जुलाई 30, 2024, मंगलवार

वर्ष का सत्रहवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 14:17-22

17) “तुम उन्हें यह कहोगे: ’मैं दिन-रात निरन्तर आँसू बहाता रहता हूँ, क्योंकि मेरी पुत्री विपत्ति की मारी है, मेरी प्रजा घोर संकट में पड़ी हुई है।

18) यदि मैं खेतों की ओर जाता हूँ, तो तलवार से मारे हुए लोगों को देखता हूँ और यदि मैं नगर में आता हूँ, तो उन्हें भूखों मरते देखता हूँ। नबी और याजक भी देश में मारे-मारे फिरते हैं और नहीं समझते हैं कि क्या हो रहा है?।“

19) क्या तूने यूदा को त्याग दिया है? क्या तुझे सियोन से घृणा हो गयी है? तूने हमें क्यों इस प्रकार मारा है, कि अब उपचार असम्भव हो गया है। हम शान्ति की राह देखते रहे, किन्तु वह मिली नहीं। हम कल्याण की प्रतीक्षा करते रहे, किन्तु आतंक बना रहा।

20) प्रभु! हम अपनी दुष्टता और अपने पूर्वजों का अपराध स्वीकार करते हैं। हमने तेरे विरुद्ध पाप किया है।

21) अपने नाम के कारण हमें न ठुकरा; अपने महिमामय सिंहासन का अपमान न होने दे। हमारे लिए अपने विधान को न भुला और उसे भंग न कर।

22) क्या राष्ट्रों के देवताओं में कोई पानी बरसा सकता है? क्या आकाश अपने आप वर्षा कर सकता है? हमारे प्रभु-ईश्वर! तुझ में ही यह सामर्थ्य है। इसलिए हमें तेरा भरोसा है; क्योंकि तू ही यह सब करता है।

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 13:36-43

36) ईसा लोगों को विदा कर घर लौटे। उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर कहा, ’’खेत में जंगली बीज का दृष्टान्त हमें समझा दीजिए’’।

37) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’अच्छा बीज बोने बाला मानव पुत्र हैं;

38) खेत संसार है; अच्छा बीज राज्य की प्रजा है; जंगली बीज दृष्ट आत्मा की प्रजा है;

39) बोने बाला बैरी शैतान है; कटनी संसार का अंत है; लुनने वाले स्वर्गदूत हैं।

40) जिस तरह लोग जंगली बीज बटोर कर आग में जला देते हैं, वैसा ही संसार के अंत में होगा।

41) मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके राज्य क़़ी सब बाधाओं और कुकर्मियों को बटोर कर आग के कुण्ड में झोंक देंगें।

42) वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।

43) तब धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की तरह चमकेंगे। जिसके कान हों, वह सुन ले।

📚 मनन-चिंतन

क्या हम जानते हैं कि ईश्वर धैर्यपूर्वक हमें गले लगाने की प्रतीक्षा कर रहा है? हमारे जीवन के आरंभ में ईश्वर ने हमारे लिए वह सब कुछ बोया जो अच्छा है। उदाहरण के लिए, बपतिस्मा के संस्कार के द्वारा उन्होंने हममें विश्वास का बीज बोया। फिर भी जैसे-जैसे हम इस दुनिया में परिपक्व होते हैं, शैतान भी अपना काम करता है। दुर्भाग्य से हममें से बहुत से लोग शैतान द्वारा बोए गए सुखद बीजों के आगे झुक जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप हमे अराजक, अशांत और समस्याग्रस्त जीवन व्यतीत करना पढता है। हम नेक दिल दोस्तों और परिवार की कई सलाहों पर ध्यान देने से इनकार करते हैं, बल्कि हम अपनी क्षणभंगुर और पापी सांसारिक इच्छाओं का पालन करते हैं। वैसे तो हम में से बहुत से लोग बिना शांति के इस दुनिया में रहते हैं। हालाँकि, जब तक हम इस दुनिया में सांस लेते हैं तब तक उम्मीद है- मुक्ति की आशा, क्षमा आदि। इसलिए आइए हम ऐसी किसी भी चीज़ से दूर चले जाएँ जो हमसे पाप कराती है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Do we know that the good Lord is patiently waiting for us to embrace Him? In the beginning of our lives God sowed to us all that are good. For example, through the Sacrament of Baptism He sowed in us our faith. Yet as we mature in this world the Devil also does his own thing, sowing nothing but evil oftentimes disguised as pleasures. Many of us unfortunately succumb to the pleasurable seeds sown by the Devil. As a result of this we led lives that are chaotic, disturb and problematic. We refuse to heed the many advices of well-meaning friends and family we instead follow our fleeting and sinful worldly desires. As such many of us exist in this world without peace. However, for as long as we breathe in this world there is hope- Hope of redemption, hope of forgiveness and hope of unconditional love from the good Lord. Let us therefore walk away from anything that makes us sin before it’s too late.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

