2) इस्राएल! अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट आओ, क्योंकि तुम अपने पापों के कारण गिर गये हो।
3) प्रार्थना का चढावा ले कर प्रभु के पास आओ और उस से यह कहो, ’’हमारा अपराध मिटा दे और हमारा सद्भाव ग्रहरण कर। हम तुझे बलिपशुओं के स्थान पर यह निवेदन चढाते हैं।
4) अस्सूर हमें बचाने में असमर्थ है। हम फिर कभी अपने घोडों पर भरोस नहीं रखेंगे और अपने हाथों की बनायी हुई मुर्ति से नहीं कहेंगे- तू हमारा ईश्वर है। प्रभु! तू ही अनाथ पर दया करता है।’’
5) मैं उनके विश्वासघात का घाव भर दूँगा। मैं सारे हृदय से उन को प्यार करूँगा; क्योंकि मेरा क्रोध उन पर से दूर हो गया है।
6) मैं इस्राएल के लिए ओस के सदृश बन जाऊँगा। वह सोसन की तरह खिलेगा और लेबानोन के बालूत की तरह जडे जमायेगा।
7) उसकी टहानियाँ फैलेंगी, उसकी शोभा जैतून के सदृश होगी और उसकी सुगन्ध लेबानोन के सदृश।
8) इस्राएली फिर मेरी छत्रछाया में निवास करेंगे और बहुत-सा अनाज उगायेंगे। वे दाखबारी की तरह फलेंगे-फूलेंगे और लेबानोन की अंगूरी की तरह प्रसिद्ध हो जायेंगे।
9) अब एफ्राईम को देवमूर्तियों से क्या? मैं ही उसकी सुनता और उसकी सुध लेता हूँ। मैं सदाबाहर सनोबर के सदृश हूँ- मुझ से ही उसे फल मिलते हैं।
10) जो समझदार है, वह इन बातों पर विचार करे। जो बुद्धिमान है, वह इन्हें अच्छी तरह जान ले। प्रभु के मार्ग सीधे हैं- धर्मी उन पर चलते हैं, किन्तु पापी उन पर ठोकर खा कर गिर जाते हैं।
16) ’’देखो, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों क़ी तरह भेजता हूँ। इसलिए साँप की तरह चतुर और कपोत की तरह निष्कपट बनो।
17) ’’मनुष्यों से सावधान रहो। वे तुम्हें अदालतों के हवाले करदेंगे और अपने सभागृहों में तुम्हें कोडे़ लगायेंगे।
18) तुम मेरे कारण शासकों और राजाओं के सामने पेश किये जाओगे, जिससे मेरे विषय में तुम उन्हें और गै़र-यहूदियों को साक्ष्य दे सको।
19) ’’जब वे तुम्हें अदालत के हवाले कर रहे हों, तो यह चिन्ता नहीं करोगे कि हम कैसे बोलेंगे और क्या कहेंगे। समय आने पर तुम्हें बोलने को शब्द दिये जायेंगे,
20) क्योंकि बोलने वाले तुम नहीं हो, बल्कि पिता का आत्मा है, जो तुम्हारे द्वारा बोलता है।
21) भाई अपने भाई को मृत्यु के हवाले कर देगा और पिता अपने पुत्र को। संतान अपने माता पिता के विरुद्ध उठ खड़ी होगी और उन्हें मरवा डालेगी।
22) मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, किन्तु जो अन्त तक धीर बना रहेगा, उसे मुक्ति मिलेगी।
23) ’’यदि वे तुम्हें एक नगर से निकाल देते हैं, तो दूसरे नगर भाग जाओ। मैं तुम से कहता हूँ तुम इस्रालय के नगरों का चक्कर पूरा भी नहीं कर पाओगे कि मानव पुत्र आ जायेगा।
क्या आप येसु के मिशन के लिए अपना जीवन देने के लिए तैयार हैं? यह उत्तर देने के लिए एक बहुत ही कठिन प्रश्न है लेकिन बहुत से लोग पहले से ही येसु के मिशन के लिए स्वेच्छा से अपनी जान देने का साहस कर चुके हैं। यह येसु की गवाही देने की उनकी ज्वलंत इच्छा है। वही येसु जो उन्हें धीरज धरने और उनके जीवन की कीमत पर भी अपने मिशन में लगे रहने की शक्ति देता है। येसु का सच्चा अनुयायी होना- कहना आसान है करना नहीं। यह कहना आसान है कि मैं एक ईसाई हूं लेकिन इस ईसाई की घोषणा को जीना पूरी तरह से एक अलग कहानी है। क्या आप येसु के मिशन के लिए अपना जीवन देने को तैयार हैं? जब आप अपना जीवन येसु को देते हैं तो आप भी उत्पीड़न का सामना करेंगे। लेकिन यहाँ जो सांत्वनादायक है वह आपके परीक्षणों और उत्पीड़न के बीच आप अपने जीवन में येसु की स्थायी उपस्थिति को महसूस करेंगे।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Are you ready to give your life for the mission of Jesus? This is a very hard question to answer but there are many already who dared to willingly give their lives for the mission of Jesus. What fuels them to give their lives when they have a choice not to give it? It’s their burning desire to witness for Jesus. The same Jesus who strengthens them to endure and continue with their mission even at the cost of their lives. To be a real follower of Jesus is easier said than done. It’s easy to say I am a Christian but to live this Christian pronouncement is another story altogether. How about you? Are you willing to give your life for the mission of Jesus? When you give your life to Jesus you will face persecution as well. But what is consoling here is the midst of your trials and persecution you also will feel the abiding presence of Jesus in your life.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
