जुलाई 24, 2024, बुधवार

वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 1:1,4-10

1) ये शब्द यिरमियाह के हैं, जो बेनयामीन प्रान्त के अनात¨त में निवास करने वाले याजक हिलकीया का पुत्र है।

4) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी-

5) “माता के गर्भ में तुम को रचने से पहले ही, मैंने तुम को जान लिया। तुम्हारे जन्म से पहले ही, मैंने तुम को पवित्र किया। मैंने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया।“

6) मैंने कहा, “आह, प्रभु-ईश्वर! मुझे बोलना नहीं आता। मैं तो बच्चा हूँ।“

7) परन्तु प्रभु ने उत्तर दिया, “यह न कहो- मैं तो बच्चा हूँ। मैं जिन लोगों के पास तुम्हें भेजूँगा, तुम उनके पास जाओगे और जो कुछ तुम्हें बताऊगा, तुम वही कहोगे।

8) उन लोगों से मत डरो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। यह प्रभु वाणी है।“

9) तब प्रभु ने हाथ बढ़ा कर मेरा मुख स्पर्श किया और मुझ से यह कहा, “मैं तुम्हारे मुख में अपने शब्द रख देता हूँ।

10) देखो! उखाड़ने और गिराने, नष्ट करने और ढा देने, निर्माण करने और रोपने के लिए मैं आज तुम्हें राष्ट्रों तथा राज्यों पर अधिकार देता हूँ।“

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 13:1-9

1) ईसा किसी दिन घर से निकल कर समुद्र के किनारे जा बैठे।

2) उनके पास इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी कि वे नाव पर चढ़ कर बैठ गये और सारी भीड़ तट पर बनी रही।

3) उन्होंने दृष्टान्तों द्वारा उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा दी। उन्होंने कहा, "सुनो! कोई बोने वाला बीज बोने निकला।

4) बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और आकाश के पक्षियों ने आ कर उन्हें चुग लिया।

5) कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें अधिक मिट्टी नहीं मिली। वे जल्दी ही उग गये, क्योंकि उनकी मिट्टी गहरी नहीं थी।

6) सूरज चढने पर वे झुलस गये और जड़ न होने के कारण सूख गये।

7) कुछ बीज काँटों में गिरे और काँटों ने बढ़ कर उन्हें दबा दिया।

8) कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे और फल लाये- कुछ सौ गुना, कुछ साठ गुना और कुछ तीस गुना।

9) जिसके कान हों, वह सुन ले।"

📚 मनन-चिंतन

क्या हम येसु की सुनते हैं जब वह हमसे बात करता है? हर बार येसु उदारता से हमारे लिए सुसमाचार के बीज बोते हैं। इस आशा के साथ कि उसके द्वारा बोए गए बीज अंततः हमारे हृदयों में उगेंगे और हमारे शब्दों और कार्यों के माध्यम से अनगिनत फल उत्पन्न करेंगे। हममें से कुछ लोग सुनने या सुनने की परवाह भी नहीं करते हैं लेकिन सुनने के बाद हम इसे पूरी तरह से भूल जाते हैं। लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो सुसमाचार के बीजों को सुनते हैं, आत्मसात करते हैं और इसे जीने और साझा करने के द्वारा अपने जीवन में फल लाते हैं। उस प्रक्रिया में वे दूसरों के जीवन को आशिषित करने के लिए स्वयं को ईश्वर के बीज के रूप में ईश्वर द्वारा उपयोग किए जाने की अनुमति देते हैं। आइए हम ईश्वर के इन्हीं शब्दों को हमें बदलने दें ताकि हम समृद्ध भूमि पर बोया गया बीज बन सकें। इसलिए, अपनी बाइबिल खोलें, पढ़ें और येसु के शब्दों पर चिंतन करें और इसे अपने अंदर गहराई तक उतरने दें। ताकि वह जड़ पकड़े, बढ़े और खूब फल लाए।

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Do we listen to Jesus when He speaks to us? Every time Jesus generously sows the seeds of the gospel to us. With the hope that His sown seeds would eventually grow in our hearts and bear countless fruits through our words and actions. Some of us don’t even care to listen or we listen but after listening we completely forget it. But there are also those who listen, imbibe and let the seeds of the gospel bear fruit in their lives by living and sharing it. In that process they allow themselves to be used by God as His seeds to bless other people’s lives. Let us allow these very same words of God to transform us therefore we would become the seed sown on rich soil. Therefore, open your bible, read and reflect on the words of Jesus and allow it to sink deep into you. So that it would take root, grow and bear much fruit.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

