1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
2) “उठो और कुम्हार के घर जाओ। वहाँ मैं तुम्हें अपना सन्देश दूँगा“
3) मैं कुम्हार के घर गया, जो चाक पर काम कर रहा था।
4) वह जो बरतन बना रहा था, जब वह उसके हाथ में बिगड़ जाता, तो वह उसकी मिट्टी से अपनी पसंद का दूसरा बरतन बनाता।
5) तब प्रभु की यह वाणी मुझे सुनाई पड़ी,
6) “इस्राएलियो! क्या मैं इस कुम्हार की तरह तुम्हारे साथ व्यवहार नहीं कर सकता?“ यह प्रभु की वाणी हैं। “इस्राएलियों! जैसे कुम्हार के हाथ में मिट्टी है, वैसे ही तुम भी मेरे हाथ में हो।
47) ’’फिर, स्वर्ग का राज्य समुद्र में डाले हुए जाल के सदृश है, जो हर तरह की मछलियाँ बटोर लाता है।
48) जाल के भर जाने पर मछुए उसे किनारे खींच लेते हैं। तब वे बैठ कर अच्छी मछलियाँ चुन-चुन कर बरतनों में जमा करते हैं और रद्दी मछलियाँ फेंक देते हैं।
49) संसार के अन्त में ऐसा ही होगा। स्वर्गदूत जा कर धर्मियों में से दुष्टों को अलग करेंगे।
50) और उन्हें आग के कुण्ड में झोंक देंगे। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।
51) ’’क्या तुम लोग यह सब बातें समझ गये?’’ शिष्यों ने उत्तर दिया, ’’जी हाँ’’।
52) ईसा ने उन से कहा, ’’प्रत्येक शास्त्री, जो स्वर्ग के राज्य के विषय में शिक्षा पा चुका है, उस ग्रहस्थ के सदृश है, जो अपने ख़जाने से नयी और पुरानी चीज़ें निकालता है’’।
53) इन दृष्टान्तों के समाप्त होने पर ईसा वहाँ से चले गये।
आज का पहला पाठ ईश्वर को दिव्य कुम्हार के रूप में प्रस्तुत करता है। कुम्हार के रूप में ईश्वर की छवि बताती है कि ईश्वर हमारे जीवन में जो कुछ भी गलत होता है उसे कुछ अच्छाई में परिवर्तन कर सकते हैं। ईश्वर के हाथों हमारा रचनात्मक कार्य प्रगति पर है। हमें ईश्वर को अपनी इच्छा के अनुसार हमें ढ़ालने देना चाहिए। यदि हम वह सब नहीं बन पाते जो ईश्वर ने हमारे लिए सोच रखा है तो ईश्वर हमें फिर से आकार देने और रूप देने के लिए तैयार हैं। हो सकता है कि ईश्वर ने हमारे बीच एक अच्छा काम शुरू किया हो,लेकिन उसे अभी भी पूरा करना बाकी है। तो आइए हम अपने आप को पूरी तरह से मिट्टी की तरह उनके हाथों में सौंप दें। जिससे कि वे कुम्हार की मिट्टी की तरह हमें अपनी इच्छानुसार आकार एवं रूप प्रदान कर सकें। आज के सुसमाचार के जाल के दृष्टांत के माध्यम से वे हमें यह सिखाते हैं कि भले और बुरे लोगों को अलग किया जायेगा। अच्छे लोगों को स्वर्ग राज्य का पुरस्कार मिलेगा और बुरे लोगों को बाहर निकाल दिया जाएगा। ईश्वर की इच्छा यह है और वे यही चाहते हैं कि सभी स्वर्ग में जायें। वे इस धरती पर इसलिए आए कि हम उनकी ओर मुड़ सकें। उन्होंने हमारे जीवन में बदलाव लाने और विश्वास के साथ एक बार फिर से उनकी ओर मुड़ने के कई मौके दिए हैं। तो आइए हम उनके राज्य के अनुरूप आचरण करें, और उनके राज्य के अधिकारी भी बनें।
✍ - ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
The first reading of the day presents God as the divine potter. The image of God as the potter suggests that God can reshape whatever comes out wrong in our lives into something good. We are creative work of art in progress. We must allow God to shape and form us. If we do not turn out to be all that God has in mind for us God is willing to patiently reshape and form us again. God may have begun a good work in us but he has yet to bring it to completion. Let us surrender ourselves into his hand completely like clay in the hands of a potter, so that he may mould us according to his will. The parable of the net teaches us that there will be a separation between the good and the bad. The good will inherit the heaven and the bad will be thrown out. God wills that all should come to heaven. He came to this earth so that we may turn towards him. He has given us many chances to change ourselves and turn to him once again with faith. So let us conduct ourselves according to the values of his Kingdom.
