10) सोदोम के शासको! प्रभु की वाणी सुनो। गोमारा की प्रजा! ईश्वर की शिक्षा पर ध्यान दो।
11) प्रभु यह कहता है: “तुम्हारे असंख्य बलिदानों से मुझ को क्या? में तुम्हारे मेढ़ों और बछड़ों की चरबी से ऊब गया हूँ। मैं साँड़ों, मेमनों और बकरों का रक्त नहीं चाहता।
12) जब तुम मेरे दर्शन करते आते हो, तो कौन तुम से यह सब माँगता है? तुम मेरे प्रांगण क्यों रौंदते हो?
13) मेरे पास व्यर्थ का चढ़ावा लिये फिर नहीं आना। तुम्हारे लोबान से मुझे घृणा हो गयी है। अमावस, विश्राम-दिवस और तुम्हारी धर्म-सभाएँ। मैं अन्याय के कारण ये सब समारोह सहन नहीं करता।
14) तुम्हारे अमावस और अन्य पर्वों से मुझे घृणा हो गयी है, ये मेरे लिए असह्य भार बन गये हैं।
15) जब तुम अपने हाथ फैलाते हो, तो मैं तुम्हारी ओर से आँख फेर लेता हूँ। मैं तुम्हारी असंख्य प्रार्थनाओं को अनसुना कर देता हूँ। तुम्हारे हाथ रक्त से रँगे हुए हैं।
16) स्नान करो, शुद्ध हो जाओ। अपने कुकर्म मेरी आँखों के सामने से दूर करो। पाप करना छोड़ दो,
17) भलाई करना सीखो। न्याय के अनुसार आचरण करो, पद्दलितों को सहायता दो, अनाथों को न्याय दिलाओ और विधवाओं की रक्षा करो।“
34) ’’यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर शांति लेकर आया हूँ। मैं शान्ति नहीं, बल्कि तलवार लेकर आया हूँ।
35) मैं पुत्र और पिता में, पुत्री और माता में, बहू और सास में फूट डालने आया हूँ।
36) मनुष्य के घर वाले ही उसके शत्रु बन जायेंगे।
37) जो अपने पिता या अपनी माता को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं है। जो अपने पुत्र या अपनी पुत्री को मुझ से अधिक प्यार करता है, वह मेरे योग्य नहीं।
38) जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं।
39) जिसने अपना जीवन सुरक्षित रखा है, वह उसे खो देगा और जिसने मेरे कारण अपना जीवन खो दिया है, वह उसे सुरक्षित रख सकेगा।
40) ’’जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है वह उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है।
41) जो नबी का इसलिए स्वागत करता है कि वह नबी है, वह नबी का पुरस्कार पायेगा और जो धर्मी का इसलिए स्वागत करता है कि वह धर्मी है, वह धर्मी का पुरस्कार पायेगा।
42) ’’जो इन छोटों में से किसी को एक प्याला ठंडा पानी भी इसलिए पिलायेगा कि वह मेरा शिष्य है, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।
1) अपने बारह शिष्यों को ये उपदेश देने के बाद ईसा यहूदियों के नगरों में शिक्षा देने और सुसमाचार का प्रचार करने वहाँ से चल दिये।
हम जो कुछ भी उदारता से देते हैं वह सौ गुना होकर हमारे पास वापस आता है यदि हम इस पर विश्वास नहीं करते हैं तो आइए हम एक सप्ताह के लिए उदार होने का प्रयास करें और देखें कि हमें क्या प्रतिफल मिलेगा। इनाम जो केवल पैसे तक ही सीमित नहीं है, हम अच्छे स्वास्थ्य, मन की शांति, पड़ोस में दोस्ती और इस तरह से इनाम प्राप्त कर सकते हैं। हमारे सुसमाचार में येसु ने उन लोगों के लिए पुरस्कार का उल्लेख किया है जो भले काम करते हैं भले ही भलाई और उदारता का कार्य कितना ही छोटा क्यों न हो। यह इस कारण से है कि यह देने में है कि हम हमेशा प्राप्त करेंगे और जितना अधिक हम देंगे उतना अधिक प्राप्त करेंगे।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Whatever that we generously give will come back to us a hundred fold if we don’t believe this let us try to be generous even for a week and see the reward that will be ploughed back to us. Reward that is not only limited with money, we may receive reward by way of good health, peace of mind, friendships in the neighborhood and the like. Jesus in our gospel mentions reward for those who do good no matter how small the act of goodness and generosity. Why? This is for the reason that it’s in giving that we would always receive and the more that we give the more that we would receive.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
शांति या तलवार
आज येसु हमें बताते है कि, वह हमारे लिए तीन चीजें लाये हैं- ‘‘तलवार, क्रूस और जीवन’’। येसु अपने शिष्यों को इसके संदर्भ में निर्देश देते हैं और स्वयं के साथ अपने शिष्यों को इसके लिए तैयार करते हैं क्योंकि आने वाला समय गुलाबों की सेज नहीं क्योंकि कुछ गुलाबों में काँटे भी है। क्या आप इसके लिए तैयार है? आज के पाठों का सारांश है कि, मेरे जीवन में ईश्वर की क्या प्राथमिकता हैं? यदि मेरे जीवन का आधार और केन्द्र ईश्वर है तो सब कुछ अच्छा ही होगा। यदि हम एक पवित्र और प्रार्थनामय जीवन जीएँ तो हम अपने स्वर्गीक पुरस्कार से वंचित ना होंगे।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा
Peace or Sword?
