4) तुम लोग मेरी यह बात सुनो, तुम जो दीन-हीन को रौंदते हो और देश के गरीबों को समाप्त कर देना चाहते हो।
5) तुम कहते हो, ‘‘अमावस का पर्व कब बीतेगा, जिससे हम अपना अनाज बेच सकें ? विश्राम का दिन कब बीतेगा, जिससे हम अपना गेहूँ बेच सकें? हम अनाज की नाप छोटी कर देंगे, रुपये का वजन बढ़ायेंगे और तराजू को खोटा बनायेंगे।
6) हम चाँदी के सिक्के से दरिद्र को खरीद लेंगे और जूतों की जोड़ी के दाम पर कंगाल को। हम गेहूँ का कचरा तक बेच देंगे।’’
9) यह प्रभु की वाणी हैः ‘‘उस दिन मैं मध्यान्ह में ही सूर्य को डुबा दूँगा और दोपहर में ही पृथ्वी पर अन्धकार फेलाऊँगा।
10) मैं तुम्हारे पर्वों को शोक में और तुम्हारे गीतों को विलाप में बदल दूँगा। मैं सबों को टाट के कपड़े पहनाऊँगा और सबों के सिर का मुण्डन कराऊँगा। मैं इस देश को वही शोक दिलाऊँगा, जो एकलौते पुत्र के लिए होता है और इसका अन्तिम दिन बहुत कड़ा होगा।''
11) यह प्रभु की वाणी है: ‘‘वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस देश में भूख भेजूँगा- रोटी की भूख और पानी की प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास।
12) तब वे प्रभु की वाणी की खोज में एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक दौड़ते फिरेंगे और उत्तर से पूर्व तक भटकते रहेंगे, किन्तु वे उसे कहीं भी नहीं पायेंगे।
9) ईसा वहाँ से आगे बढ़े। उन्होंने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी-घर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ’’, और वह उठकर उनके पीछे हो लिया।
10) एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करने लगे।
11) यह देखकर फरीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, ’’तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?’’
12) ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, ’’नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है।
13) जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है- मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।’’
क्या आप महसूस करते हैं कि येसु आपको एक नया जीवन जीने के लिए बुला रहे हैं, पाप से मुक्त एक नया जीवन? मत्ती के अलावा जिसे येसु ने अपने पीछे चलने के लिए बुलाया था, हम भी प्रभु द्वारा बुलाए जा रहे हैं। हम कह सकते हैं कि हम येसु के पीछे चलने के योग्य नहीं हैं, लेकिन हममें से कौन योग्य हैं? कोई नहीं क्योंकि हम सब इस संसार के पापी जीव हैं। मत्ती को येसु के द्वारा उसका अनुसरण करने के लिए बुलाया गया था क्योंकि वह एक पापी था। यह येसु का चरित्र और मिशन है कि वह हर पापी को अपने पीछे चलने के लिए आमंत्रित करते है। मत्ती ने येसु की बुलाहट का अनुसरण क्यों किया? शायद किसी ने उसे येसु के प्रेम और अथाह दया को साझा किया था। हमारे सामने चुनौती हमारे समय के कई मत्ती (पापियों) को येसु में हमारे विश्वास को साझा करने और जीने की है। हम येसु की दया और प्रेम को साझा क्यों नहीं करते है? क्या आप आज येसु को साझा करेंगे?
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Do you feel that Jesus is calling you to live a new life, a new life free of sinfulness? Aside from Matthew whom Jesus called to follow Him we too are being called by the Lord. We may say that we are not worthy to follow Jesus but who amongst us are worthy? No one for we are all sinful creatures of this world. Matthew was called by Jesus to follow Him for the precise reason that he was a sinner. This is the character and mission of Jesus to call every sinner to follow Him. Why did Matthew follow Jesus call? Perhaps somebody had shared to him the love and unfathomable mercy of Jesus. The challenge before us is to share and live our faith in Jesus to the many Matthews (Sinners) of our time. Why not share the mercy and love of Jesus? Would you share Jesus today?
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
पापी के लिए दया
येसु के समय में, जैसा कि, हमारे समय में भी होता है, कुछ लोग ‘‘हम बनाम उनके’’ के सिद्धांत या ‘‘आपसे अधिक पवित्र’’ के दृष्टिकोण के साथ जीते हैं। फरीसियों ने सोचा कि, वे पवित्र हैं और वे नाकेदारों और पापियों के पास नहीं आ सकते हैं अन्यथा वे दूषित हो जायेंगे। येसु का मिशन लोगों को ईश्वर के पास वापस लाना है। येसु लोगों को अपने पडोसियों से प्यार करना सिखाते है, भले चाहे उनका अतीत कुछ भी हो। येसु सिर्फ ‘‘आप जो उपदेश देते हैं उसका अभ्यास करें’’ के सिद्धांत को जी रहे थे। हमे ज्ञात है कि, हम सभी पापी है और हमें ईश्वरीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है। ईश्वर हमसे प्यार करता है और हमें स्वीकार करता है चाहे हम कितने भी पापी क्यों ना हो। चर्च जाना और उसमें सभी गतिविधियों में भाग लेने से परे ईश्वर और पड़ोसी से प्यार करने के हमारे दायित्व को हमें प्राथमिकता देनी है। इसका अर्थ है ‘‘मैं दया चाहता हूँ’’, बलिदान नहीं।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा
Mercy for the Sinner
In Jesus’ time, as in our time, some people live with the principle of “we versus them” or the attitude of “holier than you”. The Pharisees in particular thought they were holy and they cannot come near sinners like the tax collectors or else they will be contaminated. The mission of Jesus is to bring back people to God. Jesus teaches the people to love their neighbours whatever may be the background of those neighbours. He was just living the principle of “practice what you preach”. Let us be aware that we are all sinners and are in need of divine intervention. God loves us and accepts us no matter how sinful we are. His only desire for us is to love Him back. Going to church and participating in all the activities therein should be secondary to our obligation to love God and neighbour. This is the meaning of “I desire mercy, not sacrifice”.
✍ -Fr. Alfred D’Souza