2) राजा यहोयाकीम के निर्वासन के पंचम वर्ष, महीने के पाँचवें दिन,
3) खल्दैयियों के देश में, कबार नदी के तट पर याजक बूज़ी के पुत्र एजे़किएल को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी और वहाँ प्रभु का हाथ उस पर पड़ा।
4) मैंने देखा कि उत्तर की ओर से आँधी आ रही हैः प्रकाशमण्डल से घिरा हुआ एक विशाल मेघपुंज आ रहा है। उस में से आग झर रही थी और उसके चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश था। उसकी ज्वालओं के मध्य भाग में काँसे-जैसी चमक थी।
5) आग में चार प्राणी दिखाई पड़ने लगे और उनका रूपरंग मनुयों-जैसा था;
24) मैंने उनके पंखों की आवाज़ सुनी। जब वे चलने लगे, तो वह आवाज़ प्रचण्ड जलप्रवाह की गड़-गड़ाहट, सर्वशक्तिमान् के गर्जन या सेना के पड़ाव के कोलाहल के समान थी। जब वे रुकते, तो वे अपने पंख नीचे कर देते थे।
25) उनके सिरों के ऊपर के वितान से एक वाणी सुनाई दे रही थी। जब वे रुकते, तो वे अपने पंख नीचे कर देते थे।
26) उनके सिरों के ऊपर वितान फैला हुआ था और उस पर सिंहासन-जैसा एक नीलमणि दिखाई देता था, जिस पर मनुय के आकार का कोई बैठा हुआ था।
27) कमर के ऊपर उसका शरीर अग्नि से चमकते हुए पीतल-जैसा था और कमर के नीचे उसका शरीर अग्नि के सदृश था, जिस में से प्रकाश फैल रहा था।
28) चारों ओर फैला हुआ प्रकाश वर्षा के दिनों में बादलों में दिखाई पड़ने वाले इन्द्रधनुष-जैसा था। प्रभु की महिमा इस प्रकार प्रकट हुई। यह देख कर मैं मुँह के बल गिर पड़ा।
22) जब वे गलीलियों में साथ-साथ धूमते थे; तो ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ’’मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जावेगा।
23) वे उसे मार डालेंगे और वह तीसरे दिन जी उठेगा। यह सुनकर शिष्यों को बहुत दुःख हुआ।
24) जब वे कफ़रनाहूम आये थे, तो मंदिर का कर उगाहने वालों ने पेत्रुस के पास आ कर पूछा, ’’क्या तुम्हारे गुरू मंदिर का कर नहीं देते?’’
25) उसने उत्तर दिया, ’’देते हैं’’। जब पेत्रुस घर पहुँचा, तो उसके कुछ कहने से पहले ही ईसा ने पूछा, ’’सिमोन! तुम्हारा क्या विचार है? दुनिया के राजा किन लोगों से चंुगी या कर लेते हैं- अपने ही पुत्रों से या परायों से?’’
