जुलाई 13, 2024, शनिवार

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वर्ष का चौदहवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 6:1-8

1) राजा उज़्ज़ीया के देहान्त के वर्ष मैंने प्रभु को एक ऊँचे सिंहासन पर बैठा हुआ देखा। उसके वस्त्र का पल्ला मन्दिर का पूरा फ़र्श ढक रहा था।

2) उसके ऊपर सेराफ़म विराजमान थे, उनके छः-छः पंख थेः दो चेहरा ढकने, दो पैर ढकने और दो उड़ने के लिए

3) और वे एक दूसरे को पुकार-पुकार कर यह कहते थे, “पवत्रि, पवत्रि, पवत्रि है विश्वमडल का प्रभु! उसकी महिमा समस्त पृथ्वी में व्याप्त है।“

4) पुकारने वाले की आवाज़ से प्रवेशद्वार की नींव हिल उठी और मन्दिर धुएँ से भर गया।

5) मैंने कहा, “हाय! हाय! मैं नष्ट हुआ; क्योंकि मैं तो अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूँ और अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों को बीच रहता हूँ और मैंने विश्वमण्डल के प्रभु, राजाधिराज को अपनी आँखों से देखा“।

6) एक सेराफ़ीम उड़ कर मेरे पास आया। उसके हाथ में एक अंगार था, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से ले लिया था।

7) उस से मेरा मुँह छू कर उसने कहा, “देखिए, अंगार ने आपके होंठों का स्पर्श किया है। आपका पाप दूर हो गया और आपका अधर्म मिट गया है।“

8) तब मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी “मैं किसे भेजूँ? हमारा सन्देश-वाहक कौन होगा?“ और मैंने उत्तर दिया, “मैं प्रस्तुत हूँ, मुझ को भेज!“

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 10:24-33

24) ’’न शिष्य गुरू से बड़ा होता है और न सेवक अपने स्वामी से।

25) शिष्य के लिए अपने गुरू जैसा और सेवक के लिए अपने स्वामी जैसा बन जाना ही बहुत है। यदि लोगों ने घर के स्वामी को बेलज़ेबुल कहा है, तो वे उसके घर वालों को क्या नहीं कहेंगे?

26) ’’इसलिए उन से नहीं डरो। ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जावेगा।

27) मैं जो तुम से अंधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें फुस-फुसाहटों में कहा जाता है, उसे तुम पुकार-पुकार कर कह दो।

28) उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते, बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।

29) ’’क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के अनजाने में उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती।

30) हाँ, तुम्हारे सिर का बाल बाल गिना हुआ है।

31) इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।

32) ’’जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा।

33) जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।

📚 मनन-चिंतन

येसु के सच्चे और विश्वासयोग्य अनुयायी की क्या पहचान है? यह आज्ञाकारिता की निशानी है, एक सच्चा अनुयायी येसु के सुसमाचार को साझा करने की आज्ञा का पालन करता है। लेकिन आप कह सकते हैं कि कभी-कभी येसु को साझा करना कठिन होता है क्योंकि वातावरण येसु को साझा करने के लिए अनुकूल नहीं है। यदि यह मामला है तो आप येसु को कब साझा करने जा रहे हैं? यदि आप येसु को बांटने के लिए सही वातावरण की प्रतीक्षा करते हैं। हो सकता है कि सही माहौल बिल्कुल न आए। जैसा कि प्रेरितों को येसु द्वारा सुसमाचार साझा करने के लिए नियुक्त किया गया था, हमें भी ऐसा ही करने का कार्य सौंपा गया है। आइए हम येसु को साझा करने के लिए सही वातावरण की प्रतीक्षा न करें क्योंकि प्रत्येक वातावरण येसु के लिए सही है। आप येसु को साझा क्यों नहीं करते? और इस प्रक्रिया में येसु द्वारा आशीष प्राप्त करें क्योंकि येसु आपके द्वारा दूसरों के जीवन को आशीषित करना चाहता है।

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

What is the mark of a true and faithful follower of Jesus? It’s the mark of obedience, a true follower will obey the command of Jesus to share His good news. But you may say that sometimes it’s hard to share Jesus because the environment is not conducive for sharing Jesus. If this is the case when are you going to share Jesus? If you wait for the right environment to share Jesus. That right environment may not come at all, so you will not be able to share Jesus. As the apostles were commissioned by Jesus to share the gospel we too are tasked to do the same. Let us not wait for the right environment to share Jesus because every environment is right for Jesus. Why not share Jesus now? And in the process be blessed by Jesus as Jesus blesses others’ lives through you.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

