19) तब स्वर्ग में ईश्वर का मन्दिर खुल गया और मन्दिर में ईश्वर के विधान की मंजूषा दिखाई पड़ी।
1) आकाश में एक महान् चिन्ह दिखाई दिया: सूर्य का वस्त्र ओढ़े एक महिला दिखाई पड़ी। उसके पैरों तले चन्द्रमा था और उसके सिर पर बारह नक्षत्रों का मुकुट।
2) वह गर्भवती थी और प्रसव-वेदना से पीडि़त हो कर चिल्ला रही थी।
3) तब आकाश में एक अन्य चिन्ह दिखाई पड़ा- लाल रंग का एक बहुत बड़ा पंखदार सर्प। उसके सात सिर थे, दस सींग थे और हर एक सिर पर एक मुकुट था।
4) उसकी पूँछ ने आकाश के एक तिहाई तारे बुहार कर पृथ्वी पर फेंक दिये। वह पंखदार सर्प प्रसव-पीडि़त महिला के सामने खड़ा रहा, जिससे वह नवजात शिशु को निगल जाये।
5) उस महिला ने एक पुत्र प्रसव किया, जो लोह-दण्ड से सब राष्ट्रों पर शासन करेगा। किसी ने उस शिशु को उठाकर ईश्वर और उसके सिंहासन तक पहुंचा दिया
6) और वह महिला मरुभूमि की ओर भाग गयी, जहाँ ईश्वर ने उसके लिए आश्रय तैयार करवाया था
10) मैंने स्वर्ग में किसी को ऊँचे स्वर से यह कहते सुना, ’अब हमारे ईश्वर की विजय, सामर्थ्य तथा राजत्व और उसके मसीह का अधिकार प्रकट हुआ है;
20) किन्तु मसीह सचमुच मृतकों में से जी उठे। जो लोग मृत्यु में सो गये हैं, उन में वह सब से पहले जी उठे।
21) चूँकि मृत्यु मनुष्य द्वारा आयी थी, इसलिए मनुष्य द्वारा ही मृतकों का पुनरूत्थान हुआ है।
22) जिस तरह सब मनुष्य आदम (से सम्बन्ध) के कारण मरते हैं, उसी तरह सब मसीह (से सम्बन्ध) के कारण पुनर्जीवित किये जायेंगे-
23) सब अपने क्रम के अनुसार, सब से पहले मसीह और बाद में उनके पुनरागमन के समय वे जो मसीह के बन गये हैं।
24) जब मसीह बुराई की सब शक्तियों को नष्ट करने के बाद अपना राज्य पिता-परमेश्वर को सौंप देंगे, तब अन्त आ जायेगा;
25) क्योंकि वह तब तक राज्य करेंगे, जब तक वह अपने सब शत्रुओं को अपने पैरों तले न डाल दें।
26) सबों के अन्त में नष्ट किया जाने वाला शत्रु है- मृत्यु।
27) धर्मग्रन्थ कहता है कि उसने सब कुछ उसके अधीन कर दिया है; किन्तु जब वह कहता है कि ’’सब कुछ उसके अधीन हैं’’, तो यह स्पष्ट है कि ईश्वर, जिसने सब कुछ मसीह के अधीन किया है, इस ’सब कुछ’ में सम्मिलित नहीं हैं।
39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।
40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।
41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।
42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, ’’आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!
43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?
44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।
45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!’’
46) तब मरियम बोल उठी, ’’मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है,
47) मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है;
48) क्योंकि उसने अपनी दीन दासी पर कृपादृष्टि की है। अब से सब पीढि़याँ मुझे धन्य कहेंगी;
49) क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मेरे लिए महान् कार्य किये हैं। पवित्र है उसका नाम!
