अगस्त 06, 2024, मंगलवार

प्रभु का रूपान्तरण – पर्व

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📒 पहला पाठ : दानिएल 7:9-10, 13-14

9) मैं देख ही रहा था कि सिंहासन रख दिये गये और एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उसके वस्त्र हिम की तरह उज्जवल थे और उसके सिर के केश निर्मल ऊन की तरह।

10) उसका सिंहासन ज्वालाओं का समूह था और सिहंासन के पहिये धधकती अग्नि। उसके सामने से आग की धारा बह रही थी। सहस्रों उसकी सेवा कर रहे थे। लाखों उसके सामने खड़े थे। न्याय की कार्यवाही प्रारंभ हो रही थी। और पुस्तकें खोल दी गयीं।

13) तब मैंने रात्रि के दृश्य में देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया।

14) उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।

📒 दूसरा पाठ :1पेत्रुस 1: 16-19

16) जब हमने आप लोगों को अपने प्रभु ईसा मसीह के सामर्थ्य तथा पुनरागमन के विषय में बताया, तो हमने कपट-कल्पित कथाओं का सहारा नहीं लिया, बल्कि अपनी ही आंखों से उनका प्रताप उस समय देखा,

17) जब उन्हें पिता-परमेश्वर के सम्मान तथा महिमा प्राप्त हुई और भव्य ऐश्वर्य में से उनके प्रति एक वाणी यह कहती हुई सुनाई पड़ी, ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।’’

18) जब हम पवित्र पर्वत पर उनके साथ थे, तो हमने स्वयं स्वर्ग से आती हुई यह वाणी सुनी।

19) इस घटना द्वारा नबियों की वाणी हमारे लिए और भी विश्वसनीय सिद्ध हुई। इस पर ध्यान देने में आप लोगों का कल्याण है, क्योंकि जब तक पौ नहीं फटती और आपके हृदयों में प्रभात का तारा उदित नहीं होता, तब तक नबियों की वाणी अंधेरे में चमकते हुए दीपक के सदृश है।

📒 सुसमाचार : मारकुस 9:2-10

2) छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया।

3) उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता।

4) शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे।

5) उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, "गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।"

6) उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे।

7) तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।"

8) इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।

9) ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे।

10) उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि ’मृतकों में से जी उठने’ का अर्थ क्या हो सकता है।

📚 मनन-चिंतन - 1

आज पवित्र कैथोलिक कलीसिया प्रभु के रूपान्तरण का त्योहार मना रही है। उस पहाड़ के ऊपर रूपान्तरण के दौरान येसु ने अपने अस्तित्व के मूल स्वरूप को प्रकट किया। उनके तीन शिष्यों, पेत्रूस, याकूब और योहन की उपस्थिति में उनकी महिमान्वित रूपांतरण हो गई। विशेष रूप से शिष्यों के लिए यह जानना आवश्यक था कि येसु ईश्वर हैं और इसलिए उनका रूपांतरण पहाड़ पर हुआ। इस रूपान्तरण के माध्यम से स्वर्ग और येसु के स्वभाव की कुछ झलक शिष्यों के सामने प्रकट हुई जिससे वे मजबूत हो गए,उनको ताकत मिल गई और विशेष रूप से येसु के पुनरुत्थान के बाद वे इस घटना को याद करेंगे और अधिक दृढ़ता से गवाही देंगे कि येसु वास्तव में ईश्वर और उद्धारकर्ता हैं न कि केवल एक साधारण इंसान। चूँकि हम रूपांतरण का पर्व मनाते हैं, इस पर्व से हमें क्या सीख मिलता है? इस पर्व से हमें याद दिलाया जाता है कि हम ईश्वर की संतान हैं और हमें येसु की तरह बदलने का आह्वान किया गया है। चूँकि हम इस पृथ्वी पर रहते हैं इसलिए हमें स्वर्ग की ओर देखने की आवश्यकता है क्योंकि स्वर्ग ही हमारा असली घर है। संत पौलुस हमें रोमियों को लिखे पत्र में बताते हैं,(12:2) “आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि बस कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है”। इसलिए हमसे कहा जाता है कि हम स्वयं को, अपने मन को, अपनी सोच को, अपने बात व्यवहार को और जीवन जीने के तरीके को बदलें।

- ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Dear brothers and sisters, today the holy Catholic Church celebrates the feast of the transfiguration of the Lord. During the transfiguration Jesus revealed the original self of his being, his divinity. He was glorified in the presence of his disciples - Peter, James and John. It was necessary especially for the disciples to know that Jesus is God and so he was transfigured on the mountain. Through the transfiguration some glimpse of heaven and the nature of Jesus were revealed to the disciples. So they are confirmed, they are made strong. They would remember this event always and testify more strongly that Jesus is really God and savior not only a true human being. As we celebrate the feast of transfiguration what do we get from this feast? We are reminded that we are the children of God and are called to be transformed like Jesus. As we live in this Earth we need to look up to the heaven because heaven is our destiny. St. Paul tells us in the Letter to the Romans 12:2, “Be transformed by the renewal of your mind that you may prove what is the will of God, what is good and acceptable and perfect.” So we are told to transform ourselves, our mind, our thinking, our behaviour and way of living.

