जुलाई 28, 2024, इतवार

वर्ष का सत्रहवाँ सामान्य इतवार

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📒 पहला पाठ : राजाओं का दुसरा ग्रन्थ 4:42-44

42) एक मनुष्य बाल-शालिशा से आया और उसने ईश्वर -भक्त को प्रथम फल के रूप में जौ की बीस रोटियाँ और नये अनाज का बोरा दिया। तब एलीशा ने कहा ‘‘लोगों को खाने के लिए दे दो’’

43) किन्तु उसके नौकर ने कहा, ‘‘मैं इतने को ही एक सौ लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘लोगों को खाने के लिए दो, क्योंकि प्रभु ने यह कहा है- वे खायेंगे और उस में से कुछ बच भी जायेगा’’।

44) उसने लोगों को खिलाया। उन्होंने खा लिया और जैसा कि प्रभु ने कहा था, उस में से कुछ बच भी गया।

दूसरा पाठ: एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:1-6

1) ईश्वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें - यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कै़दी हूँ।

2) आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें

3) और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।

4) एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।

5) एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा।

6) एक ही ईश्वर है, जो सबों का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्याप्त है।

📒 सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 6:1-15

1) इसके बाद ईसा गलीलिया अर्थात् तिबेरियस के समुद्र के उस पर गये।

2) एक विशाल जनसमूह उनके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने वे चमत्कार देखे थे, जो ईसा बीमारों के लिए करते थे।

3) ईसा पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये।

4) यहूदियों का पास्का पर्व निकट था।

5) ईसा ने अपनी आँखें ऊपर उठायीं और देखा कि एक विशाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है। उन्होंने फिलिप से यह कहा, ‘‘हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें?’’

6) उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा। वे तो जानते ही थे कि वे क्या करेंगे।

7) फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘दो सौ दीनार की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके’’।

8) उनके शिष्यों में एक, सिमोन पेत्रुस के भाई अन्द्रेयस ने कहा,

9) ‘‘यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, पर यह अतने लोगों के लिए क्या है,’’

10) ईसा ने कहा, ‘‘लोगों को बैठा दो’’। उस जगह बहुत घास थी। लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हज़ार थी।

11) ईसा ने रोटियाँ ले लीं, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और बैठे हुए लोगों में उन्हें उनकी इच्छा भर बँटवाया। उन्होंने मछलियाँ भी इसी तरह बँटवायीं।

12) जब लोग खा कर तृत्त हो गये, तो ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ‘‘बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बरबाद न हो’’।

13) इस लिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से बारह टोकरे भरे, जो लोगों के खाने के बाद जौ की पाँच रोटियों से बच गये थे।

14) लोग ईसा का यह चमत्कार देख कर बोल उठे, ‘‘निश्चय ही यह वे नबी हैं, जो संसार में आने वाले हैं’’।

15) ईसा समझ गये कि वे आ कर मुझे राजा बनाने के लिए पकड़ ले जायेंगे, इसलिए वे फिर अकेले ही पहाड़ी पर चले गये।


📚 मनन-चिंतन

सुसमाचार में बड़ी भीड़ येसु के पीछे भाग रही थी, मुख्य रूप से उसके चमत्कारों, चंगाई और जीवन बदलने वाले उपदेशों के कारण। भीड़ पाँच हज़ार से अधिक थी और येसु स्वाभाविक रूप से उनके कल्याण के लिए चिंतित थे। इसलिए वह उन्हें खिलाना चाहता था लेकिन रोटी और मछली पर्याप्त नहीं थी। रोटी और मछली को हाथ में लेने पर, उसने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए ऊपर देखा। इसके बाद येसु ने भीड़ को रोटी और मछली दी और वह उन सबको खिला सकें। यह न केवल भीड़ की शारीरिक भूख थी जिसे येसु ने तृप्त किया, बल्कि येसु ने उनकी आत्मिक प्यास को भी तृप्त किया। जब हम पवित्र ख्रीस्तयाग में शामिल होते हैं, तो हमें भी येसु द्वारा वही रोटी खिलाई जाती है जो उन्होंने भीड़ को दी थी। यह उस क्षण होता है जब हम पवित्र भोज के दौरान उनके शरीर और रक्त का हिस्सा बनते हैं। पवित्र भोज के दौरान हम जीवन की रोटी, येसु स्वयं द्वारा शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से भी पोषित होते हैं!

