1) इस्राएलियों! सुनो! प्रभु तुम से, उस समस्त प्रजा से, जिसे वह मिस्र से निकाल लाया है, यह कहता हैः
2) "मैंने पृथ्वी के सब राष्ट्रों में से तुम लोगों को ही चुना है। इसलिए मैं तुम्हारे अपराधों के कारण तुम्हें दण्डित करूँगा।
3) "क्या दो व्यक्ति साथ-साथ यात्रा करेंगे, जब तक उन्होंने पहले से तय न कर दिया हो?
4) क्या सिंह जंगल में गरजता है, जब तक उसे शिकार न मिला हो? क्या सिंह-शावक अपनी माँद में गुर्राता है, जब तक उसे कुछ न मिला हो? क्या पक्षी पृथ्वी पर फंदे में पडता है, जब उस में कोई चारा नहीं हो?
5) क्या फन्दा ज़मीन पर से उछलता है, जब तक उस में शिकार न आया हो?
6) क्या नगर में सिंघे की आवाज सुनाई देगी और लोग डरेंगे नहीं? क्या नगर पर ऐसी विपत्ति आ सकती है, जिसे प्रभु ने वहाँ न भेजा हो?
7) क्योंकि प्रभु-ईश्वर नबियों, अपने सेवकों को सूचना दिये बिना कुछ नहीं करता।
8) सिंह गरजा है, तो कौन नहीं डरेगा? प्रभु-ईश्वर बोला है, तो कौन भवियवाणी नहीं करेगा?"
4छ11) "जिस प्रकार ईश्वर ने सोदोम और गोमोरा का सर्वनाश किया था, उसी प्रकार मैंने तुम पर विपत्ति भेजी है। तुम आग में से निकाली हुई लुआठी-जैसे बन गये थे। फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे।" यह प्रभु की वाणी है।
12) "इस्राएल! इसलिए मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा। और क्योंकि मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा, इस्राएल! तुम अपने ईश्वर के सामने आने के लिए तैयार हो जाओ।"
23) ईसा नाव पर सवार हो गये और उनके शिष्य उनके साथ हो लिये।
24) उस समय समुद्र में एकाएक इतनी भारी आँधी उठी कि नाव लहरों से ढकी जा रही थी। परन्तु ईसा तो सो रहे थे।
25) शिष्यों ने पास आ कर उन्हें जगाया और कहा, प्रभु! हमें बचाइए! हम सब डूब रहे हैं!
26) ईसा ने उन से कहा, अल्पविश्वासियों! डरते क्यों हो? तब उन्होंने उठ कर वायु और समुद्र को डाँटा और पूर्ण शाति छा गयी।
27) इस प्रर वे लोग अचम्भे में पड कर, बोल उठे, "आखिर यह कौन है, वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते है।"
जब आप अपने जीवन के तूफानों से गुजरते हैं तो क्या आप हमेशा येसु की सहायता चाहते हैं? येसु के साथ नाव में शिष्यों को एक बहुत शक्तिशाली तूफान का सामना करना पड़ा। वे स्वाभाविक रूप से भयभीत थे इसलिए उन्होंने येसु से मदद मांगी, उन्होंने उससे कहा; प्रभु हमें बचाइए! हम सब डूब रहे हैं (मत्ती 8:25)। आपने अपने जीवन में कितनी बार तूफानों का सामना किया है? कई बार शायद, हर तूफान में जिसका आप सामना करते हैं हमेशा याद रखें कि येसु हमेशा हमारे साथ है। हमेशा हमारी मदद करने और हमें उन तूफानों से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए तैयार हैं जिनका आप सामना करते हैं। आपके जीवन में येसु के होने का यही लाभ है। जब भी आप विपत्ति में होते हैं तो आपको बचाने के लिए आपके पास हमेशा कोई बहुत शक्तिशाली होता है। आपके पास हमेशा कोई न कोई होता है जो आपके डर को दूर कर देगा, यहां तक कि आपके बड़े और सबसे बड़े डर को भी। जब भी आप अपने जीवन के तूफानों से गुजरते हैं, क्या आप हमेशा येसु की सहायता चाहते हैं?
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Do you always seek the help of Jesus when you pass through the storms of your life? While in the boat with Jesus the disciples encountered a very powerful storm. They were naturally terrified so they asked Jesus for help, they said to Him; “Lord save us we are perishing (Matthew 8:25)!” How many times have you encountered storms in your life? Many time over perhaps, in every storm that you encounter always remember that Jesus is always there for you. Ever ready to help you and bring you out safely of these storms that you encounter and may encounter still. This is the advantage of having Jesus in your life. You always have somebody very powerful to rescue you whenever you are in distress. You always have somebody who will take away your fears, even your biggest and greatest fears. Do you always seek the help of Jesus whenever you pass through the storms of your life?