दुनिया के लिए साक्षी

साक्षी वह होता है जो सबसे पहले कुछ सुनता या देखता है। येसु ने अपने शिष्यों को अपने प्रेम, क्षमा, मृत्यु और पुनरूत्थान के साक्षी होने के लिए बुलाया। येसु ने हमें भी इसी मकसद के लिए बुलाया है। येसु हमें स्मरण कराते हैं कि, यदि हम उनके साक्षी होंगे तो हमें किन परिस्थितियों का सामना करना पडेंगा। वह एक चुनौतीपूर्ण भावना-डर को स्वीकार करते हैं। डर के कारण शायद हम भी येसु के साक्षी होने से इंकार कर सकते हैं। हम चाहें बच्चे हो या वयस्क डर एक चुनौतीपूर्ण भावना है। वास्तव में आज के पाठ में येसु कहते हें - ‘‘डरो मत’’। तीन अवसरों पर तीन तरीकों से येसु हमसे आहवान करते हैं डरो मत। आइये हम ईश्वर से यह वरदान माँगे कि, हम दुनिया के लिए येसु के सच्चे साक्षी बन सकें।

- फादर अल्फ्रेड डिसूजा


📚 REFLECTION

Witness to the World

A witness is the one who hears or sees something in the first place. Jesus called his disciples to be his witnesses to his forgiveness, love, death and resurrection to the world. He has called us to do the same. Jesus reminds us of what we will encounter as we share what Jesus has done, how he forgives and how he has loved us. He takes on the very challenging emotion of fear. Fear can stop us from being a witness to what Jesus has done for us. Fear is one of the most challenging of human emotions whether you are a child or an adult. In fact, in our text for today, Jesus says, “Do Not Be Afraid,” three times…showing us, in three distinct ways how he is there for us…giving us three very compelling reasons why we have absolutely no reason to be afraid. We do receive constant Encouragement from Jesus to Witness to the World.

-Fr. Alfred D’Souza

📚 मनन-चिंतन - 3

आज प्रभु येसु हमें सभी भय और चिंताओं को छोड़ने के लिए आमंत्रित करते हैं तथा हम में से प्रत्येक के लिए ईश्वर की देखभाल और पूर्वप्रबंध पर भरोसा रखने को कहते हैं। प्रभु येसु पहले हमें समझाते हैं कि हमारे स्वर्गिक पिता आधे पैसे में बेचे जाने वाले गौरैया की देखभाल कैसे करते हैं। प्रभु का कहना है कि एक गौरैया भी स्वर्गीय पिता की आज्ञा के बिना जमीन पर नहीं गिर सकता है। फिर वे कहते हैं, "तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो"। इस बिंदु को स्पष्ट करने के लिए, एक महान शिक्षक की तरह वे इस तथ्य को प्रस्तुत करते हैं कि हमारे सिर के बाल भी गिने हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एक इंसान के सिर पर 80,000 से 1,20,000 बाल होते हैं। एक वर्ग इंच में 800 से 1290 बाल होते हैं। हम में से हर एक व्यक्ति हर दिन 50 से 100 बाल खो देता है। क्या यह जानना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है कि इनमें से एक भी बाल हमारे स्वर्गीय पिता की आज्ञा के बिना नहीं गिरता है?

ईसायाह 41: 10,13 में प्रभु कहते हैं, “ डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चिन्ता मत करो, मैं तुम्हारा ईश्वर हूँ। मैं तुम्हें शक्ति प्रदान कर तुम्हारी सहायता करूँगा, मैं अपने विजयी दाहिने हाथ से तुम्हें सँभालूँगा। ... मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ। मैं तुम्हारा दाहिना हाथ पकड़ कर तुम से कहता हूँ - मत डरो, देखो, मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।” इसायाह 43: 2 में, प्रभु कहते हैं, “यदि तुम समुद्र पार करोगे, तो मैं तुम्हारे साथ होऊँगा। जलधाराएँ तुम्हें बहा कर नहीं ले जायेंगी। यदि तुम आग पार करोगे, तो तुम नहीं जलोगे। ज्वालाएँ तुम को भस्म नहीं करेंगी”। आइए हम प्रभु पर भरोसा करना सीखें और उनकी शांति का आनंद लें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today Jesus invites us to give up all fears and anxieties and trust in his care and concern for each one of us. He first speaks about how the Heavenly Father cares for the sparrow which is sold for half a penny and yet it cannot fall to the ground without the Heavenly Father’s nod. Then he says, “you are of more value than many sparrows”. In order to vividly substantiate the point he makes, like a great teacher presents the fact that even the hairs of our head are all counted. Experts say that a human being has between 80,000 to 1,20,000 hairs on the head. In a square inch there are 800 to 1290 hairs. Each one of us lose between 50 to 100 hairs each day. Isn’t it great to know that none of these hairs fall without the knowledge of our heavenly Father?

In Is 41:10,13 the Lord says, “do not fear, for I am with you, do not be afraid, for I am your God; I will strengthen you, I will help you, I will uphold you with my victorious right hand… For I, the Lord your God, hold your right hand; it is I who say to you, “Do not fear, I will help you.” In Is 43:2, the Lord says “When you pass through the waters, I will be with you; and through the rivers, they shall not overwhelm you; when you walk through fire you shall not be burned, and the flame shall not consume you.” Let us learn to trust in the Lord and enjoy his peace.

-Fr. Francis Scaria