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

The big crowd in the gospel was running after Jesus, because of His miracles, healings and life changing sermons. The crowd was more than five thousand and Jesus was naturally concerned for their welfare. He therefore wanted to feed them but there was no enough bread and fish. So what Jesus did was he asked for whatever bread and fish that they have. Upon getting hold of the bread and fish, He looked up in thanksgiving to God. Thereafter Jesus gave the bread and fish to the crowd and He was able to feed them all. They also had plenty to spare: twelve baskets and some fragments. It was not only the crowd’s physical hunger that was satisfied by Jesus, He also satisfied their spiritual thirst.When we attend Holy Mass, we are also feed by Jesus with the same bread which He gave the crowd. It happens the moment we partake of His Body and Blood during Holy Communion. During the Holy Communion we are also nourished physically and spiritually by the Bread of Life, Jesus Himself! This is what occurs when we attend Holy Mass. We are always being nourished by Jesus Himself! The same Jesus that fed the crowd who were following Him in the gospel.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

आज के पहले पाठ और सुसमाचार में हम भोजन का चमत्कार देखते हैं. पहले पाठ में नबी एलिशय जौ की बीस रोटियों और कुछ बालियों को ईश्वर के सामर्थ्य से सौ लोगों में बाँटते हैं, और सब लोग खाकर तृप्त हो जाते हैं, और कुछ टुकड़े बचते भी हैं. सुसमाचार में भी हम रोटियों का चमत्कार देखते हैं जिसमें प्रभु येसु जौ की पाँच रोटियों और दो मछलियों को पाँच हजार लोगों में बाँटते हैं. सब लोग खूब खाते हैं, और तृप्त हो जाते हैं और खाने के बात बचे हुए टुकड़ों से 12 टोकरे भर जाते हैं. और दूसरे पाठ में सन्त पौलुस आपसी एकता के बारे में बात करते हैं. आखिर इन दोनों चमत्कारों में हमारे लिए ईश्वर का क्या सन्देश है?

सुसमाचार में हम देखते हैं कि भीड़ की भीड़ प्रभु येसु के वचन सुनने के लिए आ जाती है. बहुत सारे लोग हो सकता है बहुत दूर से आये थे. हम जानते हैं कि पुराने जमाने में ज्यादातर लोग पैदल ही यात्रा करते थे, और अक्सर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने के लिए काफी समय लग जाता था, कभी-कभी कई दिन भी लग जाते थे. ऐसी परिस्थिति में यह स्वाभाविक ही था कि अपनी यात्रा शुरू करने से पहले लोग अक्सर पूरी व्यवस्था करके चलते थे, जैसे कि अतिरिक्त जोड़ी जूते, रास्ते के लिए भोजन, पैसे इत्यादि. लेकिन प्रभु येसु के पास जो भीड़ की भीड़ आई थी, वे वचनों में इतने खो गये कि भूल गये कि उन्हें वापस लौटना है, भूल गये कि उन्हें अपने लिए भोजन की व्यवस्था करनी है. जब हम ईश्वर में इतने मगन हो जाते हैं, तो ईश्वर हमारी हर ज़रूरत का ख्याल रखते हैं.

प्रभु कहते हैं, “तुम जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ. यदि तुम्हारे पास रुपया नहीं हो, तो भी आओ. मुफ्त में अन्न खरीद कर खाओ. दाम चुकाए बिना अंगूरी और दूध खरीद लो. जो भोजन नहीं है उसके लिए तुम लोग अपना रुपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता है उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो?” (इसायाह 55:1-2). जब हम अपना सर्वस्व भूलकर प्रभु पर न्यौछावर कर देते हैं, तो प्रभु हमारी ज़रूरत पूरी करता है. जब लोग सब कुछ भूलकर प्रभु येसु के पीछे आये तो प्रभु येसु क्यों न द्रवित होकर उनकी भोजन की आवश्यकता को पूरी नहीं करेंगे. लेकिन सन्त पौलुस हमें याद दिलाते हैं, अगर हम चाहते हैं कि ईश्वर हमारे जीवन में चमत्कार दिखाएँ तो हमें अपनी बुलाहट के अनुसार जीवन बिताना है. एक दूसरे के साथ मिलकर प्रेम से रहना है.

