को भी, हां कह रहा है। पति-पत्नी अपने वचनों की ईमानदारी और अपने जीवन की अखंडता में ईश्वर के विश्वासयोग्य चरित्र को प्रस्तुत करते हैं। विश्वासयोग्य विवाह को जीने से जो वास्तव में ईश्वर की विधान की, विश्वासयोग्यता को दर्शाता है, पति-पत्नी दुनिया के सामने ईश्वर के साक्षी बन जाते हैं। आज येसु हमें अपने व्यक्तिगत संबंधों और प्रतिबद्धताओं को बहुत गंभीरता से लेने के लिए कहते हैं। सच्ची, गहरी और प्रेमपूर्ण प्रतिबद्धता सबसे कीमती उपहार है जो हम किसी अन्य व्यक्ति को दे सकते हैं।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.


📚 REFLECTION

In the gospel, the Pharisees questioned Jesus regarding divorce. Jesus resolved the issue by ruling out divorce and placing men and women on the same level; no longer could a man opt to divorce his wife, except for unchastity. This drew the astonished response from his disciples. What keeps alive the bond between a man and woman in marriage is faithfulness. A successful marriage demands fidelity and faithfulness. Faithfulness is more than just saying no to others; it’s also saying yes to your spouse. The spouses present God’s character of faithfulness in the honesty of their words and the integrity of their lives. By living out the faithful marriage which truly depicts God’s covenant faithfulness, the spouses become a witness to the world. Today Jesus calls us to take our personal relationships and commitments very seriously. True, deep and loving commitment is the most precious gift we can give to another person.

-Fr. Snjay Kujur SVD

📚 मनन-चिंतन -3

आज के सुसमाचार में कुछ फरीसी लोग प्रभु येसु के पास तलाक़ के बारे में बड़ा ही संवेदनशील सवाल लेकर आते हैं। लेकिन प्रभु येसु ना केवल तलाक़ के बारे में समझाते हैं, बल्कि उस से भी बढ़कर विवाह के पवित्र बंधन के बारे में सही तरह से समझाते हैं। विवाह की जोड़ियाँ ईश्वर बनाते हैं और ईश्वर के किए हुए को कौन मिटा सकता है, कौन उसकी योजनाओं के विरुद्ध जा सकता है? प्रभु येसु विवाह के बंधन में विकट समस्या और बड़े ख़तरे के बारे में भी समझाते हैं, और वह है हृदय की कठोरता। विवाह का बंधन दो आत्माओं के मिलन का बंधन है और अगर उनमें से एक भी ह्रदय की कठोरता का शिकार हो जाए तो इस बंधन पर ख़तरा मंडराने लगता है।

इसी तरह का एक अटूट बंधन हम उनके जीवन में भी देखते हैं जो, ईश्वर के राज्य की ख़ातिर खुद को विवाह के बंधन से दूर रखते हैं। इनमें पुरोहित और धर्म-भाई बहनें हैं जो ईश्वर और कलीसिया की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। यह बंधन भी एक अटूट बंधन है और ऐसे समर्पित लोग इस बंधन को सुरक्षित बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्हीं में से एक हैं सन्त मैक्सिमिलीयन कोल्बे जिनका त्योहार आज हम मनाते हैं और जिन्होंने ईश्वर की सेवा और लोगों की सेवा के अपने समर्पण को तोड़ने की बजाय अपना जीवन क़ुर्बान करना अधिक बेहतर समझा। उन्होंने एक मिशाल पेश की कि नाज़ी कैम्प की निर्दयी परिस्थिति में भी आशा की नयी किरण जगायी जा सकती है। वह अन्त तक ईश्वर और कलीसिया के प्रति वफ़ादार बने रहे। सन्त कोल्बे हमारे लिए प्रार्थना करें। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today some Pharisees come to Jesus with a very sensitive question about divorce. But Jesus not only explains to them about divorce, but more than that he explains about the sacred bond of marriage. It is God who makes this bond and who has power to undo what God does, or who can go against the designs of God. Jesus also indicates one of the most pertinent problem and biggest threat in the bond of marriage that is hard heartedness. Marriage is two-sided effort and if one partner becomes hardhearted and does not adjust, then comes the problem.

Similar bond we see in them who do not marry because they want to work for God. The priests give their life for God and the church. This bond is unbreakable and priests would go to any extent to safeguard this sacred bond. One such priest we remember today, St. Maximilian Kolbe, who chose to die rather than break the bond of serving God and church. He set an example, that even being in such a hopeless situation in concentration camps, but he brought hope and life to others. He remained a faithful priest to God and to the Church till the end. May St. Kolbe pray for all.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)