50) उसकी कृपा उसके श्रद्धालु भक्तों पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है।
51) उसने अपना बाहुबल प्रदर्शित किया है, उसने घमण्डियों को तितर-बितर कर दिया है।
52) उसने शक्तिशालियों को उनके आसनों से गिरा दिया और दीनों को महान् बना दिया है।
53) उसने दरिंद्रों को सम्पन्न किया और धनियों को ख़ाली हाथ लौटा दिया है।
54) इब्राहीम और उनके वंश के प्रति अपनी चिरस्थायी दया को स्मरण कर,
55) उसने हमारे पूर्वजों के प्रति अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने दास इस्राएल की सुध ली है।’’
56) लगभग तीन महीने एलीज़बेथ के साथ रह कर मरियम अपने घर लौट गयी।
आज हम माता मरियम के स्वर्ग उदग्रहण का पर्व मना रहे हैं। माता मरियम ने पिता ईश्वर की मुक्ति-योजना में एक अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने ईश्वर के पुत्र की माता बनने का दायित्व पूर्ण कर पिता ईश्वर की इच्छा को निष्ठापूर्वक पूर्ण किया। उन्होंने ईश्वर की योजना को सर्वोपरि स्थान दिया। उनके इस समर्पण के कारण ईश्वर ने उन्हें स्वर्ग राज्य में प्रवेश प्रदान किया। माता मरियम ने ईश्वर के पुत्र बनने के एक चुनौती पूर्ण कार्य को स्वीकार किया। उन्होंने पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ धारण किया। उस समय की यहूदी परंपरा के अनुसार अगर कोई स्त्री विवाह के पहले गर्भवती हों जाए तो ऐसी स्थिति में उस स्त्री को पत्थरों से मार डालने का प्रावधान था। फिर भी माता मरियम ने स्वर्गदूत की बातों पर विश्वास किया। मुश्किल परिस्थिति में भी उन्होंने ईश्वर की आज्ञा का पालन किया एवं मरियागान के द्वारा ईश्वर का गुणगान किया। माता मरियम ने कहा कि ईश्वर ने उसके लिए महान कार्य किए एवं उसका नाम पवित्र है। माता मरियम ने प्रभु येसु का भी हर समय साथ दिया। जब उनकी प्राणपीड़ा के दौरान उनके शिष्य छोड़ कर चले गए तब भी माता मरियम ने उनका साथ नहीं छोड़ा। प्रभु येसु ने अपने अंतिम क्षणों में उन्हें सब ख्रीस्तीयो की माता भी बना दिया। इन सब के द्वारा माता मरियम सब ख्रीस्तियों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया कि विपरीत परिस्थिति में भी हमें ईश्वर पर दृढ़ भरोसा रखना चाहिए। उन्होंने शुरू से ईश्वर के वचनों को अपने हृदय में संजोए रखा। इसलिए ईश्वर ने उन्हें स्वर्ग में शरीर सहित उठा लिया। जहाँ माता मरियम निरंतर सभी के लिए मध्यस्थता करती हैं।
✍ब्रदर रोशन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)Today we are celebrating the feast of Mother Mary’s Assumption into Heaven. Mother Mary made an invaluable contribution to God the Father’s plan of salvation. She fulfilled the responsibility of becoming the mother of God’s son and faithfully fulfilled the Will of God the Father. She gave the highest place to God’s plan. Due to her dedication God granted her entry into the kingdom of heaven. Mother Mary accepted the challenging task of becoming the Mother of God’s son. She conceived through the Holy Spirit. According to the Jewish tradition of that time, if a woman became pregnant before marriage, there was a provision to stone that woman to death. Still Mother Mary believed the words of the angel. Even in difficult circumstances, she followed God’s command and praised God by singing the Magnificat. Mother Mary said that God had done great things for her and blessed his holy name. Mother Mary also supported Lord Jesus at all times. And even when his disciples left him during his agony, Mother Mary did not abandon him. Lord Jesus also made her the mother of all Christians in his last moments. Through all this, Mother Mary presented an example to all Christians that we need to continue to have full trust in God even in the difficult situations of life. She treasured the words of God in her heart from the beginning. Therefore, God took her with her body to heaven, where Mother Mary continues to intercede for everyone.