रोटियों का चमत्कार मिल-बाँट कर खाने का चमत्कार है. अगर वह लड़का अपना भोजन दूसरों के साथ बाँटने के लिए तैयार नहीं होता तो शायद हमारे सामने दूसरा दृश्य होता. जब हम उदार होकर अपने भोजन, चीजों आदि को दूसरों के साथ बाँटते हैं, तो वे न केवल हमारे लिए बल्कि दूसरों के लिए भी खूब बढ़ जाते हैं, और इतने अधिक हो जाते हैं कि सब लोग ख़ुशी ख़ुशी उसे आपस में बाँट सकते हैं, और किसी को कोई कमी नहीं रहती. यही विशेषता प्रारंभिक कलीसिया में थी. विश्वासियों का समुदाय एक ह्रदय और एक प्राण था. वे अपनी सम्पत्ति अपनी नहीं समझते थे, जो कुछ उनके पास था उसमें सबों का साझा था. सब कुछ बेचकर प्रेरितों के चरणों पर रख देते थे, और वह ज़रूरतमंद लोगों में उनकी आवश्यकता अनुसार बांटा जाता था. (प्रेरित-चरित 4:32,34-35).

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


We see a miracle of multiplication of food in the first reading of today and also in the gospel. In the First reading we see Prophet Elisha who takes 20 loaves of barley and few ears of corn and it becomes sufficient for more than hundred people and there is also left over they collect. Similar incident we see in the Gospel of the day where Jesus multiplies the five loaves and two fish and distributes them among more than five thousand people. They eat and are filled and there remain crumbs which were collected into twelve big baskets. An in the second reading, St. Paul talks about unity and love for one another. What do these miracles of multiplication have for us?

In the gospel we see great crowds coming to listen to Jesus. Many of them perhaps had come from a long distance. We know that in those days most of the people travelled on foot, which took lot of time to reach from one place to another, it took even days. It is natural in such situation to make all arrangements before beginning the journey. These arrangements included an extra pair of footwear, food for the way, sufficient money etc. The people who came to listen to Jesus must have come with sufficient food, but they were lost so much that they forgot that they have to return, they have arrange food for themselves. When we are lost in the company of God, God will make sure that our every need in met.

The Lord says, “Everyone who thirsts, come to the waters; and you that have no money, come, buy and eat! Come buy wine and milk without money and without price. Why do you spend your money for that which is not bread, and your labour for that which does not satisfy? (Isa 55:1-2a).” When we surrender our life wholeheartedly to God, our every need is taken care of. When people came in great numbers to Jesus, forgetting everything, why wouldn’t Jesus have compassion on them and provide them with food? But St. Paul reminds us that if we want God to do miracles in our life, then we have to live our lives according to our calling. We need to live in unity with each other.

In fact the miracle of the multiplication of loaves is the miracle of sharing. If the boy were not willing to share what he had, then there would have a different picture all tother. When we are generous in sharing our things and gifts with others, they multiply not only for us but also for others. The blessings grow so much that they can be shared by everyone and nobody would lack anything. This was the characteristic of the early Church as well. The community was of one heart and soul, no one claimed private ownership of any possession, but everything they owned was held in common. There was not a needy person among them, for as many as owned lands or houses sold them and brought the proceeds of what was sold. They laid it at the apostles’ feet, and it was distributed to each as any had need (Acts 4:32, 34-35).

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)

📚 मनन-चिंतन - 3

एक बार एक चित्रकार वेदी पर चित्र बना रहे थे। चित्र पूरा होने पर लोग देखने आये। लोगों ने वेदी के चित्र पर एक टोकरी में चार रोटी और दो मच्छलियों का चित्र देखा। सब लोग उनसे पूछने लगे कि टोकरी में पॉंचवीं रोटी कहॉं गायब हो गयी। तब उसने कहा कि टोकरी की पॉंचवीं रोटी पवित्र यूखारिस्त है जो वेदी पर चढ़ायी जाती है।

आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु को पॉंच रोटियों और दो मच्छलियों से पॉंच हजार लोगों को खिलाते हुए पाते है। इस चमत्कार के एक प्रमुख बिन्दु पर आज हम मनन चिन्तन करेंगे।