26) पेत्रुस ने उत्तर दिया, ’’परायों से’’। इस पर ईसा ने उस से कहा, ’’तब तो पुत्र कर से मुक्त हैं।
27) फिर भी हम उन लोगों को बुरा उदाहरण नदें; इसलिए तुम समुद्र के किनारे जा कर बंसी डालो। जो मछली पहले फॅसेगी, उसे पकड़ लेना और उसका मुँह खोल देना। उस में तुम्हें एक सिक्का मिलेगा। उस ले लेना और मेरे तथा अपने लिए उन को दे देना।’’
पवित्र धर्मग्रंथ में हम पाते हैं कि फरीसी और शास्त्री येसु को अपने कठिन सवालों द्वारा अपने जाल में फंसाना चाहते थे। वे अलग-अलग लोगों को भेज कर उनसे सवाल करते हैं। परंतु प्रभु येसु उन्हें सरलता से जवाब दे देते हैं। येसु का जवाब सुन कर उन्हें दूसरा सवाल करने का साहस नहीं होता है। प्रभु येसु उन लोगों से सब बातें साफ शब्दों में कह देते हैं। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी मृत्यु के विषय में भी पहले से ही लोगों को बता दिया, किसी भी बात को लोगों से नहीं छुपाया; फिर भी वे येसु पर विश्वास नही करना चाहते थे। वे उन्हें दंड दिलाने हेतु तत्पर रहते हैं। परंतु येसु उनसे डरते नहीं हैं। वे ईश्वर के वचनों के प्रचार में लगे रहते हैं। वे निरंतर इस बात पर जोर देते हैं के वे ईश्वर के इकलौते पुत्र हैं। बपतिस्मा के समय स्वयं पिता ईश्वर ने स्वर्ग से इस बात की घोषणा की कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, मैं इस पर अत्यंत प्रसन्न हूँ। पिता ईश्वर ने उन्हें पृथ्वी पर पूरा अधिकार प्रदान किया है। वे मनुष्य बनकर लोगों को उनके पापों से बचाने आए हैं। वे उन्हें विश्वास करने हेतु आह्वान करते हैं। पिता ईश्वर इसलिए प्रसन्न हैं कि येसु ने उनकी इच्छा को पूर्ण किया है। उन्होंने ईश्वर के पुत्र होने के बावजूद एक मनुष्य की भाँति जन्म लिया एवं पिता ईश्वर की इच्छा को पुरा किया। हम इस बात पर मनन करें की क्या हम अपने जीवन में ईश्वर की इच्छा को पूर्ण करते हैं? क्या हम येसु की भाँति अपने आप को विनम्र बनाते हैं? क्या हम उनकी बातों पर दृढ़ विश्वास करते हैं?
✍ब्रदर रोशन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)In the Holy Scriptures we find that the Pharisees and the Scribes wanted to trap Jesus by asking him difficult questions. They send different people to question him. But Lord Jesus answers them easily. After hearing Jesus’ answer, they do not have the courage to ask another question. Lord Jesus tells them everything in clear words. He even told people about his death in advance. He did not hide anything from the people, yet they did not want to believe in Him. They were ready to punish him. But Jesus was not afraid of them. He keeps on preaching the Word of God. He constantly emphasizes that he is the only Son of God. God himself announced from heaven that this is His beloved son and that he was well pleased with him. He gave him full authority on the earth. Jesus came as a man to save them. He calls them to believe. At the time of baptism, the Father is pleased because Jesus fulfilled his Will. Despite being the Son of God, he was born as a human being and fulfilled the will of God the Father. Let us ponder over as to whether we fulfill the will of God in our lives? Do we humble ourselves like Jesus? Do we have a firm faith in his words?
✍ -Bro. Roshan Damor (Jhabua Diocese)
मछली के मुंह में सिक्के के चमत्कार द्वारा हमें येसु की मृत्यु के बारे में भविष्यवाणी के शब्द मिलते हैं। यह आगे ईश्वरीय स्वतंत्रता और प्रावधान के स्रोत होंगे। मंदिर विलुप्त हो रहा है और ईश्वर के साथ वास्तविक मिलन स्थल के रूप में स्वयं येसु द्वारा आध्यात्मिक मंदिर प्रतिस्थापित किया जा रहा है। येसु यह नहीं कहते हैं कि ईश्वर के सच्चे बच्चे कर नहीं देते हैं, बल्कि इसलिए कि वे स्वतंत्र हैं।ईश्वर के सच्चे बच्चे, येसु के अनुयायी स्वतंत्र हैं क्योंकि येसु स्वयं मंदिर की जगह ले रहे हैं। चमत्कार का दूसरा बिंदु यह है कि जब आप स्वतंत्रता और प्रेम में कार्य करते हैं, तो ईश्वर स्वयं आपके लिए इस तरह से काम करते हैं कि आपने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.
In the miracle of the coin in the fish's mouth, we find words of prophecy about Jesus' death that is just ahead which will be the source of divine freedom and provision. The temple is passing away and is going to be replaced by Jesus himself as the true meeting place with God. Jesus does not say that the true children of God don't pay the tax, but only that they are free not to. The true children of God, the followers of Jesus are free because Jesus himself is taking the place of the temple. The other point of the miracle is that when you act in freedom and love and not under coercion or constraint, God himself works for you in ways you would never dream.
✍ -Fr. Snjay Kujur SVD