Today Jesus tells us that he came to bring us three things: “A Sword, a Cross, and a Life.” Jesus has been instructing his disciples and preparing them for what they’re getting themselves in for. And it’s not going to be a bed of roses because some of these roses are going to have thorns. Are you ready for this? The heart of today’s readings is to keep God always at the center of our lives and not crowd him out with concerns about all the things going on in the world that bother us. When God is the center, everything else will follow, including our relationships with our families and friends, and our prayer life will continue to grow. If we can keep our focus on Jesus each day, then we will surely not lose our Heavenly Reward.
✍ -Fr. Alfred D’Souza
प्रभु येसु ने अपने उपदेश में, हमारी सारी आत्मा, हमारे सारे हृदय, हमारे सारे मन और हमारी सारी शक्ति से प्रभु ईश्वर से प्रेम करने की सबसे बड़ी आज्ञा को दोहराया। यह प्रभु को पहला स्थान और केवल प्रभु को स्थान देने के बारे में है। अपने शिष्यों से प्रभु येसु यह पहला स्थान माँगता है - पिता, माता, पुत्री, पुत्र, बहन, भाई या मित्र से पहले का स्थान। यदि किसी शिष्य को दुनिया के किसी व्यक्ति और येसु के बीच चयन करना पड़ता है, तो उसे अनिवार्य रूप से येसु को ही चुनना होगा। कभी-कभी हम एक ऐसी स्थिति का सामना कर सकते हैं जहाँ येसु के साथ हमारा संबंध हमारे प्रिय जन के लिए हम से नफरत करने का कारण बन सकता है। इस तरह के मामले में भी, येसु के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को हमें बनाये रखना चाहिए। संत क्लारा और उनकी बहन एग्नेस को अपने परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा जब उन्होंने प्रभु के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया। संत थॉमस एक्विनास को अपने परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने अपना जीवन प्रभु को अर्पित करने का निर्णय लिया। जब वे रोम जा रहे थे, तब उन्हें उनके भाइयों ने पकड़ लिया और उन्हें दो साल तक एक कमरे में बंद रखा गया, जिस दौरान उनके माता-पिता और भाइयों ने उन्हें उनके निर्णय से पीछे हटाने की कोशिश की और उन्हें प्रलोभन देने के लिए एक वेश्या को भी उनके पास भेजा। लेकिन आखिरकार संत थॉमस का दृढ़ संकल्प जीत गया। प्रभु हमें अपने जीवन में ईश्वर की प्रधानता को समझने और स्वीकार करने के लिए ज्ञान दें और उसके अनुसार जीवन बिताने की कृपा दें।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Jesus in his teaching reiterated the greatest command to love the Lord God with all our soul, all our heart, all our mind and all our strength. It is about giving the first place to God and only place to God. From his disciples Jesus demands this first place – a place before father, mother, daughter, son, sister, brother or friend. If a disciple has to make a choice between anyone in the world and Jesus, she/he has to inevitably choose Jesus. Sometimes we may face a situation where our friendship with Jesus may make our dear ones to hate us. Even in such a case, our commitment to Jesus needs to be uncompromising. St. Clare and her sister Agnes had to face opposition from their family when they decided to dedicate their lives for God. St. Thomas Aquinas had to face opposition from his family when he wanted to offer his life to God. When he was going to Rome he was captured by his brothers and he was kept locked for two years during which his parents and brothers tried to dissuade him and even sent a prostitute to tempt him. But finally the determination of St. Thomas won. May the Lord give us wisdom to understand and accept the primacy of God in our lives.
✍ -Fr. Francis Scaria