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
संकट भले ही दुखदायी और कष्ट देती है परंतु उसमें एक अच्छाई यह है कि संकट यह उजागर कर देती है कि हम प्रभु पर कितना आश्रित या भरोसा रखते हैं। क्या हमारा भरोसा एक संकट आने पर टूट जाता है। आज के सुसमाचार में जब येसु और शिष्य नाव पर यात्रा कर रहे थे तब अचानक आँधी उठी कि नाव लहरों से ढकी जा रही थी। शिष्य डर कर येसु को पुकारते है और येसु आँधी को शांत कर देते है। प्रभु उन से कहते है, ‘अल्पविश्वासियों, डरते क्यों हों? हमारा प्रभु पर भरोसा की परख अच्छे समय पर नहीं परंतु जब समय बुरा हो तब पता चलता है। यदि हम हर छोटे छोटे संकट से घबराते है तो हमारा भरोसा बहुत ही नाजुक है जिसे हमें मजबूत बनाने की जरूरत है। आइये इस हेतु हम प्रार्थना करें।
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा, भोपाल
Crisis may be painful and bad, but it has one good thing that crisis reveals i.e., how much we depend or trust in GOD. Do our trusts break when a crisis strikes? In today's gospel, when Jesus and the disciples were traveling on a boat, suddenly a storm arose that the boat was being covered by waves. The disciples call out to Jesus in fear and Jesus calms the storm. The Lord says to them, 'O Little faiths, why did you afraid? Our trust in the Lord is not tested at good times but when times are bad. If we are afraid of every little troubles then our trust is very fragile which we need to strengthen. Let us pray for this.
✍ -Fr. Dennis Tigga, Bhopal
आज के सुसमाचार में हम येसु के अपने शिष्यों के साथ नाव में यात्रा करने के वर्णन को पाते हैं। इसी दौरान तूफान तथा तेज हवायें नाव को डुबाने लगती है। शिष्य इस विपदा से घबरा जाते हैं तथा वे येसु को जो सो रहे थे को जगा कर कहते हैं, ’’प्रभु हम डुब रहें हैं क्या आपको इसकी चिंता नहीं।’’ येसु उठकर आंधी-तूफान को शांत करते हैं।
अब एक प्रश्न उठता है। जब येसु आंधी-तूफान को शांत कर सकते थे तो क्या उनको यह जानकारी नहीं थी कि तूफान भी आने वाला है! येसु निश्चित तौर पर जानते थे कि शीघ्र ही एक बडा तूफान उनका इंतजार कर रहा है। इसके बावजूद भी उन्होंने अपने शिष्यों ने इस बारे में पहले से सचेत नहीं किया। इस प्रकार वे शिष्यों को एक निश्चित तूफान की ओर ले चले।
जब हम ईश्वर का अनुसरण करते हैं तथा वहॉ जाते हैं जहॉ वह हमें ले जाना चाहता है तो हमें संघर्षों और परीक्षाओं से गुजरना पडता है। यह ईश्वर की योजना का हिस्सा होता है। ईश्वर उन सभी संघर्षों और परीक्षाओं के द्वारा हमारा निमार्ण करता तथा हमें उसकी योजना अनुसार ढालता है। वह हमारे संघर्षों के दौर के द्वारा उसकी संसार पर अपनी महिमा भी प्रकट करना चाहता है।
येसु एक उददेश्य हेतु उन्हंे तूफान का सामना करने के लिये जानबूझ कर ले चले। वे उनका विश्वास बढाना चाहते थे, वे उन्हें बताना चाहते थे कि वे कौन है! संत याकूब बताते हैं, 2) ’’जब आप लोगों को अनेक प्रकार की विपत्तियों का सामना करना पड़े, तो अपने को धन्य समझिए। आप जानते हैं कि आपके विश्वास का इस प्रकार का परीक्षण धैर्य उत्पन्न करता है। धैर्य को पूर्णता तक पहुँचने दीजिए, जिससे आप लोग स्वयं पूर्ण तथा अनिन्द्य बन जायें और आप में किसी बात की कमी नहीं रहे।’’ (याकूब 1ः2-4) ईश्वर जीवन के तूफानों के द्वारा हमें परिपक्व बनाता है जिससे हमारे विश्वास में कोई कमी न रह जाये तथा समझदार बने। जितना हम तूफानों का सामना करते हैं उतना ही येसु की उपस्थित का अहसास होता है क्योंकि वास्तव में वे तूफानों का शांत करते हैं। वे हमें सिखाते है तथा हर बार हम से पूछते हैं, क्या तुम विश्वास करते हो?’’ आईये हम भी अपने जीवन के संघर्षों सामना येसु के साथ करें।
✍ -फादर रोनाल्ड वाँन, भोपाल
In today’s gospel we have the incident of the boat carrying Jesus and the disciples getting in the middle of the storm. The disciples were terrified and panicked to the point of death so in their desperation they called to the Lord, “Lord don’t you care for we are perishing!” The Lord calmed the storm and rebuked the wind.
Now a matter to be considered is, if the Lord had the power to calm the winds and storm then when he got into the boat, he definitely knew that the storm would also be coming. Lord for sure knew that a big wind and storm are on the way yet he didn’t warn the disciples. Above all why to make a journey at all if the storms are on the way? In fact he led into the storm.
As we follow where God leads us, we encounter trials and struggles, but that's part of the plan! God uses those trials to shape and mould us into the people He desires for us to become. Through these trials and struggles he wants that His glory to be revealed to the world!
Jesus led them into those storms on purpose… to grow their faith… and to help them see and understand who He really is… Yet there is another purpose for these trial.
James 1:2-4 says “…whenever you face trials of any kind, consider it nothing but joy, because you know that the testing of your faith produces endurance; and let endurance have its full effect, so that you may be mature and complete, lacking in nothing.”
God leads us into these trials so that we can become mature and complete. So that we are lacking nothing in our walk with the Lord. God continues to test us using these trials. He continues to ask time-after-time, “Do you trust Me?”
✍ -Rev. Fr. Ronald Vaughan, Bhopal