✍ -Bro. Roshan Damor (Jhabua Diocese)
आज धन्य कुंवारी मरियम के आत्मा और शरीर में स्वर्ग में आरोहण की ख़ुशी मना रहे हैं। जैसा कि पहले पाठ और सुसमाचार में चित्रित किया गया है, मरियम वह महिला है जिसके माध्यम से प्रभु हमारे पास आए हैं। यह उन्हें येसु के साथ एक अनोखा रिश्ता प्रदान करता है। उस अनोखे रिश्ते के आधार पर कलीसिया ने हमेशा माना है कि मरियम अपने बेटे की मृत्यु पर विजय को विशिष्ट रूप से साझा करती है। मरियम हमें अपना परम भाग्य दिखाने के साथ-साथ उस नियति का मार्ग भी बताती हैं।
उनकी अनूठी बुलाहट थी - येसु को दुनिया में लाना। हमें भी, अपने तरीके से, आज येसु को अपनी दुनिया में लाने के लिए बुलाया गया है। हमारे पहले पाठ की सबसे पहली व्याख्या महिला को कलीसिया के प्रतीक के रूप में देखना था। हम सभी को जो कलीसिया का निर्माण करते हैं, दूसरों के जीवन में येसु को लाना है, उसकी गवाही देना है। भले ही इसके लिए हमें अक्सर विरोध का सामना करना पड़े जैसे उस महिला को करना पड़ा। जैसा कि प्रकाशना ग्रन्थ की महिला को ईश्वर की ओर से सुरक्षा प्रदान की जाती है ईश्वर, हमारे प्रयासों में हमारी भी रक्षा करेगा और अपने पुत्र को हमारे माध्यम से दूसरों के पास ले जाने के हमारे प्रयासों को आशीषित करेगा।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतToday, we celebrate the feast of the Assumption. The first reading and the Gospel reading portray, Mary as the woman through whom the Lord has come to us. This gives her a unique relationship with Jesus. In virtue of that unique relationship the church has always held that Mary shares uniquely in the triumph of her Son over death.
Apart from showing us our ultimate destiny, Mary also shows us the path to that destiny. Her unique calling was to bring Jesus into the world. We too are called, in our own way, to bring Jesus into our world today. The earliest interpretation of our first reading was to see the woman as an image of the church, of all of us who make up the church. We are to bring Jesus into the lives of others, to witness to him, even though it will often mean encountering opposition. Yet, as that first reading assures us, we do so know that God will protect and safeguard us in our efforts to allow his Son to come to others through us.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya
धन्य कुवांरी मरियम का स्वर्गोदग्रहण त्योहार का दोहरा अर्थ और महत्व है। सबसे पहले, मरियम अपने मातृत्व, विश्वास और जीवन में अपने स्वयं के महान गुणों के कारण, वह अपने पुत्र, ईश्वर के दाहिने विराजमान है है। दूसरा, मरियम ने पूरी तरह से प्रभु की आज्ञा का पालन किया और जीवन भर ईमानदारी से, खुद को उनकी इच्छा के लिए समर्पित कर दिया। मरियम के स्वर्गोदग्रहण, उसके पुत्र येसु के पुनरुत्थान में, एक व्यक्तिगत भागीदारी है और हमारे अपने पुनरुत्थान की पूर्वानुमान है। यह एक झलक प्रदान करता है कि ईसाई तीर्थयात्रा और स्वर्ग की संभावना क्या है। प्रकाशना ग्रंथ में, विधान की मंजूषा और स्त्री को एक दूसरे के इतने समीप, एक ही व्यक्ति के दोहरे प्रतीकों के रूप में वर्णित किया गया है। मरियम नयी हेवा एवं नए विधान की मंजूषा, अदूषणीय है। मरियम वास्तविक विधान की मंजूषा है, जिसने शब्द को धारण किया। जैसे विधान की मंजूषा ओबेद-एदोम के घर तीन महीने तक रहा (२ समू.:११), वैसे ही मरियम तीन महीने तक एलिजबेथ के घर में रही। आइए हम सब उसके उदाहरण का अनुकरण करें, कि हम भी एक दिन उसी महिमा में भाग लें, जो ईश्वर ने मरियम को दी है।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.