उत्पीड़न के लिए तैयारी
कल्पना कीजिए कि, जिस समय येसु प्रचार कर रहे थे, उस समय आप उनके अनुयायी थे। कल्पना कीजिए कि, वह नया राजा और मसीहा होंगे। जो आने वाला हैं उसके संदर्भ में बहुत आशा और उत्साह होगा। लेकिन फिर एकाएक येसु उपदेश देते हैं। वह कहते है कि, उनके अनुयायियों को सताया जाएगा और कोड़े मारे जायेंगे और यह उत्पीड़न बार-बार जारी रहेगा। इस ने शायद उनके अनुयायियों को गंभीरता से सोच में डाल दिया होगा। खीस्तयों का उत्पीड़न सदियों से एक तथ्य रहा है। हमारी इसके प्रति क्या प्रतिक्रिया हैं? इस परिस्थिति में हमें येसु की शिक्षाओं का अनुसरण करना चाहिए और उनके सामर्थ्य पर भरोसा करना चाहिए।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा
Prepare for Persecution
Imagine yourself being a follower of Jesus at the time he was preaching. Imagine that he will be the new King and is the Messiah. There would be much hope and excitement about what is to come. But then, out of the blue, Jesus gives this sermon. He says that his followers will be persecuted and scourged and that this persecution will continue over and over. This must have made his followers stop and seriously question whether it is worth following him? The persecution of Christians has been a fact throughout the ages. It has happened in every time and in every culture. It continues to be so even today. So what we have to do with that? How do we respond? How ready and willing are you to face the hostility of the world? You should not react with similar hostility; rather, you must strive to have courage and strength to endure any and every persecution with the help, strength and wisdom of Christ.
✍ -Fr. Alfred D’Souza
आज के विज्ञापन और व्यापार प्रचार की दुनिया में, झूठ से सच को अलग करना मुश्किल है। विज्ञापन स्वास्थ्य, धन, नाम, प्रसिद्धि, सौंदर्य, आकर्षण, सफलता, लोकप्रियता, आनंद और मनोरंजन के लिए बुनियादी मानव लालसा को अपील करने की कोशिश करता है। प्रभु येसु कठोर सत्य और केवल सत्य बोले, क्योंकि वे सत्य हैं, परम सत्य हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और उन्हें साफ बताया कि वे उनसे क्या उम्मीद कर रहे थे, वास्तव में इस दुनिया में उन्हें किन-किन चुनौतियों का सामना करना पडेगा और परलोक में उन्हें क्या प्राप्त हो सकता है। उन्होंने अपने शिष्यों से स्पष्ट रूप से कहा कि वे लोगों से किस तरह की प्रतिक्रिया पायेंगे और समाज में उन्हें किस प्रकार का व्यवहार देखने को मिलेगा। उन्होंने अस्वीकृति, उत्पीड़न, अपमान और असफलताओं की संभावना शिष्यों से नहीं छिपाई। वे चाहते थे कि शिष्य इस तरह की प्रतिबद्धता की मांगों को जानने के बाद ही उनके और उनके संदेश के लिए एक प्रतिबद्धता बनाएं। साथ-साथ वे अपने शिष्यों को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे हमेशा और हर परिस्थिति में उनके साथ रहेंगे। मुझे इसके अलावा और क्या चाहिए?
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
In today’s world of advertisement and business promotion, it is difficult to separate truth from lie, the essence from the peripheral. Advertising tries to appeal to basic human craving for health, wealth, name, fame, beauty, attractiveness, success, popularity, pleasure and entertainment. Jesus spoke hard truth and only truth, because He is the Truth, the Ultimate Truth. He called his disciples and told them about what they were expected to do and what in reality was in store for them in this world and in the next. He spoke plainly to his disciples about the kind of response they would get from people and the reactions they would experience in the society. He did not hide the possibility of rejection, persecution, humiliation and failures. He wanted them to make a commitment for him and his message after knowing the demands of such a commitment. But he offers comfort to his disciples by assuring that he would be with them always and in every situation. What more do I need?
✍ -Fr. Francis Scaria