14) प्रभु यह कहता हैः “विद्रोही पुत्रो! मेरे पास लौट आओ। मैं ही तुम्हारा स्वामी हूँ। मैं तुम लोगों को, सब नगरों और राष्ट्रों से निकाल कर, सियोन में वापस ले आऊँगा।
15) में तुम्हें अपने मन के अनुकूल चरवाहों को प्रदान करूँगा, जो विवेक और बुद्धिमानी से तुम्हें चरायेंगे।“
16) प्रभु यह कहता हैः “जब देश में तुम लोगों की संख्या बहुत बढ़ेगी और तुम्हारी बड़ी उन्नति होगी, तब कोई प्रभु के विधान की मंजूषा की चरचा नहीं करेगा। कोई उसे याद नहीं करेगा। किसी को उसका अभाव नहीं खटकेगा और उसके स्थान पर कोई दूसरी मंजूषा नहीं बनायी जायेगी।
17) उस समय येरुसालेम ’प्रभु का सिंहासन’ कहलायेगा। सभी राष्ट्र प्रभु के नाम पर येरुसालेम में एकत्र हो जायेंगे। वे फिर कभी अपने दुष्ट और हठीले हृदय की वासनाओं के अनुसार नहीं चलेंगे।
18) ’’अब तुम लोग बोने वाले का दृष्टान्त सुनो।
19) यदि कोई राज्य का वचन सुनता है, लेकिन समझता नहीं, तब उसके मन में जो बोया गया है, उसे शैतान आ कर ले जाता हैः यह वह है, जो रास्ते के किनारे बोया गया है।
20) जो पथरीली भूमि मे बोया गया है, यह वह है, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करता है;
21) परन्तु उस में जड़ नहीं है, और वह थोड़े ही दिन दृढ़ रहता है। वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पड़ने पर वह तुरन्त विचलित हो जाता है।
22) जो काँटों में बोया गया हैः यह वह है, जो वचन सुनता है; परन्तु संसार की चिन्ता और धन का मोह वचन को दबा देता है और वह फल नहीं लाता।
23) जो अच्छी भूमि में बोया गया हैः यह वह है, जो वचन सुनता और समझता है और फल लाता है, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, और कोई तीस गुना।’’
आज इस पवित्र जोड़े से हम प्रार्थना करें, विशेष रूप से अपने दादा-दादी या नाना-नानी के लिए। विचार करें कि परमेश्वर के पुत्र की माँ को जन्म देना कैसा रहा होगा। प्रार्थनापूर्वक कल्पना करें कि उनकी बेटी, जो अनुग्रह से परिपूर्ण थी, को बड़े होते और वयस्कता में परिपक्व होते देखना कैसा रहा होगा। हालाँकि ये पवित्र माता-पिता अपनी बेटी से जुड़े सभी रहस्यों को नहीं समझ पाए होंगे, लेकिन आध्यात्मिक अंतर्ज्ञान की कृपा से, वे जानते होंगे कि उनकी बेटी को ईश्वर ने चुना था और उसे एक अनोखी कृपा दी थी जो प्रचुर मात्रा में गुणों के रूप में सामने आई।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today in a very special way pray to this holy couple, especially asking their intercession for your grandparents or your grandchildren. Ponder what it would have been like to give birth to the Mother of the Son of God. Prayerfully imagine what it would have been like to watch their daughter, who was “full of grace,” grow and mature into adulthood. Though these holy parents might not have understood all of the mysteries that surrounded their daughter, they would have known, by a grace of spiritual intuition, that their daughter was chosen by God and given a singular grace that budded forth in an abundance of virtue for all to see, especially for her parents to see.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