The Solemnity of the Assumption has twofold meaning and significance. First of all, by the virtue of her motherhood and of her own great virtues in life, obedience to God and faith, she is at the right hand of God, her Son. Secondly, Mary obeyed the Lord completely and faithfully devoted herself to His will throughout her life. The assumption of Mary is a singular participation in her son’s resurrection and an anticipation of our own resurrection. It offers a glimpse of what the Christian pilgrimage and the prospect of heaven are all about. The book of revelation describes the Ark and the Woman so close to one another as dual symbols of the same person: Mary. Mary, the new Eve, the new Ark, remains incorruptible. Mary is the actual Ark that bore the Word made flesh. As the Ark was in the house of Obed-Edom for three months (2Sam. 6:11), so was Mary in the house of Elizabeth for three months. Let us all imitate her examples; her commitment to God, that we may also one day share in the same glory that God has given Mary.
✍ -Fr. Snjay Kujur SVD
आज का यह दिन ना केवल हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आज हमारा स्वतंत्रता दिवस है, बल्कि संसार की समस्त कलीसिया के लिए भी यह दिन विशेष है क्योंकि हम स्वर्ग में धन्य कुँवारी माता मरियम के उदग्रहण का पर्व मनाते हैं। यद्यपि माता मरियम के स्वर्ग में उदग्रहण की याद में हम यह त्योहार मनाते थे लेकिन अधिकारिक तौर इस त्योहार को मनाने की घोषणा हमारे देश की स्वतंत्रता से तीन साल बाद 1950 में हुई। इस पर्व की घोषणा सन्त पापा पीयूस 12वें के द्वारा प्रेरितिक विधान मुनिफिचेंतिस्सिमुस देओस में 1 नवम्बर 1950 की थी। तभी से यह पर्व बड़े हर्षोल्लास, भक्ति एवं प्रेम के साथ 15 अगस्त के दिन मनाया जाता है।
कलीसिया की आधिकारिक घोषणा के अनुसार, “हम ईश्वर की प्रेरणा द्वारा इसकी घोषणा करते और परिभाषित करते हैं कि ईश्वर की निष्कलंक माता धन्य कुँवारी मरियम का जब इस पृथ्वी का कार्य पूरा हुआ तो आत्मा और शरीर सहित उन्हें स्वर्ग में उदग्रहित कर लिया गया।” (मुनिफिचेंतिस्सिमुस देओस, 44)। माता मरियम ने मानव मुक्ति के ईश्वर के विधान में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी तो उनका प्रिय पुत्र जिसे उसने बड़ी नाज़ों से पाला था, उन्हें यहीं मृत्युलोक में कैसे छोड़ देता? वह अपनी प्यारी माँ को अपनी उपस्थिति में सदा सर्वदा रहने के लिए स्वर्ग में क्यों नहीं बुलाएगा? हमारा विश्वास है कि माता मरियम अपने पुत्र के पास स्वर्ग में विराजमान होकर सदा हमारे लिए प्रार्थना करती रहती हैं।
✍ - फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today is very special day not only for our country as we celebrate the Independence Day of our country, but also for the whole Church as we celebrate the solemnity of the Assumption of the Blessed Virgin Mary into heaven. Though we had been commemorating the event of the Assumption of Our Lady, but this feast was officially declared after 3 years of our country getting freedom. This feast was declared by Pope Pius XII on 1 November, 1950 in the Apostolic constitution Munificentissimus Deus. Since then it has been officially being celebrated in the whole Church widely with lot of devotion and love.
The Dogma declares that, “We proclaim and define it to be a dogma revealed by God that the Immaculate Mother of God, Mary ever Virgin, when the course of her earthly life was finished, was taken up body and soul into the glory of heaven” (Munificentissimus Deus, 44). Mother Mary played such a vital role in the plan of God for the salvation of humanity, then why would that loving son whom Mother Mary brought up with great love, leave her here on earth. Why wouldn’t he call her to himself, with him forever in Heaven? We know that even today our mother prays unceasingly to her son for the world.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)