उपजाऊ भूमि

संत मत्त्ती अध्याय 13 इस युग में स्वर्ग के राज्य की प्रगति के बारे में शिक्षाओं से भरा हुआ है। प्रस्तुत अध्याय येसु के प्रवचनों का एक समूह है न कि, केवल प्रभु की सेवकाई से ली गई सच्चाईयों का एक संग्रह। दृष्टान्त के मुख्य पात्र निश्चित रूप से बोने वाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि, बोने वाला लापरवाही से बीज को बर्बाद कर रहा है। येसु ऐसे शिष्यों में निवेश करते है जो समान रूप से अडिग दिखते हैं। वह अपना समय कर वसूलने वालों, पापियों, कोढ़ियों और समाज से बहिष्कृत लोगों के साथ व्यतीत करते हैं। आप स्वर्ग राज्य के बीज कहाँ बिखेरते हैं?

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा


📚 REFLECTION

Rich Soil

Matthew chapter 13 is filled with teachings about the progress of the kingdom of heaven in this age. The chapter is a set of discourses of Jesus and not a mere collection of truths taken from the Lord’s ministry. The parable of the sower also probes the mystery of mixed responses to Jesus and his ministry. This brings us back to the parable. The main character in the parable, of course, is the sower. The sower seems to scatter the seeds carelessly, recklessly, seemingly wasting much of the seed on ground that holds little promise for a fruitful harvest. Jesus invests in disciples who look similarly unpromising. He squanders his time with tax collectors and sinners, with lepers, the demon-possessed, and all manner of outcastes. Yet, he promises that his reckless sowing of the word will produce an abundant harvest. Where do you scatter the seeds of Kingdom?

-Fr. Alfred D’Souza

📚 मनन-चिंतन - 3

आज्ञाकारिता नम्र प्रेम या विनीत प्रेम का एक प्रमाण है। हमें उन लोगों के प्रति विनम्र प्रेम रखना चाहिए जिन्हें हमारे ऊपर अधिकार और जिम्मेदारी दी जाती है। यद्यपि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा पावन त्रित्व में एक समान हैं, पुत्र पिता से विनीत प्रेम या विनम्र प्रेम करते हैं। इस सत्य को संत पौलुस फिलिप्पियों के पत्र 2:5-8 में स्पष्ट करते हैं, जब वे कहते हैं, "आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें। वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।“

इस तरह प्रभु येसु ने अपना पुत्रानुरूप प्रेम प्रदर्शित किया। इसी प्रकार के प्रेम की वकालत करते हुए आज के सुसमाचार में, वे कहते हैं, " जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही मेरा भाई है, मेरी बहन और मरी माता" (मत्ती 12:50)। पिता ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए माता मरियम ईश्वर के पुत्र, येसु ख्रीस्त की माँ बन गई। पिता ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका कथन मुझ में पूरी हो जाये” (लूकस 1:38)। हम पिता की आज्ञा मानकर और उनकी इच्छा को पूरा करके पवित्र त्रिएक ईश्वर के साथ एक स्थायी संबंध स्थापित करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

One of the proofs of the docile love or submissive love is obedience. Submissive love is due to those who are given authority and responsibility over us. Although the Father, the Son and the Holy Spirit are equal in the Holy Trinity, the Son practises submissive love or docile love in relation to the Father. This is clearly described by St. Paul in Phil 2:5-8 when he says, “Let the same mind be in you that was in Christ Jesus, who though he was in the form of God, did not regard equality with God as something to be exploited, but emptied himself, taking the form of a slave, being born in human likeness. And being found in human form, he humbled himself and became obedient to the point of death— even death on a cross.” This is how the Son demonstrates the filial love. This is what he advocates when, in today’s Gospel, he says, “whoever does the will of my Father in heaven is my brother and sister and mother” (Mt 12:50). Mary became the mother of Jesus, the Son of God by her obedience to the will of the Father which she expressed in the words, “Here am I, the servant of the Lord; let it be with me according to your word” (Lk 1:38). We shall establish a lasting relationship with the Holy Trinity by obeying the Father and carrying out his will.

-Fr. Francis Scaria