11) याजकों और नबियों ने शासकों और समस्त जनता से कहा, “यह व्यक्ति प्राणदण्ड के योग्य है। इसने इस नगर के विरुद्ध भवियवाणी की है, जैसा कि आपने अपने कानों से सुना है।“
12) किन्तु यिरमियाह ने शासकों और समस्त जनता से कहा, “तुम लोगों ने इस मन्दिर और इस नगर के विरुद्ध जो भवियवाणी सुनी है, मैंने उसे प्रभु के आदेश से घोषित किया है।
13) इसलिए अपना आचरण सुधारो। अपने प्रभु-ईश्वर की बात सुनो, जिससे उसने जो विपत्ति भेजने की धमकी दी है, वह उसका विचार छोड़ दे।
14) मैं तो तुम्हारे वश में हूँ- जो उचित और न्यायसंगत समझते हो, वही मेरे साथ करो।
15) किन्तु यह अच्छी तरह समझ लो कि यदि तुम मेरा वध करोगे, तो तुम अपने पर, इस नगर और इसके निवासियों पर निर्दोष रक्त बहाने का अपराध लगाओगे; क्योंकि प्रभु ने ही तुम्हें यह सब सुनाने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।“
16) इस पर शासकों और समस्त जनता ने याजकों और नबियां से कहा, “यह व्यक्ति प्राणदण्ड के योग्य नहीं है। यह हमारे प्रभु ईश्वर के नाम पर हम से बोला है।“
24) शाफ़ान के पुत्र अहीकाम ने यिरमियाह की रक्षा की और उसे लोगों के हाथ नहीं पड़ने दिया, जो उसका वध करना चाहते थे।
1) उस समय राजा हेरोद ने ईसा की चर्चा सुनी।
2) और अपने दरबारियों से कहा, ’’यह योहन बपतिस्ता है। वह जी उठा है, इसलिए वह महान् चमत्कार दिखा रहा है।’’
3) हेरोद ने अपने भाई फि़लिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ़्तार किया और बाँध कर बंदीगृह में डाल दिया था;
4) क्योंकि योहन ने उस से कहा था, ’’उसे रखना आपके लिए उचित नहीं है’’।
5) हेरोद योहन को मार डालना चाहता था; किन्तु वह जनता से डरता था, जो योहन को नबी मानती थी।
6) हेरोद के जन्मदिवस के अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अतिथियों के सामने नृत्य किया और हेरोद को मुग्ध कर दिया।
7) इसलिए उसने शपथ खा कर वचन दिया कि वह जो भी माँगेगी, उसे दे देगा।
8) उसकी माँ ने उसे पहले से सिखा दिया था। इसलिए वह बोली, ’’मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दीजिए’’।
9) हेरोद को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण उसने आदेश दिया कि उसे सिर दे दिया जाये।
10) और प्यादों को भेज कर उसने बंदीगृह में योहन का सिर कटवा दिया।
11) उसका सिर थाली में लाया गया और लड़की को दिया गया और वह उसे अपनी माँ के पास ले गयी।
12) योहन के शिष्य आ कर उसका शव ले गये। उन्होंने उसे दफ़नाया और जा कर ईसा को इसकी सूचना दी।
आज के सुसमाचार में हम येसु मसीह के अग्रदूत योहन बपतिस्ता की शहादत के बारे में सुनते हैं। इस परिच्छेद में हमें तीन पात्र मिलते हैं। वे है - हेरोद, हेरोदियस और योहन बाप्तिस्ता।
हेरोद:- गलीलिया के राजकुमार हेरोद एंतिपास, राजा हेरोद महान का पुत्र था। उसने उसके भाई फिलिप की पत्नी हेरोदियस को अपनी पत्नी के रूप में रख लिया था। लेवी के ग्रंथ अध्याय 20:21 में प्रभु का वचन कहता है कि अपने भाई की पत्नी से विवाह न करो। हेरोद इस कानून के खिलाफ गया इसलिए योहन ने उसे इस आज्ञा के उल्लंघन के खिलाफ चेतावनी दी। हम पाते हैं कि हेरोद ने कोई ईश्वरीय दुःख का एहसास नहीं दिखाया। ईश्वरीय दुःख पश्चाताप के साथ ईश्वर की ओर मुड़ने के लिए मजबूर करता है। यह एक प्रकार का दुःख है जो पापी को पश्चाताप की ओर ले जा सकता है। उदाहरण के लिए, दाऊद है जिसने पश्चाताप किया। कुरिंथियों के नाम संत पौलुस के दूसरे पत्र 7:10 में संत पौलुस बताते हैं, “जो दुःख ईश्वर की इच्छानुसार स्वीकार किया जाता है, उस से ऐसा कल्याणकारी हृदय परिवर्तन होता है कि खेद का प्रशन ही नहीं उठता। संसार के दुख से मृत्यु उत्पन्न होती है।”
