1) प्रभु ने मुझ से यह कहा, “तुम जा जा कर छालटी की पेटी ख़रीदो और कमर में बाँध लो, किन्तु उसे पानी में नहीं डुबाओ“।
2) मैंने प्रभु के आदेशानुसार पेटी खरीद कर कमर में बाँध ली।
3) प्रभु ने मुझ से दूसरी बार कहा,
4) “तुमने जो पेटी खरीदी, उसे कमर में बाँध कर तुरन्त फ़रात नदी जाओ और उसे वहाँ किसी चट्टान की दरार में छिपा दो।“
5) मैंने प्रभु के आदेशानुसार फ़रात जा कर वहाँ पेटी छिपा दी।
6) बहुत समय बाद प्रभु ने मुझ से कहा, “फ़रात जा कर वह पेटी ले आओ, जिसे तुमने मेरे आदेशानुसार वहाँ छिपाया।“
7) मैंने फ़रात जा कर उस जगह का पता लगाया, जहाँ मैंने पेटी छिपायी थी। मैंने उसे निकाल कर देखा कि वह बिगड़ गयी है और किसी काम की नहीं रह गयी है।
8) तब प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
9) “प्रभु यह कहता हैः “मैं इसी प्रकार यूदा और येरुसालेम का गौरव नष्ट हो जाने दूँगा।
10) यह दुष्ट प्रजा मेरी एक भी नहीं सुनना चाहती और हठपूर्वक अपनी राह चलती है। यह दूसरे देवताओं की अनुयायी बन कर उनकी उपासना और आराधना करती है। इसलिए यह इस पेटी की तरह किसी काम की नहीं रहेगी ;
11) क्योंकि जिस तरह पेटी मनुय की कमर में कस कर बाँधी जाती है, उसी तरह मैंने समस्त इस्राएल और यूदा को अपने से बाँध लिया था, जिससे वे मेरी प्रजा, मेरा गौरव, मेरी कीर्ति और मेरी शोभा बन जायें। किन्तु उन्होंने मेरी एक भी न सुनी।’ यह प्रभु की वाणी है।
19) इसलिये भाई की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने के लिये बहुत से यहूदी मरथा और मरियम से मिलने आये थे।
20) ज्यों ही मरथा ने यह सुना कि ईसा आ रहे हैं, वह उन से मिलने गयी। मरियम घर में ही बैठी रहीं।
21) मरथा ने ईसा से कहा, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नही मरता
22) और मैं जानती हूँ कि आप अब भी ईश्वर से जो माँगेंगे, ईश्वर आप को वही प्रदान करेगा।“
23) ईसा ने उसी से कहा “तुम्हारा भाई जी उठेगा“।
24) मरथा ने उत्तर दिया, “मैं जानती हूँ कि वह अंतिम दिन के पुनरुथान के समय जी उठेगा“।
25) ईसा ने कहा, "पुनरुथान और जीवन में हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा
26) और जो मुझ में विश्वास करते हुये जीता है वह कभी नहीं मरेगा। क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो?"
27) उसने उत्तर दिया, "हाँ प्रभु! मैं दृढ़ विश्वास करती हूँ कि आप वह मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं, जो संसार में आने वाले थे।"
38) ईसा यात्रा करते-करते एक गाँव आये और मरथा नामक महिला ने अपने यहाँ उनका स्वागत किया।
39) उसके मरियम नामक एक बहन थी, जो प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही।
40) परन्तु मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी। उसने पास आ कर कहा, "प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।"
41) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, "मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो;
42) फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।"
जब लाजरूस की मृत्यु हुई, तो मारथा और मरियम दोनों ही इस तरह निराश थे जैसे कि उनके भाई लाजरूस की मृत्यु के साथ उनकी दुनिया समाप्त हो गई हो। जब तक येसु उनसे मिलने नहीं आए और वहाँ से उन बहनों के आशाहीन जीवन में अचानक एक बार फिर से आशा और जीवन आ गया। यही कारण है कि येसु उनसे मिलने गए, उस यात्रा का समापन उनके भाई लाजरूस के जी उठने के साथ हुआ। क्या आपको लगता है कि आप जिन समस्याओं से गुज़र रहे हैं, उनके कारण आप आशाहीन हैं? आशा है और आप इसे इस समस्या से भरे संसार के बीच येसु में पा सकते हैं। येसु आपको न केवल आशा बल्कि जीवन का एक नया प्रारूप प्रदान कर रहे हैं। विश्वास करें, उस पर आशा और विश्वास रखें आपके पास एक नया जीवन होगा।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
When Lazarus died both Martha and Mary were forlorn as if their world had ended with the death of their brother Lazarus. Until Jesus came to pay them a visit and from there the sister’s hopeless life suddenly had hope and life once again. This is for the reason that Jesus went to visit them, that visit culminated with the raising of their brother Lazarus. Do you feel that you are without hope for the reason of the many problems that you’ve been going through? There is hope and you can find it in Jesus, in the midst of this problem filled world. Jesus is offering you not only hope but a new lease on life. Believe, have hope and faith in Him and you’ll have a new life.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)