✍ -Bro. Namit Tigga (Bhopal Archdiocese)
आज, सुसमाचार में येसु अपने समय के मछुआरों के सामान्य अनुभवों को लेकर ईमेश्वर के राज्य के रहस्यों को प्रकट करते हैं। मछुआरों का यह नियमित काम था कि मछलियों को पकड़ने के बाद अच्छी मछलियों को बुरी मछलियों से अलग किया जाए। अच्छी मछलियों को इकट्ठा किया जाता और बुरी मछलियों को फेंक दिया जाता। येसु इस बात की तुलना अंतिम न्याय से करते हैं। हमारे कर्मों के अनुसार हमारा न्याय किया जाएगा। अंतिम निर्णय के दिन तक प्रभु प्रभु इंतज़ार करते हैं। प्रभु चाहते हैं कि हम इस बात से अवगत हों कि अंत में धर्मियों और दुष्टों का क्या होगा। यह हमारे लिए ज़रूरी है कि हम दोनों की नियति को जानकर धर्मी या दुष्ट बनने को चुनें। एक दिन हमारे लिए आवंटित समय अचानक समाप्त हो जाएगा और हमें आंका जाएगा। उस दिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं होगा। चुनाव प्रभु का ही है। अच्छे लोगों की संगति उस दिन दुष्टों को नहीं बचाएगी। धर्मियों की भलाई दुष्टों की मदद नहीं करेगी। हम सभी का अपनी व्यक्तिगत पवित्रता के अनुसार न्याय किया जाएगा। क्या हम उस दिन के लिए तैयार हैं? यदि हम एक परीक्षा में असफल होते हैं, तो फिर से प्रयास कर सकते हैं; दुबारा लिख सकते हैं। यदि हम एक मैच में असफल होते हैं, तो हमारे पास दूसरी, तीसरी और चौथी मैचों में संभावनाएं हो सकती हैं। लेकिन मृत्यु पर मानव आत्मा को पता चलता है कि उसका एकमात्र अवसर खत्म हो गया है। मृत्यु का समय भी निश्चित नहीं है। यह कभी भी हो सकता है। इसलिए हमें हर समय तैयार रहने के लिए समझदार बनना चाहिए।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Today, in the Gospel Jesus takes the ordinary experiences of the fishermen of his time and reveals the mysteries of the Kingdom of God. It was a routine work of fishermen to separate the good fish from the bad fish after the catch. The good fish would be collected and the bad fish would be thrown away. Jesus compares this with what will happen to people at the final judgement. We shall be judged according to our deeds. The Lord is patient until the day of final judgement. The Lord wants us to be aware of what will happen to the righteous and the wicked at the end. It is for us to choose to be righteous or wicked after knowing the destiny of both. One day the time allotted to us will abruptly come to an end and we shall be judged. On that day we shall not have a choice. The choice is of the Lord. Company of good people will not save the wicked on that day. Their goodness will not come to the aid of the wicked. We will all be judged according to our personal sanctity. Are we ready for that day? If you fail in an examination, you may attempt again. If you fail in a match, you may have chances in successive matches. But human soul at death realises that it has been through its one and only chance. The time of death is not fixed. It can happen any time. Hence we need to be wise enough to be prepared at all times.
✍ -Fr. Francis Scaria