जुलाई 23, 2024, मंगलवार

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वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : मीकाह का ग्रन्थ 7:14-15,18-20

14) तू अपना डण्डा ले कर अपनी प्रजा, अपनी विरासत की भेडें चराने की कृपा कर। वे जंगल और बंजर भूमि में अकेली ही पडी हुई है। प्राचीन काल की तरह उन्हें बाशान तथा गिलआद में चरने दे।

15) जिन दिनों तू हमें मिस्र से निकाल लाया, उन्हीं दिनों की तरह हमें चमत्कार दिखा।

18) तेरे सदृश कौन ऐसा ईश्वर है, जो अपराध हरता और अपनी प्रजा का पाप अनदेखा करता हैं; जो अपना क्रोध बनाये नहीं रखता, बल्कि दया करना चाहता हैं?

19) वह फिर हम पर दया करेगा, हमारे अपराध पैरों तले रौंद देगा और हमारे सभी पाप गहरे समुद्र में फेंकेगा।

20) तू याकूब के लिए अपनी सत्यप्रतिज्ञता और इब्राहीम के लिए अपनी दयालुता प्रदर्शित करेगा, जैसी कि तूने शपथ खा कर हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की है।

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 12:46-50

46) ईसा लोगों को उपदेश दे रहे थे कि उनकी माता और भाई आये। वे घर के बाहर थे और उन से मिलना चाहते थे।

47) किसी ने ईसा से कहा, ’’देखिए, आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आप से मिलना चाहते हैं।’’

48) ईसा ने उस से कहा, ’’कौन है मेरी माता? कौन है मेरे भाई?

49) और हाथ से अपने शिष्यों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा, ’’देखो, ये हैं मेरी माता और मेरे भाई!

50) क्योंकि जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही मेरा भाई है, मेरी बहन और मरी माता।’’

📚 मनन-चिंतन

कलीसिया के सदस्य अक्सर एक दूसरे को भाई और बहन के रूप में संबोधित करते हैं। इस प्रकार वे येसु के द्वारा एक दूसरे के साथ सम्बन्धियों के रूप में व्यवहार करते हैं। क्योंकि वे मसीह को उनके मिशन और शिक्षाओं को आगे बढ़ाने में मदद करना चाहते हैं; यही एकमात्र कारण और उद्देश्य है। आइए हम हमेशा याद रखें कि जब हम येसु के मिशन में हिस्सा लेते हैं तो हम उसके भाई और बहन बन जाते हैं। और जब हमें उनकी शिक्षाओं और उनके मूल्यों को जीने में शर्म नहीं आती। आइए हम ऐसा करने में लज्जित न हों क्योंकि ऐसे पुरस्कार हैं जो येसु के मिशन को साझा करने वालों की प्रतीक्षा करते हैं।

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Members of church ministries often address each other as brother and sister. As such they treat each other as relatives through Jesus. They are there because they want to help Christ advance His mission and teachings; this is the sole reason and purpose. Let us always remember that we become brothers and sisters of Jesus when we share in His mission. And when we are not ashamed to live His teachings and His values. Let us not be ashamed to do this for there are rewards that await those who share the mission of Jesus. You may not yet see the reward/s now but surely there will be a reward reserved for you.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

हमारी धन्य माँ

आज का सुसमाचार धन्य कुँवारी माँ मरियम के विषय में बोलने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है। कुछ लोग जो इस सुसमाचार को पढ़ते है, वे इस सोच या भ्रम में पड़ जाते हैं कि, येसु अपनी माँ से दूर हो रहे है। हमारी धन्य माँ का येसु के साथ संबंध दो स्तरों का है।

* पहला - भौतिक मातृत्व

* दूसरा - आध्यात्मिक मातृत्व

भौतिक मातृत्व एक अविश्वसनीय कृपा थी लेकिन आशीर्वाद का प्राथमिक कारण नहीं थी। प्राथमिक कारण उनका आध्यात्मिक मातृत्व था। यह सब माँ के उस महान ‘‘हाँ’’ का परिणाम है। यही वह प्राथमिक कारण है जिसके लिए सारी पीढ़ियाँ ‘‘धन्य’’ कहकर माँ को सम्मानित करती है। हमारी धन्य माँ ने मेरे जीवन मंे क्या भूमिका निभाई हैं?

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा


📚 REFLECTION

Our Blessed Mother

This passage offers a wonderful opportunity to speak about the Blessed Virgin Mary. Some who read this passage fall into the trap of thinking that Jesus was in some way distancing himself from his mother. It’s as if they conclude that his statement ignores her special role in his life. Nothing could be further from the truth. One thing we should take from this passage is that our Blessed Mother’s relationship with Jesus was lived on two levels. First, there was the physical motherhood she was blessed with. This was an incredible grace and one for which she deserves great honour. But her physical motherhood was not the primary reason for her blessedness. The primary reason was her spiritual motherhood. And this spiritual motherhood is seen shining in this passage. It is the result of her perfect “Yes” to God in all things. This is the primary reason for which she is to be honoured and called “blessed” for all ages. What role our Blessed Mother holds in your life?

-Fr. Alfred D’Souza

📚 मनन-चिंतन - 3

आज्ञाकारिता नम्र प्रेम या विनीत प्रेम का एक प्रमाण है। हमें उन लोगों के प्रति विनम्र प्रेम रखना चाहिए जिन्हें हमारे ऊपर अधिकार और जिम्मेदारी दी जाती है। यद्यपि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा पावन त्रित्व में एक समान हैं, पुत्र पिता से विनीत प्रेम या विनम्र प्रेम करते हैं। इस सत्य को संत पौलुस फिलिप्पियों के पत्र 2:5-8 में स्पष्ट करते हैं, जब वे कहते हैं, "आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें। वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।“

इस तरह प्रभु येसु ने अपना पुत्रानुरूप प्रेम प्रदर्शित किया। इसी प्रकार के प्रेम की वकालत करते हुए आज के सुसमाचार में, वे कहते हैं, " जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही मेरा भाई है, मेरी बहन और मरी माता" (मत्ती 12:50)। पिता ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए माता मरियम ईश्वर के पुत्र, येसु ख्रीस्त की माँ बन गई। पिता ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका कथन मुझ में पूरी हो जाये” (लूकस 1:38)। हम पिता की आज्ञा मानकर और उनकी इच्छा को पूरा करके पवित्र त्रिएक ईश्वर के साथ एक स्थायी संबंध स्थापित करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

One of the proofs of the docile love or submissive love is obedience. Submissive love is due to those who are given authority and responsibility over us. Although the Father, the Son and the Holy Spirit are equal in the Holy Trinity, the Son practises submissive love or docile love in relation to the Father. This is clearly described by St. Paul in Phil 2:5-8 when he says, “Let the same mind be in you that was in Christ Jesus, who though he was in the form of God, did not regard equality with God as something to be exploited, but emptied himself, taking the form of a slave, being born in human likeness. And being found in human form, he humbled himself and became obedient to the point of death— even death on a cross.” This is how the Son demonstrates the filial love. This is what he advocates when, in today’s Gospel, he says, “whoever does the will of my Father in heaven is my brother and sister and mother” (Mt 12:50). Mary became the mother of Jesus, the Son of God by her obedience to the will of the Father which she expressed in the words, “Here am I, the servant of the Lord; let it be with me according to your word” (Lk 1:38). We shall establish a lasting relationship with the Holy Trinity by obeying the Father and carrying out his will.

-Fr. Francis Scaria