हेरोदियस:- माँ ने अपनी बेटी के सामने एक बुरा उदाहरण प्रस्तुत किया और उसे बुरे काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। यह यहां सभी माता-पिता के लिए एक सबक है कि वे अपने बच्चों को कभी भी गलत काम करना न सिखाएं।
योहन बपतिस्ता :- अपने जीवन के खतरे और राजा की क्रूर शक्ति के बावजूद, योहन ने साहसपूर्वक हेरोद के पाप और गलती को बिना किसी हिचकिचाहट या डर से उसके मुंह पर बता दिया। योहन ईश्वर के वचन के प्रति ईमानदार और अपने बुलावे के प्रति सच्चा था। योहन की तरह हम सभी ईश्वर के सेवक गण गलत और अन्याय के खिलाफ प्रचार करने में वफादार और साहसी होने के लिए बुलाये गए हैं, भले ही इससे उन लोगों को ठेस पहुँचती हो, जो गलत हैं।
✍ - ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
In today’s Gospel we hear about the martyrdom of John the Baptist the forerunner of Christ. We come across three characters in the passage. They are Herod, Herodias and John the Baptist.
Herod :- Herod Antipas the prince of Galilee was the son of king Herod the Great. He had kept his brother Philip’s wife Herodias. Lev. 20:21, commands not to take your brother’s wife. Herod went against this law hence John spoke against this violation of the commandment. We find that Herod showed no godly sorrow. Godly sorrow is turning towards God with repentance. It is a kind of grief that can bring a sinner to repentance. For example, we have David who repented. In 2 Cor. 7:10 St. Paul says, “For godly grief produces a repentance that leads to salvation and brings no regret but worldly grief produces death.
Herodias: - the mother set a bad example before her daughter and encouraged her to do evil. This is a lesson here for all the parents never to teach a child to do what is wrong.
John the Baptist :- despite the threat of his life and cruel power of the king, John boldly pointed out the sin and mistake of Herod. John was honest to God’s Word and true to his call. Likewise, we are all called to be faithful and courageous in preaching against the wrong even if it does offend the people who are wrong.
✍ -Bro. Namit Tigga (Bhopal Archdiocese)
अंतिम नबी
योहन बपतिस्ता और येसु में कुछ आकर्षक समानताएँ हैं- दोनों पुरूषों की भविष्यवाणी भविष्यवक्ता मलाकी ने की थी। महादूत गाब्रिएल ने उनके जन्म की भविष्यवाणी की। दोनों ने पश्चाताप और ईश्वर के धर्मगुरूओं की आलोचना की। दोनों पर शैतानी शक्तियों का प्रयोग करने का आरोप लगाया गया। दोनों के शिष्यगण थे। दोनों को गिरफ्तार किया गया। दोनों की मृत्यु के बाद उनके करीबी ने शव माँगे। ये दोनों हमें एक स्पष्ट सत्य का स्मरण कराते हैं- स्तोत्र ग्रन्थ 56:12- मैं ईश्वर पर भरोसा रखता हूँ और नहीं डरता, निरे मनुष्य मेरा क्या कर सकते हैं?