उदारता से प्रचुरता की ओर और

आजकल फ्री या डिस्काउंट का नाम सुनते ही लोग इक्कट्ठा हो जाते हैं। प्रभु के पास इक्कट्ठा हुई भीड भी कुछ इस तरह की थी। वे प्रभु से कुछ पाना चाहते थे और प्रभु के चमत्कार देखना चाहते थे। येसु ने एक बहुत बडा चमत्कार उनके सामने किया। चमत्कार की शुरूआत एक छोटे लडके से होती है, जो अपने पास की पॉंच रोटियॉं और दो मच्छलियॉं दूसरों के साथ बाटने को तैयार हुआ। जब उस लडके ने अपनी पॉंच रोटियॉं और दो मच्छलियॉं बडी उदारता से दी तो वहॉं पर इक्कट्ठे पॉंच हजार से ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिला।

बाईबिल में हम देखते हैं कि जितने लोगों ने उदारता का भाव अपनाया उन सब को प्रभु का आर्शीवाद मिला। उत्पत्ति ग्रंथ 13:9 में हम देखते है कि जब जमीन के बटवारे का समय आया तो इब्राहीम अपने भांजे लोट से कहते है कि ‘‘सारा प्रदेश तुम्हारे सामने है। हम एक दूसरे से अलग हो जायें यदि तुम बाएं जाओगे तो मैं दाहिने जाऊॅंगा और यदि दाहिने जाओगे तो मैं बाएं जाऊॅंगा’’। बडा होने के कारण इब्राहीम अच्छी जगह चुन सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। बडी उदारता से उन्होंने लोट को स्थान चुनने का अधिकार दिया। प्रभु ने इब्राहिम और उसके पूरे वंशजों को आर्शीवाद दिया। एक व्यक्ति की उदारता से उनके पूरे वंशजों को प्रचुरता की आशिष मिली।

राजाओं के पहले ग्रंथ 17:7 एवं आगे वाक्यांशों में एक और घटना हम पाते हैं। सरेप्ता की विधवा ने नबी एलियस को बहुत ही उदारता से अपनी आखरी रोटी खिलायी और प्रभु ने उसको प्रचुर मात्रा में आशिष दी। 16वें वाक्यांश में लिखा है कि ‘‘न तो बरतन में आटा समाप्त हुआ और न तेल की कुप्पी खाली हुई।

स्कूल के recess (अवकाश) के समय मैंने यह देखा है कि कुछ बच्चे टिफिन में जो खाने की चीज लाते हैं उसको कभी कभी सात या आठ दोस्तों को बांटते हैं और उनके लिए एक छोटा सा हिस्सा ही मिलता है या कभी-कभी तो वे स्वयं ही भूखे रह जाते हैं। लेकिन उनके चेहरे की मुस्कुराहट यह बताती है कि वे बहुत खुश हैं। आज की स्वार्थी दुनिया में ये बच्चे हमारे लिए एक नमूना है।

आज कल लोग इतने स्वार्थी हो गये हैं कि वे गरीब लाचार और भिखरियों से भी उनका सामान छीनने की कोशिश करते हैं। दूसरे लोगों को देने से हमें दो फायदे होते हैं। एक हमारे लिये खुशी की बात होती है कि हमने गरीबों के लिए कुछ दिया है और दूसरा यह है कि उनको हमारे द्वारा कुछ फायदा होता है। उनकी प्रार्थना और आर्शीवाद हमें मिलते रहते हैं। जब देने की बात होती है तो हमेशा हम पैसों के बारे में सोचते हैं। लेकिन हम पैसों के अलावा बहुत कुछ लोगों को दे सकते हैं। हमारा समय, हमारा ज्ञान, हमारी क्षमता, हमारी मीठी बातें आदि हम दूसरे लोगों के साथ बाट सकते हैं। अगर प्रभु ने खुद अपना जीवन न्यौछावर करके हमारे लिए पवित्र यूखारिस्त की स्थापना की तो क्या हम प्रभु के लिए कुछ दे सकते है? आईए हम दूसरों से लेने से ज्यादा उनको देना सीखे और लोगों से और प्रभु से आर्शीवाद प्राप्त करे क्योंकि प्रभु ने कहा है कि ‘‘जो इन छोटों में से किसी को एक प्याला ठंडा पानी भी इसलिए पिलायेगा कि वह मेरा शिष्य है, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।’’

फादर मेलविन चुल्लिकल