अंतिम विजय

येसु बीज बोने के बारे में दूसरा दृष्टान्त बताते हैं। इस बार दो बोने वालों के विषय में। सुसमाचार हमारे सामने यह विचार प्रस्तुत करता है कि, गेहूँ और जंगली पौधे एक साथ बढ़ रहे हैं। हालांकि कटनी के दौरान वे अलग किये जाएँगे। हमारे पास अपनी ताकत और कमजोरियाँ है। हम ईश्वर के प्रतिरूप बनाए गए है फिर भी हम पापी हैं। लेकिन अच्छाई यह है कि, ईश्वर हमारे पापों को क्षमा करता है, क्योंकि वो प्रेमी, क्षमाशील और दयालु पिता है। हमें निरंतर प्रयास करना है और ईश्वर की कृपा से अपनी कमजोरियों को ताकत में बदलना है।

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा


📚 REFLECTION

Final Victory!

Jesus tells a second parable about sowing seeds, this time about two sowers — one who sows good seed to grow wheat, and the enemy who sows weeds among the wheat. The Gospel presents to us the idea that the wheat and the weeds and are growing together. However, during harvest they are separated. Yes, we do have our strengths and weaknesses. We are created in the image of God and yet we are also sinners. But the goodness is that, God forgives our sins and celebrates our goodness and victories. For this parable too, Jesus offers an allegorical interpretation to his disciples in private. Like the parable of the sower, the parable of the wheat and weeds offers a perspective on opposition to Jesus, and also speaks more generally to the persistence of evil in the present world.

-Fr. Alfred D’Souza

📚 मनन-चिंतन - 3

खेत के जंगली बीज के दृष्टांत के माध्यम से प्रभु येसु हमें यह बताना चाहते हैं कि हम इस दुनिया में जीवन भर अच्छे और बुरे के बीच संघर्ष में शामिल हैं। प्रभु ईश्वर अच्छे बीज बोते रहते हैं। शैतान जंगली बीज बोता रहता है। हमें, जो ज्ञान और विवेक के साथ सृष्ट किये गये हैं, लगभग हर समय अच्छे और बुरे के बीच वास्तविक चयन करना पडता है। धर्मियों को अंत में, अच्छाई की अंतिम जीत पर पुरस्कृत किया जाएगा। दृष्टान्त तब अधिक जटिल हो जाता है जब हम सीखते हैं कि जिस जंगली बीज का ज़िक्र प्रभु येसु करते हैं, वह गेहूँ की तरह ही दिखता है। दाने दिखाई देने पर ही अंतर स्पष्ट हो जाता है। सन्देश स्पष्ट है - शैतान हमें धोखा देने की कोशिश करता है। जब तक हम सतर्क और सावधान नहीं रहेंगे, हम उसके धोखे के शिकार बने रहेंगे। सूक्ति 14:12 में हम पढ़ते हैं, "कुछ लोग अपना आचरण ठीक समझते हैं, किन्तु वह अन्त में उन्हें मृत्यु की ओर ले जाता है"। संत पौलुस कहते हैं, "यह आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि स्वयं शैतान ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का स्वाँग रचता है" (2 कुरिन्थियों 11:14)। 2 कुरिन्थियों 11: 3 में वे कहते हैं कि शैतान "ने अपनी धूर्तता से हेवा को धोखा दिया था”। प्रकाशना 12: 9 में शैतान को सारे संसार को भटकाने वाला कहा गया है। इस प्रकार आज का सुसमाचार ख्रीस्तीय जीवन में सावधानी और सतर्कता का आह्वान करता है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Through the parable of the weeds of the field, Jesus wants us to know that we are constantly involved in a conflict between good and evil throughout our lives in this world. God keeps sowing the good seeds. The devil keeps sowing weeds. We who are gifted with reasoning and discernment are to make real choices between good and evil almost all the time. The righteous will be rewarded at the end of the battle, at the ultimate victory of goodness. The parable becomes more complex when we learn that the darnel is a weed that looks like wheat. The differences become apparent only when the grains appear. Hence the devil tries to deceive us. Unless we are alert and careful, we shall be cheated by him. In Prov 14:12 we read, “There is a way that seems right to a person, but its end is the way to death”. St. Paul says, “Even Satan disguises himself as an angel of light” (2 Cor 11:14). In 2Cor 11:3 he speaks about the devil who deceived Eve “by his craftiness”. Rev 12:9 refers to Satan as one “who deceives the whole world”. This calls for caution and alertness.

-Fr. Francis Scaria