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा
The Last Prophet
John the Baptist and Jesus have some fascinating parallels- Both men were prophesied by the prophet Malachi. Archangel Gabriel foretold their births. Both of them preached of repentance and the kingdom. Both of them criticized the religious leaders of the day. Both were accused of operating by demonic influence and power. Both had disciples. Both were arrested. Both had people who came and asked for their dead bodies. Both were hauled before men in-charge of leadership (Pilate and Herod Antipas). Both were killed. Both were pushed to a bad decision by people who would ‘profit’ from their death. Both succumbed when they were executed by death warrant due to Herod’s lust for flesh and Pilate’s lust for power. Herod was worried about his oath before the guests and Pilate was worried about his loyalty to Caesar. Both of them remind us of one plain truth - “in God I trust; I will not be afraid. What can mere humans do to me?” (Ps 56:12).
✍ -Fr. Alfred D’Souza
आज के दोनों पाठों में हमें एक समान परिस्थिति दिखाई देती है, जहाँ पहले पाठ में नबी येरेमीयस को अत्याचार का सामना करना पड़ता है क्योंकि वह प्रभु की सत्य वाणी को लोगों तक पहुँचाना चाहता था। भले ही उसके शब्द सुनने में प्रिय नहीं थे, लेकिन वे सत्य से पूर्ण थे; वे ईश्वर के शब्द थे। मन्दिर के दूसरे पुजारी और नबी सत्य और ईमानदारी का जीवन नहीं जी रहे थे। वे अपना जीवन ईश्वर की इच्छानुसार नहीं जी रहे थे, वे बुराई के कार्यों में लिप्त थे, ऐसे कार्य जो उन्हें ईश्वर से दूर ले जाते थे। इसी प्रकार आज के सुसमाचार में हम योहन बप्तिस्ता को देखेत हैं जिसने हेरोद और उसके भाई की पत्नी हेरोदीयस के काले कारनामों का खुलकर विरोध किया। वे दोनों अनैतिक जीवन जीवन जी रहे थे जो ईश्वर की नज़रों में अप्रिय है। नबी येरेमीयस और योहन बप्तिस्ता दोनों को इस दुनिया को सही रहा दिखाने के कारण दुःख और अत्याचारों का सामना करना पड़ा था।
आज हम नबी येरेमीयस और योहन बप्तिस्ता के समय से अधिक पापी संसार में हैं। आज हम देखते हैं कि लोग नैतिकता और नैतिक मूल्यों से अनजान हैं, बुराई फल-फूल रही है, लोग ईश्वर की राह से अपनी आँखें और कान बन्द कर लेते हैं। लोग दुनिया के पापी मार्गों पर भटक जाना पसन्द करते हैं जो उन्हें ईश्वर से दूर विनाश की ओर ले जाते हैं। आज के पाठ हमें नबी येरेमीयस और योहन बप्तिस्ता की तरह ईश्वर की वाणी का माध्यम बनना है, भले ही इसके लिए हमें कितने भी कष्ट और अत्याचार क्यों ना सहने पड़ें। इस ज़िम्मेदारी के लिए ईश्वर ने हममें से प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से चुना है। हे प्रभु हमें आपकी आवाज़ बनने की कृपा और शक्ति प्रदान कीजिए ताकि हम संसार के सामने आपका साक्ष्य दे सकें। आमेन।
✍ - फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today in both the readings we see a similar situation where in the first reading Jeremiah is subjected to torture because he spoke what the Lord had asked him to speak. Though the words were not pleasant to hear, but they were truth; they were from God. Other priests of the temple and prophets were not living an authentic and sincere life. They were not living a life as God wanted them to live, they involved themselves in evil ways; ways that led them away from God. Similarly, in the gospel we see John the Baptist who opposed and corrected the ways of Herod and his brother’s wife Herodias. They both were living immoral life, a life unacceptable in the eyes of the Lord. Both prophet Jeremiah and John the Baptist had to suffer for correcting the wrong ways of the world.
Today we live in a much evil world then at the time of Jeremiah or John the Baptist. We see that people have become alien to morality and moral values, evil is thriving, people close their eyes and ears from God’s ways. They like and choose to be lost in the evil ways of the world that lead them away from God. Today’s readings challenge and invite us to become the voice of the Lord like Jeremiah and John the Baptist, even at the cost of pain and suffering. God has chosen each one of us for this responsibility. Give us strength and courage Lord, to speak for you and to witness the Truth before the world. Amen
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)