बोने वाले का ज़िक्र करते हुए, प्रभु येसु मानव हृदय में ईश्वर के भले कार्य की बात कर रहे थे। ग्रहणशीलता और अनुकूल परिस्थितियों के आधार पर, भलाई का बीज मानव हृदय में बढ़ता है। मानव-उद्धार ईश्वर और मनुष्य का एक संयुक्त उद्यम है। ईश्वर मुक्ति प्रदान करता है और मनुष्य को सचेत रूप से इसे ग्रहण करना चाहिए और इसे अपने जीवन में फल लाने देना चाहिए। मानव हृदय, रास्ते के किनारे के समान हो सकता है - बहुत अधिक चिंताओं, बहुत सारी दिशाओं और अल्पकालिक प्रतिबद्धता के साथ व्यस्त। यह पथरीली जमीन की तरह हो सकता है – असंवेदनशील, कठोर और अभेद्य। यह शारीरिक वासनाओं तथा सांसारिक मोहमाया से भरे कांटेदार क्षेत्र की तरह भी हो सकता है। लेकिन अच्छी मिट्टी वांछनीय है, जहां भलाई के लिए ग्रहणशीलता है और ईश्वर के वचन को अंकुरित होने, बढ़ने और फल लाने के लिए अनुकूल वातावरण है। हमें ईश्वर के वचन के लिए अपने हृदयों को तैयार करना चाहिए। यिरमियाह 4: 3-4 में, प्रभु कहते हैं, "अपनी पड़ती ज़मीन को जोतो और काँटों में बीज मत बोओ। यूदा के लोगों और येरूसालेम के निवासियों! प्रभु के लिए अपने शरीर और अपने हृदय का ख़तना करो। नहीं तो तुम्हारे कुकर्मों के कारण मेरा क्रोध आग की तरह भड़क उठेगा और कोई उसे बुझाने में समर्थ नहीं होगा।” यहाँ यह स्पष्ट है कि संदर्भ मानव हृदय का है। नबी होशेआ कहते हैं, “तुम धार्मिकता बोओ, तो भक्ति लुनोगे। अपनी परती भूमि जोतो, क्योंकि समय आ गया है। प्रभु को तब तक खोजते रहो, जब तक वह आ कर धार्मिकता न बरसाये।” (होशेआ 10:12)। एज्रा के बारे में, यह कहा जाता है कि उन्होंने "प्रभु की संहिता के अध्ययन में, उसके पालन और इस्राएल की विधियों और रीति-रिवाजों की शिक्षा में मन लगाया था" (एज्रा 7:10)। हम अपने आप से सवाल करें - क्या मैंने अपने दिल को ईश्वर के जीवन्त वचन के लिए तैयार किया है?
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
While speaking about the sower, Jesus was referring to God sowing goodness in human heart. Depending on receptivity and conducive circumstances the seed of goodness grows in human heart. Human salvation is a joint venture. God offers salvation and man has to consciously receive it and allow it to bear fruit in his life. Human heart can be like the wayside – busy with too many concerns, too many directions and wavering commitment. It can be like the rocky ground – devoid of sensitivity, hardened and impenetrable. It can be like the thorny field full of desires of flesh and worldly ambitions. But the desirable sort is good soil where there is receptivity to goodness and a favorable ambience for the Word of God to germinate, grow and bear fruit. We need to prepare our hearts for the Word of God. In Jer 4:3-4, the Lord says, “Break up your fallow ground, and do not sow among thorns. Circumcise yourselves to the Lord, remove the foreskin of your hearts, O people of Judah and inhabitants of Jerusalem, or else my wrath will go forth like fire, and burn with no one to quench it, because of the evil of your doings.” It is evident here that the reference is to the human heart. Prophet Hosea says, “Sow for yourselves righteousness; reap steadfast love; break up your fallow ground; for it is time to seek the Lord, that he may come and rain righteousness upon you.” (Hos 10:12). About Ezra, it is said that he “had set his heart to study the law of the Lord, and to do it, and to teach the statutes and ordinances in Israel” (Ezra 7:10). Have I prepared my heart for the Living Word?
✍ -Fr. Francis Scaria