-Bro. Namit Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

इस संसार में हम किस की बात अधिक सुनते है? अपने माता-पिता की, या अपने गुरूजनों की, या अपने आदर्श व्यक्तियों की या अपने दोस्तो की, या स्वयं की। पिता ईश्वर प्रभु येसु के रूपान्तरण के समय बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहते है, ‘‘यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूॅ; इसकी सुनो।’’ जब कभी हम इस संसार के दुविधाओं में फस जायें या हमें समझ में ना आये कि क्या करना है तब हमेशा हमें हमारे पिता ईश्वर की यह बात को याद रखना चाहिए कि हम प्रभु येसु की सुनें क्योकि वही हमारा मुक्तिदाता और ईश्वर है और उन्ही के द्वारा हमारा उद्धार हो सकता है।

फादर डेन्नीस तिग्गा

📚 REFLECTION


To whom do we listen more in this world? To our parents, to our teachers, to our role models, or our friends, or to oneself. At the time of transfiguration of Lord Jesus, God, the Father says a very important thing, “This is my beloved Son with him I am well pleased; listen to him. Whenever we get caught in the dilemmas of this world or we do not understand what to do then we should always remember what God the Father said- that we should listen to Lord Jesus because he is our Savior and God and through him we can be saved.

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन- 3

आज हम प्रभु येसु के ताबोर पर्वत पर रूपांतरण का पर्व मानते हैं। तीन शिष्यों - पेत्रुस, याकूब और योहन को ताबोर पर्वत पर ईश्वरीय उपस्थिति वाला अनुभव बहुत अच्छा लगा। वे आत्मविभोर हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वहीं ऐसे सुखद अनुभव में ही रह जायें। पेत्रुस प्रभु से कहते हैं कि हम यहीं रह जायें। आप कहे तो तीन तम्बूओं की व्यस्था कर दूं। वे वहां बहुत सुरक्षित व आरामदायक महसूस कर रहे थे। वे पहाड के नीचे जाकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होना नहीं कहते थे। प्रभु पेत्रुस के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं देते। प्रभु उन्हें लेकर सीधे पहाड के नीचे की ओर चल देते हैं। और उन्हें अपने दुःखभोग मरण एवं पुररूत्थान के बारे में बतलाते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते थे कि वे उस ईश्वरीय अनुभव में ही खोए रहें बल्कि जीवन की सच्चाई से भी रूबरू हों।

आज प्रभु हम सबसे यही आह्वान करते हैं कि हम हमारे दैनिक जीवन के क्रूस से दूर न भागें। जिस प्रकार से प्रभु ने उसे अपने जीवन में स्वीकार किया हम भी उसे स्वीकार करें। हमारे जीवन में भी हम कई बार व्यक्तिगत प्रार्थनाओं में मिस्सा बलिदान में, तीर्थ स्थानों में या फिर आध्यात्मिक साधनाओं (रिट्रीट) आदि में कई प्रकार के ईश्वरीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हमें उसी माहौल में रहना अच्छा लगता है। पर हमें यह याद रहे कि प्रभु हमें ऐसे अनुभव इसलिए देते हैं कि हम हमारे इस दुनियाई जीवन की समाप्ति के बाद इसे परिपूर्णता में प्राप्त करें। ये उस स्वर्गीय आनन्द व शांति का एक अंश मात्र है जिसे ईश्वर हमें भरपूरी से देने वाले हैं। उस भरपूर ईश्वरीय अनुभव को प्राप्त करने के लिए हमें पहाड से नीचे उतरकर जीवन की सच्चाई से रूबरू होते हुए, शैतान और उसकी ताकतों से लडते हुए, सब प्रकार के प्रलोभनों व बुराईयों पर विजय पाते हुए प्राप्त करना होगा। इसलिए हम हमारे जीवन में प्रभु के लिए समय निकालें। प्रभु के साथ लीन होकर अपने जीवन की कठानिईयों व चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति व कृपा हासिल करें। तथा उस कृपा के साथ हम प्रभु येसु के समान जीवन में आए हर क्रूस को गले लगाते हुए उनका अनुसरण करें। तभी हमें उनके ही समान मुक्ति का मुकूट हासिल होगा।

फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


Today, we celebrate the feast of the transfiguration of the Lord Jesus on Mount Tabor. The three disciples - Peter, James and John - enjoyed the experience of the divine presence on Mount Tabor. They become self-absorbed and they feel that they should remain there only in such a pleasant experience. Peter tells the Lord that we should stay there. If you say, I will arrange three tents. They felt very safe and comfortable there. But Jesus didn’t react to what he said and took them down the hill and foretold his passion, death and resurrection. The Lord did not want him to be lost in that divine experience but He wants them to o face the reality of life also.

Today, Lord, calls upon all of us not to run away from the crosses of our daily lives. In our lives too, we sometimes have a variety of divine spiritual experience in personal prayers, in Holy Mass, in places of pilgrimage or in spiritual retreats, etc. We love being in that environment. But we must remember that the Lord gives us such experiences so that we can have it in its fullness after the end of our earthly life. It is just a fraction of the heavenly joy and peace that God is going to give us in abundance. In order to have that full divine experience, we have to come down from the mountain and face the reality of life, fighting Satan and his forces, overcoming all kinds of temptations and evil. So let us give time to the Lord in our lives. Get engrossed with GOD and gain enough strength and grace to face the difficulties and challenges of your life. And with that grace, let us embrace every cross that comes in our life, like Lord Jesus and follow Him. Only then will we get the crown of salvation.

-Fr. Preetam Vasuniya